Friday, February 5, 2010

मध्यप्रदेश में भी चलाया जाएभ्रष्टïाचार के खिलाफ ब्रह्मïास्त्रअपनी ईमानदार छवि के लिए पहचाने जाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने देश के विकास और खुशहाली को निगल रहे भ्रष्टïाचार पर अपना ब्रह्मïास्त्र चला दिया है। मंत्रियों एवं मुख्यमंत्रियों को लिखे तदाशय के पत्र में उन्होंने इस सिलसिले में जो उपाय सुझाए हैं, वे मंत्री स्तरीय भ्रष्टïाचार के खिलाफ एक सशक्त मोर्चेबंदी माने जा सकते हैं और यदि बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के इसका शब्दश: पालन किया जाए तो भ्रष्टïाचार नियंत्रण में यह एक दूरगामी कदम सिद्ध हो सकता है। उन्होंने सभी मंत्रियों- मुख्यमंत्रियों से उनकी तथा उनके सगे संबंधियों की चल अचल संपत्ति व व्यावयायिक हितों का खुलासा करने के लिए कहा है। लायसेंस, परमिट और लीज कबाडऩे में जुटे रहने वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के साथ साठगांठ के मामले में अतीत में कई मंत्री भी दागदार रहे हैं। इस दृष्टिï से ऐसे प्रतिष्ठïानों से ताल्लुक न रखने की प्रधानमंत्री की सलाह भी काफी वजन रखती है। उपहार के जरिये भ्रष्टïाचार की फल फूल रही परंपरा पर प्रभावी अंकुश लगाने की गरज से उन्होंने इन मंत्रियों- मुख्यमंत्रियों को लगे हाथों यह नायाब सलाह भी दे डाली है कि वे अपने करीबी रिश्तेदारों को छ$ोड़कर अन्य किसी से भी तोहफे कबूल न करें। इसके साथ ही मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में कई आला अफसरों पर आयकर के छापों से केंद्र ने यह संकेत भी दिया है कि भ्रष्टïाचारी नौकरशाहों की भी अब खैर नहीं है। प्रधानमंत्री की इस सार्थक पहल ने अन्य राज्यों के लिए एक ऐसी मिसाल पेश की है जो अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय हो सकती है। मध्यप्रदेश जैसे राज्य में जहां पिछली तथा वर्तमान सरकारों के कई कद्दावर मंत्रियों तक पर भ्रष्टïाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं, ऐसी प्रभावी मुहिम वक्त का तकाजा है। प्रधानमंत्री की तरह राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की ईमानदार छवि एवं निष्कंटक नेतृत्व ऐसी मुहिम में उनकी ताकत बन सकता है। शिवराज सिंह प्रधानमंत्री के इस पत्र की ही तर्ज पर राज्य में मंत्रियों के भ्रष्टïाचार पर नकेल कसने की प्रभावी कवायद करें तो जहां एक ओर उनकी सरकार के जनकल्याणकारी कार्यों को गति मिलेगी वहीं उनके नेतृत्व में जनविश्वास बढ़ेगा। शर्त यही है कि इस मुहिम के लिए बिना किसी भेदभाव के चलाया जाए। उसके लिए बाकायदा एक सुनियोजित रणनीति बनाई जानी चाहिए और उसपर प्रभावी तरीके से अमल किया जाए। इस रणनीति के शुरुआती चरण में मंत्रियों एवं उनके करीबी रिश्तेदारों की चल अचल संपत्ति की समयबद्ध घोषणा अनिवार्य की जाए और उनका मूल्यांकन भी किया जाए। लेकिन इसके साथ ही उन तमाम माध्यमों पर भी पाबंदी लगाई जानी चाहिए जिनके जरिये मंत्री बेशुमार दौलत हासिल कर कुछ ही समय में समृद्धि के झूले में झूलने लगते हैं। बिना नौकरशाहों के सहयोग के मंत्रियों के भ्रष्टïाचार की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि रातोंरात संपन्नता की मंत्रियों की महत्वाकांक्षाओं को रास्ता यही नौकरशाह दिखाते हैं। नौकरशाहों की आलीशान कोठियां और व्यवसायों में इनकी हिस्सेदारी की छानबीन से यह आसानी से सिद्ध हो सकता है कि भ्रष्टïाचार के इस खेल में वे भी उतने ही बड़े खिलाड़ी हंै। इसलिए भ्रष्टï नौकरशाहों की जांच एवं उनपर समुचित कार्रवाई सरकार एवं प्रशासन दोनों के आचरण के शुद्धीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। सिर्फ सरकार के भरोसे राज्य में भ्रष्टïाचार मुक्त शासन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसके लिए सत्तारूढ़ पार्टी को भी आगे आना होगा और उन सभी मंत्रियों को यह साफ संकेत देना होगा कि यदि उन्होंने अपने तौर तरीके नहीं बदले तो उनका राजनीतिक केरियर अंधकार में पड़ सकता है।हमें यह खुशफहमी हो सकती है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हम अपने वोटों की ताकत से सरकारें चुनने और उनके जरिये देश की तकदीर बदलने की ताकत रखते हैं लेकिन त्रासद तथ्य यही है कि हम चुनाव तक हमारी गणेश परिक्रमा करने वाले ये नेता सत्ता पाते ही हम मतदाताओं को भूल जाते हैं और विकास की मद में स्वीकृत होने वाली अधिकांश राशि भ्रष्टïाचार के जरिये इनकी तिजोरियों में जमा होती रहती है। परिणाम यह होता है कि हम विकास एवं खुशहाली को तरसते हुए अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं। भ्रष्टïाचार की बहती गंगा में डुबकी लगाने वालों में सरकारी मंत्री या सत्तारुढ़ दल के विधायक व नेता ही नहीं बल्कि आला अफसर भी पूरे श्रद्धाभाव से शामिल होते हैं। देश प्रदेश के सार्थक विकास के लिए सरकार के आचरण को संदेह के दायरे से मुक्त करना प्रकारांतर से लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करना ही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी भ्रष्टïाचार मुक्ति के यज्ञ में अपनी हिस्सेदारी का परिचय देगी।
-सर्वदमन पाठक

Thursday, February 4, 2010

सिर्फ चिंता नहीं बल्कि कार्रवाई से मिटेगा भ्रष्टïाचार

यह कोई रहस्य नहीं है कि सरकारों द्वारा आम तौर पर तो जनता के हितों की रक्षा की कसमें खाई जाती हैं और सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों में इसका भरपूर दिखावा भी किया जाता है कि उनका उद्देश्य सिर्फ आम आदमी का कल्याण ही है लेकिन वास्तविकता यह है कि भ्रष्टïाचार के कारण इन कार्यक्रमों के लिए निर्धारित बजट का काफी छोटा हिस्सा ही इसमें इस्तेमाल हो पाता है और बाकी हिस्से की राशि नौकरशाहों तथा जनप्रतिनिधियों द्वारा बंदरबांट कर ली जाती है। इसका स्वाभाविक परिणाम यही होता है कि मंत्री, विधायक तथा सत्ता से जुड़े तमाम नेताओं के साथ ही आला अफसरों की तिजोरियां भ्रष्टïाचार की इस धनराशि से लगातार भरती रहती हैं और वे संपन्नता की जिंदगी जीते हैं जबकि प्रदेश की आम जनता विकास के लाभ से वंचित रहती है और बदहाली एवं कंगाली का जीवन जीना उसकी मजबूरी होती है। भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपने भोपाल दौरे के दौरान नगरीय निकायों के निर्वाचित पदाधिकारियों के सम्मेलन में जनप्रतिनिधियों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टïाचार पर चिंता जता कर इसी समस्या की ओर संकेत किया है। उन्होंने इन जनप्रतिनिधियों को इस मामले में आगाह करते हुए कहा कि वे यदि खुद भ्रष्टï होंगे तो वे अन्यों के भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा पाएंगे। इस सम्मेलन में अन्य प्रादेशिक कद्दावर भाजपा नेताओं ने चिंता की इस बहती गंगा में हाथ धोकर यह दिखाने का भरपूर प्रयास किया कि वे खुद नैतिकता के कितने बड़े हिमायती हैं। इस सम्मेलन में निष्ठïा एवं सेवा का पाठ भी इन जनप्रतिनिधियों को भरपूर पढ़ाया गया। यह फिलहाल भविष्य के गर्भ में है कि आड़वाणी के इस भाषण से ये जनप्रतिनिधि नैतिकता एवं जनसेवा के लिए किस हद तक संकल्पबद्ध होते हैं और राज्य की भाजपा सरकार भ्रष्टाचार पर आड़वाणी की इस ंिचंता को खुद कितनी गंभीरता से लेती है लेकिन केंद्र सरकार ने शायद आड़वाणी की चिंता को कहीं ज्यादा संजीदगी से ले लिया है। जहां तक नौकरशाही का सवाल है, केंद्र सरकार ने उनके भ्रष्टïाचार को नियंत्रित करने का काम शुरू कर दिया है। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए केंद्र सरकार ने अचल संपत्ति का ब्योरा देना अनिवार्य कर दिया है। लेकिन भ्रष्टïाचार के नियंत्रण के लिए यह एक छोटा सा कदम है। दरअसल इसमें अन्य अधिकारियों तथा राजनीतिक नेताओं के भ्रष्टïाचार पर अंकुश लगाना बहुत ही जरूरी है। केंद्र सरकार को हर मंत्री एवं सांसद की संपत्ति का वार्षिक ब्योरा सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध कराने की पहल करनी चाहिए। इस मामले में राज्य की भाजपा सरकार को भी अपनी जवाबदेही निभानी होगी और यह सिद्ध करना होगा कि वह सिर्फ जुबानी जमाखर्च नहीं करती बल्कि ठोस कदम भी उठाती है। गौरतलब है कि पहले यह प्रावधान था कि राज्य के मंत्रियों को अपनी संपत्ति का वार्षिक ब्योरा प्रस्तुत करना होगा लेकिन शिवराज सिंह के पिछले कार्यकाल में इस प्रावधान को शिथिल कर दिया गया था। अब राज्य सरकार को इस प्रावधान को सख्ती से लागू करना चाहिए ताकि वह इस मामले में पारदर्शिता का दावा कर सके। भाजपा यदि वास्तव में जनविश्वास की कसौटी पर खरी उतरना चाहती है तो उसे राजनीति में नैतिकता एवं ईमानदारी के लिए संकल्पबद्धता दिखानी होगी ताकि जन कल्याण के लिए बनाये जाने वाले कार्यक्रमों का लाभ जनता को मिल सके।
-सर्वदमन पाठक

Wednesday, February 3, 2010

कही-अनकही

इनका कहना है-
शिवसेना की यह थ्योरी खतरनाक है कि मुंबई सिर्फ महाराष्टिï्रयनों की है। देश की यह आर्थिक राजधानी सभी की है और सभी भारतवासियों को मुंबई में रहने और वहां काम करने का हक है। आईपीएल में भाग लेने वाले आस्ट्रेलियाई एवं पाकिस्तानी खिलाडिय़ों को शिवसेना की धमकी के परिप्रेक्ष्य में उन्हें केंद्र पूर्ण सुरक्षा की गारंटी देता है।पी चिदंबरम, केंद्रीय गृहमंत्री..........................................
मुंबई सभी भारतवासियों की है। समूचा भारत सभी भारतवासियों का है और वे कहीं भी जाकर अपनी आजीविका कमा सकते हैं। हमारी भाषा, जाति, उपजाति अथवा जनजाति अलग अलग हो सकती है लेकिन हम सभी भारतमाता के पुत्र हैं। यह धारणा गलत है कि बाहरी लोगों के कारण महाराष्टï्र में नौकरियां कम हो गई हैं और इसका समाधान अवश्य निकाला जाना चाहिए लेकिन इसका यह समाधान कतई नहीं है कि बाहरी लोगों यहां आने से रोक दिया जाए।
मोहन भागवत, सरसंघचालक, राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ
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मुंबई मराठी मानुस की है। राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ महाराष्टï्र की राजधानी के बारे में कोई दखलंदाजी न करे और हमें देशभक्ति एवं राष्टï्रीय एकता का पाठ न पढ़ाये। मुंबई के 92 के दंगों के दौरान हिंदुओं की रक्षा शिवसेना ने ही की थी, उस समय संघ कहां था।उद्धव ठाकरे, कार्यकारी अध्यक्ष शिवसेना
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लोग क्या सोचते हैं?
यह विचार ही अलगाववादी सोच का प्रतीक है कि मुंबई सिर्फ मराठियों की है। दरअसल मुंबई देश का ही एक हिस्सा है और संविधान के अनुसार देश के अन्य हिस्सों की तरह मुंबई में भी किसी भी देशवासी को रहने और आजीविका कमाने का हक है। आजकल विश्व में सबसे खूबसूरत एव समृद्ध शहरों में शुमार मुंबई के वर्तमान स्वरूप के निर्माण में सिर्फ मुंबईवासियों ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले भारतीयों की मेधा तथा खून पसीने का भी काफी बड़ा योगदान है। शिवसेना अपने स्थापनाकाल से ही वोटों की राजनीति के कारण खुद को मराठियों के सबसे बड़े हितरक्षक के रूप में प्रचारित करती रही है लेकिन अब परिस्थतियां बदल चुकी हैं और शिवसेना को शायद यह अंदाजा नहीं है कि मुंबई का जनसंख्यात्मक स्वरूप इतना बदल गया है कि सिर्फ मराठियों के हित की बात करने से उसे राजनीतिक हानि के अलावा और कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इतना ही नहीं, अब उनके ही भतीजे के नेतृत्व में बनी महाराष्टï्र नवनिर्माण सेना भी शिवसेना की ही तर्ज पर मराठी वोट बैंक की राजनीति कर रही है जिसकी वजह से इस वोट बैंक में भी खासा विभाजन हो चुका है। शिवसेना को यदि अपने राजनीतिक उत्कर्ष को पुन: प्राप्त करना है तो उसे अब सर्वग्राही राजनीति करनी होगी तभी वह मुंबई सहित महाराष्टï्र में अपनी राजनीतिक पताका फहरा सकेगी अत: मुंबई,महाराष्टï्र एवं समूचे राष्टï्र ही नहीं बल्कि खुद के हित में शिवसेना को अपना नजरिया बदलना चाहिए और मुंबई के सिलसिले में अपनी उक्त हठधर्मिता को छोड़ देना चाहिए।

Monday, February 1, 2010

शिवराज की प्रशंसनीय पहल

मध्यप्रदेश अपनी नैर्सिर्गक संपदा तथा सांस्कृतिक वैविध्य के लिए विशेष पहचान रखता है। लेकिन यह भी सच है कि इसी वैविध्य को क्षुद्र राजनीतिक लाभ के लिए कुछ राजनीतिक नेताओं एवं दलों ने जब तब इस्तेमाल किया है जबकि यह प्रदेश की अनेकता एवं एकता का माध्यम बनना चाहिए था। इस सिलसिले में गणतंत्र दिवस से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा शुरू कई मध्यप्रदेश बनाओ यात्रा काफी महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। उनका यह अभियान प्रदेश की एकजुटता एवं समृद्धि को पारस्परिक रूप से गूंथने का प्रयास ही है। इस मामले में यात्रा की शुरुआत के लिए स्थान का चयन भी काफी सूझबूझ भरा है। मंडला का अपना एक गौरवशाली इतिहास है। इसकी मिट्टïी में आजादी की सुगंध घुली हुई है। गढ़ मंडले की रानी दुर्गावती की बहादुरी की गाथाएं यहां के पत्थरों पर अंकित हैं। गोंड़ राजाओं का यह राज्य उनके ऐतिहासिक वैभव का परिचायक है। लेकिन इस क्षेत्र में वैगा जनजाति की काफी बड़ी आबादी है। किसी भी प्रदेश को उसका सांस्कृतिक स्वाभिमान तथा सांस्कृतिक एकजुटता ही समृद्धि की राह पर ले जाती है। मुख्यमंत्री ने मध्यप्रदेश बनाओ यात्रा में इन्हीं उपादानों को अपना जरिया बनाया है। उन्होंने मध्यप्रदेश की संस्कृति की अजस्र धारा की प्रतीक जीवनदायिनी नर्मदा के उद्गम तीर्थ अमरकंटक पर मां नर्मदे की पूजा अर्चना कर इसे अनूठी शुरुआत दी और लोकतंत्र की भावना के अनुरूप जनता को विभिन्न निर्माण एवं विकास कार्यों में सीधी भागीदारी का आमंत्रण दिया। इस मौके पर नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान में उन्होंने भागीदारी की और अमरकंटक विकास प्राधिकरण बनाने की घोषणा की। उन्होंने जब यह आव्हान किया कि जनता को खुद अपने परिवार, गांव और प्रदेश की जरूरत समझ कर उसमें आगे आकर सहयोग करना होगा तो वे प्रकारांतर से इस अभियान को लोकतंत्र का यज्ञ बनाने की ही पहल कर रहे थे। स्वच्छता, पर्यावरण, नशामुक्ति, जल संचय जैसे आम आदमी के दूरगामी हित के कार्यों में उन्होंने जनता से सक्रिय भागीदारी करने का आव्हान किया जो लोकतंत्र में उनकी गहन आस्था को ही दर्शाता है। लेकिन साथ ही प्रदेश को भूमाफिया सहित सभी प्रकार के माफियाओं से निजात दिलाने एवं वर्ष 2013 तक प्रदेश के सभी गांवों को बारहमासी सड़कों से जोडऩे जैसे उनके संकल्पों ने यह भी जताया कि सरकार खुद भी मध्यप्रदेश बनाओ अभियान में अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटने वाली नहीं है। मुख्यमंत्री का यह अभियान एक अच्छी शुरुआत है जिसे यदि सुदृढ़ कदमों के साथ आगे बढ़ाया जाए तो यह प्रदेश के विकास में दूरगामी भूमिका निभा सकता है लेकिन सवाल यही है कि क्या नौकरशाही एवं समूची सरकार इसमें अपनी भूमिका समुचित तरीके से निभाएगी और क्या सरकार इस पर समुचित नियंत्रण रख पाएगी। - सर्वदमन पाठक

बिना जवाबदेही का लोकतंत्र कैसा?

देश आज गणतंत्र दिवस की साठवीं सालगिरह मना रहा है। यह ऐसा अवसर है जब हम सभी देशवासी यह अहसास करके खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हमारा राष्टï्र पूरी तरह से आजाद है। हमारी संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली ने हमें वह ताकत दी है कि हम अपने जनप्रतिनिधियों, अपनी सरकार को खुद ही चुन सकते हैं और उनके जरिये देश की तकदीर रच सकते हैं। यह हमारा अधिकार है लेकिन इसके साथ ही कुछ अहम जिम्मेदारियां भी जुड़ी हुई हैं। दरअसल हम ही देश के वास्तविक भाग्यनियंता हैं लेकिन हमने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह समुचित तरीके से नहीं किया है और आज का निराशाजनक परिदृश्य इसी की परिणति है। संविधान की मंशा यही है कि हम ऐसे जनप्रतिनिधियों का चयन करें जो देश को खुशहाली की ओर ले जाएं लेकिन विडंबना यह है कि हम ऐसे लोगों को संसद एवं विधानसभाओं में चुनकर भेजते रहे हैं जो देश और देशवासियों के हितों को भूलकर अपना स्वार्थ साधते रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि उनकी तिजोरियां भरती रहीं, वे, उनके परिजन एवं उनके करीबी तमाम सुविधाएं एवं सुख भोगते रहे लेकिन आम आदमी, जिसका देश के संसाधनों तथा विकास के लाभों पर पहला हक था, बदहाली की जिंदगी जीता रहा। हम अपनी गलतियों के दुष्परिणामों को लगातार भोगते रहे हैं लेकिन फिर भी हमने अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया। यदि हमें अपने देश की तकदीर बदलनी है तो फिर हमें अपनी ताकत को पहचानना होगा और राष्टï्र के सच्चे नागरिक के रूप मेें अपनी भूमिका के बारे में नए सिरे से आत्मचिंतन करना होगा। हमें यह तय करना होगा कि ऐसे लोगों के हाथ में राष्टï्र की बागडोर न आये जो अपनी करतूतों से राष्ट्र के हितों पर ही कुठाराघात करने में न हिचकें। आम आदमी की खुशहाली के साथ ही अन्य पैमानों पर भी हमें अपने जनप्रतिनिधियों के दायित्वों एवं कर्तव्यों की छानबीन करनी होगी। दरअसल देश किसी भूभाग का ही नाम नहीं है बल्कि यह एक एक समुच्चय का नाम है। जिस तरह किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व होता है,उसी तरह राष्टï्र का भी व्यक्तित्व होता है। यही कारण है कि समूचे राष्टï्र की संवेदनाओं में अनेकता के बावजूद एकरूपता होती है। जाति, धर्म, संप्रदाय के नाम पर इस एकरूपता को ठेस पहुंचाना भी राष्टï्रीय हितों पर कुठाराघात ही है। जो जनप्रतिनिधि राष्टï्रजनों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने के साथ ही राष्टï्र की एकजुटता एवं अखंडता के लिए भी मन वचन कर्म से प्रतिबद्ध हों, वही अवाम की पहली पसंद होने चाहिए। आज जब आतंकवाद तथा महंगाई जैसे संकटों से जूझ रहे है तब अपनी इन जिम्मेदारियों का निर्वाह हमारे लिए वक्त का तकाजा ही है।
-सर्वदमन पाठक

कही-अनकही

शरद पवार, केंद्रीय कृषिमंत्री का कहना है-
मूल्य नीति पर निर्णय करने वाला मैं अकेला व्यक्ति नहीं हूं। कीमतों पर नीतिगत फैसला मंत्रिमंडल में सामूहिक रूप से लिया जाता है जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल होते हैं। हालांकि कृषि उत्पादों की मूल्य वृद्धि से किसानों को फायदा ही होता है।
क्या कहना चाहते हैं पवार?
मूल्यवृद्धि को लेकर राजनीतिक दलों एवं मीडिया द्वारा सिर्फ उन पर निशाना साधना उचित नहीं है क्योंकि परामर्श की पूरी प्रक्रिया के बाद ही मूल्य बढ़ाने का फैसला लिया जाता है और विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए जाने वाले इन फैसलों में खुद प्रधानमंत्री भी शामिल होते हैं। हालांकि उनका मानना है कि कृषि उत्पादों में मूल्यवृद्धि से किसान लाभान्वित होते हैं।
क्या सोचते हैं लोग?
यह कोई संयोग नहीं है कि इधर पवार विभिन्न कृषि उत्पादों के मूल्यों में वृद्धि की भविष्यवाणी करते हैं और उधर बाजार में इनके दामों में उछाल आ जाता है। दाल, चीनी तथा गेहूं में हुई असाधारण मूल्यवृद्धि इसका प्रमाण है। अब उन्होंने दूध के मूल्य बढऩे की भविष्यवाणी कर दी है और इस तरह बच्चों के इस भोजन के भी महंगे होने का संकेत दे दिया है। यह आश्चर्यजनक ही है कि वे इस मूल्यवृद्धि को किसानों के हित में करार देकर इसका औचित्य सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं। उनके इस रुख से यही प्रतीत होता है कि वे लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी के लिए उपयोगी वस्तुओं की अंधाधुंध मूल्यवृद्धि को गलत नहीं मानते। वास्तविकता यह है कि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रहे दामों से आम आदमी जितना परेशान आज है, उतना कभी नहीं रहा। इससे किसानों को लाभ होने के पवार के दावे का खोखलापन इसी तथ्य से उजागर होता है कि किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला पिछले साल भी पहले की तरह ही जारी रहा है।यह भी अजीब विरोधाभास है कि पवार मूल्यवृद्धि के मामले में तो ज्योतिषी बन जाते हैं लेकिन जब उनसे पूछा जाता है कि मूल्य कब घटेंगे तो वे मासूमियत के साथ कह देते हैं कि वे ज्योतिषी नहीं हैं। हकीकत यह है कि उनकी मूल्यवृद्धि संबंधी भविष्यवाणी से देश के व्यापारियों की महंगाई बढ़ाने की प्रवृत्ति को सरकार की ओर से अचानक बढ़ावा मिल जाता है और कीमतों में उछाल इसी प्रवृत्ति का ही परिणाम होता है। सरकार को अपने ही मंत्री की मूल्यवृद्धि संबंधी बयानबाजी और उसके फलस्वरूप बढऩे वाली कीमतों से राष्टï्रव्यापी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अत: सरकार को चाहिए कि वह कृषिमंत्री पवार को, जिनके बयान मूल्यवृद्धि के लिए उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं, नियंत्रित करे और यदि यह संभव न हो तो उनसे मुक्ति पा ले।
प्रस्तुति: सर्वदमन पाठक