Sunday, October 1, 2017

केकवॉक में साजिशों की कुकिंग

शोभा डे का ब्लॉग


जब से गौरी लंकेश की हत्या हुई है, मैैं लिखने के लिए 'सुरक्षितÓ टॉपिक की तलाश में हूं। मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि मैैंने अंतत: ऐसा एक विषय तलाश लिया है-वह है 'केक बेकिंगÓ। लेकिन इसमें थोड़ी समस्या है। मैैंने जिंदगी में कभी केक बेक नहीं किया है। सिर्फ कुछ केक खाए अवश्य हैैं। लेकिन इससे उस विषय पर कॉलम लिखने में मुझे कुछ भी रुकावट नहीं आती, जिसके बारे में मैैं बहुत कम जानती हूं। ठीक वैसा ही गौरी के बारे में कहा जा सकता है। उसके जीवन और मौत के बारे में टिप्पणी करने वाले कितने लोग उसके बारे में पर्याप्त रूप से जानते हैैं? बहुत कम। कितने लोग उन परिस्थितियों से वाकिफ हैैं जिनके तहत गौरी की हत्या की गई? बहुत कम। उसके हत्यारे या हत्यारों की पहचान के बारे में कौन जानता है? अभी तक कोई नहीं। लेकिन हम सभी इस बारे में अपनी राय जाहिर कर रहे हैैं, निष्कर्ष निकाल रहे हैैं और अपने अपने अंदाज लगा रहे हैैं जिसका इससे कोई संबंध नहीं है।
केक के साथ भी ऐसा ही है। हम आकर्षक पेटिसरीज में जाते हैैं और वहां सजे हुए केक के बारे में सर्वे करते हैैं मानो हम सभी केक एक्सपर्ट हों। फिर हम एक केक चुन लेते हैैं जो हमारे बजट तथा रुचि के अनुरूप होता है। हम उसका एक टुकड़ा चखते हैैं और उसे नापसंद कर देते हैैं। हम अपना पैसा वापस चाहते हैैं लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। फिर हम उसमें कमियां निकालना शुरू कर देते हैैं। हम इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैैं कि हमें पेस्ट्री शॉप द्वारा ठगा गया है क्योंकि बेकर ने इसमें आटा एवं बटर सही अनुपात में इस्तेमाल नहीं किया। हम खुद ही तय कर लेते हैैं कि केक में घटिया स्तर की चॉकलेट इस्तेमाल की गई थी, ओवन डिफेक्टिव था, क्रीम कम थी, बेकर ने ज्यादा नमक का इस्तेमाल किया था या पैकेजिंग भ्रामक थी। हम उस केक शॉप का बहिष्कार करने की ठान लेते हैैं। हम अपने बुरे एक्सपीरियंस के बारे में अपने दोस्तों को बताते हैैं। वे दूसरों को बताते हैैं। आखिरकार जनता की राय के सामने झुकते हुए उक्त केक शॉप अपनी दुकान बंद हो जाता है।  
गुस्सा फैलता है। कुछ केक प्रेमी खुद ही केक बनाते का फैसला करते हैैं। वे अपना एक ग्र्रुप बना लेते हैैं। हर कोई तो इस ग्र्रुप में शामिल हो नहीं सकता। इस ग्र्रुप में शामिल होने को लेकर कुछ लोग जुनूनी हो सकते हैैं। उन्हें उचित तवज्जो न दिये जाने पर वे विरोध स्वरूप अपना प्रतिद्वंदी केक ग्र्रुप बना लेते हैैं। इससे टकराव हो जाता है और पड़ौस की शांति को खतरा उत्पन्न हो जाता है। पथराव की कुछ घटनाएं होती हैैं। कुछ भड़काऊ पर्चेबाजी भी होती है। अनियमितताओं के आरोप लगाए जाते हैैं और स्थिति नियंत्रण के बाहर हो जाती है। जो लोग केक पसंद नहीं करते, वे अपना अलग ग्र्रुप बनाकर विरोध प्रदर्शित करने लगते हैैं। वे 'शुद्ध देशी घी मिठाई क्लबÓ बना लेते हैैं। कुछ लोग केक को राष्ट्र विरोधी घोषित करते हुए पूछते हैैं कि ये केकवाले केक ही क्यों बनाते हैैं, जलेबी और रसगुल्ला क्यों नहीं बना सकते? इसके पीछे कोई विदेशी हाथ होना चाहिए। केक भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। इसकी न्यायिक जांच होनी चाहिए। इस बीच प्रमुख केक बेकर्स पर सतर्क निगाह रखी जाती है। कोई मोर्चा निकालने का सुझाव देता है तो दूसरा सुझाता है कि केंडल मार्च निकाला जाए क्योंकि इसे ज्यादा टेलीविजन कवरेज मिलेगा। इनका नेता गरजता है कि हम इन केक बेकर्स के खिलाफ कुछ ज्यादा ही नरम रुख अपना रहे हैैं। वे हमारी सोसायटी के लिए खतरनाक हैैं। केक सारे देश में फैल जाए, इसके पहले हमें उनको रोकने के लिए रणनीति बनानी होगी। केक पश्चिमी प्रोपेगंडा का हिस्सा है। हमारे युवक और भ्रष्ट हों, इसके पहे केक क्रांति को खत्म करना जरूरी है।
केक प्रशंसकों के तेजी से हो रहे फैलाव को रोकने के लिए एक योजना तैयार की जाती है। केक प्रशंसकों की लिस्ट तैयार की जाती है और   उन्हें चेतावनी दी जाती है कि वे केक की तारीफ बंद करें या फिर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें। उनमें से एक व्यक्ति सलाह देता है कि चीफ बेकर को केक बनाने से रोका जाए लेकिन सवाल यह उठता है कि कैसे क्योंकि केक नुकसानदेह तो है नहीं। केक की तारीफ करने वालों को सबक सिखाने के लिए सीधी कार्रवाई के तौर पर पेड़ा और बर्फी के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने का फैसला किया जाता है और कोई मोटर साइकिल पर सवार होकर इनके कई हेलमेटधारी समर्थक इसे अंजाम देने के लिए निकल पड़ते हैैं।
इधर मैैं दुविधा में हूं। सवाल यह है कि मैैं केक बनाऊं या न बनाऊं।
प्रस्तुति: सर्वदमन पाठक