tag:blogger.com,1999:blog-51132710593854648932023-11-15T10:39:56.276-08:00sahee baatsahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.comBlogger166125tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-68942656220913904702020-02-19T05:04:00.001-08:002020-02-19T05:04:06.212-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="color: red;">26 जनवरी 2020</span></h2>
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<span style="color: blue;">गिरती सियासत, बंटता देश</span></h2>
हम आज गणतंत्र दिवस की सालगिरह मना रहे हैैं तो हम सहज ही इस हकीकत से खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैैं कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हमारी इसमें मतदाता के रूप में अहम हिस्सेदारी है। दरअसल हमारा वतन सदियों से लोकतांत्रिक चरित्र का प्रतीक रहा है। जिस तरह से एक व्यक्ति का व्यक्तित्व होता है वैसे ही एक व्यक्ति की मानिंद एक देश का भी अपना एक विशाल व्यक्तित्व होता है। लेकिन जैसी कि किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व की खासियत होती है कि यदि उसके शरीर के किसी भी भाग में पीड़ा या खुशी की अनुभूति हो तो सारा शरीर उसके अहसास से सराबोर उठता है, उसी तरह राष्ट्र के किसी भी हिस्से में पीड़ा या खुशी के समय समूचा राष्ट्र उसे अनुभव करता है। भले ही अलग अलग हिस्सों में अलग अलग आचार-विचार तथा संस्कृतियां पनप रही हों लेकिन उनमें एकरूपता होना एक राष्ट्र की अनिवार्य शर्त है। अनेकता में एकता का यही गुण भारत को एक सूत्र में बांधता है। भारत पर अतीत में अनेक आक्रमण हुए और विदेशी आक्रांताओं ने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर भी हमले की कोशिश की लेकिन वे सभी भारत की विशाल संस्कृति में विलीन हो गए। एक राष्ट्र के रूप में हमारी पहचान का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है? हमारे राष्ट्र की जीवंतता को बरकरार रखना ही हमारे गणतंत्र के मूल्यों को सम्मान देना है। किसी ने सही कहा है कि-सतत सतर्कता ही आजादी का मूल्य है।<br />
लेकिन आजकल लोकतंत्र के इस स्वरूप पर सवालिया निशान लगाये जाने की चिंतनीय प्रवृत्ति परिलक्षित हो रही है। देश में ऐसा माहौल बन गया है जिससे यह भ्रम होता है कि आजादी से जुड़ी जिन पीड़ादायी कहानियों को देश भूलकर आगे बढ़ गया था, उन कहानियों को फिर से दोहराने की कोशिश की जा रही है। इसमें कितनी सच्चाई है और कितनी अफवाह, यह एक अलग मुद्दा है लेकिन ऐसे माहौल में नफरत की भाषा देश की संवेदनाओं को तार तार कर रही है। यह माहौल एकतरफा नहीं है। नफरत की आग दोनों तरफ बराबर भड़काई जा रही है। जहां तहां हो रहे प्रदर्शन एवं धरने में हिंसा और घृणा का माहौल पैदा करने की कोशिश हो रही है, जिसे देख कर देश की सर्वोच्च अदालत को भी यह कहना पड़ा है कि देश इस समय भारी संकट के दौर से गुजर रहा है। यह देश के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह हमारा सौभाग्य ही है कि देश में इस समय नरेंद्र मोदी के रूप में ऐसे प्रधानमंत्री हैैं जिनमें देश के लोगों की अगाध आस्था है। उनकी बातों पर देश यकीन करता है। यह उचित अवसर है जब प्रधानमंत्री खुद इस मामले में हस्तक्षेप करें और नफरत की दीवार खड़ा करने की कोशिशों को नाकाम कर दें। इसी तरह विपक्षी दल भी भ्रम के इस माहौल को दूर करने में अपना योगदान दें क्योंकि सत्ता या विपक्ष की सियासत से देश का ही नुकसान हो रहा है। यदि इस ऐतिहासिक मोड़ पर भी सियासतदानों ने राष्ट्रहित की कीमत पर अपने स्वार्थ सिद्ध करने की प्रवृत्ति नहीं छोड़ी तो इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा।<br />
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<span style="color: red;">सर्वदमन पाठक</span></h3>
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<span style="color: red;">1 फरवरी 2020</span></h3>
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<span style="color: blue;">आंकड़ों के भ्रमजाल में उलझी उम्मीदें</span></h2>
आर्थिक सुस्ती तथा महंगाई से परेशान देश की जनता केंद्रीय बजट से राहत की जो उम्मीदें लगाए हुए थी, उन पर यह बजट ज्यादा खरा नहीं उतर सका। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा ढाई घंटे के रिकार्ड समय में प्रस्तुत किये गए इस भारी भरकम बजट में आंकड़ों का जो भ्रम-जाल बिछाया गया था, वह भी इस हकीकत को छिपाने में नाकाम रहा कि बजट में देश की आर्थिक उलझनों को सुलझाने के संकल्प का घोर अभाव है। इस बजट में आयकर स्लैब्स में फेरबदल से मध्यम आय वर्ग के चेहरे पर मुस्कराहट की रेखा जरूर दिखी लेकिन निवेश छूट लेने वालों को इसका लाभ न देने की घोषणा से उनकी खुशी अधूरी रह गई। पिछले कई दशकों की तुलना में कहीं ज्यादा भयावह रूप अख्तियार कर चुक बेरोजगारी की समस्या से निपटने के उपायों के सिलसिले में भी बजट में कोई सीधा प्रावधान नहीं किया गया है हालांकि विभिन्न योजनाओं में किये गए आर्थिक प्रावधान इस दिशा के संकेतक दिखते हैैं। किसानों के लिए अवश्य ही इसमें हर जिले में एक्सपोर्ट हब बनाने की घोषणा उनकी फसल को व्यापक बाजार उपलब्ध कराने में मददगार हो सकती है। किसानों की बंजर जमीन में सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने का प्रस्ताव उन्हें खेती के अलावा अन्य आय स्रोत उपलब्ध कराने का प्रलोभन देता है। लेकिन इसमें भी यह शर्त चस्पा कर दी गई है कि उन राज्य सरकारों को ही इन नई योजनाओं का लाभ मिलेगा जिन्होंने पिछले तीन-चार साल से केंद्रीय योजनाओं में समुचित हिस्सेदारी की होगी। कोल्ड स्टोरेज ट्रेन तथा हवाई सेवा की सुविधा किसानों के व्यवसाय को गति देने की कोशिश का एक हिस्सा है। दरअसल यह कदम खेती को कारपोरेट फैशन में ढालने का प्रयास है। गौरतलब है कि मोदी सरकार के ऐसे ही प्रयासों को लोग नकार चुके हैैं। सार्वजनिक उपक्रमों को निजी संस्थानों के हाथों बेचने का जुनून अभी भी सरकार के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है जिसका प्रमाण एलआईसी का हिस्सा बेचने की घोषणा में साफ दिखता है। मेडिकल कॉलेजों से जिले के एक अस्पताल को पीपीपी मोड के तहत जोडऩे की योजना अवश्य ही एक उपयोगी प्रस्ताव है क्योंकिदेश में डॉक्टरों की कमी चिंता का सबब बनी हुई है। ओडीएफ प्लस खुले में शौच से मुक्ति के प्रावधानों को गति प्रदान कर सकता है लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए इसकी मॉनीटरिंग जरूरी है।<br />
कुल मिलाकर देश में व्याप्त भयावह मंदी को देखते हुए सरकार से अपेक्षा थी कि वह लोगों को समुचित संसाधन मुहैया कराने के बजटीय प्रावधान करेगा ताकि लोगों की क्रय शक्ति में इजाफा हो और बाजार में फिर से बहार लौटे लेकिन बजट ने इस दिशा में लोगों को निराश ही किया है। बाजार की प्रतिकूल प्रतिक्रिया इसी का परिणाम है।<br />
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16 फरवरी 2020</h3>
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<span style="color: red;">वेंडेल रॉड्रिक्स : प्यार की अनोखी दास्तान </span></h2>
वेलेंटाइन्स डे के दिन दुनिया प्यार की ताकत का जश्न मनाती है। प्यार की ताकत के लिए वेंडेल रॉड्रिक्स को श्रद्धांजलि इसकी सार्थकता ही है। वेंडेल का सिर्फ 59 साल की उम्र में निधन हो गया है। बॉलीवुड तथा फैशन की दुनिया में उनके चाहने वालों की संख्या अनगिनत ही है। मेरे लिए तो यह प्यार ही था जिसने अन्य बातों की अपेक्षा वेंडेल की प्रेरणास्पद जिंदगी को परिभाषित किया। जहां लोग वेंडेल की डिजाइन संबंधी समझ के दीवाने थे, वहीं मेरे लिए उनकी प्यार की कहानी ज्यादा अभिभूत करने वाली थी। जेरोमी माारेल(फ्रेंचमैन) को शामिल किये बिना वेंडेल की असाधारण जिंदगी तथा सफलताओं की कल्पना नहीं की जा सकती। जेरोमी कहते हैैं कि वेंडेल की कमी कभी पूरी नहीं हो सकती।<br />
वेंडेल की फेसबुक तथा इंस्टाग्र्राम पर खूबसूरती से लिखी गई पोस्ट उनके खूबसूरत संसार की कहानी कहते थे। इन दोनों ने सात समुंदर पार तमाम देशों की यात्रा की और विंटेज शेंपेन तथा गॉरमेट मील्स से लेकर श्रेष्ठ से श्रेष्ठ चीजों का आनंद लिया। लेकिन अपनी हर विदेशी ट्रिप के बाद वेंडेल गोवा तट के चित्र अपने पोस्ट पर अवश्य डालते और अपनी घर वापसी का सानंद वर्णन करते। इसमें वे अपने घर के हरे भरे घर से लेकर गांव तक के हालचाल का सुंदर दृश्य खींचते थे। उनके पैतृक गांव कोलवाले में, जहां वे अपने जीवन साथी जेरोमी के साथ आराम के क्षण गुजारते थे, वहीं वेंडेल ने अपनी अंतिम सांस ली।<br />
इस शानदार दंपति के प्यार की कहानी लोग अपने अपने तरीके से सुनाते थे। गौरतलब है कि समान लिंग के व्यक्तियों के सिविल यूनियन्स को मान्यता देने वाले फ्रेंच समझौते(पीएसीएस) के हस्ताक्षरित होने के बाद वेंडेल और जेरोमी को अधिकृत रूप से जीवन साथी घोषित किया गया था।<br />
कल्पना कीजिए कि यह बीस से अधिक वर्ष पहले की बात है। इसका मतलब यह है कि वेंडेल समय से आगे सोचने वाले व्यक्ति थे। उस समय उनके चार सौ साल पुराने पुर्तगाली घर में (जिसे अब मोडा गोवा म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया है) एक गर्मजोशी भरा तथा शानदार समारोह हुआ था। इस समारोह की अध्यक्षता करते हुए मुंबई में पदस्थ तत्कालीन फ्रेच महावाणिज्यदूत ने, जो कि एक महिला थीं, बहुत ही गरिमामय तरीके से इस विवाह समारोह में अपनी भूमिका निभाई थी। वे अपने साथ ही वह रजिस्टर लाई थीं, जिसमें वेंडेल तथा जेरोमी के हस्ताक्षर जीवन साथी के रूप में हुए थे। कलात्मकता से सजे धजे इस दंपति ने समारोह में मौजूद सभी दोस्तों और रिश्तेदारों का स्वागत किया था तथा इसके बाद भव्य भोज हुआ था। समारोह काफी नाच गाना हुआ था और इसमें शामिल प्रत्येक व्यक्ति ने उन्हें आनंद से भरपूर जीवन के लिए शुभकामनाएं दी थीं।<br />
जेरोमी ने विश्व प्रसिद्ध लेखक तथा डिजाइनर वेंडेल की रचनात्मकता में भरपूर साथ दिया। वे गोवा में रहने के दौरान सूर्यास्त होते ही शेंपेन का आनंद लेते हुए नौकाविहार के लिए निकल जाते थे। दुनिया में उनके अनगिनत प्रशंसक तथा सोशल मीडिया फॉलोअर उनके डिजाइनिंग सेंस और लेखन कला के दीवाने रहे हैैं। हालांकि उन्होंने अपना डिजाइनिंग का काम तथा अपना डिजाइन हाउस तीन साल पहले अपने उत्तराधिकारी शुलेन फर्नांडीज को सौंप दिया था। उनमें अहंकार तो लेश मात्र भी नहीं था तथा प्रतिभाशाली डिजाइनरों और उम्मीद जगाते मॉडल्स को वे खुद मॉनीटर करते थे। वेंडेल की उदारता ने उनके प्रशंसकों की संख्या में खासा इजाफा किया है।<br />
उनके डिजाइन किये गए वस्त्र ही समय की सीमा को पार करने की गुणवत्ता नहीं रखते बल्कि 'फ्रेंचमैनÓ के साथ उनकी लव स्टोरी भी समय की शिला पर अमित छाप छोड़ गई है। उम्मीद है कि अगले माह मोडा गोवा म्यूजियम के भव्य उद्घाटन के साथ ही जेरोमी वेंडेल के सपनों को साकार करेंगी।<br />
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<span style="color: blue;">सर्वदमन पाठक</span></h3>
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sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-73905890015610758342020-01-23T02:20:00.000-08:002020-01-23T02:20:00.219-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red;">रविवार 11 अगस्त 2019</span><br />
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<span style="color: blue;">सुषमा के सपनों के सफर में अहम हिस्सेदार रहे स्वराज</span></h2>
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स्वराज कौशल ने अपने से कहीं अधिक प्रसिद्ध धर्मपत्नी सुषमा के राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के बाद जिस तरह से उन्हें हाथ जोड़कर नहीं बल्कि स्मार्ट सेल्यूट के साथ अलविदा किया, उनका यह सम्मान अल्टीमेट ही था। भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित तथा सर्वाधिक पसंदीदा राजनीतिक नेत्री इसकी हकदार थीं। जहां समूचे विश्व में सुषमा के प्रशंसक भारी संख्या में थे, वहीं उनके उतने ही ब्रिलियेंट पति अपनी कॉलेज के दिनों की स्वीटहार्ट को प्रोत्साहित करने, उनकी प्रशंसा करने तथा उनके सपनों के सफर में हिस्सेदारी में व्यस्त रहते थे। उनकी लव स्टोरी किसी भी लव स्टोरी से श्रेष्ठ है और बॉयोपिक के जरिये उनकी स्मृतियों को अमर बनाने के लिए बहुत से प्रोड्यसरों में होड़ लगी होगी। आखिर ऐसा हो भी क्यों न? यह लव स्टोरी इतनी ही प्रेरणास्पद एवं रोमांटिक है। इस सप्ताह जब 67 साल की उम्र में दिल के दौरे से सुषमा का निधन हुआ, अपने लंबे राजनीतिक कैरियर की बुलंदियों को छूने वाली, हमेशा मुस्कराती रहने वाली अपनी सम्मानित दीदी के विछोह में सारा भारत दुख में डूब गया तो 44 साल से उनके प्यारे जीवनसाथी (और उनकी एक मात्र संतान व बैरिस्टर पुत्री बांसुरी) के लिए तो यह दिली तौर पर अत्यंत ही शोकपूर्ण अवसर था। हरीश साल्वे ने बताया कि सुषमा ने निधन के दस मिनट पहले ही उनसे बात की थी। पूर्व में खुद सुषमा ने धारा 370 हटाने संबंधी फैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रशंसा भरा ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें उम्मीद थी कि अपने जीवनकाल में ही वे यह दिन देख सकेंगी और ऐसा ही हुआ। जुझारू सुषमा का जीवन, सांसें, तथा सपने सभी कुछ राजनीति से जुड़े थे। सुप्रीम कोर्ट के वकील स्वराज कौशल के साथ उनकी लव स्टोरी की सफल परिणति इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान हुई थी। चार दशक से सुषमा उनकी स्टार थीं और स्वराज अचर्चित हीरो थे। सुषमा ने सारी दुनिया की यात्रा की और कई शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। हाथ की बुनी शानदार साड़ी धारण करने तथा मांग में सिंदूर और माथे पर बड़ी सी बिंदी लगाने वाली सुषमा की आंखों में उत्साह की चमक होती थी और उनका चेहरा विश्वास और गरिमा से दमकता रहता था। उनके राजनयिक दखल तथा अन्य उपलब्धियों के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है लेकिन उनके जीवन साथी के बारे में पर्याप्त प्रकाश नहीं डाला गया है जो उनके सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण रूप से शरीक थे। उनकी लव स्टोरी का सबसे पसंदीदा हिस्सा उनके पति द्वारा किये गए कई ट्वीट्स हैैं। जब सुषमा स्वराज ने सेहत की वजह से 2019 का चुनाव न लडऩे का फैसला किया तो स्वराज कौशल ने इसी पब्लिक प्लेटफार्म(ट्विटर) पर लिखा, ''मैैं अब 19 साल का नहीं हूं...मैडम, मैैं 46 साल से आपके पीछे चल रहा हूं। मुझे याद है कि एक समय आया जब मिल्खा सिंह ने भी दौडऩा बंद कर दिया लेकिन यह मैराथन 41 साल से चल रहा है...मेरी भी सांसें कम हो रही हैैं, धन्यवाद।ÓÓ यह किसी पति द्वारा अपनी बीमार धर्मपत्नी को लिखा गया सबसे मधुर और दिल को छूने वाला लव लैटर है। एक बहुत ही बुद्धिमान तथा परिपक्व व्यक्ति द्वारा दर्शाया गया यही प्यार है, जो अपने जीवन साथी तथा उसके सपने के साथ कदमताल करता दिखता है। जब स्वराज कौशल को मिजोरम का राज्यपाल बनाया गया तब भी ऐसा ही पारस्परिक सम्मान और प्यार था। स्पष्ट रूप से स्वराज कौशल अपनी अलग ही पहचान रखते थे। एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि आप अपनी धर्मपत्नी को ट्विटर पर फॉलो क्यों नहीं करते तो उनका उत्तर था, ''क्योंकि मैं लीबिया या यमन में फंसा हुआ नहीं हूं।ÓÓ आज के समय में स्वराज तथा सुषमा जैसे दंपति को याद करना कितना ताजगी भरा होता है जिन्होंने अपनी व्यक्तिगत विशिष्टता और व्यक्तित्व को कायम रखते हुए अपने वैवाहिक जीवन को जीवंत बनाए रखा। मैैंने उस फोटो को गौर से देखा है जिसमें पिता और पुत्री हापुड़ में गंगाघाट पर सुषमा जी की अस्थियां विसर्जित करते दिख रहे हैैं। इस फोटो में उनके चेहरे पर गरिमा और गहन दुख ही झलक रहा था। उन्हें ईश्वर इस दुख को सहन करने तथा राष्ट्र के प्रति सेवा की सुषमा की परंपरा को आगे बढ़ाने की शक्ति प्रदान करे।<br />
<span style="color: red;"> सर्वदमन पाठक </span><br />
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<span style="color: red;">25 अगस्त 2019</span><br />
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<span style="color: blue;">ब्रांडिंग और पैकेजिंग ही महत्वपूर्ण है आज के दौर में</span></h2>
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खाने का फैशन से क्या लेना देना है या बॉलीवुड का राजनीति से क्या संबंध है अथवा खेल का इन चारों से क्या संबंध है? काफी कुछ। दो दशक पहले जब एफडीसीआई के गठन के साथ ही देसी फैशन का कारपोरेट स्वरूप आया तो बड़े खिलाड़ी इसमें कूद पड़े। लगभग रातों रात भारत के अव्यवस्थित तथा असंगठित फैशन उद्योग ने तेजी पकड़ ली और आधुनिक सिस्टम ले आए। डिजाइनर्स, फोटोग्र्राफर्स तथा कोरियोग्र्राफर्स के बीच पुरानी अनौपचारिकता तथा रिश्ते खत्म हो गए। फैशन से संबंधित प्रत्येक मुद्दे पर शार्प ऑपरेटर्स सक्रिय होने लगे। उनका दावा था कि वे फैशन के हित में ही काम कर रहे हैैं। इसका एक सकारात्मक पक्ष था तो नकारात्मक पक्ष भी था। धन ने रचनात्मकता को चलन से बाहर कर दिया लेकिन प्रत्येक चीज-सेट, संगीत तथा संपूर्ण प्रस्तुतीकरण में दर्शनीय रूप से उछाल आया। लेकिन क्या अधिक वस्त्र बिकने लगे? क्या भारत में फैशन की मार्केटिंग का विश्वस्तरीय मॉडल भारत में काम करता है? यह तो ईश्वर ही जानता है। उबाऊ फैशन निश्चित ही चलने लगा लेकिन कमोवेश पहले वाले डिजाइनर्स के साथ शो चलता रहा और पुराने लोगों को पुराना फैशन दिखाया जाता रहा। इस दौरान युवा तथा संकल्पबद्ध फैशन डिजाइनर्स के रूप में नई प्रतिभाएं उत्तरपूर्व से आईं। उनके कलेक्शन्स में ताजगी थी तथा दुहराव नहीं था। उनकी दृष्टि का समर्थन देने वाली सांस्कृतिक आथेंटिसिटी भी उनके कलेक्शन में मौजूद थी। इसका उदाहरण 20 साल के लद्दाखी डिजाइनर स्टान्जिन पाल्मो का काम है। <br />
उक्त सभी फील्ड में एक बात समान है-चतुराई भरी ब्रांडिंग, प्रस्तुतीकरण का तरीका और मार्केटिंग। पीआर के लिए यह अच्छा समय है क्योंकि बिना तेज तर्रार पीआर टीम के प्रचार कार्य के कुछ भी आगे नहीं बढ़ सकता। फैशन की तरह ही बॉलीवुड भी बदल गया है। यह तभी संभव हुआ जब बड़ी ब्लॉकबस्टर को 'स्वच्छ धनÓ की आर्थिक मदद मिली।<br />
आज पूरी प्रक्रिया निश्चित तथा पारदर्शी हो गई है जहां स्मार्ट बच्चे भी बड़ी धनराशि की न केवल बात कर रहे हैैं बल्कि कमा भी रहे हैैं। पुरानी अस्पष्टता, अनिश्चितता तथा असुरक्षा के दिन लद गए हैैं और नई पीढ़ी करोड़ों के एनडोर्समेंट-प्रॉडक्ट प्लेसमेंट डील्स कर रही है और पूरे भारत तथा विदेश में भी आकर्षक संपत्ति खरीद रही है। क्या आजकल जो मूवीज बन रही हैैं, वे पुरानी शैली की फिल्मों से गुणवत्ता की दृष्टि से बेहतर हैैं? जूरी इस पर चुप्पी साधे रहती है लेकिन शोबिज में जबर्दस्त ऊर्जा लगती है और प्रत्येक व्यक्ति को व्यस्त रखने के लिए पर्याप्त काम होता है।<br />
ऐसा ही खेल संस्थाओं तथा खिलाडिय़ों के साथ है। विश्व में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए उनकी प्रतिस्पर्धा की भावना जबर्दस्त रहती है। आज स्पोटर््स प्रबंधन तथा इनमें बढ़ती सेलेब्रिटीज की संख्या का यह आलम है कि उनकी व्यावसायिक क्षमता अच्छी है। अब वे दिन नहीं रहे जब स्पोटर््स से जुड़े लोगों को फंड के लिए प्रयास करना पड़ता था। यहां भी वैसा ही है कि चतुर मार्केटिंग प्रोफेनल्स काफी पैसा लाए हैैं। हो सकता है कि आईपीएल के गॉडफादर ललित मोदी भारत में वांछित आर्थिक अपराधी हों लेकिन उन्होंने जो कुछ किया उससे इस खेल में क्रांति आ गई और कई युवा क्रिकेटरों को कई मिलियन रुपए हासिल हुए। आईपीएल के मॉडल का इस्तेमाल करके कई स्पोटर््स में फ्रेंचाइजी का विस्तार हुआ। इनमें से अधिकांश काफी संपन्नता हासिल कर चुके हैैं।<br />
इसी तरह रेस्तरां का व्यवसाय इस समय अनियंत्रित रफ्तार से बढ़ रहा है। सिर्फ उपभोक्ताओं को अच्छा खाना ऑफर करना ही आजकल पर्याप्त नहीं है बल्कि पैकेजिंग भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण इसमें ब्रांड रायल्टी बनाए रखना जरूरी है।<br />
राजनीतिज्ञों को अन्य उत्पादों की तरह पैकेजिंग के साथ बेचे जाने में कोई आपत्ति नहीं है। चाहे कोई व्यक्ति अपने विचार बेच रहा है या फेयरनेस क्रीम बेच रहा है, स्ट्रेटेजी समान ही होती है। आप क्या मैसेज देते हैैं, यही सब कुछ है। दशकों पहले नेता को इसे लेकर जनता के भरोसे पर खरा उतरना पड़ता था कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए क्या काम करेगा लेकिन आज वह एक इमेज मेकर पर सबसे पहले निवेश करता है और फिर घोषणापत्र के बारे में सोचता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि काफी धन राशि खर्च करके टिकट हासिल करने वाला आज का पालिश्ड तथा मीडिया सेवी राजनीतिज्ञ लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी उपलब्ध सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करता है और आपका वोट झटक लेता है। दरअसल प्रत्येक चीज वस्तु के रूप में तब्दील हो गई है जिसमें ब्रांडिंग महत्वपूर्ण है।<br />
<span style="color: red;"> सर्वदमन पाठक</span><br />
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<span style="color: red;">1 सितंबर 2019</span><br />
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<span style="color: blue;">बॉलीवुड की लय-ताल पर झूमती भारतीय शादियां</span></h2>
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हमारी जिंदगी विशाल फिल्मी सेट की तरह है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह फिल्म स्टार बन जाए। मैैंने एक विवाह-पूर्व बनाया गया विवादास्पद वीडियो देखा जिसमें राजस्थान का एक पुलिसकर्मी और उसकी साथी महिला भद्दे आचरण में मशगूल थे और यह सब बाकायदा फिल्माया जा रहा था। यह वीडियो, जिससे धनपत नामक उक्त पुलिसकर्मी की नौकरी भी जा सकती है, अब हटा दिया गया है। क्या आप जानते हैैं कि यह वीडियो किस सिलसिले में था? हम यही कह सकते हैैं कि यह वीडियो बॉलीवुड की स्किप्ट का बहुत ही गलत प्रस्तुतीकरण था। उदयपुर में इस वीडियो के एक शॉट में एक स्मार्ट तथा अच्छा दिखने वाला ट्रैफिक पुलिसकर्मी(धनपत) दबंग के सलमान खान की तरह व्यवहार करता है। टूव्हीलर पर सवार एक युवती को हेल्मेट न पहनने के कारण वह रोकता है और वह आकर्षक युवती(उक्त पुलिसकर्मी की होने वाली वधू) जुर्माना देने के बदले पुलिसकर्मी के बिल्कुल नजदीक आती है और उसकी शर्ट की जेब में रिश्वत रख देती है। उक्त युवती दिलकश अंदाज में पर्स पकड़े हुए अपने टूव्हीलर पर वहां से रवाना हो जाती है। अगला दृश्य एक कॉफी शॉप का है जहां फ्लर्ट किये जाने के नए नए विजुअल्स दिखते हैैं। ये सीन और अधिक अंतरंग हैैं। यह वीडियो पेशेवर लोगों द्वारा शूट किये गए हैैं जिसमें उक्त पुलिसकर्मी की प्यार की कहानी की स्किप्ट किसी मिनी मूवी की तरह ही दिखती है। उनकी लव स्टोरी इसके आखिरी शॉट पर ही खत्म नहीं होती। इस पुलिसकर्मी के वरिष्ठ अफसर इस वीडियो से नाराज हो उठे हैैं। वे पुलिस की वर्दी के 'दुरुपयोगÓ और इसमें दिखाई गई पुलिस विभाग की नकारात्मक छवि से नाराज हैैं। इस संबंध में पुलिसकर्मी को नोटिस दे दिया गया है और उदयपुर के एसपी कैलाश चंद्र विश्नोई नियमों की छानबीन कर रहे हैैं ताकि पुलिसकर्मी पर कोई कार्रवाई की जा सके।<br />
आजकल वैडिंग वीडियो का व्यवसाय काफी बढ़ गया है और ये व्यावसायिक दृष्टि से बड़े पैमाने पर तथा महत्वाकांक्षी तरीके से तैयार किये जाते हैैं। एक युवा ज्वैलर ने मुझे बताया कि उसने अपनी वैडिंग को बड़े ग्र्रेंड पैमाने पर मनाने की योजना बनाई थी। मैैं यह जानकर आश्चर्यचकित हो गई कि अन्य चीजों के अलावा कई वीडियो के लिए भी एक राशि रखी गई थी जिसमें कथित 'ग्र्रेंड शादीÓ के अश्लील वीडियो तैयार किये जाने थे। वे और उनकी मंगेतर पांच दिन की इस शादी की रस्मों की अपेक्षा इन वीडियो को लेकर काफी उत्सुक थे। वीडियो का फोकस विजुअल्स पर ही था जिन्हें वे शादी की रस्में पूरी होने के पहले ही सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए उतावले हुए जा रहे थे। इन क्लिप्स को अपलोड करने के लिए उन्होंने बाकायदा एक छोटी टीम नियुक्त की थी। बाद में स्वागत समारोह के फुटेज भी पूरी शिद्दत के साथ सोशल मीडिया पर अपलोड किये गए।<br />
आजकल विवाह समारोहों में पांच कैमरों तथा कई द्रोन का सेट लगाना सामान्य हो गया है जिसमें हर रस्म के लिए स्टाइलिंग, मेक-अप तथा वार्डरोब के बदलाव को कई पेशेवर लोगों द्वारा कोरियोग्र्राफ किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इसे एक डायरेक्टर इंचार्ज द्वारा सादगी भरा जादू बिखेरने के लिए नियंत्रित किया जाता है। ऐसा लगता है कि प्र्त्येक परिवार आजकल मल्टी स्टार कॉस्ट तथा धूमधड़ाके भरी शादी चाहता है। यदि आप मेंहदी में बॉलीवुड स्टार्स के डांस का खर्च नहीं उठा सकते तो आप खुद उनके जैसे वस्त्र पहन सकते हैैं और उनकी नकल कर सकते हैैं। बुजुर्गों को भी कैमरे के सामने वर वधू को आशीर्वाद के रटे रटाए डॉयलाग बुलवा दिये जाते हैैं। पवित्र फेरों तक के रीटेक की अनुमति इसमें रहती है।<br />
संपूर्ण भारत में बॉलीवुड का यह असर देखने को मिल सकता है। सामाजिक स्तर पर करोड़पतियों से लेकर, किसान, व्यापारी, बिल्डर तथा बैैंकर्स तक हर कोई इससे प्रभावित है। प्रत्येक व्यक्ति बॉलीवुड स्टाइल की वैडिंग के पीछे दीवाना है। हमने बिना सोचे समझे बॉलीवुड की शक्तिशाली छवि तथा संदेश के सामने समर्पण कर दिया है। इसमें धार्मिक समारोह भी शामिल हैैं।<br />
<span style="color: red;"> सर्वदमन पाठक</span><br />
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<span style="color: red;">22 सितंबर 2019</span><br />
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<span style="font-weight: normal;"><span style="color: blue;">वक्त के तकाजे को पूरा करती है सहज समावेशी हिंदी</span></span></h2>
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भारतीय कई भाषाओं में बात करते हैैं। यही बात हमें दिलचस्प बनाती है। हम कई भाषाओं में अपनी बात कह सकते हैैं। हो सकता है वे त्रुटिपूर्ण हों लेकिन हम बेहिचक ऐसा करते हैैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि हम खुद अपनी बात को समझा सकते हैैं। मुंबई में एकजुट रूप से बहुभाषी संस्कृति का उत्सवी माहौल है। और प्रशंसनीय रूप से इसे मनाते हैैं। 'गली बॉयजÓ के कारण मुंबई भाषा की दृष्टि से बहुत सख्त है। हमने मुंबई में इस्तेमाल की जाने वाली विभिन्न बोलियों और उच्चारणों वाली भाषा को 'मुंबइयाÓ नाम दिया है। यह अद्वितीय है। बॉलीवुड में यह भाषा सर्वाधिक पसंद की जाती है। हिंदी के शुद्धतावादी इतने सारे विभिन्न मुहावरों और शब्दों से युक्त भाषा के बारे में क्या सोचते हैैं, इसकी परवाह कौन करता है। किसी भी भाषा का उद्देश्य यह होता है कि उससे संवाद किया जा सके-अच्छा, प्रभावशाली, सीधा और तेज गति से संवाद। मुंबइया भाषा रसयुक्त है और इसे आसानी से समझा जा सकता है तथा जरूरत पडऩे पर इसमें बदलाव किया जा सकता है। जो भाषा जरूरत के हिसाब से स्थापित नियमों से समझौता करने में असमर्थ होती है, वह कालांतर में निर्जीव हो जाती है और वह सिर्फ शिक्षाविदों की भाषा बन जाती है। विश्व में कई निर्जीव भाषाएं हैैं जिसका सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है। जीवंत भाषा में खुलापन होता है तथा वह बदलाव और परिष्कार को नकारती नहीं है। हिंदी भी ऐसी ही भाषा है। इस मामले में एक क्षण के लिए भाषा थोपने के नाम पर चलने वाली राजनीति को भूल जाएं और संपूर्ण दक्षिण भारत तथा पश्चिमी बंगाल व कुछ उत्तरपूर्वी राज्यों के हिंदी को लेकर पारंपरिक प्रतिरोध को दरकिनार कर दें जहां हिंदी कम समझी तथा जानबूझकर उपेक्षित की जाती है।<br />
यह एक तरह का सांस्कृतिक सत्याग्र्रह है और हमें इसका सम्मान करना चाहिए। हमारे व्यापक तथा वैविध्यपूर्ण देश के इन हिस्सों को छोड़कर बाकी सभी जगह हिंदी को गतिशीलता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस मामले में हिंदी सर्वाधिक समावेशी भाषा है। कोई भी व्यक्ति जानबूझकर स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल कर धड़ल्ले से हिंदी बोल सकता है और जब उसके लिए असुविधापूर्ण स्थिति हो तो वह इंगलिश भी बोल सकता है। दरअसल पुल बनाने का ईमानदार प्रयास शुद्धता पर अड़े रहने से कहीं अच्छा है। भाषा के मामले में कठोरपंथी क्यों बना जाए जबकि बचाव करने तथा लडऩे के लिए इससे कहीं अच्छे मुद्दे हैैं। अमित शाह ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में दर्शाने वाले अपने बयान के बाद समझदारी भरे तरीके से इस पर पुनर्विचार किया। अब वे कहते हैैं कि उनका यह मतलब नहीं था। हो सकता है कि वे गुजराती में सोच रहे हों और अपने विचार का तेजी के साथ हिंदी में अनुवाद कर रहे हों। उनका नवीनतम बयान यह है कि किसी की भी मातृभाषा के बाद हिंदी को दूसरी भाषा बनाने के लिए वे अपना सुझाव दे रहे थे। भाषा कोई प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं है कि कौन पहले, दूसरे, तीसरे आदि नंबर पर आता है। अंग्र्रेजी विश्वस्तरीय व्यापार और संवाद की भाषा है, आप इसे चाहें या न चाहें। हमें राष्ट्रभाषा जैसी घोषणा के विवाद में नहीं पड़कर हमारे सरकारी स्कूलों के शिक्षण के स्तर को ऊंचा उठाना चाहिए। हमें अपनी शिक्षा नीति पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि हम ऐसी पीढ़ी विकसित कर रहे हैैं जो किसी भी भाषा को ठीक से पढ़लिख नहीं<br />
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<span style="color: red;"> सर्वदमन पाठक </span></h4>
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<span style="color: red;">29 सितंबर 2019</span><br />
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<span style="color: blue;"><br />जलवायु परिवर्तन पर विश्व के नेताओं को आइना दिखाती ग्रेटा</span></h2>
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जो लोग अनभिज्ञता की बेजान दीवार के भीतर रह रहे हैैं और जिन्होंने ग्र्रेटा थुनबर्ग के बारे में नहीं सुना है, उनके लिए एक संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है कि 'ग्र्रेटाÓ मूलत: जर्मन नाम है जिसका अर्थ मोती होता है। यह हकीकत है कि ग्र्रेटा की बुद्धिमत्ता के मोती ने न केवल सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है बल्कि इस सप्ताह शक्तिशाली विश्व-नेताओं को अच्छी खासी सीख देकर अवाक कर दिया है। 16 साल की ग्र्रेटा काफी हद तक उपेक्षित तथा बहुत ही गंभीर जलवायु परिवर्तन पर ध्यान आकर्षित कर रातों रात 'आइकॉनÓ बन गई है।</div>
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ग्र्रेटा ने घोषणा की, 'कोई भी व्यक्ति इतना छोटा नहीं है कि वह बदलाव नहीं ला सके।Ó मई 2019 में प्रकाशित किये गए उनके भाषणों के संग्र्रह का यही टाइटल है। इस पुस्तक की बिक्री से जो राशि आएगी, वह चैरिटी के लिए दे दी जाएगी। उसकी सार्वजनिक भूमिका स्टॉकहोम में एक एक्टिविस्ट के रूप में शुरू हुई जब वह महज 15 साल की थी। उसने तय किया कि वह प्रत्येकशुक्रवार को स्कूल नहीं जाएगी और 'जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अभियानÓ पर तख्ती लेकर प्रदर्शन करेगी। उसने स्वीडिश संसद के बाहर धरना दिया। इस मूवमेंट का नाम था, 'हैशटैगफ्राइडेफारफ्यूचरमूवमेंट।Ó उसने उस समय अन्य स्टुडेंट्स को इस मुहिम से जोडऩे का प्रयास किया लेकिन उसे ज्यादा रिस्पांस नहीं मिला। लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि उसके अभिभावक इस मुहिम में उसके साथ आ गए। ग्र्रेटा महसूस करती है कि यह एक युवती के लिए काफी बड़ा समर्थन था। उसकी मां ओपेरा सिंगर हैैं जबकि उसके पिता तथा दादा(ग्र्रेंडफादर) एक्टर रहे हैैं। ग्र्रेटा अपने अभियान को लेकर इतनी आग्र्रही थी कि उसने अपने अभिभावकों को शाकाहारी बनने तथा कार्बन प्रदूषण के कारण हवाईजहाज में यात्रा न करने के लिए मना लिया। इससे ओपेरा सिंगर के रूप में उसकी मां के कैरियर पर विराम लग गया लेकिन कोई भी इसे लेकर शिकायत नहीं कर रहा क्योंकि ग्र्रेटा खुद अपने निश्चय पर अटल है। जब उसे न्यूयार्क में 23 सितंबर को आयोजित ग्लोबल समिट के लिए आमंत्रित किया गया तो उसने रेसिंग यॉट में एटलांटिक पार करना पसंद किया। इस यात्रा में उसे 15 दिन लगे लेकिन एक बड़े मुद्दे पर उसने अपनी बात रखने में कामयाबी हासिल की। विश्व नेताओं तथा राजनीतिज्ञों के खिलाफ उसके तीखे अभियान ने प्रत्येक व्यक्ति(खास तौर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप) को पूरी तरह हत्प्रभ कर दिया। गुस्से से लाल ग्र्रेटा ने गरजते हुए कहा, 'यदि आप हमें असफल करना चाहते हैैं तो हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे।Ó उसने कहा, 'अपने खोखले शब्दों से आपने हमारे सपनों तथा बचपन को चुरा लिया है।Ó तब प्रत्येक व्यक्ति बैठकर ग्र्रेटा की बातों को ध्यान से सुन रहा था मानो वह कह रहा हो कि 'कितनी निर्भीकता से ग्र्रेटा अपनी बात कहती है।Ó पूर्व में उसने कहा, 'आप हम युवाओं को रोक नहीं सकते।Ó दरअसल ग्र्रेटा ने सामाजिक प्रतिक्रिया के लिए चुनौती दी है। ग्र्रेटा ऐसी ही है जिसे रोका नहीं जा सकता। 2018 में पोलैैंड में उसने कहा, 'हमारे नेता बच्चों की तरह बर्ताव कर रहे हैैं।Ó ग्रेटा अपने आलोचकों को जवाब देते हुए कहती हैैं, 'अलग होना अपने आप में सुपर पॉवर है।Ó उसे इस पोस्ट के लिए 9 लाख 50 हजार लाइक्स मिले हैैं। वह कहती है कि यदि वह अपना रुख बदलकर मौन धारण कर लेती है तो वह हमारे अधिकांश शब्दों से भी ज्यादा सार्थक होगा। ऐसे लोग भी हैैं जो ग्र्रेटा की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैैं। उनका कहना है कि ग्र्रेटा के मुंह से यह बात कहलाने की कोशिश की जा रही है। सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन ग्र्रेटा अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण परिदृश्य पर एक चमकते सितारे की तरह उभरी है। ग्र्रेटा ने महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैैं और युवाओं को इस संदेश को फैलाने के लिए प्रेरित किया है। ग्र्रेटा ने राजनीतिज्ञों को चेतावनी दी है, 'हम आप पर नजर रख रहे हैैं।Ó भारत को भी एक ग्र्रेटा की जरूरत है हालांकि हमारे यहां के युवा भी विश्व मंच पर न सही लेकिन अपनी कम्युनिटी के भीतर ऐसे ही प्रयास कर रहे हैैं। पुणे इस समय विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहा है जो अभूतपूर्व ही है। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। कोई भी व्यक्ति जलवायु परिवर्तन के प्रति बेखबर नहीं रह सकता। ग्र्रेटा ने गेम चेंजर के रूप में अमूल्य रोल निभाया है। हम मूर्ख ही होंगे यदि हम दीवार पर लिखी इबारत की उपेक्षा करेंगे। ग्र्रेटा के शब्दों में, 'आप चाहें या नहीं, परिवर्तन आ रहा है।Ó <span style="font-weight: normal;"><span style="color: red;"> सर्वदमन पाठक</span></span></div>
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sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-22117622876601324832020-01-16T01:07:00.001-08:002020-01-16T01:07:10.451-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red;">शोभा डे कालम</span><br />
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<span style="color: blue;">सियासत के नए मुहावरे गढ़ती मिमी</span></h2>
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मैैंने हाल ही संपन्न हुए कोलकाता फेस्टिवल में गार्डन पार्टियों में आने वाले व्यक्तियों जैसी फ्लोटी, फ्लावर प्रिंट वाली ड्रेस तथा उससे मैच करती आरेंज हील चप्पल पहने एक युवती के पीछे फोटोग्र्राफरों को भागते देखा तो मैैंने उस युवा हस्ती को एक मिनट में ही पहचान लिया। वह जादवपुर की तृणमूल कांग्र्रेस सांसद मिमी चक्रवर्ती थीं जो मंच पर ‘सफलता और सुख’ पर भाषण देने जा रही थीं। वे इतनी अच्छी तरह से ग्र्रूम्ड तथा शानदार मेक अप में थीं कि मैैं उनकी ओर टकटकी लगाकर देखने से खुद को रोक नहीं पाईं। मुझे उन पलों का बरबस ही स्मरण हो आया जब वे दूसरी तृणमूल कांग्र्रेस सांसद नुसरत जहां के साथ पहली बार संसद भवन पहुंची थीं। वे उस समय पारंपरिक वेषभूषा से अलग मैचिंग पेंट और शर्ट धारण किये हुए थीं और पूरी तरह से सहज नजर आ रही थीं। मैैंने उन्हें तारीफ की दृष्टि से देखा और महिलाओं के सहज व्यवहार पर प्रसन्न हो गई।<br />
अब कोलकाता फेस्टिवल की बात करें तो मिमी बिना किसी बनावट एवं लागलपेट के अपनी शुरुआती जिंदगी तथा सफलता का उनके लिए क्या मतलब है-इसके बारे में बात कर रही थीं। कुछ शुरुआती पंक्तियों में बैठे लोग उनकी हर टिप्पणी पर तालियां बजा रहे थे। वे किसी परिपक्व राजनीतिज्ञ की तरह उस मंत्रमुग्ध भीड़ को अपनी बातों से आश्वस्त कर रही थीं। गौरतलब है कि बंगाली सिनेमा में कई हिट फिल्में देने वाली मिमी अभी सिर्फ 30 साल की हैैं और राजनीति में वे अभी नई ही हैैं। वे संघर्षपूर्ण प्रचार अभियान के फलस्वरूप अच्छे मतों से चुनाव जीती हैैं और उन्होंंने अपने विरोधियों को निरुत्तर करते हुए यह सिद्ध कर दिया है कि उन्हें एक जनमत सर्वे में ‘2016 की सबसे पसंदीदा महिला’ में शुमार किया गया था, वे उससे भी कहीं ज्यादा काबिल हैैं। आज वे काफी व्यस्त सेलेब्रिटी हैैं जो अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों से सतत संपर्क बनाए रखती हैैं, संसद की बैठकों में भाग लेती हैैं, अन्य कार्यक्रमों में जाती हैैं और एक्टिंग में भी हिस्सा लेती हैैं। वे अपने तरीके से जिंदगी जीती हैैं और ऐसा ही करना पसंद करती हैैं। वे खुद को अपने पालतू कुत्ते का अभिभावक मानती हैैं। वे बताती हैैं कि जब वे दिन भर की व्यस्तताओं के बाद घर पहुंचती हैैं तो वह पालतू जानवर गर्मजोशी से उनका स्वागत करता है।<br />
जब मैैंने सुख और सफलता पर उनके विचार सुने तो मुझे यह जानने में दिलचस्पी हुई कि वे अपनी प्राथमिकताओं में इतनी आसानी से कैसे संतुलन बिठा लेती हैैं। जलपाईगुडी में अपने पेरेंट्स को छोडक़र अपनी किस्मत आजमाने कोलकाता आई इस हस्ती ने पहले मॉडलिंग भी की है। उन्होंने अपनी उम्मीदें पूरी करने के लिए संघर्ष किया, फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाई और सख्त दिखने वाली ममता दीदी को उन्होंने इस कदर प्रभावित किया कि उन्हें मिमी की स्टार पावर पर भरोसा हो गया और उन्होंने मिमी को जादवपुर जैसी महत्वपूर्ण सीट पर टीएमसी प्रत्याशी बना दिया।<br />
मिमी कोई सुंदर चेहरे वाली गुडिय़ा नहीं हैैं लेकिन फेस्टिवल में लोगों के मूड को भांपते हुए अपने विचार रखे और प्रत्येक व्यक्ति के प्रश्नों का भी संतोषजनक उत्तर दिया। उनकी गर्मजोशी तथा सलीके से संवारी गई जीवन शैली को देखते हुए कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि वे राजनीति में लंबी पारी खेलने वाली हैैं। मैैं यह सुनकर अचंभित हो गई कि उन्हें केक बनाना पसंद है।<br />
मिमी ने अपनी शुरुआती जिंदगी के बारे में भावुकतापूर्ण लहजे में बताया कि पहले उन्हें लोगों का उतना सहयोग नहीं मिला। उन्होंने बताया कि जब वे शुरुआत में स्कूल में दाखिल हुईं तो वे बेहद रोमांचित थीं। उनकी मां के पास पुस्तक खरीदने के भी पर्याप्त पैसे नहीं थे लेकिन उन्होंने किसी तरह इतनी राशि का प्रबंध किया। उन्होंने बताया कि उन्हें जब 15000 रुपये का पहला पेमेंट मिला तो वे इतनी रोमांचित थीं कि उन्होंने बार बार इसे गिना। जब वे अपने संघर्ष के दिनों की याद कर रही थीं तो उनकी आंखों में बच्चों जैसा आश्चर्य का भाव था और वे अपनी आंसुओं को पोंछ रही थीं।<br />
वाह मिमी...आपने कई रूढिय़ों को इतनी जल्दी तोड़ा है। संसद में साड़ी के बदले पेंट पहनकर जाने का आपका फैसला आपके व्यक्तित्व के बारे में खुद ही सब कुछ बयां कर देता है। आप सभी के प्यार एवं सम्मान की पात्र हैैं।<br />
<h3 style="text-align: left;">
<span style="color: blue;">प्रस्तुति: सर्वदमन पाठक</span></h3>
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sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-3233147265451682542020-01-16T00:55:00.001-08:002020-01-16T00:57:04.923-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-GgQFdreqgN4/XiAkwuKgNdI/AAAAAAAAB-4/KUXZm3LMD3sCRRxqMjeLDVBLVyOzoArNACLcBGAsYHQ/s1600/deepika-jnu-hand_f.tif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1281" height="239" src="https://1.bp.blogspot.com/-GgQFdreqgN4/XiAkwuKgNdI/AAAAAAAAB-4/KUXZm3LMD3sCRRxqMjeLDVBLVyOzoArNACLcBGAsYHQ/s320/deepika-jnu-hand_f.tif" width="320" /></a></div>
<h2 style="text-align: left;">
यंग इंडिया की मेगास्टार है दीपिका</h2>
यह ऐसा विरला ही सप्ताह रहा जब विश्व की दो अलग अलग जगह की ग्लेमर से भरपूर दो हस्तियां सुर्खियों में छाई रहीं और इससे हंगामा भी हुआ। इन हस्तियों के कार्यकलाप को लेकर परस्पर विरोधी नजरिये की बाढ़ सी आ गई। दीपिका ने जेएनयू की विरोध प्रदर्शन रैली में पहुंचकर हड़ताली छात्रों के समर्थन का संकेत दिया जो बॉलीवुड की खामोश ब्रिगेड के अनुसार बिना सोच विचार के उठाया गया कदम था। दीपिका ने सिर झुकाकर तथा हाथ जोडक़र जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष के प्रति काफी सम्मान प्रदर्शित किया। उस समय आइशी के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी और फ्रेक्चर हुए हाथ में पïट्टा चढ़ा हुआ था। उन्हें केंपस के अंदर नकाबपोश गुंडों ने बुरी तरह पीटा था और वे छात्र विद्रोह का चेहरा बनकर उभरी हैैं। इन दो महिलाओं की मुलाकात की फोटो प्रत्येक बड़े समाचार पत्र में प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित हुई हैं।<br />
उधर हजारों मील दूर ससेक्स की डचेस मेगन मार्कल ने ऐसा कुछ किया कि लोग स्तब्ध रह गए। उन्होंने अपने पति प्रिंस हैरी के साथ रॉयल ड्यूटीज से खुद को हटा लेने की घोषणा की जिस पर उनके कदम में छिपी मंशाओं को लेकर मेल्स का तूफान आ गया। इस पर टिप्पणी करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति खुद को अधिकृत मान रहा था। इन दोनों के पतियों ने भी इन महिलाओं का जबर्दस्त समर्थन किया। रणबीर सिंह ने दीपिका की प्रशंसा एवं प्यार की ऐसी भावुकतापूर्ण पोस्ट भेजी कि अनगिनत पत्नियां ‘आह’ भरकर रह गईं। उन्होंने अपनी सुपरस्टार पत्नी द्वारा किये गए कार्य को सही ठहराते हुए तथा उसके विश्वास के साथ दृढ़ता से खड़े रहते हुए उस पर गर्व प्रदर्शित किया। उधर मेगन को प्रिंस द्वारा दिये गए हीरो जैसे समर्थन ने यह प्रमाणित कर दिया कि ब्रिटिश राजगद्दी के छठवीं पीढ़ी के वंशज इस प्रिंस के पास फौलादी संकल्पशक्ति है। अलबत्ता यह निर्णय उन दोनों का था और इस दंपति का कहना था कि अपने पुत्र के हितों को देखते हुए उन्होंने यह फैसला किया है। लेकिन इसके लिए प्रिंस को अपनी 93 वर्षीय ग्र्रेंडमदर का गुस्सा झेलना पड़ेगा क्योंकि आखिरकार वे इंग्लैैंड की महारानी हैैं।<br />
कहा जा रहा है कि दीपिका द्वारा प्रसिद्धि तथा व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए जेएनयू मुद्दे का राजनीतिकरण किया जा रहा है। मैैं इस राय से सहमत नहीं हूं। राजनीति में बॉलीवुड के लोगों की हिस्सेदारी हमेशा ही रही है। यदि आप इसमें शामिल होंगे तो भी आलोचना होगी और नहीं होंगे तो भी आलोचना होगी। इसमें इस बात का कोई मतलब नहीं है कि दीपिका ने अपनी नवीनतम फिल्म के प्रचार के लिए इसे पब्लिसिटी स्टंट के तौर पर इस्तेमाल किया। उसे यह अच्छी तरह मालूम था कि जेएनयू रैली में उसकी उपस्थिति आकर्षण का कारण बनेगी। मुद्दा यह है कि उसने इसका साहस किया जबकि अन्य किसी फिल्मी हस्ती ने ऐसा नहीं किया। उसने इसका जोखिम उठाया और उसकी उपस्थिति ने कई प्रसिद्ध लोगों के घंटों चले भाषण की तुलना में कहीं ज्यादा असर डाला। दीपिका ने एक स्टैैंड लिया। इसके लिए गट्स चाहिए। उसका यह फैसला प्रतिगामी असर भी डाल सकता था और उसे इससे हानि हो सकती थी। इसकी प्रतिकूल प्रतिक्रिया शुरू भी हो गई है। उसे सरकार के ‘स्किल इंडिया’ वीडियो से हटाया जा चुका है। यह भी केवल शुरुआत है लेकिन उसने छात्रों के साथ खड़े होने का रास्ता चुना और उससे यह कोई भी नहीं छीन सकता।<br />
यह बहुत कठोर और गलत तरीका है कि सेलेब्रिटीज को राजनीतिक मामलों में इस्तेमाल किया जाए या उन्हें सामाजिक जिम्मेदारियों के मामले में लेक्चर पिलाया जाए। हम सब वही करते हैैं जो हमारी अंतरात्मा कहती है।<br />
सिनेमा के दर्शकों में भारी संख्या में छात्र तथा करोड़ों मजदूर वर्ग के लोग शामिल हैैं। बॉलीवुड की नई पीढ़ी के कलाकारों ने इस बात को समझ लिया है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वरुण धवन, रिचा चड्ढ़ा तथा कई अन्य बॉलीवुड स्टार्स ने जेएनयू के प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है। यह स्मार्ट थिंकिंग है। दीपिका युवा भारत की नजर में बहुत बड़ी अभिनेत्री है। कई साल बाद जब इस ऐतिहासिक जेएनयू रैली का जिक्र होगा, दीपिका की इसमें हिस्सेदारी इसके नैरेटिव का अहम हिस्सा होगी। मेरा विश्वास कीजिए कि कोई भी व्यक्ति इसका स्मरण या परवाह नहीं करेगा कि बॉलीवुड़ के किस मेगा स्टार ने इसमें हिस्सा नहीं लिया या चुप्पी साध ली।<br />
सर्वदमन पाठक</div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-3908085719600438432019-09-03T03:16:00.003-07:002019-09-03T03:16:32.488-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="color: red;">हम जिंदगी का फिल्मीकरण क्यों चाहते हैैं?</span></h2>
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हमारी जिंदगी विशाल फिल्मी सेट की तरह है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह फिल्म स्टार बन जाए। बताइये कि क्या मेरा कहना गलत है। मैैंने एक विवाह-पूर्व बनाया गया विवादास्पद वीडियो देखा जिसमें राजस्थान का एक पुलिसकर्मी और उसकी साथी महिला भद्दे आचरण में मशगूल थे और यह सब बाकायदा फिल्माया जा रहा था। यह वीडियो, जिससे धनपत नामक उक्त पुलिसकर्मी की नौकरी भी जा सकती है, अब हटा दिया गया है। क्या आप जानते हैैं कि यह वीडियो किस सिलसिले में था? हम यही कह सकते हैैं कि यह वीडियो बॉलीवुड की स्किप्ट का बहुत ही गलत प्रस्तुतीकरण था। उदयपुर में इस वीडियो के एक शॉट में एक स्मार्ट तथा अच्छा दिखने वाला ट्रैफिक पुलिसकर्मी(धनपत) दबंग के सलमान खान की तरह व्यवहार करता है। टूव्हीलर पर सवार एक युवती को हेल्मेट न पहनने के कारण वह रोकता है और वह आकर्षक युवती(उक्त पुलिसकर्मी की होने वाली वधू) जुर्माना देने के बदले पुलिसकर्मी के बिल्कुल नजदीक आती है और उसकी शर्ट की जेब में रिश्वत रख देती है। उक्त युवती दिलकश अंदाज में पर्स पकड़े हुए अपने टूव्हीलर पर वहां से रवाना हो जाती है। अगला दृश्य एक कॉफी शॉप का है जहां फ्लर्ट किये जाने के नए नए विजुअल्स दिखते हैैं। ये सीन और अधिक अंतरंग हैैं। यह वीडियो पेशेवर लोगों द्वारा शूट किये गए हैैं जिसमें उक्त पुलिसकर्मी की प्यार की कहानी की स्किप्ट किसी मिनी मूवी की तरह ही दिखती है। उनकी लव स्टोरी इसके आखिरी शॉट पर ही खत्म नहीं होती। इस पुलिसकर्मी के वरिष्ठ अफसर इस वीडियो से नाराज हो उठे हैैं। वे पुलिस की वर्दी के 'दुरुपयोगÓ और इसमें दिखाई गई पुलिस विभाग की नकारात्मक छवि से नाराज हैैं। इस संबंध में पुलिसकर्मी को नोटिस दे दिया गया है और उदयपुर के एसपी कैलाश चंद्र विश्नोई नियमों की छानबीन कर रहे हैैं ताकि पुलिसकर्मी पर कोई कार्रवाई की जा सके।<br />
आजकल वैडिंग वीडियो का व्यवसाय काफी बढ़ गया है और ये व्यावसायिक दृष्टि से बड़े पैमाने पर तथा महत्वाकांक्षी तरीके से तैयार किये जाते हैैं। एक युवा ज्वैलर ने मुझे बताया कि उसने अपनी वैडिंग को बड़े ग्र्रेंड पैमाने पर मनाने की योजना बनाई थी। मैैं यह जानकर आश्चर्यचकित हो गई कि अन्य चीजों के अलावा कई वीडियो के लिए भी एक राशि रखी गई थी जिसमें कथित 'ग्र्रेंड शादीÓ के अश्लील वीडियो तैयार किये जाने थे। वे और उनकी मंगेतर पांच दिन की इस शादी की रस्मों की अपेक्षा इन वीडियो को लेकर काफी उत्सुक थे। वीडियो का फोकस विजुअल्स पर ही था जिन्हें वे शादी की रस्में पूरी होने के पहले ही सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए उतावले हुए जा रहे थे। इन क्लिप्स को अपलोड करने के लिए उन्होंने बाकायदा एक छोटी टीम नियुक्त की थी। बाद में स्वागत समारोह के फुटेज भी पूरी शिद्दत के साथ सोशल मीडिया पर अपलोड किये गए।<br />
आजकल विवाह समारोहों में पांच कैमरों तथा कई द्रोन का सेट लगाना सामान्य हो गया है जिसमें हर रस्म के लिए स्टाइलिंग, मेक-अप तथा वार्डरोब के बदलाव को कई पेशेवर लोगों द्वारा कोरियोग्र्राफ किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इसे एक डायरेक्टर इंचार्ज द्वारा सादगी भरा जादू बिखेरने के लिए नियंत्रित किया जाता है। ऐसा लगता है कि प्र्त्येक परिवार आजकल मल्टी स्टार कॉस्ट तथा धूमधड़ाके भरी शादी चाहता है। यदि आप मेंहदी में बॉलीवुड स्टार्स के डांस का खर्च नहीं उठा सकते तो आप खुद उनके जैसे वस्त्र पहन सकते हैैं और उनकी नकल कर सकते हैैं। बुजुर्गों को भी कैमरे के सामने वर वधू को आशीर्वाद के रटे रटाए डॉयलाग बुलवा दिये जाते हैैं। पवित्र फेरों तक के रीटेक की अनुमति इसमें रहती है।<br />
संपूर्ण भारत में बॉलीवुड का यह असर देखने को मिल सकता है। सामाजिक स्तर पर करोड़पतियों से लेकर, किसान, व्यापारी, बिल्डर तथा बैैंकर्स तक हर कोई इससे प्रभावित है। प्रत्येक व्यक्ति बॉलीवुड स्टाइल की वैडिंग के पीछे दीवाना है। हमने बिना सोचे समझे बॉलीवुड की शक्तिशाली छवि तथा संदेश के सामने समर्पण कर दिया है। इसमें धार्मिक समारोह भी शामिल हैैं।<br />
इस बीच मैैं उम्मीद कर रही हूं कि धनपत को वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कठोर चेतावनी देकर छोड़ देंगे। हमारे पुलिस बल में भ्रष्टाचार की वास्तविकता ट्रेफिक पुलिसकर्मी की जेब में उक्त युवती द्वारा डाली गई थोड़ी सी राशि के अनौचित्य की तुलना में काफी भयावह है।<br />
<span style="color: blue;">सर्वदमन पाठक</span></div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-91766115201613588792019-09-03T03:01:00.002-07:002019-09-03T03:08:08.966-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: blue;">बॉलीवुड-राजनीति ने बाजारीकरण के सामने समर्पण किया</span></h2>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">खाने का फैशन से क्या लेना देना है या बॉलीवुड का राजनीति से क्या संबंध है अथवा खेल का इन चारों से क्या संबंध है? काफी कुछ। मुझे इस बात पर विचार करने का ख्याल तब आया जब फैशन वीक( जिसे चलते हुए 20 साल हो चुके हैैं) चल रहा था। दो दशक पहले जब एफडीसीआई के गठन के साथ ही देसी फैशन का कारपोरेट स्वरूप आया तो बड़े खिलाड़ी इसमें कूद पड़े। लगभग रातों रात भारत के अव्यवस्थित तथा असंगठित फैशन उद्योग ने तेजी पकड़ ली और आधुनिक सिस्टम ले आए। डिजाइनर्स, फोटोग्र्राफर्स तथा कोरियोग्र्राफर्स के बीच पुरानी अनौपचारिकता तथा रिश्ते खत्म हो गए। फैशन से संबंधित प्रत्येक मुद्दे पर शार्प ऑपरेटर्स सक्रिय होने लगे। उनका दावा था कि वे फैशन के हित में ही काम कर रहे हैैं। इसका एक सकारात्मक पक्ष था तो नकारात्मक पक्ष भी था। धन ने रचनात्मकता को चलन से बाहर कर दिया लेकिन प्रत्येक चीज-सेट, संगीत तथा संपूर्ण प्रस्तुतीकरण में दर्शनीय रूप से उछाल आया। लेकिन क्या अधिक वस्त्र बिकने लगे? क्या भारत में फैशन की मार्केटिंग का विश्वस्तरीय मॉडल भारत में काम करता है? यह तो ईश्वर ही जानता है। उबाऊ फैशन निश्चित ही चलने लगा लेकिन कमोवेश पहले वाले डिजाइनर्स के साथ शो चलता रहा और पुराने लोगों को पुराना फैशन दिखाया जाता रहा। मेरी राय के मुताबिक तो इस दौरान युवा तथा संकल्पबद्ध फैशन डिजाइनर्स के रूप में नई प्रतिभाएं उत्तरपूर्व से आईं। उनके कलेक्शन्स में ताजगी थी तथा दुहराव नहीं था। उनकी दृष्टि का समर्थन देने वाली सांस्कृतिक आथेंटिसिटी भी उनके कलेक्शन में मौजूद थी। इसका उदाहरण 20 साल के लद्दाखी डिजाइनर स्टान्जिन पाल्मो का काम है। </span></h2>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">उक्त सभी फील्ड में एक बात समान है-चतुराई भरी ब्रांडिंग, प्रस्तुतीकरण का तरीका और मार्केटिंग। पीआर के लिए यह अच्छा समय है क्योंकि बिना तेज तर्रार पीआर टीम के प्रचार कार्य के कुछ भी आगे नहीं बढ़ सकता। फैशन की तरह ही बॉलीवुड भी बदल गया है। यह तभी संभव हुआ जब बड़ी ब्लॉकबस्टर को 'स्वच्छ धनÓ की आर्थिक मदद मिली। </span></h2>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">आज पूरी प्रक्रिया निश्चित तथा पारदर्शी हो गई है जहां स्मार्ट बच्चे भी बड़ी धनराशि की न केवल बात कर रहे हैैं बल्कि कमा भी रहे हैैं। पुरानी अस्पष्टता, अनिश्चितता तथा असुरक्षा के दिन लद गए हैैं और नई पीढ़ी करोड़ों के एनडोर्समेंट-प्रॉडक्ट प्लेसमेंट डील्स कर रही है और पूरे भारत तथा विदेश में भी आकर्षक संपत्ति खरीद रही है। क्या आजकल जो मूवीज बन रही हैैं, वे पुरानी शैली की फिल्मों से गुणवत्ता की दृष्टि से बेहतर हैैं? जूरी इस पर चुप्पी साधे रहती है लेकिन शोबिज में जबर्दस्त ऊर्जा लगती है और प्रत्येक व्यक्ति को व्यस्त रखने के लिए पर्याप्त काम होता है।</span></h2>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">ऐसा ही खेल संस्थाओं तथा खिलाडिय़ों के साथ है। विश्व में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए उनकी प्रतिस्पर्धा की भावना जबर्दस्त रहती है। आज स्पोटर््स प्रबंधन तथा इनमें बढ़ती सेलेब्रिटीज की संख्या का यह आलम है कि उनकी व्यावसायिक क्षमता अच्छी है। अब वे दिन नहीं रहे जब स्पोटर््स से जुड़े लोगों को फंड के लिए प्रयास करना पड़ता था। यहां भी वैसा ही है कि चतुर मार्केटिंग प्रोफेनल्स काफी पैसा लाए हैैं। हो सकता है कि आईपीएल के गॉडफादर ललित मोदी भारत में वांछित आर्थिक अपराधी हों लेकिन उन्होंने जो कुछ किया उससे इस खेल में क्रांति आ गई और कई युवा क्रिकेटरों को कई मिलियन रुपए हासिल हुए। आईपीएल के मॉडल का इस्तेमाल करके कई स्पोटर््स में फ्रेंचाइजी का विस्तार हुआ। इनमें से अधिकांश काफी संपन्नता हासिल कर चुके हैैं।</span></h2>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">इसी तरह रेस्तरां का व्यवसाय इस समय अनियंत्रित रफ्तार से बढ़ रहा है। सिर्फ उपभोक्ताओं को अच्छा खाना ऑफर करना ही आजकल पर्याप्त नहीं है बल्कि पैकेजिंग भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण इसमें ब्रांड रायल्टी बनाए रखना जरूरी है।</span></h2>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">राजनीतिज्ञों को अन्य उत्पादों की तरह पैकेजिंग के साथ बेचे जाने में कोई आपत्ति नहीं है। चाहे कोई व्यक्ति अपने विचार बेच रहा है या फेयरनेस क्रीम बेच रहा है, स्ट्रेटेजी समान ही होती है। आप क्या मैसेज देते हैैं, यही सब कुछ है। दशकों पहले नेता को इसे लेकर जनता के भरोसे पर खरा उतरना पड़ता था कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए क्या काम करेगा लेकिन आज वह एक इमेज मेकर पर सबसे पहले निवेश करता है और फिर घोषणापत्र के बारे में सोचता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि काफी धन राशि खर्च करके टिकट हासिल करने वाला आज का पालिश्ड तथा मीडिया सेवी राजनीतिज्ञ लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी उपलब्ध सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करता है और आपका वोट झटक लेता है। दरअसल प्रत्येक चीज वस्तु के रूप में तब्दील हो गई है जिसमें ब्रांडिंग महत्वपूर्ण है।</span></h2>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: blue;">सर्वदमन पाठक</span></h2>
</div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-4828270709463842682019-08-22T01:51:00.002-07:002019-08-22T01:51:58.673-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;">बासित की इस हरकत पर कोई भारतीय भरोसा नहीं करेगा</span></h2>
<span style="color: blue;">शोभा डे ब्लॉग से</span><br />
<br />
<br />
मैैं एक शानदार होटल में आनंदिता के साथ कैपुसिनो की चुस्कियां ले रही हूं। यह मां-बेटी के साथ समय बिताने का भव्य अवसर है। हम लोग चर्चा कर रहे हैैं कि और क्या मंगाया जाए। तभी मेरा सेल फोन लगातार बजने लगता है। तभी एक मित्र रिपोर्टर मुझे इस संबंधी जानकारी उपलब्ध कराते हैैं। वे बताते हैैं कि भारत- स्थित पूर्व पाकिस्तानी हाई कमिश्नर अब्दुल बासित ने अपने देश के एक ब्लॉगर को दिये इंटरव्यू में दावा किया है कि उसने कश्मीर मुद्दे पर एक विशेष तरह का (पाकिस्तान समर्थक)लेख लिखने के लिए मुझे प्रभावित किया था। उसने मेरे कॉलम में लिखे गए कुछ हिस्सों को उद्धृत करते हुए इस लेख का श्रेय खुद को दिया है। मेरा पहला रिस्पांस यह था कि मैैं इस मामले को पूरी तरह खारिज करूं और इस पर खास तौर पर ट्रोल आर्मी द्वारा की जा रही गंदी तथा धमकी भरी टिप्पणियों पर आगे कोई प्रतिक्रिया नहीं दूं। लेकिन इस तरह के कॉल्स मेरे पास आते चले गए तो मुझे लगा कि यह क्या हो रहा है? यह अब्दुल बासित कौन है और किस बारे में बात कर रहा है? दरअसल 27 जनवरी 2019 को जयपुर के रामबाग पैलेस होटल के लॉन में आयोजित एक साहित्योत्सव के स्वागत समारोह में मैैंने अपने पति के साथ हिस्सा लिया था। हम लोग अपने कुछ मित्रों, जिनमें लेखक, प्रकाशक तथा संपादक शामिल थे, के साथ गपशप कर रहे थे तभी अचानक व्हिस्की का टंबलर लिए हुए एक व्यक्ति वहां आ गया और कुछ ज्यादा ही दोस्ताना अंदाज में हम लोगों के साथ बातचीत करने लगा। कुछ समय बाद हम लोगों के समूह की गुस्से भरी बातों को सुनकर वह सिर झुकाकर वहां से चला गया। हम लोगों के बीच कुल तीन मिनिट की बात हुई। यह मेरी और बासित की पहली और अंतिम मुलाकात थी। और उसकी हिमाकत देखिये कि आज वह मुझे 'इंफ्लुएंसÓ करने की बात कर रहा है। वह झूठ बोल रहा है। वह संबंधित वीडियो में जिस कॉलम की बात कर रहा है, वह 2016 में लिखा गया था। अपने मुंह से बकवास करने के पहले उसने अपना होमवर्क तो सही तरीके से कर लिया होता।<br />
सवाल यह है कि फिर मैैं यह प्रतिक्रिया क्यों दे रही हूं? इसकी वजह यह है कि इस सिलसिले में अपना दामन साफ रखना महत्वपूर्ण है। उसका आरोप गंभीर और खतरनाक है। मेरी चुप्पी का यह मतलब होगा कि मैैं उसके असत्य को चुनौती देने की इच्छा नहीं रखती। इसलिए एएनआई के अनुरोध पर मैैंने एक मिनिट के वीडियो में अपनी प्रतिक्रिया दी जिसे भीड़ भरे मॉल में आनंदिता ने शूट किया। इसके बाद तो ट्रोल आर्मी और सक्रिय हो गई। मुझे बताया गया कि मेरा नाम भारत के उन 300 लेखकों, चिंतकों में शामिल है जो आईएसआई के 'पे रोलÓ पर हैैं। ये लोग पाकिस्तान के लिए काम करते हैैं और भारत विरोधी नीतियों का समर्थन करते हैैं। ये आरोप काफी विस्फोटक हैैं और इन आरोपों का पूरी ताकत से खंडन किया जाना चाहिए। हकीकत यह है कि धारा 370 के मुद्दे पर विश्व का जनमत पाकिस्तान के खिलाफ है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी तक को यह स्वीकार करना पड़ा है कि पाकिस्तान के लोग मूर्खों की दुनिया में रह रहे हैैं। बासित ने सोचा होगा कि जब पाकिस्तान की विश्वसनीयता बुरी तरह गिर गई है, तो वह अचानक मेरा नाम उछालकर लोगों का ध्यान वास्तविकता से भटका देगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सकेगा। मुझ पर कई आरोप लग सकते हैैं लेकिन किसी ने भारत के प्रति मेरी निष्ठा को कभी चुनौती नहीं दी। हां, यह सच है कि मेरा व्यक्तित्व और विचार स्वतंत्र हैैं लेकिन मैैं किसी राजनीतिक दल से चुड़ी नहीं हूं। मैैं जो महसूस करती हूं, वही कहती हूं। यह मेरा अधिकार है कि मैैं विचारों के मुताबिक किसी सरकार को चुनौती दूं या उसकी आलोचना करूं, चाहे कोई भी सरकार सत्ता में हो। यह एक नागरिक का विशेषाधिकार है और मैं इसे छोड़ नहीं सकती, चाहे जो भी हो। लेकिन यह अब्दुल बासित मुझे डिसक्रेडिट करने वाला कौन होता है। कौन इस झूठे व्यक्ति पर भरोसा करेगा। मेरे विचार खुले हैैं और यह सभी को मालूम है। मेरे फोन टेप करो, मेरे ईमेल हैक करो, जब भी मैैं बाहर निकलूं तो मेरा पीछा करो, सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर मेरी बातों की छानबीन करो, मेरा लैपटॉप ले लो लेकिन मेरे शर्मिंदा होने या मुंह छिपाने लायक इसमें कुछ भी नहीं मिलेगा। इसलिए अब्दुल बासित, तुमने गलत महिला से पंगा लिया है। तुम्हारी बात पर कोई भी भरोसा नहीं करेगा। इससे अच्छा होता कि तुम अपने देश पर ध्यान देते कि वहां क्या गड़बड़ी हो रही है। देश किसी भी राजनीतिक पार्टी सेे शक्तिशाली है और मैैं जिन बातों पर भरोसा करती हूं, उनके लिए पूरी शिद्दत से लड़ती रहूंगी। अब्दुल बासित, यदि तुम सोचते हो कि तुम इस तरह की हरकतों से जीत जाओगे तो यह तुम्हारी भूल है। इसलिए अच्छे बच्चे की तरह पाकिस्तानी जनरल्स से सॉरी कहो और उनसे आग्र्रह करो कि वे तुम्हारा पॉकेट मनी न काटें।<br />
प्र<span style="color: blue;">स्तुति: सर्वदमन पाठक</span></div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-65591766508156163912019-08-08T05:20:00.000-07:002019-08-08T05:20:55.028-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<h2 style="text-align: left;">
<span style="color: red;"><br />हम टुटपुंजिए चोरों की तरह व्यवहार क्यों करते हैैं?</span></h2>
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<span style="color: red;"><br /></span></div>
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<span style="color: magenta;">बाली से एक वीडियो आया है जिसमें होटल स्टाफ द्वारा एक संपन्न भारतीय परिवार को चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़े जाते दिखाया गया है। यह उस समय का वीडियो है जब वह परिवार अपने कमरे से चोरी किये गए सामानों से भरे सूटकेस के साथ रवाना होने वाला था। जब होटल के कर्मचारियों ने हेयर ड्रायर्स, सोप डिस्पेंसर्स, टॉवल, हैैंगर, डेकोरेटिव आइटम सहित चोरी का सामान टेबिल तथा अन्य स्थानों से निकाला तो इस वायरल वीडियो में तमाम चश्मदीद खुद को शर्मिंदा तथा अपमानित महसूस करते दिख रहे थे। इन पर्यटकों को यह बात काफी चुभी कि चोरी के सामान के साथ पकड़े गए लोग उसके बाद भी सीनाजोरी कर रहे थे। पहले तो उन्होंने चोरी से इंकार करते हुए काफी उत्तेजना दिखाई लेकिन बाद में चोरी के सामान के 'भुगतानÓ के लिए तैयार हो गए। आखिर में तो पुराना तरीका अपनाते हुए गुस्से में भरे स्टाफ को ले देकर मामला सुलझाने की भी कोशिश की। यह सभी कुछ रिकार्डेड था और सारी दुनिया ने इसे देखा। यह भारत की हंसी उड़ाने वाला वाकया था। बाली में पकड़े गए उक्त भारतीय परिवार के अलावा भी कई ऐसे संपन्न भारतीय परिवार की ऐसी खबरें पहले भी मिली हैैं जो बर्न के पास 30 लाख रुपये प्रति रात्रि किराये वाले स्की रिसोर्ट में रुके थे। इस रिसोर्ट के प्रबंधन द्वारा लोगों को आगाह किया जाता रहा है कि वे अपने कमरे से कांप्लिमेंटरी ब्रेकफास्ट बफे के सामान भी नहीं ले जा सकते लेकिन लोग अपने मित्रों के व्हाट्सऐप ग्र्रुप में यह स्वीकार करते रहे हैैं कि उन्होंने ब्रेकफास्ट के लिए सजी टेबिल से बन्स तथा क्रोइसिएंट लाने का अपराध किया है। अब वे खुद से पूछ रहे हैैं कि इस वीडियो में दिख रहे चोरी करते पकड़े गए लोगों से वे क्या किसी भी तरह से बेहतर हैैं। चोरी कैसी होती है? क्या इनमें से कोई भी चोरी का औचित्य ठहरा सकता है या क्या उन्हें माफ किया जा सकता है? </span><br />
<span style="color: magenta;">समाजशास्त्रियों से यह पूछना रोचक होगा कि हम टुटपुंजिये चोरों की तरह क्यों व्यवहार करते हैैं। हम अपने लपकते हुए हाथों को कुकी जार से बाहर क्यों नहीं रख सकते? क्या इसका भूख से वंचित रहने की किसी काफी पहले दफन हो चुकी याद से कुछ लेना देना है? प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अपनी कहानियां हैैं कि किस तरह उनके दादे-परदादे भूखे रह जाते थे ताकि उनके बच्चे खाना खा सकें। चूंकि खाना और प्रगति एक दूसरे से जुड़े हुए हैैं इसलिए हमारा भूखमरों की तरह खाना इस बात से संबंधित है कि हम कैसे बड़े होते हैैं-कितने अधिक या कितने कम संसाधनों के साथ? ऐसी स्मृतियों को पूरी तरह से दिलोदिमाग से हटा देना आसान नहीं होता। संपन्न लोगों में भी यह असुरक्षा की भावना रहती है कि खाना कहीं खतम न हो जाए इसलिए इसे जमा कर लो। हम सिर्फ खाने के सामान तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि आराम से कुछ भी या सब कुछ चुरा लेते हैैं। एक हेयर ड्रायर की कीमत आत्मसम्मान के आसपास भी नहीं होती। अपना सिर ऊंचा रखें। </span><br />
<span style="color: blue;"> सर्वदमन पाठक</span></div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-66345433342095920082019-08-06T02:00:00.002-07:002019-08-06T02:00:37.240-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
<span style="font-weight: normal;"><span style="color: red;">एक और ‘अगस्त क्रांति’</span></span></h2>
<span style="background-color: #93c47d;"><span style="color: blue;">अपने दूरगामी फैसलों से देश को जब तब चमत्कृत कर देने वाली नरेंद्र मोदी सरकार ने अब अपनी चमत्कारी शैली से राष्ट्र की आजादी की नई इबारत लिख दी है। सुखद संयोग यह है कि आजादी के बाद से ही अलगाववाद और आतंकवाद के नासूर से देश को मर्मांतक पीड़ा पहुंचाने वालेकश्मीर को , 370 तथा अनुच्छेद 35-ए के खात्मे की सर्जरी से निजात दिलाने का यह करिश्मा अगस्त माह में ही हुआ, जो अगस्त क्रांति(9 अगस्त 1942) तथा स्वतंत्रता दिवस(15 अगस्त 1947) के रूप में आजादी के महत्वपूर्ण पड़ाव का साक्षी रहा है। स्वाभाविक है कि इस फैसले के बाद कश्मीर अब अन्य हिस्सों की तरह ही देश का एक हिस्सा हो जाएगा और इसका विशेष दर्जा खत्म हो जाएगा जो भेदभाव की एक बड़ी वजह था। पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाने तथा लद्धाख को उससे पृथक केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील करने की रणनीति कश्मीर राज्य के भीतर भाजपा की रची जाने वाली व्यूहरचना का ही संकेत है। इस फैसले के दूरगामी प्रभावों को देखते हुए यह अनुमान लगाना कोई रॉकेट साइंस जैसा मुश्किल नहीं है कि ऐतिहासिक भूलों से देश की पूर्ण आजादी के सामने सवालिया निशान बनकर खड़े कश्मीर का भूगोल और सियासत इस फैसले से पूरी तरह बदल जाएगी और आतंकवाद परोसने वालों के हाथों की कठपुतली बने स्थानीय नेता घाटी के भोले भाले लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाने की ताकत खो बैठेंगे। आतंकवाद के निर्यातक पड़ौसी देश पाकिस्तान तथा स्थानीय आतंकवादियों के समर्थन से अपनी राजनीतिक दूकान चमकाने वाले नेताओं की बेचैनी तथा बौखलाहट इस बात का जीता जागता प्रमाण है। सारे देश में मनाया जा रहा जश्न यही दर्शाता है कि देश इस फैसले की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था। वास्तविकता यह है कि देश की इस आकांक्षा को सरकार ने पूरी शिद्दत से महसूस किया और इसी जनाकांक्षा ने उसे इतने बड़े फैसले के लिए शक्ति और मनोबल प्रदान किया। सरकार की यह राजनीतिक इच्छाशक्ति उसे देश की सियासत में माइलेज प्रदान करे तो आश्चर्य ही क्या है। कुछ राजनीतिक दल अपने पूर्वाग्र्रहों के कारण इस कदम का विरोध कर रहे हैैं, वह उनकी राजनीतिक अअदूरदर्शिता ही है। </span></span><br />
<span style="background-color: #93c47d;"><span style="color: blue;">इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि भले सरकार ने साहस का परिचय देते हुए यह अहम फैसला किया है लेकिन इन कदमों के क्रियान्वयन का रास्ता उतना आसान नहीं होगा। कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की शतरंज में एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है और इस खेल में भारत कितनी चतुराई से अपनी चाल चलता है, उक्त फैसले की सफलता इस पर भी निर्भर करेगी। फिलहाल घाटी में भारत की भारी सैन्य उपस्थिति के कारण वहां पनप रहे असंतोष और गुस्से का कोई सटीक अंदाजा लगाना मुश्किल है लेकिन वहां की जनता की भावनाओं की जीतना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। </span></span><br />
<span style="background-color: #93c47d;"> <span style="color: purple;">सर्वदमन पाठक</span></span></div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-81216561376225093052017-10-01T06:05:00.002-07:002017-10-01T06:05:51.715-07:00केकवॉक में साजिशों की कुकिंग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शोभा डे का ब्लॉग<br /><br /><br />जब से गौरी लंकेश की हत्या हुई है, मैैं लिखने के लिए 'सुरक्षितÓ टॉपिक की तलाश में हूं। मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि मैैंने अंतत: ऐसा एक विषय तलाश लिया है-वह है 'केक बेकिंगÓ। लेकिन इसमें थोड़ी समस्या है। मैैंने जिंदगी में कभी केक बेक नहीं किया है। सिर्फ कुछ केक खाए अवश्य हैैं। लेकिन इससे उस विषय पर कॉलम लिखने में मुझे कुछ भी रुकावट नहीं आती, जिसके बारे में मैैं बहुत कम जानती हूं। ठीक वैसा ही गौरी के बारे में कहा जा सकता है। उसके जीवन और मौत के बारे में टिप्पणी करने वाले कितने लोग उसके बारे में पर्याप्त रूप से जानते हैैं? बहुत कम। कितने लोग उन परिस्थितियों से वाकिफ हैैं जिनके तहत गौरी की हत्या की गई? बहुत कम। उसके हत्यारे या हत्यारों की पहचान के बारे में कौन जानता है? अभी तक कोई नहीं। लेकिन हम सभी इस बारे में अपनी राय जाहिर कर रहे हैैं, निष्कर्ष निकाल रहे हैैं और अपने अपने अंदाज लगा रहे हैैं जिसका इससे कोई संबंध नहीं है। <br />केक के साथ भी ऐसा ही है। हम आकर्षक पेटिसरीज में जाते हैैं और वहां सजे हुए केक के बारे में सर्वे करते हैैं मानो हम सभी केक एक्सपर्ट हों। फिर हम एक केक चुन लेते हैैं जो हमारे बजट तथा रुचि के अनुरूप होता है। हम उसका एक टुकड़ा चखते हैैं और उसे नापसंद कर देते हैैं। हम अपना पैसा वापस चाहते हैैं लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। फिर हम उसमें कमियां निकालना शुरू कर देते हैैं। हम इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैैं कि हमें पेस्ट्री शॉप द्वारा ठगा गया है क्योंकि बेकर ने इसमें आटा एवं बटर सही अनुपात में इस्तेमाल नहीं किया। हम खुद ही तय कर लेते हैैं कि केक में घटिया स्तर की चॉकलेट इस्तेमाल की गई थी, ओवन डिफेक्टिव था, क्रीम कम थी, बेकर ने ज्यादा नमक का इस्तेमाल किया था या पैकेजिंग भ्रामक थी। हम उस केक शॉप का बहिष्कार करने की ठान लेते हैैं। हम अपने बुरे एक्सपीरियंस के बारे में अपने दोस्तों को बताते हैैं। वे दूसरों को बताते हैैं। आखिरकार जनता की राय के सामने झुकते हुए उक्त केक शॉप अपनी दुकान बंद हो जाता है। <br />गुस्सा फैलता है। कुछ केक प्रेमी खुद ही केक बनाते का फैसला करते हैैं। वे अपना एक ग्र्रुप बना लेते हैैं। हर कोई तो इस ग्र्रुप में शामिल हो नहीं सकता। इस ग्र्रुप में शामिल होने को लेकर कुछ लोग जुनूनी हो सकते हैैं। उन्हें उचित तवज्जो न दिये जाने पर वे विरोध स्वरूप अपना प्रतिद्वंदी केक ग्र्रुप बना लेते हैैं। इससे टकराव हो जाता है और पड़ौस की शांति को खतरा उत्पन्न हो जाता है। पथराव की कुछ घटनाएं होती हैैं। कुछ भड़काऊ पर्चेबाजी भी होती है। अनियमितताओं के आरोप लगाए जाते हैैं और स्थिति नियंत्रण के बाहर हो जाती है। जो लोग केक पसंद नहीं करते, वे अपना अलग ग्र्रुप बनाकर विरोध प्रदर्शित करने लगते हैैं। वे 'शुद्ध देशी घी मिठाई क्लबÓ बना लेते हैैं। कुछ लोग केक को राष्ट्र विरोधी घोषित करते हुए पूछते हैैं कि ये केकवाले केक ही क्यों बनाते हैैं, जलेबी और रसगुल्ला क्यों नहीं बना सकते? इसके पीछे कोई विदेशी हाथ होना चाहिए। केक भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। इसकी न्यायिक जांच होनी चाहिए। इस बीच प्रमुख केक बेकर्स पर सतर्क निगाह रखी जाती है। कोई मोर्चा निकालने का सुझाव देता है तो दूसरा सुझाता है कि केंडल मार्च निकाला जाए क्योंकि इसे ज्यादा टेलीविजन कवरेज मिलेगा। इनका नेता गरजता है कि हम इन केक बेकर्स के खिलाफ कुछ ज्यादा ही नरम रुख अपना रहे हैैं। वे हमारी सोसायटी के लिए खतरनाक हैैं। केक सारे देश में फैल जाए, इसके पहले हमें उनको रोकने के लिए रणनीति बनानी होगी। केक पश्चिमी प्रोपेगंडा का हिस्सा है। हमारे युवक और भ्रष्ट हों, इसके पहे केक क्रांति को खत्म करना जरूरी है। <br />केक प्रशंसकों के तेजी से हो रहे फैलाव को रोकने के लिए एक योजना तैयार की जाती है। केक प्रशंसकों की लिस्ट तैयार की जाती है और उन्हें चेतावनी दी जाती है कि वे केक की तारीफ बंद करें या फिर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें। उनमें से एक व्यक्ति सलाह देता है कि चीफ बेकर को केक बनाने से रोका जाए लेकिन सवाल यह उठता है कि कैसे क्योंकि केक नुकसानदेह तो है नहीं। केक की तारीफ करने वालों को सबक सिखाने के लिए सीधी कार्रवाई के तौर पर पेड़ा और बर्फी के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने का फैसला किया जाता है और कोई मोटर साइकिल पर सवार होकर इनके कई हेलमेटधारी समर्थक इसे अंजाम देने के लिए निकल पड़ते हैैं।<br />इधर मैैं दुविधा में हूं। सवाल यह है कि मैैं केक बनाऊं या न बनाऊं।<br />प्रस्तुति: सर्वदमन पाठक</div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-53938972909334248802016-07-16T03:17:00.002-07:002016-07-16T03:17:17.346-07:00क्या स्वामी राजनीति के कमाल आर खान हैं?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-ifGgC4M4rA8/V4oJfI14iUI/AAAAAAAAA3M/qkggypDeQK85y0j-HlvFI58O43qzlQodwCLcB/s1600/subramanian-swamy_650x400_61452343556.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="196" src="https://1.bp.blogspot.com/-ifGgC4M4rA8/V4oJfI14iUI/AAAAAAAAA3M/qkggypDeQK85y0j-HlvFI58O43qzlQodwCLcB/s320/subramanian-swamy_650x400_61452343556.jpg" width="320" /></a></div>
<br /><br /><span style="color: #990000;"><i><b>स्वामी ने अपने द्वारा चुने गए गंदे काम सफलतापूर्वक पूरे किए हैं। रघुराम राजन आखिर अपना सामान समेटकर अपने घर लौट रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि स्वामी ने रघुराम राजन के बारे में कहा था कि वे पूरी तरह मानसिक रूप से भारतीय नहीं हैं। राजन ने यह सही सिद्ध कर दिया है। ईश्वर को इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि लाखों सही सोचने वाले लोगों की तरह रघु भी निश्चित ही 'मानसिक रूप से पूरी तरह भारतीय नहीं हैं। यदि वे स्वामी जैसे भारतीय होते तो वे जहां तहां झूलते रहते, लोगों को खारिज करते रहते और दिल्ली दरबार में दंडवत करते रहते। रघुराम सर्वश्रेष्ठ प्रकार के भारतीय हैं जो देश के हित में सोचते हैं और वैश्विक तरीके से कार्य करते हैं। </b></i></span><br /><br />लगता है कि सुब्रमण्यम स्वामी अपने आपको भारत के डोनाल्ट ट्रम्प तथा राजनीति के कमाल आर खान के रूप में मशहूर करने के लिए काफी जल्दबाजी में हैं। संभव है कि उनके पास डोनाल्ट ट्रम्प से कहीं ज्यादा धन हो। लेकिन ट्रम्प के सिर पर उनकी अपेक्षा कहीं ज्यादा बाल हैं। अलबत्ता दोनों में एक चीज कॉमन है कि उनके सिर बड़े हैं। कमाल आर खान बॉलीवुड के चर्चित व्यक्ति हैं। कोई भी व्यक्ति निश्चित रूप से यह नहीं जानता कि कमाल खान आखिर करते क्या हैं? लेकिन वे लगातार दूसरों पर जुबानी हमले करते रहते हैं। स्वामी और खान उन लोगों के खिलाफ ट्वीट करके ही फलते फूलते हैं। जिन्हे वे पसंद नहीं करते। इनमें कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है। हैडलाइन बटोरने की वजह से हुए अपमान के कारण वे संसद में 'आइटम नंबर बन चुके हैं जबकि इनमें से दूसरा व्यक्ति विक्रम भट्ट को इस हद तक नाराज करने में सफल रहा है कि विक्रम को उसके खिलाफ मुकदमा करना पड़ा। भट्ट ने तो गरजते हुए कहा था 'गंदगी से लडऩे के लिए में भी गंदगी बन जाऊंगा यह सिद्ध करने के लिए कि वे वास्तव में इस मामले में गंभीर हैं, खान के सभी गंदे ट्वीट उन्हें दोहराये हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने खान द्वारा निशान बनाई गई बॉलीवुड की सुंदर अभिनेत्रियों का अपमान दुगना कर दिया है। क्या इसका कोई मतलब है। मैलापुर के सुब्रमण्यम स्वामी (वे वहां जन्मे हैं) को अंतत: भारत के हैडमास्टर नरेंद्र मोदी ने अपने पसंदीदा व्यक्ति के रूप में चुन लिया है। हालांकि इसमें काफी देर हो गई। <br />स्वामी ने अपने द्वारा चुने गए गंदे काम सफलता पूर्वक पूरे किए हैं। रघुराम राजन आखिर अपना सामान समेटकर अपने घर लौट रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि स्वामी ने रघुराम राजन के बारे में कहा था कि वे पूरी तरह मानसिक रूप से भारतीय नहीं हैं। राजन ने यह सही सिद्ध कर दिया है। ईश्वर को इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि लाखों सही सोचने वाले लोगों की तरह रघु भी निश्चित ही 'मानसिक रूप से पूरी तरह भारतीय नहीं हैं। यदि वे स्वामी जैसे भारतीय होते तो वे जहां तहां झूलते रहते, लोगों को खारिज करते रहते और दिल्ली दरबार में दंडवत करते रहते। दुर्भाग्य से यही 'टिपीकलÓ भारतीय मानसिकता है। रघुराम सर्वश्रेष्ठ प्रकार के भारतीय हैं जो देश के हित में सोचते हैं और वैश्विक तरीके से कार्य करते हैं। शायद उनकी यही प्रमुख 'कमी है। रघुराम राजन के खिलाफ अपने लक्ष्य को पा लेने के बाद स्वामी ने अन्य 'खतरोंÓ पर अपनी बंदूक तान दी है। <br />यह अप्रत्याशित ही था कि उनकी गंदगी फैलाने की क्षमता काफी उजागर हो गई और उन्हें अचानक पदावनत कर दिया। प्रधानमंत्री की तीखी सार्वजनिक झिड़की ने उन्हें फिलहाल उनकी वर्तमान हैसियत में पहुंचा दिया है। लेकिन उनके द्वारा की गई क्षति तो हो चुकी है। राजन जहां से आए थे, वहां जाने वाले हैं। अरुण जेटली इस पर आश्चर्य चकित हैं। राजन का स्थान कौन लेगा इस चर्चा के बीच यह सही समय है कि आरबीआई का गर्वनर किसी महिला को बनाया जाए। महिलाएं बहुत ही समझदारी से तथा शानदार तरीके से धन तथा धन से संबंधित मामलों को देखती हैं। एक महिला जरूरी आर्थिक सुधारों को अधिक सख्ती से लागू कर सकती है। <br />परिणामों की परवाह किए बिना वह पूरी क्षमता तथा निष्ठा के साथ कार्य करेगी और राजन ने जो काम शुरू किया था उसको अंजाम तक पहुंचाएगी। इस तरह की निर्भीक तथा ताजगीभरी सोच ही भारत को मुश्किलों से बाहर निकालेगी। प्रिय सुब्रमण्यम स्वामी कृपया अपने व्याकरण की अशुद्धियों से भरे ट्वीट्स से अरुणधंति भट्टाचार्य की जिंदगी को दूभर न बनाएं। <br /><br />- प्रस्तुति -<br />
<span style="color: #990000;"><b>सर्वदमन पाठक</b></span><br />
समाचार संपादक<br />
<span style="color: #274e13;"><b>दैनिक जागरण भोपाल</b></span></div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-34860359998640139892013-04-25T05:35:00.005-07:002013-04-25T05:35:45.998-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #a64d79;"><span style="font-size: x-large;"> मप्र भी शर्मसार है चाइल्ड रेप के कलंक से</span></span> <br /><u><span style="color: #6fa8dc;"><b><span style="font-size: small;">प्रसंगवश </span></b></span></u><br /><span style="color: #6fa8dc;"><span style="font-size: large;">सर्वदमन पाठक</span></span><br />पांच साल की मासूम बच्ची से बलात्कार की पैशाचिक घटना पर एक बार फिर दिल्ली दहल उठी है। इस घिनौनी हरकत पर लोगों में गुस्से का ज्वार फूट पड़ा है और लोग सड़कों पर उतर आए हैैं। इस मामले में पुलिस के संवेदनहीन रवैये को लेकर लोगों में खासी नाराजी है और इसी वजह से पुलिस आयुक्त को हटाए जाने की मांग करते हुए प्रदर्शन का सिलसिला भी चल पड़ा है। दिल्ली में बलात्कार की इतनी ज्यादा घटनाएं पिछले दिनों हुई हैैं कि अगर इसे रेप केपिटल कहा जाए तो कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी। शहरों में दिल्ली रेप के मामले में जितनी कुख्यात है, राज्यों में मध्यप्रदेश की वही स्थिति है। दिल्ली में पैशाचिक दुष्कर्म की शिकार नन्हीं बच्ची का इलाज कर रहे एम्स के डाक्टरों की यह रिपोर्ट थोड़ी राहत भरी है कि उसकी हालत लगातार सुधर रही है और एक सप्ताह में वह लोगों से बात करने की स्थिति में हो जाएगी लेकिन मध्यप्रदेश में सिवनी जिले के घंसौर में दुष्कर्म की शिकार बच्ची , जिसे बेहतर इलाज के लिए जबलपुर से नागपुर ले जाया गया था, अभी भी वेंटिलेटर पर है और चिंताजनक बात यह है कि उसके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया है जो उसकी अत्यंत ही नाजुक स्थिति का संकेत देता है। इसी तरह छिंदवाड़ा के तामिया नामक स्थान पर दुष्कर्म की शिकार हुई चार वर्ष की बच्ची की हालत भी नाजुक बनी हुई है। दिल्ली रेप कांड के दोनों आरोपियों को पकड़ लिया गया है लेकिन मध्यप्रदेश में दोनों मामले पुलिस की नाकामी की कहानी कहते हैैं। घंसौर कांड का आरोपी पुलिस की पकड़ से बाहर है। तामिया पुलिस की अमानवीयता का यह आलम है कि तीन घंटे तक खून से लथपथ बच्ची को लिए उसकी मां पुलिस के सामने गिड़गिड़ाती रही लेकिन पुलिस उसकी रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करती रही। इस घटना का आरोपी बाद में गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन खरगौन जिले के झिरनिया गांव में छह साल की बच्ची से दुष्कर्म कर उसको मौत के घाट उतार देने वाला चाचा अभी भी पकड़ा नहीं जा सका है। दरअसल महिलाओं के यौन उत्पीडऩ के मामले में मध्यप्रदेश के माथे पर कलंक के टीके की तरह चिपका हुआ एक नंबर छूटने का नाम ही नहीं ले रहा है। एशियन सेंंटर फार ह्यïूमन राइट्स की ताजा रिपोर्ट तो मध्यप्रदेश के लिए शर्म की पराकाष्ठा ही हैै जिसके द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2001 से 2011 तक चाइल्ड रेप के सबसे ज्यादा 9465 मामले मध्यप्रदेश में दर्ज किये गए हैैं। <br />गौरतलब है कि दिल्ली के दिसंबर में हुए सामूहिक रेप कांड के बाद देश भर में जो विरोध और गुस्से की अभूतपूर्व लहर उठी थी, उसके बाद केंद्र की ही तर्ज पर मध्यप्रदेश ने भी इनकी रोकथाम के लिए महिला हेल्पलाइन सहित कई कदमों की घोषणा की थी लेकिन अमल के स्तर पर अभी भी हालत बहुत ही निराशाजनक है। राज्य सरकार को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि उसने महिलाओं के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए कई कदम उठाये हैैं जिनकी सारे देश में सराहना हो रही है लेकिन आखिर क्या कारण है कि महिलाओं और बच्चियों के यौन उत्पीडऩ की घटनाओं पर अंकुश लगाने में सरकार लगातार नाकामयाब हो रही है। सरकार की यह दलील कुछ हद तक सही हो सकती है कि आम तौर पर बच्चियों के यौन शोषण तथा बलात्कार में उनके करीबी रिश्तेदारों या परिचितों का हाथ होता है इसलिए इन्हें रोकना काफी मुश्किल होता है लेकिन पुलिस तथा प्रशासन द्वारा इस तरह की घटनाओं के प्रति बरती जाने वाली आपराधिक उदासीनता भी ऐसी घटनाओं को जाने अनजाने में बढ़ावा ही देती है। मध्यप्रदेश में यौन उत्पीडऩ के डरावने आंकड़े इसी हकीकत को दर्शाते हैैं। इस समय चाइल्ड रेप के खिलाफ सारे देश में गुस्से का सैलाब आ गया है। मौके की नजाकत को भांपते हुए शिवराज सरकार को पुलिस तथा प्रशासन को ऐसे मामलों में तत्परतापूर्वक कार्रवाई करने के सख्त निर्देश देने चाहिए और इस मामले में ढिलाई बरतने वालों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके अलावा सरकार को खुद ऐसे घृणित अपराधों के खिलाफ वातावरण बनाने के लिए एक गहन तथा व्यापक अभियान चलाना चाहिए तथा सामाजिक तथा सांस्कृतिक संगठनों को भी इसके खिलाफ गतिशील करना चाहिए ताकिहमारी नारी पूज्या संस्कृति को कलंकित करने वाले असभ्यता के इन अंधेरों पर विजय पाई जा सके। </div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-72562625310690276932013-04-25T05:26:00.005-07:002013-04-25T05:30:21.008-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="color: #e06666;"><span style="font-size: x-large;">जंग लगे हथियारों से चुनावी जंग कैसे लड़ेगी कांग्र्रेस ?</span></span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: #76a5af;">सर्वदमन पाठक </span></span><br />
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में जहां एक ओर भाजपा लगातार तीसरी बार सत्ता सिंहासन हासिल करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही हैै, वहीं दूसरी ओर सत्ता की मृगतृष्णा में दस साल से भटक रही कांग्र्रेस येन केन प्रकारेण राज्य विधानसभा की चुनावी जंग के लिए अपने जंग लगे हथियारों पर एक बार फिर धार चढ़ाने में जुट गई है। पिछले कुछ समय से जनसंघर्ष के नाम पर किये जा रहे छुटपुट तथा निहायत ही प्रभावहीन आंदोलनों के बाद अब कांग्र्रेस चुनावी व्यूहरचना के लिए अपने युवराज राहुल गांधी की ओर आशाभरी नजरों से देख रही है। इसी उम्मीद की बेल को परवान चढ़ाने की शुरुआती कड़ी में बुधवार को राहुल गांधी के सानिध्य में चिंतन बैठकों का आयोजन हुआ जिसमें पार्टी के सांसदों, विधायकों तथा पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। चौदह जिलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में इस बैठक में पार्टी की खूबियों और कमजोरियों पर चर्चा हुई। कार्यकर्ताओं से राहुल गांधी का सीधा संवाद इस बैठक का आकर्षण था। बैठक में पार्टी को मजबूत करने तथा चुनावी तैयारियों के लिए कमर कसने के तौर तरीकों पर चिंतन होना था लेकिन जैसा कि अनुमान था, यह बैठक चिंतन बैठक के बदले चिंता बैठक में तब्दील हो गई। एक दशक से सत्ता का वनवास झेलते झेलते जिस पार्टी का संगठन इस कदर लुंज पुंज हो चुका हो कि चुनावी तैयारियों के लिए उसे कार्यकर्ताओं को टोटा पड़ा हो, उस पार्टी का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। <br />
इस बैठक का यह संकेत बिल्कुल स्पष्ट था कि राहुल गांधी पार्टी को मैदानी स्तर पर खड़ा करना चाहते हैैं ताकि वह चुनावी चुनौतियों का सामना करने में समर्थ हो लेकिन बैठक के माहौल से उन्हें यह भली भांति समझ में आ गया होगा कि इस उद्देश्य के रास्ते में कांग्र्रेस के सामने रोड़े ही रोड़े हैैं। इसमें सबसे पहला रोड़ा पार्टी का बदला हुआ चरित्र ही है। दरअसल कांग्र्रेस सूरजमुखी के फूल की मानिंद हो गई है जो सत्ता सूर्य को देखकर ही खिलता है। जाहिर है कि दस साल से सत्ता से दूर कांग्र्रेस पार्टी आजकल निष्ठावान कार्यकर्ताओं की कमी से जूझ रही है। यदि पार्टी योग्य तथा विजयी संभावनाओं वाले प्रत्याशियों का चयन कर उन्हे चुनावी जंग में उतार भी दे तो निष्ठावान कार्यकर्ताओं के अभाव में उनकी जीत की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। पार्टी का दूसरा बड़ा रोड़ा अंदरूनी गुटबाजी की आत्मघाती प्रवृत्ति है। अलग अलग छत्रपों की निष्ठाओं में बंटे प्रदेश कांग्र्रेस के कार्यकर्ता आंतरिक संघर्ष से इस कदर ग्र्रस्त हैं कि विपक्षी पार्टी को हराने के बजाय वे अपनी ही पार्टी के अन्य गुटों के नेताओं को हराने में अपनी शान समझते हैैं। <br />
राहुल गांधी का खुद का नेतृत्व कितना चमत्कारी है, यह कहना काफी मुश्किल है। उत्तरप्रदेश, बिहार तथा गुजरात के चुनावों में कांग्र्रेस की घोर असफलता वहां के कांग्र्रेस संगठनों के मृतप्राय संगठनात्मक ढांचे का ही परिणाम थी इसलिए इन दोनों राज्यों की पराजय का ठीकरा राहुल के सिर फोडऩा उनके साथ अन्याय ही होगा। मध्यप्रदेश में भी कांग्र्रेस संगठन कमोवेश इसी गति को प्राप्त हो गया है इसलिए यहां भी विधानसभा चुनाव में उसकी जीत के लिए पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में उत्साह का संचार करने, कार्यकर्ताओं में जीत की अलख जगाने तथा कांग्र्रेस नेतृत्व के चमत्कार की जरूरत होगी। यक्ष प्रश्न यही है कि क्या राहुल गांधी प्रदेश कांग्र्रेस के निराश हताश कांग्र्रेस कार्यकर्ताओं में इस हद तक जान फूंक पाएंगे कि राज्य में कांग्र्रेस की दहलीज पर पहुंच सके। चिंतन बैठक के रूप में उनकी शुरुआती कोशिश पार्टी की उम्मीदों को कितना आगे ले जाती है, यह तो वक्त ही बताएगा।</div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-26799644517504869152013-04-17T06:19:00.001-07:002013-04-17T06:19:05.595-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #e06666;"><span style="font-size: large;"> प्रसंगवश </span></span><br /><br /><span style="font-size: x-large;">दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना सफल नहीं होगा लोकायुक्त का सुझाव </span><br /><span style="color: #3d85c6;"><span style="font-size: large;">सर्वदमन पाठक</span></span><br /><br />शिवराज सरकार लगातार दावा करती रही है कि राज्य में नौकरशाही तथा प्रशासनिक मशीनरी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए उसने काफी प्रभावी कदम उठाये हैैं। लोकसेवा गारंटी योजना जैसे कदम इसी कोशिश के परिचायक हैैं जिसके दांडिक प्राïवधान काफी सख्त हैैं लेकिन वास्तविकता के धरातल पर ऐसे कदम राज्य के प्रशासनिक भ्रष्टाचार को रोकने में नाकाफी सिद्ध हुए हैैं। राज्य सरकार के प्रत्येक विभाग में सतर्कता अधिकारी की नियुक्ति का राज्य के लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर का सुझाव इसी हकीकत को दर्शाता है। दरअसल लोकायुक्त संगठन भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई करने में खुद को जिन कारणों से अक्षम पा रहा है, यह सुझाव उनके निवारण के लिए ही दिया गया है। जांच प्रक्रिया का इससे बड़ा मखौल क्या हो सकता है कि जिन अफसर के खिलाफ जांच प्रकरण लंबित हो, वे ही विभागीय स्तर पर जांच करें और उन्हें ही न्यायालय में चालान प्रस्तुत करने की अनुमति देने का अधिकार हो। यह तो कुछ वैसा ही है जैसे किसी अपराध के आरोपी को ही खुद पर फैसला देने का हक मिल जाए। लेकिन मध्यप्रदेश में विभागीय स्तर पर जांच के नाम पर यह गोरखधंधा बखूबी चल रहा है और यह सब उस सरकार की नाक के नीचे चल रहा है जो खुद भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का संकल्प दोहराती रहती है। उदाहरण के तौर पर एपेक्स के अध्यक्ष एवं एमडी के खिलाफ मामले में लोकायुक्त को मात्र इसलिए चालान पेश करने की अनुमति नहीं मिल सकी क्योंकि जिनके खिलाफ प्रकरण दर्ज है, उन्हें ही यह अनुमति देने का अधिकार प्राप्त है। यह एक ऐसी व्यवहारिक अड़चन है जो अन्य विभागों में भी जांच के आड़े आ सकती है। इन परिस्थितियों से निजात पाने के लिए ही लोकायुक्त ने यह सुझाव दिया है। लोकायुक्त का यह मानना है कि इससे प्रक्रिया संबंधी जटिलता दूर हो सकेगी और अपेक्षाकृत कम समय में लोकायुक्त सहित विभिन्न जांच एजेंसियों को जरूरी जानकारी मिल सकेगी। लोकायुक्त ने यह सुझाव केंद्र सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था की तर्ज पर दिया है लेकिन इस प्रयोग की सफलता सरकार की संकल्प एवं इच्छाशक्ति पर ही ज्यादा आधारित है। कौन नहीं जानता कि हर विभाग में सतर्कता अधिकारी होने के बावजूद केंद्र की प्रशासनिक मशीनरी में काफी भ्रष्टाचार व्याप्त है। इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि चूंकि प्रशासनिक अधिकारी तथा सत्ता में बैठे राजनेताओं की मिलीभगत भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण है इसलिए अफसरों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में राजनीतिक सत्ता की इच्छाशक्ति लगभग शून्य ही होती है। वरना क्या कारण है कि राज्य में भी हर विभाग किसी न किसी मंत्रालय के अधीन है जिनकी बागडोर इनके प्रभारी मंत्रियों के हाथ में ही है लेकिन उसके बाद भी उनमें नियुक्त नौकरशाह अपने उपरोक्त हथकंडों के बल पर अपने खिलाफ जांच को लटकाने में सफल हो जाते हैैं। जस्टिस नावलेकर का सुझाव प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दृष्टि से स्वागत योग्य है लेकिन इसकी सफलता तभी सुनिश्चित हो सकती है जब राजनीतिक सत्ता इस मामले में पर्याप्त इच्छाशक्ति दिखाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा और ईमानदारी पर सवाल भले ही न उठाया जा सके लेकिन वास्तविकता यही है कि राज्य सरकार में अपनी ही योजनाओं पर प्रभावी अमल के लिए जरूरी इच्छाशक्ति का नितांत अभाव है और इसी वजह से लोकसेवा गारंटी योजना जैसी योजनाएं अमल के स्तर पर दम तोड़ रही हैैं। राज्य के सभी विभागों में लोकायुक्त द्वारा सुझाई गई सतर्कता अधिकारियों की नियुक्ति की योजना की सफलता भी सरकार की दृढ़ संकल्पशक्ति के बिना संदिग्ध ही रहेगी। <br /></div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-3640266656349470652013-04-17T06:13:00.002-07:002013-04-17T06:13:24.985-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #e06666;"><span style="font-size: large;"> प्रसंगवश</span></span><br /><span style="color: #6fa8dc;"><span style="font-size: x-large;">द्विअर्थी संवादों का शगल</span></span><br /><span style="color: #e06666;"><b><span style="font-size: large;">सर्वदमन पाठक</span></b></span><br /><br />लगता है कि किसी न किसी तरह सुर्खियों में बने रहना राज्य के आदिवासी कल्याण मंत्री विजय शाह का शगल बन गया है। सुखियां बटोरने का उनका यह शगल कुछ ऐसा है कि जो अनायास ही उनकी बदनामी का सबब बन जाता है। वे संभवत: यह कहावत चरितार्थ करते नजर आते हैैं कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा। उनकी इस 'शानदारÓ परंपरा का नया प्रमाण 13 अप्रैल को मिला जब झाबुआ में अजा जजा समर कैंप का उद्घाटन करते हुए उन्होंने तरह तरह की अश्लील टिप्पणियां उछाल दीं। अश्लील संवादों की रौ में उन्होंने यह तक कह दिया कि कोई भी शख्स पहली बार का 'वोÓ कभी नहीं भूलता। जब कलेक्टर जयश्री कियावत ने उनके सामने लड़कियों के लिए ट्रेक सूट की मांग रखी तो उन्होंने कहा कि लड़कियों को मस्त टीशर्ट दे दो। इसके साथ ही वे पूछने लगे कि नीचे जो पहना जाता है, उसे क्या कहते हैैं। जब कुछ श्रोताओं की ओर से आवाज आई 'लोअरÓ तो वे शरारत भरे अंदाज में मुस्करा दिये। उन्होंने अपने भाषण में मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी को भी लपेट लिया। विजय शाह का बयान शब्दश: यह था ' मैैंने भाभी जी को कहा कि कभी कभी हमारे साथ भी चला करो, भाई के साथ तो रोज जाते हो।Ó इसी तरह वहां मौजूद भाजपा जिलाध्यक्ष निर्मला भूरिया तथा आईटीडीपी की अध्यक्ष निर्मलाभानु भूरिया नाम की दो नेत्रियों की ओर मुखातिब होते हुए वे बोले कि मुझे अभी अभी पता चला कि झाबुआ में एक के साथ एक फ्री है। <br />अश्लील, द्विअर्थी तथा गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी उनकी पुरानी आदत है जो छूटने का नाम नहीं लेती। मसलन अभी चंद दिनों पहले ही वे यह कहकर मीडिया की सुर्खियों में आ गये थे कि सरकार बच्चियों की सुरक्षा की गारंटी नहीं ले सकती, उन्हें अपनी सुरक्षा की गारंटी खुद लेनी होगी। खंडवा के एक कार्यक्रम में तो वे अश्लील नृत्य में ठुमके लगाने लगे जिसकी वजह से इलेक्ट्रानिक तथा प्रिंट मीडिया में उनकी खासी किरकिरी हुई थी। लेकिन उनकी ताजा अश्लील तथा द्विअर्थी बयानबाजी से यही प्रतीत होता है कि उनके लिए बदजुबानी की लत कुछ ऐसी आतिश है जो बुझाए नहीं बुझ रही। <br />उन्हें शायद इस बात का अहसास नहीं है कि उनके इस गैरजिम्मेदाराना आचरण से राज्य सरकार तथा भाजपा को शर्मनाक हालात का सामना करना पड़ता है। इस बार तो उन्होंने मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी का नाम लेकर हद ही कर दी है। उनके बयान की सीडी मंत्रालय पहुंच चुकी है और उनपर कार्रवाई की तलवार लटकने लगी है। विजय शाह को अपनी गलतियों का अहसास अवश्य हुआ है और वे जहां तहां सफाई देते घूम रहे हैैं। वे मुख्यमंत्री के सामने भी जल्द ही पेश होकर अपनी सफाई रखने वाले हैैं लेकिन अश्लील तथा आपत्तिजनक शब्दों का तीर उनके तरकश से चल चुका है और विपक्ष ने उनकी इस बयानबाजी को आधार बनाते हुए सरकार पर निशाना साध लिया है। विपक्ष ने मौके की नजाकत को भांपते हुए मुख्यमंत्री से विजय शाह की बर्खास्तगी की मांग कर डाली है। मुख्यमंत्री खुद भी उनके इस आचरण से काफी आहत और नाराज बताए जाते हैैं। वैसे भी मंत्री के रूप में उनका इस तरह का आचरण सरकार के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। यह कोई उनका व्यक्तिगत बयान नहीं है जिसकी जिम्मेदारी उनके ऊपर डालकर सरकार बरी हो जाए। उन्होंने यह बयान सरकार के एक मंत्री की हैसियत से दिया है और इस कारण सरकार की प्रतिष्ठा को चोट पहुंची है। भाजपा एक ऐसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है जो भारतीय संस्कृति की संवाहक होने का दावा करती है। नारी की गरिमा से खिलवाड़ इस विचारधारा का अपमान है। देखना यह है कि नारी की गरिमा को चोटिल करने वाले मंत्री पर कार्रवाई कर शिवराज सरकार अपनी विचारधारा के साथ न्याय कर पाती है अथवा नहीं।</div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-65740391924428606302013-04-10T05:48:00.002-07:002013-04-10T05:48:26.304-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-KhtI7rFCli4/UWVfhenfNuI/AAAAAAAAAOA/g1UhapM_fIw/s1600/Durga-mata.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://4.bp.blogspot.com/-KhtI7rFCli4/UWVfhenfNuI/AAAAAAAAAOA/g1UhapM_fIw/s320/Durga-mata.jpg" width="236" /></a></div>
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sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-12453268178324211152013-03-20T06:56:00.005-07:002013-03-20T06:56:46.760-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<u><span style="font-size: large;">दतिया कांड</span></u><br /><span style="color: #c27ba0;"><span style="font-size: x-large;">शर्म की घटना पर उत्तेजना क्यों</span></span><br /><span style="color: #6fa8dc;"><span style="font-size: large;">सर्वदमन पाठक</span></span><br />दतिया के पास एक गांव में स्विस महिला पर्यटक के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने हमारे प्रदेश का सिर शर्म से झुका दिया है। देश विदेश के प्रिंट तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया ने इस घटना को जिस तरह से हाईलाइट किया, उससे इस घटना की गंभीरता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दरअसल प्रदेश में यौन उत्पीडऩ की यह कोई अकेली घटना नहीं है जिसे राज्य सरकार अपवाद बताकर टाल दे। सच तो यह है कि आंकडों की दृष्टि से पिछले साल मध्यप्रदेश में देश में सर्वाधिक यौन उत्पीडऩ के मामले दर्ज किये गए हैैं। यह घटना सिर्फ यही बताती है कि शीलभंग के मामले में अब पानी सिर से निकल रहा है। संसद के दोनों सदनों तथा मध्यप्रदेश विधानसभा में इस मुद्दे पर सभी पक्षों की ओर से जो चिंता जाहिर की गई है उसे सिर्फ सियासी होहल्ला मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश में कांग्र्रेस ने सड़कों पर उतरकर जो विरोध प्रदर्शन किया है, वह प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते उसका अधिकार है और यदि सरकार इस विरोध से विचलित दिख रही है तो यह विपक्ष की सफलता ही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैैं कि इस घटना को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि प्रदेश में पूरी तरह से बदरंग नजर आ रहा विपक्ष यदि इस मुद्दे पर जन समर्थन जुटाकर प्रभावी विरोध प्रदर्शन कर सका है तो इस मुद्दे की गंभीरता को सरकार कैसे नजरअंदाज कर सकती है।<br />लगता है कि हमारी सरकार इन घटनाओं को रोकने की प्रभावी पहल करने के बदले सारा दोष दूसरों पर थोपना चाहती है। मसलन हमारे प्रदेश के स्वनामधन्य गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता कहते हैैं कि यदि उक्त विदेशी बाला अपनी यात्रा की जानकारी स्थानीय अधिकारियों को पूर्व में दे देती तो उसके साथ यह हादसा नहीं हो पाता। इस बयान से गृहमंत्री ने जाने अनजाने बलात्कार के लिए उक्त स्विस महिला को दोषी ठहरा दिया है। वे यह निश्चित ही नहीं कहना चाहते होंगे कि इसमें बलात्कार करने वालों तथा लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली कानून व्यवस्था मशीनरी का कोई दोष नहीं है लेकिन बिना सोचे समझे दिये गए उनके बयान से यह ध्वनि अवश्य निकलती है। वैसे राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर गृहमंत्री या तो काफी खुशफहमी में जीते हैैं या फिर उनमें वास्तविकता को स्वीकार करने का साहस नहीं है। इसी वजह से वे कई बार यह बयान दे चुके हैैं कि राज्य सरकार ने प्रत्येक अपराध को पंजीबद्ध करने के पुलिस को निर्देश दिये हैैं इसलिए ये आंकड़े इतने ज्यादा लगते हैैं। उनका यह बयान भी वास्तविकता से कोसों दूर है। सच तो यह है कि आज भी विभिन्न थानों में शिकायत दर्ज कराने के लिए पहुंचने वाले कितने ही नागरिकों की शिकायतें दर्ज किये बगैर उन्हें दुत्कार कर भगा दिया जाता है। अलबत्ता थानों में निरपराध लोगों का जीना मुहाल कर देने वाले अपराधियों को अघोषित रूप से विशेष अतिथि का दर्जा हासिल होता है और उसी हिसाब से उनकी आवभगत भी होती है। यदि इतनी कड़वी हकीकत के बाद भी प्रदेश में महिलाओं के यौन उत्पीडऩ के मामले इतने भयावह हैैं तो राज्य सरकार को इस हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिए कि वास्तव में प्रदेश में महिलाओं की जिंदगी और अस्मत दोनों ही सुरक्षित नहीं हैैं। राज्य सरकार का दावा है कि वह महिलाओं के कल्याण तथा प्रतिष्ठा की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है और इसे सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं चला रही है। लेकिन आंकड़े देखकर तो यही लगता है कि उसकी योजनाएं सिर्फ कागज पर ही चल रही हैैं और महिलाओं की जिंदगी पर इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है। राज्य सरकार को स्विस महिला के साथ बलात्कार की घटना से उत्तेजित होने, झुंझलाने तथा दूसरों पर इसका दोष मढऩे के बदले खुद इसकी जवाबदेही स्वीकार करनी चाहिए और इस बात का संकल्प लेना चाहिए कि वह राज्य में महिलाओं के जीवन और इज्जत से खिलवाड़ करने वाले तत्वों से पूरी सख्ती से निपटेगी और उनके प्रतिष्ठापूर्ण जीवन को सुनिश्चित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। </div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-18475789167452800972013-03-20T06:52:00.000-07:002013-03-20T06:52:03.672-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<u><b>न्याय और निहितार्थ</b></u><span style="font-size: large;"><br />काजल कांड</span>: <br /><span style="color: #cc0000;"><span style="font-size: x-large;">जन भावनाओं के अनुरूप फैसला</span></span><br /><span style="color: #8e7cc3;">सर्वदमन पाठक</span><br />सारे देश को झकझोर देने वाले दिल्ली गैैंगरेप कांड का फैसला भले ही अभी तक नहीं हो पाया हो और दोषियों को फांसी की सजा की लोगों की इच्छा न पूरी हो पाई हो लेकिन उससे उपजी चेतना ने बलात्कार और हत्या के रेयरेस्ट आफ द रेयर मामलों में न्यायालयों को शीघ्रातिशीघ्र फैसले के लिए अवश्य प्रेरित किया है। विशेषत: मध्यप्रदेश में तीन दिन में ही इसकी दो नजीर सामने आई हैैं। मसलन इंदौर में तीन वर्षीय बच्ची की शारीरिक तथा यौन यंत्रणा और हत्या के मामले में कुछ माह में ही उसके चाचा चाची को क्रमश: फांसी तथा आजन्म कारावास की सजा सुनाने के एक दिन के अंतराल से ही भोपाल के काजल हत्याकांड का फैसला भी आ गया है जिसमें अपेक्षा के अनुरूप आरोपी को मौत की सजा सुनाई गई है। काजल हत्याकांड तथा शिवानी प्रकरण में यह समानता थी कि दोनों को उनके परिवार के करीबी व्यक्तियों ने अंजाम दिया था। जहां शिवानी को उसके चाचा चाची ने जुल्म तथा यौन यंत्रणा का शिकार बनाया और बाद में उसकी हत्या कर दी वहीं काजल को उसके मुंह बोले नाना ने अपनी वासना का शिकार बनाया और बाद में उसकी नृशंस हत्या कर दी। भोपाल को काजल हत्याकांड ने झकझोर दिया था। चूंकि यह घटना गृहमंत्री के बंगले के कुछ ही दूरी पर हुई थी इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक था कि इतने सख्त सुरक्षा वाले क्षेत्र में ऐसी जघन्य वारदात हो सकती है तो फिर अन्य स्थानों पर कानून व्यवस्था की स्थिति कितनी भयावह होगी। इस कांड की वजह से कानून व्यवस्था को लेकर सरकार पर विपक्ष को हमला करने का एक और मौका मिल गया था और विपक्ष ने इसे भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। बहरहाल शिवराज सरकार ने इस मामले में जितनी तेजी के साथ के साथ तहकीकात की, वह असाधारण ही थी। प्रशासन ने इसके लिए भारी भरकम इनाम घोषित किया जिसने जांच में उत्प्रेरक का काम किया। यही वजह थी कि पुलिस ने रिकार्ड समय में आरोपी को धर पकड़ा और तमाम रहस्यों की परतें हटाते हुए इसकी पूरी कहानी को उजागर कर दिया। लेकिन इस जांच का सूत्रधार रहा काजल का छोटा भाई जिसने पहली नजर में ही आरोपी को पहचान लिया। उसके द्वारा दी गई इस जानकारी के आधार पर कि बड़ी बहन काजल को आखिरी बार उसने आरोपी के साथ ही देखा था, पुलिस की जांच को गति मिली। संभवत: यह एक अहम कारण था जिसने अभियोजन पक्ष को रिकार्ड टाइम में आरोप पत्र दाखिल करने में मदद की और अंतत: सिर्फ नौ दिन तक चले मुकदमे में आरोपी को उसके जघन्य कृत्य की सजा सुनाई जा सकी।<br />अंग्र्रेजी कहावत है 'जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाइडÓ। कई बार देखा गया है कि देर से मिला न्याय अन्याय से भी ज्यादा दारुण होता है। वैसे भी न्याय में जितना विलंब होता है, उसके गवाहों को प्रभावित करने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है और न्यायालयीन प्रक्रिया को बाधित करने की संभावनाएं उतनी ही ज्यादा होती हैैं। बलात्कार और हत्या के ऐसे दिल दहला देने वाले मामले में तो समाज की भी यही अपेक्षा होती है कि अपराधी को यथाशीघ्र कठोरतम सजा मिले। इस दृष्टि से काजल हत्याकांड का फैसला न्याय की एक बेहतरीन मिसाल है। इससे अपराधी मानसिकता के व्यक्तियों के मन में कानून का भय पैदा होगा और ऐसे जघन्य अपराधों को रोकने में मदद मिलेगी। लेकिन सिर्फ कठोर न्याय से ही ये अपराध रुक सकते हैैं, यह सोचना कुछ अधिक ही आशावादी सोच है। दरअसल हमें यदि इन अपराधों पर प्रभावी रोक लगानी है तो समाज में संस्कारों के परिष्कार का आंदोलन चलाना चाहिए ताकि लोग नारी को सम्मान की नजर से देखें और समाज उसकी जिंदगी और अस्मत की रक्षा को अपना दायित्व समझे।</div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-26202526714882043842013-03-20T06:47:00.000-07:002013-03-20T06:47:03.948-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><span style="color: #45818e;"><span style="font-size: x-large;">दरिंदगी की सजा</span></span><br /> <span style="font-size: large;"><span style="color: #e06666;">सर्वदमन पाठक</span></span><br />यह मंगलवार प्रदेश की औद्योगिक नगरी इंदौर के लिए वास्तव में एक भावुक न्यायिक जीत का दिन था। यह फैसला दरअसल उस मासूम बच्ची के लिए न्यायालय की सही श्रद्धांजलि ही मानी जाएगी जिसकी उसके अपने ही चाचा चाची ने लगभग नौ माह तक जुल्म तथा दुष्कृत्य के बाद लोमहर्षक तरीके से हत्या कर दी थी। उस नन्ही सी बच्ची को बलात्कार सहित जितनी यातनाएं दी गईं, वह किसी के भी रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी है। इस त्रासद घटनाक्रम को जानने वालों का मानना है कि बच्ची के चाचा को मृत्युदंड तथा चाची को आजन्म कारावास का न्यायालयीन फैसला न्यायिक प्रावधानों के तहत भले ही उचित हो लेकिन इन दरिंदों ने जो कुछ किया है, उसकी उन्हें कितनी भी सजा दी जाए, कम है। <br />इस घटना के पूरे विवरण को जिसने भी पढ़ा सुना है, वह आसानी से कह सकता है कि यह न्यायालय की परिभाषा में रेयरेस्ट आफ द रेयर केस माना जा सकता है।<br />दरअसल उस बच्ची के साथ जुल्म, बलात्कार और हत्या का यह दर्दनाक सिलसिला अमानवीयता की पराकाष्ठा को ही दर्शाता है। इंदौर के लसूडिय़ा थाने के तहत दर्ज इस मामले के अनुसार राजेश ने अपने बड़े भाई की बच्ची शिवानी को जनवरी 2012 में गोद लिया था और तब से से ही वह अपनी पत्नी बेबी के साथ मिलकर बच्ची के साथ जालिमाना व्यवहार तथा बलात्कार करता था। जुल्म का यह रूह कंपा देने वाला सिलसिला 22 सितंबर 2012 को ही थमा जब किस्मत की मारी इस बच्ची की मौत हो गई। राजेश अपनी पत्नी के साथ जब शिवानी के शव को चादर में लपेटकर ठिकाने लगाने ले जा रहा था तभी उनके पड़ौसियों को शक हुआ और उन्होंने पुलिस को इत्तला की जिसके बाद इन दरिंदों को पकड़ा जा सका।<br />जिन यातनाओं से उस बच्ची को मौत केपहले गुजरना पड़ा, वह किसी के भी हृदय को विगलित कर सकती है। महज चार साल की शिवानी की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसके शरीर पर चोट के 31 घाव थे जो यह बताने के लिए काफी हैैं कि उसके साथ जब तब पैशाचिकता की हद तक मारपीट की जाती थी। रिपोर्ट के मुताबिक उसके साथ जब तब प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक कुकृत्य भी किया जाता था।<br />पड़ौसियों की गवाही ने पीड़ा की इस कहानी के क्रूर खलनायकों को सजा के तार्किक अंजाम तक पहुंचाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इन पड़ौसियों ने ही बच्ची के साथ हुए वहशियाना जुल्म का विस्तृत विवरण अदालत को दिया और न्याय में उसकी मदद की। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। राजेश के जो पड़ौसी बच्ची की मौत के बाद सामने आए और इस घटना के लिए जिम्मेदार पति पत्नी को सजा दिलाने में कारगर रोल अदा किया, यदि वे जुल्म की इस घटनाओं की शुरुआत में ही अपने साहस का परिचय देते और पुलिस को वहां बच्ची के साथ हो रहे पाशविक कृत्यों की जानकारी दे देते तो संभवत: वह बच्ची चाचा चाची के इन भयावह जुल्मों से बच जाती और यों बेमौत मौत का शिकार न होती।<br />न्यायालय ने कुछ ही महीनों में मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाले इस मामले का फैसला सुना दिया जो न्यायालयों की सामाजिक चेतना का परिचायक है। न्यायालयों का यही रुख उसके प्रति लोगों में भरोसा जगाता है।</div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-71872573142189423952013-03-20T06:43:00.002-07:002013-03-20T06:43:12.346-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #cc0000;"><span style="font-size: x-large;">कोलार: असुविधाओं से मुक्ति की बेताबी</span></span><br />
<span style="font-size: large;">सर्वदमन पाठक</span> <br /><br />कोलारवासियों को अंतत: काफी इंतजार के बाद राज्य सरकार की ओर से एक अत्यंत ही बेशकीमती तोहफा मिलने जा रहा है। कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव द्वारा कोलार नगर पालिका को भोपाल नगर निगम में विलय करने की सिफारिश राज्य सरकार के पास भेज देने के साथ ही अब इसकी अधिसूचना जारी होने की औपचारिकता ही शेष रह गई है जो शीघ्र पूरी होने की उम्मीद है। दो लाख की आबादी वाले कोलार क्षेत्र के विकास को नई गति देने वाले इस कदम से क्षेत्रवासियों का उत्साहित होना स्वाभाविक है लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि इस विलय का स्वरूप क्या होगा। प्राप्त संकेतों के अुनसार शुरुआती तौर पर यहां नगर निगम की ओर से नोडल अधिकारी की नियुक्ति होने की संभावना है। यह कदम इसके विकास में मील का पत्थर सिद्ध होगा क्योंकि इससे क्षेत्रवासियों को वे कई सुविधाएं मिल सकेंगी जिससे अभी तक वे वंचित रहे हैैं।<br />यह बात सर्वविदित है कि पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र ने शहरवासियों की आवास संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सराहनीय योगदान दिया है। एक दशक के भीतर ही कोलार बड़े बड़े कालोनाइजरों का कार्यक्षेत्र बन गया है। अब कोलार के दूरस्थ क्षेत्रों में प्रतिष्ठित कालोनाइजरों द्वारा इतनी विशाल एवं सुंदर कालोनियां विकसित की गई हैैंं जिसकी दो वर्ष पूर्व कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। लेकिन सुविधाओं के अभाव में लोग वहां निवास के लिए आकर्षित नहीं हो पा रहे हैैं। बहुत सारे वे लोग जिन्होंने इन कालोनियों में मकान या फ्लेट बुक कर लिये हैैं, वे भी अब सुविधाहीनता की स्थिति में उन्हें बेचने को मजबूर हो रहे हैैं। हालांकि सिटी लिंक बसें वहां दूर दूर तक जाने लगी हैैं इसलिए लोगों की आवागमन संबंधी असुविधा कुछ हद तक दूर हुई है लेकिन अभी ऐसे तमाम कारण हैैं जो इन कालोनियों के आबाद होने में रोड़ा बने हुए हैैं। मसलन यहां अच्छी सड़कें अभी भी नहीं बन पाई हैैं जिनसे कालोनियों में लोगों को आने जाने में काफी कठिनाई होती है। यहां प्रकाश व्यवस्था भी अपर्याप्त है जो लोगों की परेशानी का एक बड़ा कारण है। नगर निगम से सीधे तौर पर जुडऩे से इन असुविधाओं से कोलार वासियों को निजात मिलेगी, यह उम्मीद स्वाभाविक रूप से की जा सकती है।<br />कोलारवासियों की सबसे बड़ी समस्या पेयजल की है। कमोवेश पूरे कोलार क्षेत्र में गर्मी के मौसम में पानी के लिए त्राहि त्राहि मच जाती है। कोलार की पुरानी बस्तियों में यह समस्या कुछ ज्यादा ही विकट है और जहां तहां टेंकरों से जलापूर्ति यहां की आम बात है। कोलारवासियों की सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि कोलार पाइप लाइन भोपाल शहर के एक बड़े हिस्से की प्यास तो बुझाती है लेकिन कोलार के लोग ही इसके पानी से वंचित हैैं। इसी वजह से कोलार में पानी के लिए जब तब आंदोलन होते रहते हैैं और इस बहाने कई नेताओं की नेतागिरी चमकती रहती है।<br />भोपाल नगर निगम में कोलार नगर पालिका के विलय से इस क्षेत्र के बाशिंदों को जल समस्या से निजात मिलने की पूरी पूरी उम्मीद है क्योंकि तब क्षेत्रवासियों को जल उपलब्ध कराना नगर निगम की जिम्मेदारी होगी।<br />इसके अलावा कोलारवासियों को राज्य की राजधानी के बाशिंदे होने का गर्व भी इस कदम से महसूस हो सकेगा। भोपाल की पहचान देश की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में है और कोलार भी इस गौरव का हिस्सा बन सकेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब इस दिशा में कोई सियासी दांवपेंच आड़े नहीं आएंगे। </div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-36629863072997775072013-03-20T06:36:00.006-07:002013-03-20T06:36:45.879-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><span style="color: #e06666;"><span style="font-size: x-large;"><br />हड़ताल का इंतजार क्यों?</span></span><br />
<span style="color: #6fa8dc;">सर्वदमन पाठक</span><br />हमीदिया अस्पताल तथा सुल्तानिया अस्पताल में जूनियर डाक्टरों की हड़ताल अंतत: खत्म हो गई है और अब वहां चिकित्सा व्यवस्था तकरीबन सामान्य हो चली है। इससे इन अस्पतालों में इलाज कराने वाले आउटडोर तथा इनडोर मरीजों ने राहत की सांस ली है क्योंकि प्रदेश के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार इन अस्पतालों में हड़ताल होने से वहां चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई थी और उन लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था जो अपनी आर्थिक सीमाओं के कारण इन अस्पतालों में इलाज कराने के लिए बाध्य हैैं। इन तरह की हड़तालों का एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि इन अस्पतालों की स्वास्थ्य सेवाओं को कोसने तथा कमियां गिनाने वालों को इन अस्पतालों के महत्व का अहसास हो जाता है वरना इन अस्पतालों में 36-36 घंटे लगातार काम करने वाले जूनियर डाक्टरों की व्यथा पर किसी की नजर ही न जाए। <br />इस वास्तविकता को नकारा नहीं जा सकता कि आम तौर पर चिकित्सा महाविद्यालयों से संबद्ध सरकारी अस्पताल इन जूनियर डाक्टरों के भरोसे ही चलते हैैं लेकिन इन्हीं जूनियर डाक्टरों को जब तब लोगों के दुव्र्यवहार और गुस्से का शिकार होना पड़ता है। यह हड़ताल भी ऐसे ही कारण से हुई थी। आइंदा ऐसी अप्रिय स्थिति न बने, इसके लिए जरूरी है कि उन कारणों पर गौर किया जाए जो ऐसी परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार हैैं। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि आउटडोर और इनडोर मरीजों के परिजनों को अपने मरीज ही गंभीर लगते हैैं और वे चाहते हैैं कि उनके मरीज का ही सबसे पहले इलाज किया जाए लेकिन वास्तविक रूप से गंभीर मरीजों की ओर प्राथमिकता क्रम के हिसाब से ध्यान देना डाक्टरों की मजबूरी होती है। आम तौर पर सरकारी अस्पतालों में झगड़े की यह एक प्रमुख वजह होती है। इन बड़े अस्पतालों के साथ एक बड़ी दिक्कत यह भी होती है कि यहां आसपास के कस्बों, गांवों, शहरों तथा जिलों से गंभीर मरीज आते रहते हैैं और उनमें से कई तो मरणासन्न स्थिति में होते हैैं। डाक्टर अपनी ओर से उनके इलाज की पूरी पूरी कोशिश करते हैैं लेकिन डाक्टर कोई भगवान नहीं होता, फिर भी मौत की त्रासदी हो जाने पर उनके परिजनों को यही लगता है कि डाक्टरों की लापरवाही से यह हुआ है। और इसी वजह से अस्पताल में जब तब हंगामे और डाक्टरों के साथ बदसलूकी की घटनाएं होती रहती हैैं। हालांकि यदि विभिन्न वार्डों में केजुएलिटी हो जाती है तो वहां कार्यरत डाक्टरों को भी दुख होता है। चिंतनीय बात यह है कि मीडिया और राजनीतिज्ञ दोनों ही ऐसी घटनाओं को अपने अपने तरीके से भुनाने की कोशिश करते नजर आते हैैं। विपक्ष जहां मौत जैसी दर्दनाक घटना पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आता वहीं मीडिया में भी इन घटनाओं को उछालने की होड़ सी लग जाती है। ऐसे हालात में आरोपों के कटघरे में खड़ी सरकार का पहला प्रयास यही होता है कि ऐसी घटनाओं के लिए आनन फानन में जवाबदेही तय की जाए भले ही जांच में वह प्रमाणित न हो सके। लेकिन जूनियर डाक्टरों को इन सबके लिए जिम्मेदार ठहराना उनके साथ अन्याय ही है। उत्तेजित भीड़ द्वारा बदसलूकी और हाथापाई के समय उनसे धैर्य की अपेक्षा करना उचित नहीं है। दरअसल अस्पताल में सुरक्षा व्यवस्था इतनी पुख्ता होना चाहिए कि डाक्टर वहां बिना किसी भय तथा दवाब के मरीजों का इलाज कर सकें। इस दृष्टि से हंगामा और डाक्टरों से मारपीट करने वालों पर डाक्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज करने की कार्रवाई प्रशासन का उचित कदम है। इससे डाक्टरों के कार्य के लिए बेहतर वातावरण पैदा होगा। <br />यह सरकार की संवेदनशीलता का ही प्रमाण है कि जूनियर डाक्टरों की प्राय: सभी उचित मांगें मान ली जाती हैैं। स्टायपेंड में वृद्धि तथा डाक्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट के तहत कार्रवाई जैसे मामले इसके जीते जागते प्रमाण है लेकिन डाक्टरों का धैर्य चुकने और उनके हड़ताल पर जाने के पहले ही उनकी मांगों पर समुचित कार्रवाई हो जाए तो वहां पहुंचने वाले मरीजों को इतनी परेशानियां न उठानी पड़ें।</div>
sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-13662352603234965002013-03-12T05:44:00.002-07:002013-03-12T05:44:35.483-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-FahOAX1Q0Lg/UT8i5ZB_W-I/AAAAAAAAAM4/N_QtihzKH1I/s1600/ghanti.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://4.bp.blogspot.com/-FahOAX1Q0Lg/UT8i5ZB_W-I/AAAAAAAAAM4/N_QtihzKH1I/s320/ghanti.jpg" width="240" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-W-eTsYkkYjE/UT8gyStDViI/AAAAAAAAAMk/El-UjM62o5g/s1600/ganesh12.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://2.bp.blogspot.com/-W-eTsYkkYjE/UT8gyStDViI/AAAAAAAAAMk/El-UjM62o5g/s320/ganesh12.jpg" width="289" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-QFGwZeIDIb8/UTn3u2k6ijI/AAAAAAAAAMU/X_KRUN8rUts/s1600/shiv.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://1.bp.blogspot.com/-QFGwZeIDIb8/UTn3u2k6ijI/AAAAAAAAAMU/X_KRUN8rUts/s320/shiv.jpg" width="216" /></a></div>
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sahee baathttp://www.blogger.com/profile/00055191867048538078noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5113271059385464893.post-47119243390729252922013-03-08T06:14:00.002-08:002013-03-08T06:14:28.167-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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