26 जनवरी 2020
गिरती सियासत, बंटता देश
हम आज गणतंत्र दिवस की सालगिरह मना रहे हैैं तो हम सहज ही इस हकीकत से खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैैं कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हमारी इसमें मतदाता के रूप में अहम हिस्सेदारी है। दरअसल हमारा वतन सदियों से लोकतांत्रिक चरित्र का प्रतीक रहा है। जिस तरह से एक व्यक्ति का व्यक्तित्व होता है वैसे ही एक व्यक्ति की मानिंद एक देश का भी अपना एक विशाल व्यक्तित्व होता है। लेकिन जैसी कि किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व की खासियत होती है कि यदि उसके शरीर के किसी भी भाग में पीड़ा या खुशी की अनुभूति हो तो सारा शरीर उसके अहसास से सराबोर उठता है, उसी तरह राष्ट्र के किसी भी हिस्से में पीड़ा या खुशी के समय समूचा राष्ट्र उसे अनुभव करता है। भले ही अलग अलग हिस्सों में अलग अलग आचार-विचार तथा संस्कृतियां पनप रही हों लेकिन उनमें एकरूपता होना एक राष्ट्र की अनिवार्य शर्त है। अनेकता में एकता का यही गुण भारत को एक सूत्र में बांधता है। भारत पर अतीत में अनेक आक्रमण हुए और विदेशी आक्रांताओं ने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर भी हमले की कोशिश की लेकिन वे सभी भारत की विशाल संस्कृति में विलीन हो गए। एक राष्ट्र के रूप में हमारी पहचान का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है? हमारे राष्ट्र की जीवंतता को बरकरार रखना ही हमारे गणतंत्र के मूल्यों को सम्मान देना है। किसी ने सही कहा है कि-सतत सतर्कता ही आजादी का मूल्य है।लेकिन आजकल लोकतंत्र के इस स्वरूप पर सवालिया निशान लगाये जाने की चिंतनीय प्रवृत्ति परिलक्षित हो रही है। देश में ऐसा माहौल बन गया है जिससे यह भ्रम होता है कि आजादी से जुड़ी जिन पीड़ादायी कहानियों को देश भूलकर आगे बढ़ गया था, उन कहानियों को फिर से दोहराने की कोशिश की जा रही है। इसमें कितनी सच्चाई है और कितनी अफवाह, यह एक अलग मुद्दा है लेकिन ऐसे माहौल में नफरत की भाषा देश की संवेदनाओं को तार तार कर रही है। यह माहौल एकतरफा नहीं है। नफरत की आग दोनों तरफ बराबर भड़काई जा रही है। जहां तहां हो रहे प्रदर्शन एवं धरने में हिंसा और घृणा का माहौल पैदा करने की कोशिश हो रही है, जिसे देख कर देश की सर्वोच्च अदालत को भी यह कहना पड़ा है कि देश इस समय भारी संकट के दौर से गुजर रहा है। यह देश के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह हमारा सौभाग्य ही है कि देश में इस समय नरेंद्र मोदी के रूप में ऐसे प्रधानमंत्री हैैं जिनमें देश के लोगों की अगाध आस्था है। उनकी बातों पर देश यकीन करता है। यह उचित अवसर है जब प्रधानमंत्री खुद इस मामले में हस्तक्षेप करें और नफरत की दीवार खड़ा करने की कोशिशों को नाकाम कर दें। इसी तरह विपक्षी दल भी भ्रम के इस माहौल को दूर करने में अपना योगदान दें क्योंकि सत्ता या विपक्ष की सियासत से देश का ही नुकसान हो रहा है। यदि इस ऐतिहासिक मोड़ पर भी सियासतदानों ने राष्ट्रहित की कीमत पर अपने स्वार्थ सिद्ध करने की प्रवृत्ति नहीं छोड़ी तो इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा।
सर्वदमन पाठक
1 फरवरी 2020
आंकड़ों के भ्रमजाल में उलझी उम्मीदें
आर्थिक सुस्ती तथा महंगाई से परेशान देश की जनता केंद्रीय बजट से राहत की जो उम्मीदें लगाए हुए थी, उन पर यह बजट ज्यादा खरा नहीं उतर सका। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा ढाई घंटे के रिकार्ड समय में प्रस्तुत किये गए इस भारी भरकम बजट में आंकड़ों का जो भ्रम-जाल बिछाया गया था, वह भी इस हकीकत को छिपाने में नाकाम रहा कि बजट में देश की आर्थिक उलझनों को सुलझाने के संकल्प का घोर अभाव है। इस बजट में आयकर स्लैब्स में फेरबदल से मध्यम आय वर्ग के चेहरे पर मुस्कराहट की रेखा जरूर दिखी लेकिन निवेश छूट लेने वालों को इसका लाभ न देने की घोषणा से उनकी खुशी अधूरी रह गई। पिछले कई दशकों की तुलना में कहीं ज्यादा भयावह रूप अख्तियार कर चुक बेरोजगारी की समस्या से निपटने के उपायों के सिलसिले में भी बजट में कोई सीधा प्रावधान नहीं किया गया है हालांकि विभिन्न योजनाओं में किये गए आर्थिक प्रावधान इस दिशा के संकेतक दिखते हैैं। किसानों के लिए अवश्य ही इसमें हर जिले में एक्सपोर्ट हब बनाने की घोषणा उनकी फसल को व्यापक बाजार उपलब्ध कराने में मददगार हो सकती है। किसानों की बंजर जमीन में सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने का प्रस्ताव उन्हें खेती के अलावा अन्य आय स्रोत उपलब्ध कराने का प्रलोभन देता है। लेकिन इसमें भी यह शर्त चस्पा कर दी गई है कि उन राज्य सरकारों को ही इन नई योजनाओं का लाभ मिलेगा जिन्होंने पिछले तीन-चार साल से केंद्रीय योजनाओं में समुचित हिस्सेदारी की होगी। कोल्ड स्टोरेज ट्रेन तथा हवाई सेवा की सुविधा किसानों के व्यवसाय को गति देने की कोशिश का एक हिस्सा है। दरअसल यह कदम खेती को कारपोरेट फैशन में ढालने का प्रयास है। गौरतलब है कि मोदी सरकार के ऐसे ही प्रयासों को लोग नकार चुके हैैं। सार्वजनिक उपक्रमों को निजी संस्थानों के हाथों बेचने का जुनून अभी भी सरकार के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है जिसका प्रमाण एलआईसी का हिस्सा बेचने की घोषणा में साफ दिखता है। मेडिकल कॉलेजों से जिले के एक अस्पताल को पीपीपी मोड के तहत जोडऩे की योजना अवश्य ही एक उपयोगी प्रस्ताव है क्योंकिदेश में डॉक्टरों की कमी चिंता का सबब बनी हुई है। ओडीएफ प्लस खुले में शौच से मुक्ति के प्रावधानों को गति प्रदान कर सकता है लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए इसकी मॉनीटरिंग जरूरी है।कुल मिलाकर देश में व्याप्त भयावह मंदी को देखते हुए सरकार से अपेक्षा थी कि वह लोगों को समुचित संसाधन मुहैया कराने के बजटीय प्रावधान करेगा ताकि लोगों की क्रय शक्ति में इजाफा हो और बाजार में फिर से बहार लौटे लेकिन बजट ने इस दिशा में लोगों को निराश ही किया है। बाजार की प्रतिकूल प्रतिक्रिया इसी का परिणाम है।
16 फरवरी 2020
वेंडेल रॉड्रिक्स : प्यार की अनोखी दास्तान
वेलेंटाइन्स डे के दिन दुनिया प्यार की ताकत का जश्न मनाती है। प्यार की ताकत के लिए वेंडेल रॉड्रिक्स को श्रद्धांजलि इसकी सार्थकता ही है। वेंडेल का सिर्फ 59 साल की उम्र में निधन हो गया है। बॉलीवुड तथा फैशन की दुनिया में उनके चाहने वालों की संख्या अनगिनत ही है। मेरे लिए तो यह प्यार ही था जिसने अन्य बातों की अपेक्षा वेंडेल की प्रेरणास्पद जिंदगी को परिभाषित किया। जहां लोग वेंडेल की डिजाइन संबंधी समझ के दीवाने थे, वहीं मेरे लिए उनकी प्यार की कहानी ज्यादा अभिभूत करने वाली थी। जेरोमी माारेल(फ्रेंचमैन) को शामिल किये बिना वेंडेल की असाधारण जिंदगी तथा सफलताओं की कल्पना नहीं की जा सकती। जेरोमी कहते हैैं कि वेंडेल की कमी कभी पूरी नहीं हो सकती।वेंडेल की फेसबुक तथा इंस्टाग्र्राम पर खूबसूरती से लिखी गई पोस्ट उनके खूबसूरत संसार की कहानी कहते थे। इन दोनों ने सात समुंदर पार तमाम देशों की यात्रा की और विंटेज शेंपेन तथा गॉरमेट मील्स से लेकर श्रेष्ठ से श्रेष्ठ चीजों का आनंद लिया। लेकिन अपनी हर विदेशी ट्रिप के बाद वेंडेल गोवा तट के चित्र अपने पोस्ट पर अवश्य डालते और अपनी घर वापसी का सानंद वर्णन करते। इसमें वे अपने घर के हरे भरे घर से लेकर गांव तक के हालचाल का सुंदर दृश्य खींचते थे। उनके पैतृक गांव कोलवाले में, जहां वे अपने जीवन साथी जेरोमी के साथ आराम के क्षण गुजारते थे, वहीं वेंडेल ने अपनी अंतिम सांस ली।
इस शानदार दंपति के प्यार की कहानी लोग अपने अपने तरीके से सुनाते थे। गौरतलब है कि समान लिंग के व्यक्तियों के सिविल यूनियन्स को मान्यता देने वाले फ्रेंच समझौते(पीएसीएस) के हस्ताक्षरित होने के बाद वेंडेल और जेरोमी को अधिकृत रूप से जीवन साथी घोषित किया गया था।
कल्पना कीजिए कि यह बीस से अधिक वर्ष पहले की बात है। इसका मतलब यह है कि वेंडेल समय से आगे सोचने वाले व्यक्ति थे। उस समय उनके चार सौ साल पुराने पुर्तगाली घर में (जिसे अब मोडा गोवा म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया है) एक गर्मजोशी भरा तथा शानदार समारोह हुआ था। इस समारोह की अध्यक्षता करते हुए मुंबई में पदस्थ तत्कालीन फ्रेच महावाणिज्यदूत ने, जो कि एक महिला थीं, बहुत ही गरिमामय तरीके से इस विवाह समारोह में अपनी भूमिका निभाई थी। वे अपने साथ ही वह रजिस्टर लाई थीं, जिसमें वेंडेल तथा जेरोमी के हस्ताक्षर जीवन साथी के रूप में हुए थे। कलात्मकता से सजे धजे इस दंपति ने समारोह में मौजूद सभी दोस्तों और रिश्तेदारों का स्वागत किया था तथा इसके बाद भव्य भोज हुआ था। समारोह काफी नाच गाना हुआ था और इसमें शामिल प्रत्येक व्यक्ति ने उन्हें आनंद से भरपूर जीवन के लिए शुभकामनाएं दी थीं।
जेरोमी ने विश्व प्रसिद्ध लेखक तथा डिजाइनर वेंडेल की रचनात्मकता में भरपूर साथ दिया। वे गोवा में रहने के दौरान सूर्यास्त होते ही शेंपेन का आनंद लेते हुए नौकाविहार के लिए निकल जाते थे। दुनिया में उनके अनगिनत प्रशंसक तथा सोशल मीडिया फॉलोअर उनके डिजाइनिंग सेंस और लेखन कला के दीवाने रहे हैैं। हालांकि उन्होंने अपना डिजाइनिंग का काम तथा अपना डिजाइन हाउस तीन साल पहले अपने उत्तराधिकारी शुलेन फर्नांडीज को सौंप दिया था। उनमें अहंकार तो लेश मात्र भी नहीं था तथा प्रतिभाशाली डिजाइनरों और उम्मीद जगाते मॉडल्स को वे खुद मॉनीटर करते थे। वेंडेल की उदारता ने उनके प्रशंसकों की संख्या में खासा इजाफा किया है।
उनके डिजाइन किये गए वस्त्र ही समय की सीमा को पार करने की गुणवत्ता नहीं रखते बल्कि 'फ्रेंचमैनÓ के साथ उनकी लव स्टोरी भी समय की शिला पर अमित छाप छोड़ गई है। उम्मीद है कि अगले माह मोडा गोवा म्यूजियम के भव्य उद्घाटन के साथ ही जेरोमी वेंडेल के सपनों को साकार करेंगी।