Thursday, January 23, 2020

रविवार 11 अगस्त 2019

सुषमा के सपनों के सफर में अहम हिस्सेदार रहे स्वराज


स्वराज कौशल ने अपने से कहीं अधिक प्रसिद्ध धर्मपत्नी सुषमा के राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के बाद जिस तरह से उन्हें हाथ जोड़कर नहीं बल्कि स्मार्ट सेल्यूट के साथ अलविदा किया, उनका यह सम्मान अल्टीमेट ही था। भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित तथा सर्वाधिक पसंदीदा राजनीतिक नेत्री  इसकी हकदार थीं। जहां समूचे विश्व में सुषमा के प्रशंसक भारी संख्या में थे, वहीं उनके उतने ही ब्रिलियेंट पति अपनी कॉलेज के दिनों की स्वीटहार्ट को प्रोत्साहित करने, उनकी प्रशंसा करने तथा उनके सपनों के सफर में हिस्सेदारी में व्यस्त रहते थे। उनकी लव स्टोरी किसी भी लव स्टोरी से श्रेष्ठ है और  बॉयोपिक के जरिये उनकी स्मृतियों को अमर बनाने के लिए बहुत से प्रोड्यसरों में होड़ लगी होगी। आखिर ऐसा हो भी क्यों न? यह लव स्टोरी इतनी ही प्रेरणास्पद एवं रोमांटिक है। इस सप्ताह जब 67 साल की उम्र में दिल के दौरे से सुषमा का निधन हुआ, अपने लंबे राजनीतिक कैरियर की बुलंदियों को छूने वाली, हमेशा मुस्कराती रहने वाली अपनी सम्मानित दीदी के विछोह में सारा भारत दुख में डूब गया तो 44 साल से उनके प्यारे जीवनसाथी (और उनकी एक मात्र संतान व बैरिस्टर पुत्री बांसुरी) के लिए तो यह दिली तौर पर अत्यंत ही शोकपूर्ण अवसर था। हरीश साल्वे ने बताया कि सुषमा ने निधन के दस मिनट पहले ही उनसे बात की थी। पूर्व में खुद सुषमा ने धारा 370 हटाने संबंधी फैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रशंसा भरा ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें उम्मीद थी कि अपने जीवनकाल में ही वे यह दिन देख सकेंगी और ऐसा ही हुआ। जुझारू सुषमा का जीवन, सांसें, तथा सपने सभी कुछ राजनीति से जुड़े थे। सुप्रीम कोर्ट के वकील स्वराज कौशल के साथ उनकी लव स्टोरी की सफल परिणति इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान हुई थी। चार दशक से सुषमा उनकी स्टार थीं और स्वराज अचर्चित हीरो थे। सुषमा ने सारी दुनिया की यात्रा की और कई शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। हाथ की बुनी शानदार साड़ी धारण करने तथा मांग में सिंदूर और माथे पर बड़ी सी बिंदी लगाने वाली सुषमा की आंखों में उत्साह की चमक होती थी और उनका चेहरा विश्वास और गरिमा से दमकता रहता था। उनके राजनयिक दखल तथा अन्य उपलब्धियों के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है लेकिन उनके जीवन साथी के बारे में पर्याप्त प्रकाश नहीं डाला गया है जो उनके सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण रूप से शरीक थे। उनकी लव स्टोरी का सबसे पसंदीदा हिस्सा उनके पति द्वारा किये गए कई ट्वीट्स हैैं। जब सुषमा स्वराज ने सेहत की वजह से 2019 का चुनाव न लडऩे का फैसला किया तो स्वराज कौशल ने इसी पब्लिक प्लेटफार्म(ट्विटर) पर लिखा, ''मैैं अब 19 साल का नहीं हूं...मैडम, मैैं 46 साल से आपके पीछे चल रहा हूं। मुझे याद है कि एक समय आया जब मिल्खा सिंह ने भी दौडऩा बंद कर दिया लेकिन यह मैराथन 41 साल से चल रहा है...मेरी भी सांसें कम हो रही हैैं, धन्यवाद।ÓÓ यह किसी पति द्वारा अपनी बीमार धर्मपत्नी को लिखा गया सबसे मधुर और दिल को छूने वाला लव लैटर है। एक बहुत ही बुद्धिमान तथा परिपक्व व्यक्ति द्वारा दर्शाया गया यही प्यार है, जो अपने जीवन साथी तथा उसके सपने के साथ कदमताल करता दिखता है। जब स्वराज कौशल को मिजोरम का राज्यपाल बनाया गया तब भी ऐसा ही पारस्परिक सम्मान और प्यार था। स्पष्ट रूप से स्वराज कौशल अपनी अलग ही पहचान रखते थे। एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि आप अपनी धर्मपत्नी को ट्विटर पर फॉलो क्यों नहीं करते तो उनका उत्तर था, ''क्योंकि मैं लीबिया या यमन में फंसा हुआ नहीं हूं।ÓÓ आज के समय में स्वराज तथा सुषमा जैसे दंपति को याद करना कितना ताजगी भरा होता है जिन्होंने अपनी व्यक्तिगत विशिष्टता और व्यक्तित्व को कायम रखते हुए अपने वैवाहिक जीवन को जीवंत बनाए रखा। मैैंने उस फोटो को गौर से देखा है जिसमें पिता और पुत्री हापुड़ में गंगाघाट पर सुषमा जी की अस्थियां विसर्जित करते दिख रहे हैैं। इस फोटो में उनके चेहरे पर गरिमा और गहन दुख ही झलक रहा था। उन्हें ईश्वर इस दुख को सहन करने तथा राष्ट्र के प्रति सेवा की सुषमा की परंपरा को आगे बढ़ाने की शक्ति प्रदान करे।
                                                                                                                               सर्वदमन पाठक 




25 अगस्त 2019

ब्रांडिंग और पैकेजिंग ही महत्वपूर्ण है आज के दौर में


खाने का फैशन से क्या लेना देना है या बॉलीवुड का राजनीति से क्या संबंध है अथवा खेल का इन चारों से क्या संबंध है? काफी कुछ। दो दशक पहले जब एफडीसीआई के गठन के साथ ही देसी फैशन का कारपोरेट स्वरूप आया तो बड़े खिलाड़ी इसमें कूद पड़े। लगभग रातों रात भारत के अव्यवस्थित तथा असंगठित फैशन उद्योग ने तेजी पकड़ ली और आधुनिक सिस्टम ले आए। डिजाइनर्स, फोटोग्र्राफर्स तथा कोरियोग्र्राफर्स के बीच पुरानी अनौपचारिकता तथा रिश्ते खत्म हो गए। फैशन से संबंधित प्रत्येक मुद्दे पर शार्प ऑपरेटर्स सक्रिय होने लगे। उनका दावा था कि वे फैशन के हित में ही काम कर रहे हैैं। इसका एक सकारात्मक पक्ष था तो नकारात्मक पक्ष भी था। धन ने रचनात्मकता को चलन से बाहर कर दिया लेकिन प्रत्येक चीज-सेट, संगीत तथा संपूर्ण प्रस्तुतीकरण में दर्शनीय रूप से उछाल आया। लेकिन क्या अधिक वस्त्र बिकने लगे? क्या भारत में फैशन की मार्केटिंग का विश्वस्तरीय मॉडल भारत में काम करता है? यह तो ईश्वर ही जानता है। उबाऊ फैशन निश्चित ही चलने लगा लेकिन कमोवेश पहले वाले डिजाइनर्स के साथ शो चलता रहा और पुराने लोगों को पुराना फैशन दिखाया जाता रहा। इस दौरान युवा तथा संकल्पबद्ध फैशन डिजाइनर्स के रूप में नई प्रतिभाएं उत्तरपूर्व से आईं। उनके कलेक्शन्स में ताजगी थी तथा दुहराव नहीं था। उनकी दृष्टि का समर्थन देने वाली सांस्कृतिक आथेंटिसिटी भी उनके कलेक्शन में मौजूद थी। इसका उदाहरण 20 साल के लद्दाखी डिजाइनर स्टान्जिन पाल्मो का काम है।
उक्त सभी फील्ड में एक बात समान है-चतुराई भरी ब्रांडिंग, प्रस्तुतीकरण का तरीका और मार्केटिंग। पीआर के लिए यह अच्छा समय है क्योंकि बिना तेज तर्रार पीआर टीम के प्रचार कार्य के कुछ भी आगे नहीं बढ़ सकता। फैशन की तरह ही बॉलीवुड भी बदल गया है। यह तभी संभव हुआ जब बड़ी ब्लॉकबस्टर को 'स्वच्छ धनÓ की आर्थिक मदद मिली।
आज पूरी प्रक्रिया निश्चित तथा पारदर्शी हो गई है जहां स्मार्ट बच्चे भी बड़ी धनराशि की न केवल बात कर रहे हैैं बल्कि कमा भी रहे हैैं। पुरानी अस्पष्टता, अनिश्चितता तथा असुरक्षा के दिन लद गए हैैं और नई पीढ़ी करोड़ों के एनडोर्समेंट-प्रॉडक्ट प्लेसमेंट डील्स कर रही है और पूरे भारत तथा विदेश में भी आकर्षक संपत्ति खरीद रही है। क्या आजकल जो मूवीज बन रही हैैं, वे पुरानी शैली की फिल्मों से गुणवत्ता की दृष्टि से बेहतर हैैं? जूरी इस पर चुप्पी साधे रहती है लेकिन शोबिज में जबर्दस्त ऊर्जा लगती है और प्रत्येक व्यक्ति को व्यस्त रखने के लिए पर्याप्त काम होता है।
ऐसा ही खेल संस्थाओं तथा खिलाडिय़ों के साथ है। विश्व में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए उनकी प्रतिस्पर्धा की भावना जबर्दस्त रहती है। आज स्पोटर््स प्रबंधन तथा इनमें बढ़ती सेलेब्रिटीज की संख्या का यह आलम है कि उनकी व्यावसायिक क्षमता अच्छी है। अब वे दिन नहीं रहे जब स्पोटर््स से जुड़े लोगों को फंड के लिए प्रयास करना पड़ता था। यहां भी वैसा ही है कि चतुर मार्केटिंग प्रोफेनल्स काफी पैसा लाए हैैं। हो सकता है कि आईपीएल के गॉडफादर ललित मोदी भारत में वांछित आर्थिक अपराधी हों लेकिन उन्होंने जो कुछ किया उससे इस खेल में क्रांति आ गई और कई युवा क्रिकेटरों को कई मिलियन रुपए हासिल हुए। आईपीएल के मॉडल का इस्तेमाल करके कई स्पोटर््स में फ्रेंचाइजी का विस्तार हुआ। इनमें से अधिकांश काफी संपन्नता हासिल कर चुके हैैं।
इसी तरह रेस्तरां का व्यवसाय इस समय अनियंत्रित रफ्तार से बढ़ रहा है। सिर्फ उपभोक्ताओं को अच्छा खाना ऑफर करना ही आजकल पर्याप्त नहीं है बल्कि पैकेजिंग भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण इसमें ब्रांड रायल्टी बनाए रखना जरूरी है।
राजनीतिज्ञों को अन्य उत्पादों की तरह पैकेजिंग के साथ बेचे जाने में कोई आपत्ति नहीं है। चाहे कोई व्यक्ति अपने विचार बेच रहा है या फेयरनेस क्रीम बेच रहा है, स्ट्रेटेजी समान ही होती है। आप क्या मैसेज देते हैैं, यही सब कुछ है। दशकों पहले नेता को इसे लेकर जनता  के भरोसे पर खरा उतरना पड़ता था कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए क्या काम करेगा लेकिन आज वह एक इमेज मेकर पर सबसे पहले निवेश करता है और फिर घोषणापत्र के बारे में सोचता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि काफी धन राशि खर्च करके टिकट हासिल करने वाला आज का पालिश्ड तथा मीडिया सेवी राजनीतिज्ञ लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी उपलब्ध सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करता है और आपका वोट झटक लेता है। दरअसल प्रत्येक चीज वस्तु के रूप में तब्दील हो गई है जिसमें ब्रांडिंग महत्वपूर्ण है।
                                                                                                                            सर्वदमन पाठक



1 सितंबर 2019

बॉलीवुड की लय-ताल पर झूमती भारतीय शादियां


हमारी जिंदगी विशाल फिल्मी सेट की तरह है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह फिल्म स्टार बन जाए। मैैंने एक विवाह-पूर्व बनाया गया विवादास्पद वीडियो देखा जिसमें राजस्थान का एक पुलिसकर्मी और उसकी साथी महिला भद्दे आचरण में मशगूल थे और यह सब बाकायदा फिल्माया जा रहा था। यह वीडियो, जिससे धनपत नामक उक्त पुलिसकर्मी की नौकरी भी जा सकती है, अब हटा दिया गया है। क्या आप जानते हैैं कि यह वीडियो किस सिलसिले में था? हम यही कह सकते हैैं कि यह वीडियो बॉलीवुड की स्किप्ट का बहुत ही गलत प्रस्तुतीकरण था। उदयपुर में इस वीडियो के एक शॉट में एक स्मार्ट तथा अच्छा दिखने वाला ट्रैफिक पुलिसकर्मी(धनपत) दबंग के सलमान खान की तरह व्यवहार करता है। टूव्हीलर पर सवार एक युवती को हेल्मेट न पहनने के कारण वह रोकता है और वह आकर्षक युवती(उक्त पुलिसकर्मी की होने वाली वधू) जुर्माना देने के बदले पुलिसकर्मी के बिल्कुल नजदीक आती है और उसकी शर्ट की जेब में रिश्वत रख देती है। उक्त युवती दिलकश अंदाज में पर्स पकड़े हुए अपने टूव्हीलर पर वहां से रवाना हो जाती है। अगला दृश्य एक कॉफी शॉप का है जहां फ्लर्ट किये जाने के नए नए विजुअल्स दिखते हैैं। ये सीन और अधिक अंतरंग हैैं। यह वीडियो पेशेवर लोगों द्वारा शूट किये गए हैैं जिसमें उक्त पुलिसकर्मी की प्यार की कहानी की स्किप्ट किसी मिनी मूवी की तरह ही दिखती है। उनकी लव स्टोरी इसके आखिरी शॉट पर ही खत्म नहीं होती। इस पुलिसकर्मी के वरिष्ठ अफसर इस वीडियो से नाराज हो उठे हैैं। वे पुलिस की वर्दी के 'दुरुपयोगÓ और इसमें दिखाई गई पुलिस विभाग की नकारात्मक छवि से नाराज हैैं। इस संबंध में पुलिसकर्मी को नोटिस दे दिया गया है और उदयपुर के एसपी कैलाश चंद्र विश्नोई नियमों की छानबीन कर रहे हैैं ताकि पुलिसकर्मी पर कोई कार्रवाई की जा सके।
आजकल वैडिंग वीडियो का व्यवसाय काफी बढ़ गया है और ये व्यावसायिक दृष्टि से बड़े पैमाने पर तथा महत्वाकांक्षी तरीके से तैयार किये जाते हैैं। एक युवा ज्वैलर ने मुझे बताया कि उसने अपनी वैडिंग को बड़े ग्र्रेंड पैमाने पर मनाने की योजना बनाई थी। मैैं यह जानकर आश्चर्यचकित हो गई कि अन्य चीजों के अलावा कई वीडियो के लिए भी एक राशि रखी गई थी जिसमें कथित 'ग्र्रेंड शादीÓ के अश्लील वीडियो तैयार किये जाने थे। वे और उनकी मंगेतर पांच दिन की इस शादी की रस्मों की अपेक्षा इन वीडियो को लेकर काफी उत्सुक थे। वीडियो का फोकस विजुअल्स पर ही था जिन्हें वे शादी की रस्में पूरी होने के पहले ही सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए उतावले हुए जा रहे थे। इन क्लिप्स को अपलोड करने के लिए उन्होंने बाकायदा एक छोटी टीम नियुक्त की थी। बाद में स्वागत समारोह के फुटेज भी पूरी शिद्दत के साथ सोशल मीडिया पर अपलोड किये गए।
आजकल विवाह समारोहों में पांच कैमरों तथा कई द्रोन का सेट लगाना सामान्य हो गया है जिसमें हर रस्म के लिए स्टाइलिंग, मेक-अप तथा वार्डरोब के बदलाव को कई पेशेवर लोगों द्वारा कोरियोग्र्राफ किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इसे एक डायरेक्टर इंचार्ज द्वारा सादगी भरा जादू बिखेरने के लिए नियंत्रित किया जाता है। ऐसा लगता है कि प्र्त्येक परिवार आजकल मल्टी स्टार कॉस्ट तथा धूमधड़ाके भरी शादी चाहता है। यदि आप मेंहदी में बॉलीवुड स्टार्स के डांस का खर्च नहीं उठा सकते तो आप खुद उनके जैसे वस्त्र पहन सकते हैैं और उनकी नकल कर सकते हैैं। बुजुर्गों को भी कैमरे के सामने वर वधू को आशीर्वाद के रटे रटाए डॉयलाग बुलवा दिये जाते हैैं। पवित्र फेरों तक के रीटेक की अनुमति इसमें रहती है।
संपूर्ण भारत में बॉलीवुड का यह असर देखने को मिल सकता है। सामाजिक स्तर पर करोड़पतियों से लेकर, किसान, व्यापारी, बिल्डर तथा बैैंकर्स तक हर कोई इससे प्रभावित है। प्रत्येक व्यक्ति बॉलीवुड स्टाइल की वैडिंग के पीछे दीवाना है। हमने बिना सोचे समझे बॉलीवुड की शक्तिशाली छवि तथा संदेश के सामने समर्पण कर दिया है। इसमें धार्मिक समारोह भी शामिल हैैं।
                                                                                                                               सर्वदमन पाठक



22 सितंबर 2019

वक्त के तकाजे को पूरा करती है सहज समावेशी हिंदी


भारतीय कई भाषाओं में बात करते हैैं। यही बात हमें दिलचस्प बनाती है। हम कई भाषाओं में अपनी बात कह सकते हैैं। हो सकता है वे त्रुटिपूर्ण हों लेकिन हम बेहिचक ऐसा करते हैैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि हम खुद अपनी बात को समझा सकते हैैं। मुंबई में एकजुट रूप से बहुभाषी संस्कृति का उत्सवी माहौल है। और प्रशंसनीय रूप से इसे मनाते हैैं। 'गली बॉयजÓ के कारण मुंबई भाषा की दृष्टि से बहुत सख्त है। हमने मुंबई में इस्तेमाल की जाने वाली विभिन्न बोलियों और उच्चारणों वाली भाषा को 'मुंबइयाÓ नाम दिया है। यह अद्वितीय है। बॉलीवुड में यह भाषा सर्वाधिक पसंद की जाती है। हिंदी के शुद्धतावादी इतने सारे विभिन्न मुहावरों और शब्दों से युक्त भाषा के बारे में क्या सोचते हैैं, इसकी परवाह कौन करता है।  किसी भी भाषा का उद्देश्य यह होता है कि उससे संवाद किया जा सके-अच्छा, प्रभावशाली, सीधा और तेज गति से संवाद। मुंबइया भाषा रसयुक्त है और इसे आसानी से समझा जा सकता है तथा जरूरत पडऩे पर इसमें बदलाव किया जा सकता है। जो भाषा जरूरत के हिसाब से स्थापित नियमों से समझौता करने में असमर्थ होती है, वह कालांतर में निर्जीव हो जाती है और वह सिर्फ शिक्षाविदों की भाषा बन जाती है। विश्व में कई निर्जीव भाषाएं हैैं जिसका सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है। जीवंत भाषा में खुलापन होता है तथा वह बदलाव और परिष्कार को नकारती नहीं है। हिंदी भी ऐसी ही भाषा है। इस मामले में एक क्षण के लिए भाषा थोपने के नाम पर चलने वाली राजनीति को भूल जाएं और संपूर्ण दक्षिण भारत तथा पश्चिमी बंगाल व कुछ उत्तरपूर्वी राज्यों के हिंदी को लेकर पारंपरिक प्रतिरोध को दरकिनार कर दें जहां हिंदी कम समझी तथा जानबूझकर उपेक्षित की जाती है।
यह एक तरह का सांस्कृतिक सत्याग्र्रह है और हमें इसका सम्मान करना चाहिए। हमारे व्यापक तथा वैविध्यपूर्ण देश के इन हिस्सों को छोड़कर बाकी सभी जगह हिंदी को गतिशीलता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस मामले में हिंदी सर्वाधिक समावेशी भाषा है। कोई भी व्यक्ति जानबूझकर स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल कर धड़ल्ले से हिंदी बोल सकता है और जब उसके लिए असुविधापूर्ण स्थिति हो तो वह इंगलिश भी बोल सकता है। दरअसल पुल बनाने का ईमानदार प्रयास शुद्धता पर अड़े रहने से कहीं अच्छा है। भाषा के मामले में कठोरपंथी क्यों बना जाए जबकि बचाव करने तथा लडऩे के लिए इससे कहीं अच्छे मुद्दे हैैं। अमित शाह ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में दर्शाने वाले अपने बयान के बाद समझदारी भरे तरीके से इस पर पुनर्विचार किया। अब वे कहते हैैं कि उनका यह मतलब नहीं था। हो सकता है कि वे गुजराती में सोच रहे हों और अपने विचार का तेजी के साथ हिंदी में अनुवाद कर रहे हों। उनका नवीनतम बयान यह है कि किसी की भी मातृभाषा के बाद हिंदी को दूसरी भाषा बनाने के लिए वे अपना सुझाव दे रहे थे। भाषा कोई प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं है कि कौन पहले, दूसरे, तीसरे आदि नंबर पर आता है। अंग्र्रेजी विश्वस्तरीय व्यापार और संवाद की भाषा है, आप इसे चाहें या न चाहें। हमें राष्ट्रभाषा जैसी घोषणा के विवाद में नहीं पड़कर हमारे सरकारी स्कूलों के शिक्षण के स्तर को ऊंचा उठाना चाहिए। हमें अपनी शिक्षा नीति पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि हम ऐसी पीढ़ी विकसित कर रहे हैैं जो किसी भी भाषा को ठीक से पढ़लिख नहीं

                                                                                                                                       सर्वदमन पाठक 




29 सितंबर 2019


जलवायु परिवर्तन पर विश्व के नेताओं को आइना दिखाती ग्रेटा

जो लोग अनभिज्ञता की बेजान दीवार के भीतर रह रहे हैैं और जिन्होंने ग्र्रेटा थुनबर्ग के बारे में नहीं सुना है, उनके लिए एक संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है कि 'ग्र्रेटाÓ मूलत: जर्मन नाम है जिसका अर्थ मोती होता है। यह हकीकत है कि ग्र्रेटा की बुद्धिमत्ता के मोती ने न केवल सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है बल्कि इस सप्ताह शक्तिशाली विश्व-नेताओं को अच्छी खासी सीख देकर अवाक कर दिया है। 16 साल की ग्र्रेटा काफी हद तक उपेक्षित तथा बहुत ही गंभीर जलवायु परिवर्तन पर ध्यान आकर्षित कर रातों रात 'आइकॉनÓ बन गई है।
ग्र्रेटा ने घोषणा की, 'कोई भी व्यक्ति इतना छोटा नहीं है कि वह बदलाव नहीं ला सके।Ó मई 2019 में प्रकाशित किये गए उनके भाषणों के संग्र्रह का यही टाइटल है। इस पुस्तक की बिक्री से जो राशि आएगी, वह चैरिटी के लिए दे दी जाएगी। उसकी सार्वजनिक भूमिका स्टॉकहोम में एक एक्टिविस्ट के रूप में शुरू हुई जब वह महज 15 साल की थी। उसने तय किया कि वह प्रत्येकशुक्रवार को स्कूल नहीं जाएगी और 'जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अभियानÓ पर तख्ती लेकर प्रदर्शन करेगी। उसने स्वीडिश संसद के बाहर धरना दिया। इस मूवमेंट का नाम था, 'हैशटैगफ्राइडेफारफ्यूचरमूवमेंट।Ó उसने उस समय अन्य स्टुडेंट्स को इस मुहिम से जोडऩे का प्रयास किया लेकिन उसे ज्यादा रिस्पांस नहीं मिला। लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि उसके अभिभावक इस मुहिम में उसके साथ आ गए। ग्र्रेटा महसूस करती है कि यह एक युवती के लिए काफी बड़ा समर्थन था। उसकी मां ओपेरा सिंगर हैैं जबकि उसके पिता तथा दादा(ग्र्रेंडफादर) एक्टर रहे हैैं। ग्र्रेटा अपने अभियान को लेकर इतनी आग्र्रही थी कि उसने अपने अभिभावकों को शाकाहारी बनने तथा कार्बन प्रदूषण के कारण हवाईजहाज में यात्रा न करने के लिए मना लिया। इससे ओपेरा सिंगर के रूप में उसकी मां के कैरियर पर विराम लग गया लेकिन कोई भी इसे लेकर शिकायत नहीं कर रहा क्योंकि ग्र्रेटा खुद अपने निश्चय पर अटल है। जब उसे न्यूयार्क में 23 सितंबर को आयोजित ग्लोबल समिट के लिए आमंत्रित किया गया तो उसने रेसिंग यॉट में एटलांटिक पार करना पसंद किया। इस यात्रा में उसे 15 दिन लगे लेकिन एक बड़े मुद्दे पर उसने अपनी बात रखने में कामयाबी हासिल की। विश्व नेताओं तथा राजनीतिज्ञों के खिलाफ उसके तीखे अभियान ने प्रत्येक व्यक्ति(खास तौर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप) को पूरी तरह हत्प्रभ कर दिया। गुस्से से लाल ग्र्रेटा ने गरजते हुए कहा, 'यदि आप हमें असफल करना चाहते हैैं तो हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे।Ó उसने कहा, 'अपने खोखले शब्दों से आपने हमारे सपनों तथा बचपन को चुरा लिया है।Ó तब प्रत्येक व्यक्ति बैठकर ग्र्रेटा की बातों को ध्यान से सुन रहा था मानो वह कह रहा हो कि 'कितनी निर्भीकता से ग्र्रेटा अपनी बात कहती है।Ó पूर्व में उसने कहा, 'आप हम युवाओं को रोक नहीं सकते।Ó दरअसल ग्र्रेटा ने सामाजिक प्रतिक्रिया के लिए चुनौती दी है। ग्र्रेटा ऐसी ही है जिसे रोका नहीं जा सकता। 2018 में पोलैैंड में उसने कहा, 'हमारे नेता बच्चों की तरह बर्ताव कर रहे हैैं।Ó ग्रेटा अपने आलोचकों को जवाब देते हुए कहती हैैं, 'अलग होना अपने आप में सुपर पॉवर है।Ó उसे इस पोस्ट के लिए 9 लाख 50 हजार लाइक्स मिले हैैं। वह कहती है कि यदि वह अपना रुख बदलकर मौन धारण कर लेती है तो वह हमारे अधिकांश शब्दों से भी ज्यादा सार्थक होगा। ऐसे लोग भी हैैं जो ग्र्रेटा की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैैं। उनका कहना है कि ग्र्रेटा के मुंह से यह बात कहलाने की कोशिश की जा रही है। सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन ग्र्रेटा अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण परिदृश्य पर एक चमकते सितारे की तरह उभरी है। ग्र्रेटा ने महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैैं और युवाओं को इस संदेश को फैलाने के लिए प्रेरित किया है। ग्र्रेटा ने राजनीतिज्ञों को चेतावनी दी है, 'हम आप पर नजर रख रहे हैैं।Ó भारत को भी एक ग्र्रेटा की जरूरत है हालांकि हमारे यहां के युवा भी विश्व मंच पर न सही लेकिन अपनी कम्युनिटी के भीतर ऐसे ही प्रयास कर रहे हैैं। पुणे इस समय विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहा है जो अभूतपूर्व ही है। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। कोई भी व्यक्ति जलवायु परिवर्तन के प्रति बेखबर नहीं रह सकता। ग्र्रेटा ने गेम चेंजर के रूप में अमूल्य रोल निभाया है। हम मूर्ख ही होंगे यदि हम दीवार पर लिखी इबारत की उपेक्षा करेंगे। ग्र्रेटा के शब्दों में, 'आप चाहें या नहीं, परिवर्तन आ रहा है।Ó                                                              सर्वदमन पाठक




Thursday, January 16, 2020

शोभा डे कालम

सियासत के नए मुहावरे गढ़ती मिमी


मैैंने हाल ही संपन्न हुए कोलकाता फेस्टिवल में गार्डन पार्टियों में आने वाले व्यक्तियों जैसी फ्लोटी, फ्लावर प्रिंट वाली ड्रेस तथा उससे मैच करती आरेंज हील चप्पल पहने एक युवती के पीछे फोटोग्र्राफरों को भागते देखा तो मैैंने उस युवा हस्ती को एक मिनट में ही पहचान लिया। वह जादवपुर की तृणमूल कांग्र्रेस सांसद मिमी चक्रवर्ती थीं जो मंच पर ‘सफलता और सुख’ पर भाषण देने जा रही थीं। वे इतनी अच्छी तरह से ग्र्रूम्ड तथा शानदार मेक अप में थीं कि मैैं उनकी ओर टकटकी लगाकर देखने से खुद को रोक नहीं पाईं। मुझे उन पलों का बरबस ही स्मरण हो आया जब वे दूसरी तृणमूल कांग्र्रेस सांसद नुसरत जहां के साथ पहली बार संसद भवन पहुंची थीं। वे  उस समय पारंपरिक वेषभूषा से अलग मैचिंग पेंट और शर्ट धारण किये हुए थीं और पूरी तरह से सहज नजर आ रही थीं। मैैंने उन्हें तारीफ की दृष्टि से देखा और महिलाओं के सहज व्यवहार पर प्रसन्न हो गई।
अब कोलकाता फेस्टिवल की बात करें तो मिमी बिना किसी बनावट एवं लागलपेट के अपनी शुरुआती जिंदगी तथा सफलता का उनके लिए क्या मतलब है-इसके बारे में बात कर रही थीं। कुछ शुरुआती पंक्तियों में बैठे लोग उनकी हर टिप्पणी पर तालियां बजा रहे थे। वे किसी परिपक्व राजनीतिज्ञ  की तरह उस मंत्रमुग्ध भीड़ को अपनी बातों से आश्वस्त कर रही थीं। गौरतलब है कि बंगाली सिनेमा में कई हिट फिल्में देने वाली मिमी अभी सिर्फ 30 साल की हैैं और राजनीति में वे अभी नई ही हैैं। वे संघर्षपूर्ण प्रचार अभियान के फलस्वरूप अच्छे मतों से चुनाव जीती हैैं और उन्होंंने अपने विरोधियों को निरुत्तर करते हुए यह सिद्ध कर दिया है कि उन्हें एक जनमत सर्वे में ‘2016 की सबसे पसंदीदा महिला’ में शुमार किया गया था, वे उससे भी कहीं ज्यादा काबिल हैैं। आज वे काफी व्यस्त सेलेब्रिटी हैैं जो अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों से सतत संपर्क बनाए रखती हैैं, संसद की बैठकों में भाग लेती हैैं, अन्य कार्यक्रमों में जाती हैैं और एक्टिंग में भी हिस्सा लेती हैैं। वे अपने तरीके से जिंदगी जीती हैैं और ऐसा ही करना पसंद करती हैैं। वे खुद को अपने पालतू कुत्ते का अभिभावक मानती हैैं। वे बताती हैैं कि जब वे दिन भर की व्यस्तताओं के बाद घर पहुंचती हैैं तो वह पालतू जानवर गर्मजोशी से उनका स्वागत करता है।
जब मैैंने सुख और सफलता पर उनके विचार सुने तो मुझे यह जानने में दिलचस्पी हुई कि वे अपनी प्राथमिकताओं में इतनी आसानी से कैसे संतुलन बिठा लेती हैैं। जलपाईगुडी में अपने पेरेंट्स को छोडक़र  अपनी किस्मत आजमाने कोलकाता आई इस हस्ती ने पहले मॉडलिंग भी की है। उन्होंने अपनी उम्मीदें पूरी करने के लिए संघर्ष किया, फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाई और सख्त दिखने वाली ममता दीदी को उन्होंने इस कदर प्रभावित किया कि उन्हें मिमी की स्टार पावर पर भरोसा हो गया और उन्होंने मिमी को जादवपुर जैसी महत्वपूर्ण सीट पर टीएमसी प्रत्याशी बना दिया।
मिमी कोई सुंदर चेहरे वाली गुडिय़ा नहीं हैैं लेकिन फेस्टिवल में लोगों के मूड को भांपते हुए अपने विचार रखे और प्रत्येक व्यक्ति के प्रश्नों का भी संतोषजनक उत्तर दिया। उनकी गर्मजोशी तथा सलीके से संवारी गई जीवन शैली को देखते हुए कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि वे राजनीति में लंबी पारी खेलने  वाली हैैं। मैैं यह सुनकर अचंभित हो गई कि उन्हें केक बनाना पसंद है।
मिमी ने अपनी शुरुआती जिंदगी के बारे में भावुकतापूर्ण लहजे में बताया कि पहले उन्हें लोगों का उतना सहयोग नहीं मिला। उन्होंने बताया कि जब वे शुरुआत में स्कूल में दाखिल हुईं तो वे बेहद रोमांचित थीं। उनकी मां के पास पुस्तक खरीदने के भी पर्याप्त पैसे नहीं थे लेकिन उन्होंने किसी तरह इतनी राशि का प्रबंध किया। उन्होंने बताया कि उन्हें जब 15000 रुपये का पहला पेमेंट  मिला तो वे इतनी  रोमांचित थीं कि उन्होंने बार बार इसे गिना। जब वे अपने संघर्ष के दिनों की याद कर रही थीं तो उनकी आंखों में बच्चों जैसा आश्चर्य का भाव था और वे अपनी आंसुओं को पोंछ रही थीं।
वाह मिमी...आपने कई रूढिय़ों को इतनी जल्दी तोड़ा है। संसद में साड़ी के बदले पेंट पहनकर जाने का आपका फैसला आपके व्यक्तित्व के बारे में खुद ही सब कुछ बयां कर देता है। आप सभी के प्यार एवं सम्मान की पात्र हैैं।

प्रस्तुति: सर्वदमन पाठक

यंग इंडिया की मेगास्टार है दीपिका

यह ऐसा विरला ही सप्ताह रहा जब विश्व की दो अलग अलग जगह की ग्लेमर से भरपूर दो हस्तियां सुर्खियों में छाई रहीं और इससे हंगामा भी हुआ। इन हस्तियों के कार्यकलाप को लेकर परस्पर विरोधी नजरिये की बाढ़ सी आ गई। दीपिका ने जेएनयू की विरोध प्रदर्शन रैली में पहुंचकर हड़ताली छात्रों के समर्थन का संकेत दिया जो बॉलीवुड की खामोश ब्रिगेड के अनुसार बिना सोच विचार के उठाया गया कदम था। दीपिका ने सिर झुकाकर तथा हाथ जोडक़र जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष के प्रति काफी सम्मान प्रदर्शित किया। उस समय आइशी के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी और फ्रेक्चर हुए हाथ में पïट्टा चढ़ा हुआ था।  उन्हें केंपस के अंदर नकाबपोश गुंडों ने बुरी तरह पीटा था और वे छात्र विद्रोह का चेहरा बनकर उभरी हैैं। इन दो महिलाओं की मुलाकात की फोटो प्रत्येक बड़े समाचार पत्र में प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित हुई हैं।
उधर हजारों मील दूर ससेक्स की डचेस मेगन मार्कल ने ऐसा कुछ किया कि लोग स्तब्ध रह गए। उन्होंने अपने पति प्रिंस हैरी के साथ रॉयल ड्यूटीज से खुद को हटा लेने की घोषणा की जिस पर उनके कदम में छिपी मंशाओं को लेकर मेल्स का तूफान आ गया। इस पर टिप्पणी करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति खुद को अधिकृत मान रहा था। इन दोनों के पतियों ने भी इन महिलाओं का जबर्दस्त समर्थन किया। रणबीर सिंह ने दीपिका की प्रशंसा एवं प्यार की ऐसी भावुकतापूर्ण पोस्ट भेजी कि अनगिनत पत्नियां ‘आह’ भरकर रह गईं। उन्होंने अपनी सुपरस्टार पत्नी द्वारा किये गए कार्य को सही ठहराते हुए तथा उसके विश्वास के साथ दृढ़ता से खड़े रहते हुए उस पर गर्व प्रदर्शित किया। उधर मेगन को प्रिंस द्वारा दिये गए हीरो जैसे समर्थन ने यह प्रमाणित कर दिया कि ब्रिटिश राजगद्दी के छठवीं पीढ़ी के वंशज इस प्रिंस के पास फौलादी संकल्पशक्ति है। अलबत्ता यह निर्णय उन दोनों का था और इस दंपति का कहना था कि अपने पुत्र के हितों को देखते हुए उन्होंने यह फैसला किया है। लेकिन इसके लिए प्रिंस को अपनी 93 वर्षीय ग्र्रेंडमदर का गुस्सा झेलना पड़ेगा क्योंकि आखिरकार वे इंग्लैैंड की महारानी हैैं।
कहा जा रहा है कि दीपिका द्वारा प्रसिद्धि तथा व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए जेएनयू मुद्दे का राजनीतिकरण किया जा रहा है। मैैं इस राय से सहमत नहीं हूं। राजनीति में बॉलीवुड के लोगों की हिस्सेदारी हमेशा ही रही है। यदि आप इसमें शामिल होंगे तो भी आलोचना होगी और नहीं होंगे तो भी आलोचना होगी। इसमें इस बात का कोई मतलब नहीं है कि दीपिका ने अपनी नवीनतम फिल्म के प्रचार के लिए इसे पब्लिसिटी स्टंट के तौर पर इस्तेमाल किया। उसे यह अच्छी तरह मालूम था कि जेएनयू रैली में उसकी उपस्थिति आकर्षण का कारण बनेगी। मुद्दा यह है कि उसने इसका साहस किया जबकि अन्य किसी फिल्मी हस्ती ने ऐसा नहीं किया। उसने इसका जोखिम उठाया और उसकी उपस्थिति ने कई प्रसिद्ध लोगों के घंटों चले भाषण की तुलना में कहीं ज्यादा असर डाला। दीपिका ने  एक स्टैैंड लिया। इसके लिए गट्स चाहिए। उसका यह फैसला प्रतिगामी असर भी डाल सकता था और उसे इससे हानि हो सकती थी। इसकी प्रतिकूल प्रतिक्रिया शुरू भी हो गई है। उसे सरकार के ‘स्किल इंडिया’ वीडियो से हटाया जा चुका है। यह भी केवल शुरुआत है लेकिन उसने छात्रों के साथ खड़े होने का रास्ता चुना और उससे यह कोई भी नहीं छीन सकता।
यह बहुत कठोर और गलत तरीका है कि सेलेब्रिटीज को राजनीतिक मामलों में इस्तेमाल किया जाए या उन्हें सामाजिक जिम्मेदारियों के मामले में लेक्चर पिलाया जाए। हम सब वही करते हैैं जो हमारी अंतरात्मा कहती है।
सिनेमा के दर्शकों में भारी संख्या में छात्र तथा करोड़ों मजदूर वर्ग के लोग शामिल हैैं। बॉलीवुड की नई पीढ़ी के कलाकारों ने इस बात को समझ लिया है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वरुण धवन, रिचा चड्ढ़ा तथा कई अन्य बॉलीवुड स्टार्स ने जेएनयू के प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है। यह स्मार्ट थिंकिंग है। दीपिका युवा भारत की नजर में बहुत बड़ी अभिनेत्री है। कई साल बाद जब इस ऐतिहासिक जेएनयू  रैली का जिक्र होगा, दीपिका की इसमें हिस्सेदारी इसके नैरेटिव का अहम हिस्सा होगी। मेरा विश्वास कीजिए कि कोई भी व्यक्ति इसका स्मरण या परवाह नहीं करेगा कि बॉलीवुड़ के किस मेगा स्टार ने इसमें हिस्सा नहीं लिया या चुप्पी साध ली।
सर्वदमन पाठक