Thursday, August 22, 2019

बासित की इस हरकत पर कोई भारतीय भरोसा नहीं करेगा

शोभा डे ब्लॉग से


मैैं एक शानदार होटल में आनंदिता के साथ कैपुसिनो की चुस्कियां ले रही हूं। यह मां-बेटी के साथ समय बिताने का भव्य अवसर है। हम लोग चर्चा कर रहे हैैं कि और क्या मंगाया जाए। तभी मेरा सेल फोन लगातार बजने लगता है। तभी एक मित्र रिपोर्टर मुझे इस संबंधी जानकारी उपलब्ध कराते हैैं। वे बताते हैैं कि भारत- स्थित पूर्व पाकिस्तानी हाई कमिश्नर अब्दुल बासित ने अपने देश के एक ब्लॉगर को दिये इंटरव्यू में दावा किया है कि उसने कश्मीर मुद्दे पर एक विशेष तरह का (पाकिस्तान समर्थक)लेख लिखने के लिए मुझे प्रभावित किया था। उसने मेरे कॉलम में लिखे गए कुछ हिस्सों को उद्धृत करते हुए इस लेख का श्रेय खुद को दिया है। मेरा पहला रिस्पांस यह था कि मैैं इस मामले को पूरी तरह खारिज करूं और इस पर खास तौर पर ट्रोल आर्मी द्वारा की जा रही गंदी तथा धमकी भरी टिप्पणियों पर आगे कोई प्रतिक्रिया नहीं दूं। लेकिन इस तरह के    कॉल्स मेरे पास आते चले गए तो मुझे लगा कि यह क्या हो रहा है? यह अब्दुल बासित कौन है और किस बारे में बात कर रहा है? दरअसल 27 जनवरी 2019 को जयपुर के रामबाग पैलेस होटल के लॉन में आयोजित एक साहित्योत्सव के स्वागत समारोह में मैैंने अपने पति के साथ हिस्सा लिया था। हम लोग अपने कुछ मित्रों, जिनमें लेखक, प्रकाशक तथा संपादक शामिल थे, के साथ गपशप कर रहे थे तभी अचानक व्हिस्की का टंबलर लिए हुए एक व्यक्ति वहां आ गया और कुछ ज्यादा ही दोस्ताना अंदाज में हम लोगों के साथ बातचीत करने लगा। कुछ समय बाद हम लोगों के समूह की गुस्से भरी बातों को सुनकर वह सिर झुकाकर वहां से चला गया। हम लोगों के बीच कुल तीन मिनिट की बात हुई। यह मेरी और बासित की पहली और अंतिम मुलाकात थी। और उसकी हिमाकत देखिये कि आज वह मुझे 'इंफ्लुएंसÓ करने की बात कर रहा है। वह झूठ बोल रहा है। वह संबंधित वीडियो में जिस कॉलम की बात कर रहा है, वह 2016 में लिखा गया था। अपने मुंह से बकवास करने के पहले उसने अपना होमवर्क तो सही तरीके से कर लिया होता।
सवाल यह है कि फिर मैैं यह प्रतिक्रिया क्यों दे रही हूं? इसकी वजह यह है कि इस सिलसिले में अपना दामन साफ रखना महत्वपूर्ण है। उसका आरोप गंभीर और खतरनाक है। मेरी चुप्पी का यह मतलब होगा कि मैैं उसके असत्य को चुनौती देने की इच्छा नहीं रखती। इसलिए एएनआई के अनुरोध पर मैैंने एक मिनिट के वीडियो में अपनी प्रतिक्रिया दी जिसे भीड़ भरे मॉल में आनंदिता ने शूट किया। इसके बाद तो ट्रोल आर्मी और सक्रिय हो गई। मुझे बताया गया कि मेरा नाम भारत के उन 300 लेखकों, चिंतकों में शामिल है जो आईएसआई के 'पे रोलÓ पर हैैं। ये लोग पाकिस्तान के लिए काम करते हैैं और भारत विरोधी नीतियों का समर्थन करते हैैं। ये आरोप काफी विस्फोटक हैैं और इन आरोपों का पूरी ताकत से खंडन किया जाना चाहिए। हकीकत यह है कि धारा 370 के मुद्दे पर विश्व का जनमत पाकिस्तान के खिलाफ है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी तक को यह स्वीकार करना पड़ा है कि पाकिस्तान के लोग मूर्खों की दुनिया में रह रहे हैैं। बासित ने सोचा होगा कि जब पाकिस्तान की विश्वसनीयता बुरी तरह गिर गई है, तो वह अचानक मेरा नाम उछालकर लोगों का ध्यान वास्तविकता से भटका देगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सकेगा। मुझ पर कई आरोप लग सकते हैैं लेकिन किसी ने भारत के प्रति मेरी निष्ठा को कभी चुनौती नहीं दी। हां, यह सच है कि मेरा व्यक्तित्व और विचार स्वतंत्र हैैं लेकिन मैैं किसी राजनीतिक दल से चुड़ी नहीं हूं। मैैं जो महसूस करती हूं, वही कहती हूं। यह मेरा अधिकार है कि मैैं विचारों के मुताबिक किसी सरकार को चुनौती दूं या उसकी आलोचना करूं, चाहे कोई भी सरकार सत्ता में हो। यह एक नागरिक का विशेषाधिकार है और मैं इसे छोड़ नहीं सकती, चाहे जो भी हो। लेकिन यह अब्दुल बासित मुझे डिसक्रेडिट करने वाला कौन होता है। कौन इस झूठे व्यक्ति पर भरोसा करेगा। मेरे विचार खुले हैैं और यह सभी को मालूम है। मेरे फोन टेप करो, मेरे ईमेल हैक करो, जब भी मैैं बाहर निकलूं तो मेरा पीछा करो, सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर मेरी बातों की छानबीन करो, मेरा लैपटॉप ले लो लेकिन मेरे शर्मिंदा होने या मुंह छिपाने लायक इसमें कुछ भी नहीं मिलेगा। इसलिए अब्दुल बासित, तुमने गलत महिला से पंगा लिया है। तुम्हारी बात पर कोई भी भरोसा नहीं करेगा। इससे अच्छा होता कि तुम अपने देश पर ध्यान देते कि वहां क्या गड़बड़ी हो रही है। देश किसी भी राजनीतिक पार्टी सेे शक्तिशाली है और मैैं जिन बातों पर भरोसा करती हूं, उनके लिए पूरी शिद्दत से लड़ती रहूंगी। अब्दुल बासित, यदि तुम सोचते हो कि तुम इस तरह की हरकतों से जीत जाओगे तो यह तुम्हारी भूल है। इसलिए अच्छे बच्चे की तरह पाकिस्तानी जनरल्स से सॉरी कहो और उनसे आग्र्रह करो कि वे तुम्हारा पॉकेट मनी न काटें।
प्रस्तुति: सर्वदमन पाठक

Thursday, August 8, 2019



हम टुटपुंजिए चोरों की तरह व्यवहार क्यों करते हैैं?



बाली से एक वीडियो आया है जिसमें होटल स्टाफ द्वारा एक संपन्न भारतीय परिवार को चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़े जाते दिखाया गया है। यह उस समय का वीडियो है जब वह परिवार अपने कमरे से चोरी किये गए सामानों से भरे सूटकेस के साथ रवाना होने वाला था। जब होटल के कर्मचारियों ने हेयर ड्रायर्स, सोप डिस्पेंसर्स, टॉवल, हैैंगर, डेकोरेटिव आइटम सहित चोरी का सामान टेबिल तथा अन्य स्थानों से निकाला तो इस वायरल वीडियो में तमाम चश्मदीद खुद को शर्मिंदा तथा अपमानित महसूस करते दिख रहे थे। इन पर्यटकों को यह बात काफी चुभी कि चोरी के सामान के साथ पकड़े गए लोग उसके बाद भी सीनाजोरी कर रहे थे। पहले तो उन्होंने चोरी से इंकार करते हुए काफी उत्तेजना दिखाई लेकिन बाद में चोरी के सामान के 'भुगतानÓ के लिए तैयार हो गए। आखिर में तो पुराना तरीका अपनाते हुए गुस्से में भरे स्टाफ को ले देकर मामला सुलझाने की भी कोशिश की। यह सभी कुछ रिकार्डेड था और सारी दुनिया ने इसे देखा। यह भारत की हंसी उड़ाने वाला वाकया था। बाली में पकड़े गए उक्त भारतीय परिवार के अलावा भी कई ऐसे संपन्न भारतीय परिवार की ऐसी खबरें पहले भी मिली हैैं जो बर्न के पास 30 लाख रुपये प्रति रात्रि किराये वाले स्की रिसोर्ट में रुके थे। इस रिसोर्ट के प्रबंधन द्वारा लोगों को आगाह किया जाता रहा है कि वे अपने कमरे से कांप्लिमेंटरी ब्रेकफास्ट बफे के सामान भी नहीं ले जा सकते लेकिन लोग अपने मित्रों के व्हाट्सऐप ग्र्रुप में यह स्वीकार करते रहे हैैं कि उन्होंने ब्रेकफास्ट के लिए सजी टेबिल से बन्स तथा क्रोइसिएंट लाने का अपराध किया है। अब वे खुद से पूछ रहे हैैं कि इस वीडियो में दिख रहे चोरी करते पकड़े गए लोगों से वे क्या किसी भी तरह से बेहतर हैैं। चोरी कैसी होती है? क्या इनमें से कोई भी चोरी का औचित्य ठहरा सकता है या क्या उन्हें माफ किया जा सकता है? 
समाजशास्त्रियों से यह पूछना रोचक होगा कि हम टुटपुंजिये चोरों की तरह क्यों व्यवहार करते हैैं। हम अपने लपकते हुए हाथों को कुकी जार से बाहर क्यों नहीं रख सकते? क्या इसका भूख से वंचित रहने की किसी काफी पहले दफन हो चुकी याद से कुछ लेना देना है? प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अपनी कहानियां हैैं कि किस तरह उनके दादे-परदादे भूखे रह जाते थे ताकि उनके बच्चे खाना खा सकें। चूंकि खाना और प्रगति एक दूसरे से जुड़े हुए हैैं इसलिए हमारा भूखमरों की तरह खाना इस बात से संबंधित है कि हम कैसे बड़े होते हैैं-कितने अधिक या कितने कम संसाधनों के साथ? ऐसी स्मृतियों को पूरी तरह से दिलोदिमाग से हटा देना आसान नहीं होता। संपन्न लोगों में भी यह असुरक्षा की भावना रहती है कि खाना कहीं खतम न हो जाए इसलिए इसे जमा कर लो। हम सिर्फ खाने के सामान तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि आराम से कुछ भी या सब कुछ चुरा लेते हैैं। एक हेयर ड्रायर की कीमत आत्मसम्मान के आसपास भी नहीं होती। अपना सिर ऊंचा रखें। 
                                सर्वदमन पाठक

Tuesday, August 6, 2019

एक और ‘अगस्त क्रांति’

अपने दूरगामी फैसलों से देश को जब तब चमत्कृत कर देने वाली नरेंद्र मोदी सरकार ने अब अपनी चमत्कारी शैली से राष्ट्र की आजादी की नई इबारत लिख दी है। सुखद संयोग यह है कि आजादी के बाद से ही अलगाववाद और आतंकवाद के नासूर से देश को मर्मांतक पीड़ा पहुंचाने वालेकश्मीर को , 370 तथा अनुच्छेद 35-ए के खात्मे की सर्जरी से निजात दिलाने का यह करिश्मा अगस्त माह में ही हुआ, जो अगस्त क्रांति(9 अगस्त 1942) तथा स्वतंत्रता दिवस(15 अगस्त 1947) के रूप में आजादी के महत्वपूर्ण पड़ाव का साक्षी रहा है। स्वाभाविक है कि इस फैसले के बाद कश्मीर अब अन्य हिस्सों की तरह ही देश का एक हिस्सा हो जाएगा और इसका विशेष दर्जा खत्म हो जाएगा जो भेदभाव की एक बड़ी वजह था। पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाने तथा लद्धाख को उससे पृथक केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील करने की रणनीति कश्मीर राज्य के भीतर भाजपा की रची जाने वाली व्यूहरचना का ही संकेत है। इस फैसले के दूरगामी प्रभावों को देखते हुए यह अनुमान लगाना कोई रॉकेट साइंस जैसा मुश्किल नहीं है कि ऐतिहासिक भूलों से देश की पूर्ण आजादी के सामने सवालिया निशान बनकर खड़े कश्मीर का भूगोल और सियासत इस फैसले से पूरी तरह बदल जाएगी और आतंकवाद परोसने वालों के हाथों की कठपुतली बने स्थानीय नेता घाटी के भोले भाले लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाने की ताकत खो बैठेंगे। आतंकवाद के निर्यातक पड़ौसी देश पाकिस्तान तथा स्थानीय आतंकवादियों के समर्थन से अपनी राजनीतिक दूकान चमकाने वाले नेताओं की बेचैनी तथा बौखलाहट इस बात का जीता जागता प्रमाण है। सारे देश में मनाया जा रहा जश्न यही दर्शाता है कि देश इस फैसले की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था। वास्तविकता यह है कि देश की इस आकांक्षा को सरकार ने पूरी शिद्दत से महसूस किया और इसी जनाकांक्षा ने उसे इतने बड़े फैसले के लिए शक्ति और मनोबल प्रदान किया। सरकार की यह राजनीतिक इच्छाशक्ति उसे देश की सियासत में माइलेज प्रदान करे तो आश्चर्य ही क्या है। कुछ राजनीतिक दल अपने पूर्वाग्र्रहों के कारण इस कदम का  विरोध कर रहे हैैं, वह उनकी राजनीतिक अअदूरदर्शिता ही है। 
इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि भले सरकार ने साहस का परिचय देते हुए यह अहम फैसला किया है लेकिन इन कदमों के क्रियान्वयन का रास्ता उतना आसान नहीं होगा। कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की शतरंज में एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है और इस खेल में भारत कितनी चतुराई से अपनी चाल चलता है, उक्त फैसले की सफलता इस पर भी निर्भर करेगी। फिलहाल घाटी में भारत की भारी सैन्य उपस्थिति के कारण वहां पनप रहे असंतोष और गुस्से का कोई सटीक अंदाजा लगाना मुश्किल है लेकिन वहां की जनता की भावनाओं की जीतना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। 
      सर्वदमन पाठक