एक और ‘अगस्त क्रांति’
अपने दूरगामी फैसलों से देश को जब तब चमत्कृत कर देने वाली नरेंद्र मोदी सरकार ने अब अपनी चमत्कारी शैली से राष्ट्र की आजादी की नई इबारत लिख दी है। सुखद संयोग यह है कि आजादी के बाद से ही अलगाववाद और आतंकवाद के नासूर से देश को मर्मांतक पीड़ा पहुंचाने वालेकश्मीर को , 370 तथा अनुच्छेद 35-ए के खात्मे की सर्जरी से निजात दिलाने का यह करिश्मा अगस्त माह में ही हुआ, जो अगस्त क्रांति(9 अगस्त 1942) तथा स्वतंत्रता दिवस(15 अगस्त 1947) के रूप में आजादी के महत्वपूर्ण पड़ाव का साक्षी रहा है। स्वाभाविक है कि इस फैसले के बाद कश्मीर अब अन्य हिस्सों की तरह ही देश का एक हिस्सा हो जाएगा और इसका विशेष दर्जा खत्म हो जाएगा जो भेदभाव की एक बड़ी वजह था। पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाने तथा लद्धाख को उससे पृथक केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील करने की रणनीति कश्मीर राज्य के भीतर भाजपा की रची जाने वाली व्यूहरचना का ही संकेत है। इस फैसले के दूरगामी प्रभावों को देखते हुए यह अनुमान लगाना कोई रॉकेट साइंस जैसा मुश्किल नहीं है कि ऐतिहासिक भूलों से देश की पूर्ण आजादी के सामने सवालिया निशान बनकर खड़े कश्मीर का भूगोल और सियासत इस फैसले से पूरी तरह बदल जाएगी और आतंकवाद परोसने वालों के हाथों की कठपुतली बने स्थानीय नेता घाटी के भोले भाले लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाने की ताकत खो बैठेंगे। आतंकवाद के निर्यातक पड़ौसी देश पाकिस्तान तथा स्थानीय आतंकवादियों के समर्थन से अपनी राजनीतिक दूकान चमकाने वाले नेताओं की बेचैनी तथा बौखलाहट इस बात का जीता जागता प्रमाण है। सारे देश में मनाया जा रहा जश्न यही दर्शाता है कि देश इस फैसले की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था। वास्तविकता यह है कि देश की इस आकांक्षा को सरकार ने पूरी शिद्दत से महसूस किया और इसी जनाकांक्षा ने उसे इतने बड़े फैसले के लिए शक्ति और मनोबल प्रदान किया। सरकार की यह राजनीतिक इच्छाशक्ति उसे देश की सियासत में माइलेज प्रदान करे तो आश्चर्य ही क्या है। कुछ राजनीतिक दल अपने पूर्वाग्र्रहों के कारण इस कदम का विरोध कर रहे हैैं, वह उनकी राजनीतिक अअदूरदर्शिता ही है।इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि भले सरकार ने साहस का परिचय देते हुए यह अहम फैसला किया है लेकिन इन कदमों के क्रियान्वयन का रास्ता उतना आसान नहीं होगा। कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की शतरंज में एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है और इस खेल में भारत कितनी चतुराई से अपनी चाल चलता है, उक्त फैसले की सफलता इस पर भी निर्भर करेगी। फिलहाल घाटी में भारत की भारी सैन्य उपस्थिति के कारण वहां पनप रहे असंतोष और गुस्से का कोई सटीक अंदाजा लगाना मुश्किल है लेकिन वहां की जनता की भावनाओं की जीतना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी।
सर्वदमन पाठक
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