Thursday, August 8, 2019



हम टुटपुंजिए चोरों की तरह व्यवहार क्यों करते हैैं?



बाली से एक वीडियो आया है जिसमें होटल स्टाफ द्वारा एक संपन्न भारतीय परिवार को चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़े जाते दिखाया गया है। यह उस समय का वीडियो है जब वह परिवार अपने कमरे से चोरी किये गए सामानों से भरे सूटकेस के साथ रवाना होने वाला था। जब होटल के कर्मचारियों ने हेयर ड्रायर्स, सोप डिस्पेंसर्स, टॉवल, हैैंगर, डेकोरेटिव आइटम सहित चोरी का सामान टेबिल तथा अन्य स्थानों से निकाला तो इस वायरल वीडियो में तमाम चश्मदीद खुद को शर्मिंदा तथा अपमानित महसूस करते दिख रहे थे। इन पर्यटकों को यह बात काफी चुभी कि चोरी के सामान के साथ पकड़े गए लोग उसके बाद भी सीनाजोरी कर रहे थे। पहले तो उन्होंने चोरी से इंकार करते हुए काफी उत्तेजना दिखाई लेकिन बाद में चोरी के सामान के 'भुगतानÓ के लिए तैयार हो गए। आखिर में तो पुराना तरीका अपनाते हुए गुस्से में भरे स्टाफ को ले देकर मामला सुलझाने की भी कोशिश की। यह सभी कुछ रिकार्डेड था और सारी दुनिया ने इसे देखा। यह भारत की हंसी उड़ाने वाला वाकया था। बाली में पकड़े गए उक्त भारतीय परिवार के अलावा भी कई ऐसे संपन्न भारतीय परिवार की ऐसी खबरें पहले भी मिली हैैं जो बर्न के पास 30 लाख रुपये प्रति रात्रि किराये वाले स्की रिसोर्ट में रुके थे। इस रिसोर्ट के प्रबंधन द्वारा लोगों को आगाह किया जाता रहा है कि वे अपने कमरे से कांप्लिमेंटरी ब्रेकफास्ट बफे के सामान भी नहीं ले जा सकते लेकिन लोग अपने मित्रों के व्हाट्सऐप ग्र्रुप में यह स्वीकार करते रहे हैैं कि उन्होंने ब्रेकफास्ट के लिए सजी टेबिल से बन्स तथा क्रोइसिएंट लाने का अपराध किया है। अब वे खुद से पूछ रहे हैैं कि इस वीडियो में दिख रहे चोरी करते पकड़े गए लोगों से वे क्या किसी भी तरह से बेहतर हैैं। चोरी कैसी होती है? क्या इनमें से कोई भी चोरी का औचित्य ठहरा सकता है या क्या उन्हें माफ किया जा सकता है? 
समाजशास्त्रियों से यह पूछना रोचक होगा कि हम टुटपुंजिये चोरों की तरह क्यों व्यवहार करते हैैं। हम अपने लपकते हुए हाथों को कुकी जार से बाहर क्यों नहीं रख सकते? क्या इसका भूख से वंचित रहने की किसी काफी पहले दफन हो चुकी याद से कुछ लेना देना है? प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अपनी कहानियां हैैं कि किस तरह उनके दादे-परदादे भूखे रह जाते थे ताकि उनके बच्चे खाना खा सकें। चूंकि खाना और प्रगति एक दूसरे से जुड़े हुए हैैं इसलिए हमारा भूखमरों की तरह खाना इस बात से संबंधित है कि हम कैसे बड़े होते हैैं-कितने अधिक या कितने कम संसाधनों के साथ? ऐसी स्मृतियों को पूरी तरह से दिलोदिमाग से हटा देना आसान नहीं होता। संपन्न लोगों में भी यह असुरक्षा की भावना रहती है कि खाना कहीं खतम न हो जाए इसलिए इसे जमा कर लो। हम सिर्फ खाने के सामान तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि आराम से कुछ भी या सब कुछ चुरा लेते हैैं। एक हेयर ड्रायर की कीमत आत्मसम्मान के आसपास भी नहीं होती। अपना सिर ऊंचा रखें। 
                                सर्वदमन पाठक

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