हमारी कितनी चिंता है पुलिस को?
सर्वदमन पाठक
भोपाल की पुलिस नागरिकों की सुरक्षा को लेकर कितनी चिंतित है, इसका अनुमान सड़कों पर पुलिस की बढ़ी हुई सक्रियता को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। इस सदाशयता के लिए पुलिस की तारीफ करनी होगी कि वह हेलमेट न पहनने वाले दुपहिया वाहन चालकों के चालान कर उनमें आत्मरक्षा के लिए हेलमेट पहनने की आदत डाल रही है। हर सड़क, गली, कूचे में पुलिस की टोलियां बाकायदा चाक चौबंद रहती हैैं और उनकी सतर्कता की वजह से कोई भी हेलमेट विहीन दुपहिया वाहन चालक वहां से नहीं गुजर सकता। यदि उसने यह जुर्रत की तो उसे तकरीबन चार सौ रुपए का जुर्माना भरकर अपनी जेब हल्की करने के बाद ही वहां से जाने की अनुमति मिल सकती है। हां, यदि पुलिस अफसर न देख रहे हों तो अवश्य ही सौ-डेढ़ सौ रुपए से सिपाही की मुट्ठी गरम करने से भी काम चल सकता है। लेकिन यह सब परेशानी उन लोगों को ही होती है जो निरीह तथा पुलिस से हुज्जत करने की हिम्मत न रखने वाले आम नागरिक हैैं। रुतबेदार एवं प्रभावशाली लोगों पर पुलिस आम तौर पर हाथ नहीं डालती। वैसे भी पुलिस का यह सिद्धांत है कि वह 'बड़े लोगोंÓ से पंगा नहीं लेती। इसीलिए चार पहिया वाहन में चलने वाले इन बड़े लोगों के खिलाफ छुटपुट कार्रवाई अवश्य होती है लेकिन उनके खिलाफ मुहिम छेडऩे का साहस हमारे शहर की पुलिस नहीं जुटा पाती। बड़े राजनीतिक नेता, बड़े अधिकारी, बड़े अपराधी जैसे चार पहिया वाहनों में सफर करने वाले बड़े लोगों को कानून की कोई परवाह भी नहीं होती। उनमें से कई तो पुलिस कर्मियों तथा पुलिस अफसरों को भी जेब में रखते हैैं तो फिर पुलिस उनका चालान करने की हिम्मत कैसे जुटा सकती है। यदि भूलवश उनका चालान करने की कोशिश की तो चंद ही मिनटों में वे पुलिसकर्मी माफी मांगते भी नजर आ सकते हैैं। वो तो भगवान भला करे सुप्रीम कोर्ट का, जिसके आदेश के बहाने काले शीशे वाले चार पहिया वाहनों के चालान हो रहे हैैं वरना पुलिस यह भी हिम्मत नहीं जुटा पाती।
पुलिस को सड़क दुर्घटना के अन्य कारकों पर भी गौर करके उन पर अंकुश लगाना चाहिए। कौन नहीं जानता कि शहर में अंधाधुंध रफ्तार से दौड़ते ट्रकों, बसों और मिनी बसों पर अंकुश लगाने में पुलिस पूरी तरह नाकाम रही है। इसीलिए आए दिन शहर में जानलेवा एक्सीडेंट हो रहे हैैं। यदि इन बेकाबू रफ्तार वाहनों से आप विनती करें कि वे आपको ज्यादा जोर से टक्कर न मारें तो भी इस बात की विरली ही संभावना बनती है कि आप हेलमेट के भरोसे जान बचा पाएं। यदि आप इस विरली संभावना का लाभ पा जाएं तो अवश्य ही पुलिस को धन्यवाद करना मत भूलिए। वैसे पुलिस को यदि अपनी इस मुहिम से थोड़ी फुरसत मिले तो वह अन्य अपराधों की ओर भी ध्यान दे। जब गेंगरेप को लेकर पूरा देश गुस्से में है, तब भोपाल में खुले आम महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं हो रही हैैं, अपराधियों के हौसले इस कदर बुलंद हैैं कि आम आदमी की शांति एवं सुरक्षा खतरे में है। पुलिस इन अपराधियों पर अंकुश लगाने तथा उन पर सख्त कार्रवाई करने के बदले उनसे गलबहियां करती और हफ्ता वसूलती नजर आती है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैैं कि शहर के व्यस्ततम स्टेट बैैंक चौराहे के सामने स्थित बिजली आफिस में दिन दहाड़े घुसकर अपराधी एक महिला कर्मचारी का कत्ल कर देते हैैं और पुलिस हत्यारे का पता तक नहीं लगा पाती। पुलिस हेलमेट मुहिम जैसी शूरवीरता के लिए बधाई की पात्र है लेकिन इसके साथ ही शहर के अपराधियों पर भी अंकुश लगाने हेतु प्रभावी कदम उठाए तो अच्छा होगा।
सर्वदमन पाठक
भोपाल की पुलिस नागरिकों की सुरक्षा को लेकर कितनी चिंतित है, इसका अनुमान सड़कों पर पुलिस की बढ़ी हुई सक्रियता को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। इस सदाशयता के लिए पुलिस की तारीफ करनी होगी कि वह हेलमेट न पहनने वाले दुपहिया वाहन चालकों के चालान कर उनमें आत्मरक्षा के लिए हेलमेट पहनने की आदत डाल रही है। हर सड़क, गली, कूचे में पुलिस की टोलियां बाकायदा चाक चौबंद रहती हैैं और उनकी सतर्कता की वजह से कोई भी हेलमेट विहीन दुपहिया वाहन चालक वहां से नहीं गुजर सकता। यदि उसने यह जुर्रत की तो उसे तकरीबन चार सौ रुपए का जुर्माना भरकर अपनी जेब हल्की करने के बाद ही वहां से जाने की अनुमति मिल सकती है। हां, यदि पुलिस अफसर न देख रहे हों तो अवश्य ही सौ-डेढ़ सौ रुपए से सिपाही की मुट्ठी गरम करने से भी काम चल सकता है। लेकिन यह सब परेशानी उन लोगों को ही होती है जो निरीह तथा पुलिस से हुज्जत करने की हिम्मत न रखने वाले आम नागरिक हैैं। रुतबेदार एवं प्रभावशाली लोगों पर पुलिस आम तौर पर हाथ नहीं डालती। वैसे भी पुलिस का यह सिद्धांत है कि वह 'बड़े लोगोंÓ से पंगा नहीं लेती। इसीलिए चार पहिया वाहन में चलने वाले इन बड़े लोगों के खिलाफ छुटपुट कार्रवाई अवश्य होती है लेकिन उनके खिलाफ मुहिम छेडऩे का साहस हमारे शहर की पुलिस नहीं जुटा पाती। बड़े राजनीतिक नेता, बड़े अधिकारी, बड़े अपराधी जैसे चार पहिया वाहनों में सफर करने वाले बड़े लोगों को कानून की कोई परवाह भी नहीं होती। उनमें से कई तो पुलिस कर्मियों तथा पुलिस अफसरों को भी जेब में रखते हैैं तो फिर पुलिस उनका चालान करने की हिम्मत कैसे जुटा सकती है। यदि भूलवश उनका चालान करने की कोशिश की तो चंद ही मिनटों में वे पुलिसकर्मी माफी मांगते भी नजर आ सकते हैैं। वो तो भगवान भला करे सुप्रीम कोर्ट का, जिसके आदेश के बहाने काले शीशे वाले चार पहिया वाहनों के चालान हो रहे हैैं वरना पुलिस यह भी हिम्मत नहीं जुटा पाती।
पुलिस को सड़क दुर्घटना के अन्य कारकों पर भी गौर करके उन पर अंकुश लगाना चाहिए। कौन नहीं जानता कि शहर में अंधाधुंध रफ्तार से दौड़ते ट्रकों, बसों और मिनी बसों पर अंकुश लगाने में पुलिस पूरी तरह नाकाम रही है। इसीलिए आए दिन शहर में जानलेवा एक्सीडेंट हो रहे हैैं। यदि इन बेकाबू रफ्तार वाहनों से आप विनती करें कि वे आपको ज्यादा जोर से टक्कर न मारें तो भी इस बात की विरली ही संभावना बनती है कि आप हेलमेट के भरोसे जान बचा पाएं। यदि आप इस विरली संभावना का लाभ पा जाएं तो अवश्य ही पुलिस को धन्यवाद करना मत भूलिए। वैसे पुलिस को यदि अपनी इस मुहिम से थोड़ी फुरसत मिले तो वह अन्य अपराधों की ओर भी ध्यान दे। जब गेंगरेप को लेकर पूरा देश गुस्से में है, तब भोपाल में खुले आम महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं हो रही हैैं, अपराधियों के हौसले इस कदर बुलंद हैैं कि आम आदमी की शांति एवं सुरक्षा खतरे में है। पुलिस इन अपराधियों पर अंकुश लगाने तथा उन पर सख्त कार्रवाई करने के बदले उनसे गलबहियां करती और हफ्ता वसूलती नजर आती है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैैं कि शहर के व्यस्ततम स्टेट बैैंक चौराहे के सामने स्थित बिजली आफिस में दिन दहाड़े घुसकर अपराधी एक महिला कर्मचारी का कत्ल कर देते हैैं और पुलिस हत्यारे का पता तक नहीं लगा पाती। पुलिस हेलमेट मुहिम जैसी शूरवीरता के लिए बधाई की पात्र है लेकिन इसके साथ ही शहर के अपराधियों पर भी अंकुश लगाने हेतु प्रभावी कदम उठाए तो अच्छा होगा।
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