Thursday, April 25, 2013

 मप्र भी शर्मसार है चाइल्ड रेप के कलंक से
प्रसंगवश
सर्वदमन पाठक
पांच साल की मासूम बच्ची से बलात्कार की पैशाचिक घटना पर एक बार फिर दिल्ली दहल उठी है। इस घिनौनी हरकत पर लोगों में गुस्से का ज्वार फूट पड़ा है और लोग सड़कों पर उतर आए हैैं। इस मामले में पुलिस के संवेदनहीन रवैये को लेकर लोगों में खासी नाराजी है और इसी वजह से पुलिस आयुक्त को हटाए जाने की मांग करते हुए प्रदर्शन का सिलसिला भी चल पड़ा है। दिल्ली में बलात्कार की इतनी ज्यादा घटनाएं पिछले दिनों हुई हैैं कि अगर इसे रेप केपिटल कहा जाए तो कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी। शहरों में दिल्ली रेप के मामले में जितनी कुख्यात है, राज्यों में मध्यप्रदेश की वही स्थिति है। दिल्ली में पैशाचिक दुष्कर्म की शिकार नन्हीं बच्ची का इलाज कर रहे एम्स के डाक्टरों की यह रिपोर्ट थोड़ी राहत भरी है कि उसकी हालत लगातार सुधर रही है और एक सप्ताह में वह लोगों से बात करने की स्थिति में हो जाएगी लेकिन मध्यप्रदेश में सिवनी जिले के घंसौर में दुष्कर्म की शिकार बच्ची , जिसे बेहतर इलाज के लिए जबलपुर से नागपुर ले जाया गया था, अभी भी वेंटिलेटर पर है और चिंताजनक बात यह है कि उसके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया है जो उसकी अत्यंत ही नाजुक स्थिति का संकेत देता है। इसी तरह छिंदवाड़ा के तामिया नामक स्थान पर दुष्कर्म की शिकार हुई चार वर्ष की बच्ची की हालत भी नाजुक बनी हुई है। दिल्ली रेप कांड के दोनों आरोपियों को पकड़ लिया गया है लेकिन मध्यप्रदेश में दोनों मामले पुलिस की नाकामी की कहानी कहते हैैं। घंसौर कांड का आरोपी पुलिस की पकड़ से बाहर है। तामिया पुलिस की अमानवीयता का यह आलम है कि तीन घंटे तक खून से लथपथ बच्ची को लिए उसकी मां पुलिस के सामने गिड़गिड़ाती रही लेकिन पुलिस उसकी रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करती रही। इस घटना का आरोपी बाद में गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन खरगौन जिले के झिरनिया गांव में छह साल की बच्ची से दुष्कर्म कर उसको मौत के घाट उतार देने वाला चाचा अभी भी पकड़ा नहीं जा सका है। दरअसल महिलाओं के यौन उत्पीडऩ के मामले में मध्यप्रदेश के माथे पर कलंक के टीके की तरह चिपका हुआ एक नंबर छूटने का नाम ही नहीं ले रहा है। एशियन सेंंटर फार ह्यïूमन राइट्स की ताजा रिपोर्ट तो मध्यप्रदेश के लिए शर्म की पराकाष्ठा ही हैै जिसके द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2001 से 2011 तक चाइल्ड रेप के सबसे ज्यादा 9465 मामले मध्यप्रदेश में दर्ज किये गए हैैं।
गौरतलब है कि दिल्ली के दिसंबर में हुए सामूहिक रेप कांड के बाद देश भर में जो विरोध और गुस्से की अभूतपूर्व लहर उठी थी, उसके बाद केंद्र की ही तर्ज पर  मध्यप्रदेश ने भी इनकी रोकथाम के लिए महिला हेल्पलाइन सहित कई कदमों की घोषणा की थी लेकिन अमल के स्तर पर अभी भी हालत बहुत ही निराशाजनक है। राज्य सरकार को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि उसने महिलाओं के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए कई कदम उठाये हैैं जिनकी सारे देश में सराहना हो रही है लेकिन आखिर क्या कारण है कि महिलाओं और बच्चियों के यौन उत्पीडऩ की घटनाओं पर अंकुश लगाने में सरकार लगातार नाकामयाब हो रही है। सरकार की यह दलील कुछ हद तक सही हो सकती है कि आम तौर पर बच्चियों के यौन शोषण तथा बलात्कार में उनके करीबी रिश्तेदारों या परिचितों का हाथ होता है इसलिए इन्हें रोकना काफी मुश्किल होता है लेकिन पुलिस तथा प्रशासन द्वारा इस तरह की घटनाओं के प्रति बरती जाने वाली आपराधिक उदासीनता भी ऐसी घटनाओं को जाने अनजाने में बढ़ावा ही देती है। मध्यप्रदेश में यौन उत्पीडऩ के डरावने आंकड़े इसी हकीकत को दर्शाते हैैं। इस समय चाइल्ड रेप के खिलाफ सारे देश में गुस्से का सैलाब आ गया है। मौके की नजाकत को भांपते हुए शिवराज सरकार को पुलिस तथा प्रशासन को ऐसे मामलों में तत्परतापूर्वक कार्रवाई करने के सख्त निर्देश देने चाहिए और इस मामले में ढिलाई बरतने वालों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके अलावा सरकार को खुद ऐसे घृणित अपराधों के खिलाफ वातावरण बनाने के लिए एक गहन तथा व्यापक अभियान चलाना चाहिए तथा सामाजिक तथा सांस्कृतिक संगठनों को भी इसके खिलाफ गतिशील करना चाहिए ताकिहमारी नारी पूज्या संस्कृति को कलंकित करने वाले असभ्यता के इन अंधेरों पर विजय पाई जा सके।  

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