Tuesday, June 29, 2010

जरूरत है ऐसे और धमाकों की?

भोपाल के मोतिया तालाब मार्ग पर अवैध रूप से बनाई गई एक इमारत की दो मंजिलों को उड़ाने के लिए किया गया धमाका जिस तरह से मीडिया की सुर्खियों में है, उससे यह भ्रम होना स्वाभाविक है कि यह नगर निगम की भारी भरकम उपलब्धि है। लेकिन वास्तविकता कुछ और है। वैसे एक अपुष्टï सी खबर यह भी है कि इस बिल्डिंग के मालिक से नगर निगम अधिकारियों का सौदा नहीं पट पाया क्योंकि नगर निगम की गतिविधियों से दूर से वाकिफ लोगों को भी पता है कि यहां पैसे से कोई भी काम कराया जा सकता है। लोग इस घटना पर चुटकियां लेते हुए सुने जा सकते हैं कि शायद अधिकारियों की मांग कुछ ज्यादा रही होगी और इमारत के मालिक को यह कल्पना नहीं रही होगी कि नगर निगम उसकी बिल्डिंग की ही ऊपरी मंजिलों को धराशायी कर देगा। बहरहाल यदि नगर निगम ने अवैध निर्माण के खिलाफ इतना दुस्साहसिक कदम उठाया है तो वह बधाई एवं सराहना का पात्र है लेकिन क्या नगर निगम इस बात का स्पष्टï आश्वासन दे सकता है कि यह कार्रवाई अपने अंजाम तक पहुंचने तक लगातार जारी रहेगी। यह ऐसी शुरुआत है जिसे अंजाम पहुंचाना भोपाल के विकास ही नहीं, पर्यावरण के लिए भी जरूरी है। गौरतलब है कि करीब डेढ़-दो दशक पहले सिद्दीक हसन तालाब नंबर 2 का अस्तित्व हुआ करता था और बरसात की ऋतु में तो इसमें उठती लहरें वहां से गुजरने वाले लोगों को आनंदित करती थीं लेकिन भूमाफियाओं ने साजिश के तहत इसमें जल कुंभी उगाकर इसके अस्तित्व को ही खत्म कर दिया और फिर इस तालाब को पूरकर उसमें इमारतें बना दी तथा भारी भरकम दामों में उन्हें बेच दिया। इससे इस क्षेत्र के पर्यावरण को जो क्षति पहुंची है, वह अपूरणीय ही है। नगर निगम एक्ट 1956 के तहत नदी, तालाब, कुए बावडिय़ों जैसे जल स्रोतों को सार्वजनिक संपत्ति माना गया है। इसके बावजूद सिद्दीक हसन तालाब की इस खामोश मौत पर राज्य सरकार एवं नगर निगम की सोची समझी चुप्पी उनके इरादों को शक के दायरे में खड़ा करती है। जहां तक अवैध निर्माण की बात है, न केवल इस क्षेत्र में बल्कि पूरे शहर में ही पिछले कुछ समय से अवैध निर्माण की बाढ़ आ गई है और नगर निगम की आंखों में बंधी पट्टïी खुलने का नाम ही नहीं लेती। दरअसल शहर में इन अवैध निर्माणकर्ताओं का हौसला इसलिए बढ़ गया है क्योंकि इन्हें कहीं न कहीं सरकार तथा सत्तारूढ़ दल से जुड़े नेताओं तथा कुछ भ्रष्टï नौकरशाहों का उन्हें संरक्षण प्राप्त है। इतना ही नहीं, कुछ मामलों में तो खुद राज्य के मंत्री एवं विधायक ही सीधे या परोक्ष रूप से अवैध कालोनियों के निर्माण मेंं लिप्त हैं। मसलन कोलार क्षेत्र में सत्तारूढ़ दल के एक विधायक द्वारा बड़े पैमाने पर कोलार बांध के निकट अवैध निर्माण किया जा रहा है। यह सिर्फ एक बानगी है जो यही संकेत देती है कि भोपाल शहर में इस तरह के अवैध निर्माण अंधाधुंध तरीके से जारी हैं और अभी तक तो उन पर कोई सिलसिलेवार कार्रवाई नहीं की जा सकी है। ऐसे में सवाल यही है कि क्या ऐसे विधायकों तथा नेताओं से टकराने और उनके अवैध निर्माण को तोडऩे का साहस नगर निगम में है। इस मामले में राज्य सरकार को भी उसके उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि अवैध रूप से निर्माणाधीन भवनों तथा कालोनियों का काला कारोबार राजनीतिक हस्तक्षेप को समाप्त किये नहीं रोका जा सकता और राज्य सरकार की इच्छा शक्ति के बिना यह संभव नहीं है। खुद मुख्यमंत्री की एक ईमानदार राजनीतिज्ञ के रूप में प्रतिष्ठïा है अत: उम्मीद की जानी चाहिए कि वे इस दुष्चक्र को तोडऩे के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति का परिचय देंगे और भोपाल के विकास में सार्थक नेतृत्व प्रदान करेंगे।
सर्वदमन पाठक

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