Friday, February 5, 2010

मध्यप्रदेश में भी चलाया जाएभ्रष्टïाचार के खिलाफ ब्रह्मïास्त्रअपनी ईमानदार छवि के लिए पहचाने जाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने देश के विकास और खुशहाली को निगल रहे भ्रष्टïाचार पर अपना ब्रह्मïास्त्र चला दिया है। मंत्रियों एवं मुख्यमंत्रियों को लिखे तदाशय के पत्र में उन्होंने इस सिलसिले में जो उपाय सुझाए हैं, वे मंत्री स्तरीय भ्रष्टïाचार के खिलाफ एक सशक्त मोर्चेबंदी माने जा सकते हैं और यदि बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के इसका शब्दश: पालन किया जाए तो भ्रष्टïाचार नियंत्रण में यह एक दूरगामी कदम सिद्ध हो सकता है। उन्होंने सभी मंत्रियों- मुख्यमंत्रियों से उनकी तथा उनके सगे संबंधियों की चल अचल संपत्ति व व्यावयायिक हितों का खुलासा करने के लिए कहा है। लायसेंस, परमिट और लीज कबाडऩे में जुटे रहने वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के साथ साठगांठ के मामले में अतीत में कई मंत्री भी दागदार रहे हैं। इस दृष्टिï से ऐसे प्रतिष्ठïानों से ताल्लुक न रखने की प्रधानमंत्री की सलाह भी काफी वजन रखती है। उपहार के जरिये भ्रष्टïाचार की फल फूल रही परंपरा पर प्रभावी अंकुश लगाने की गरज से उन्होंने इन मंत्रियों- मुख्यमंत्रियों को लगे हाथों यह नायाब सलाह भी दे डाली है कि वे अपने करीबी रिश्तेदारों को छ$ोड़कर अन्य किसी से भी तोहफे कबूल न करें। इसके साथ ही मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में कई आला अफसरों पर आयकर के छापों से केंद्र ने यह संकेत भी दिया है कि भ्रष्टïाचारी नौकरशाहों की भी अब खैर नहीं है। प्रधानमंत्री की इस सार्थक पहल ने अन्य राज्यों के लिए एक ऐसी मिसाल पेश की है जो अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय हो सकती है। मध्यप्रदेश जैसे राज्य में जहां पिछली तथा वर्तमान सरकारों के कई कद्दावर मंत्रियों तक पर भ्रष्टïाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं, ऐसी प्रभावी मुहिम वक्त का तकाजा है। प्रधानमंत्री की तरह राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की ईमानदार छवि एवं निष्कंटक नेतृत्व ऐसी मुहिम में उनकी ताकत बन सकता है। शिवराज सिंह प्रधानमंत्री के इस पत्र की ही तर्ज पर राज्य में मंत्रियों के भ्रष्टïाचार पर नकेल कसने की प्रभावी कवायद करें तो जहां एक ओर उनकी सरकार के जनकल्याणकारी कार्यों को गति मिलेगी वहीं उनके नेतृत्व में जनविश्वास बढ़ेगा। शर्त यही है कि इस मुहिम के लिए बिना किसी भेदभाव के चलाया जाए। उसके लिए बाकायदा एक सुनियोजित रणनीति बनाई जानी चाहिए और उसपर प्रभावी तरीके से अमल किया जाए। इस रणनीति के शुरुआती चरण में मंत्रियों एवं उनके करीबी रिश्तेदारों की चल अचल संपत्ति की समयबद्ध घोषणा अनिवार्य की जाए और उनका मूल्यांकन भी किया जाए। लेकिन इसके साथ ही उन तमाम माध्यमों पर भी पाबंदी लगाई जानी चाहिए जिनके जरिये मंत्री बेशुमार दौलत हासिल कर कुछ ही समय में समृद्धि के झूले में झूलने लगते हैं। बिना नौकरशाहों के सहयोग के मंत्रियों के भ्रष्टïाचार की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि रातोंरात संपन्नता की मंत्रियों की महत्वाकांक्षाओं को रास्ता यही नौकरशाह दिखाते हैं। नौकरशाहों की आलीशान कोठियां और व्यवसायों में इनकी हिस्सेदारी की छानबीन से यह आसानी से सिद्ध हो सकता है कि भ्रष्टïाचार के इस खेल में वे भी उतने ही बड़े खिलाड़ी हंै। इसलिए भ्रष्टï नौकरशाहों की जांच एवं उनपर समुचित कार्रवाई सरकार एवं प्रशासन दोनों के आचरण के शुद्धीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। सिर्फ सरकार के भरोसे राज्य में भ्रष्टïाचार मुक्त शासन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसके लिए सत्तारूढ़ पार्टी को भी आगे आना होगा और उन सभी मंत्रियों को यह साफ संकेत देना होगा कि यदि उन्होंने अपने तौर तरीके नहीं बदले तो उनका राजनीतिक केरियर अंधकार में पड़ सकता है।हमें यह खुशफहमी हो सकती है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हम अपने वोटों की ताकत से सरकारें चुनने और उनके जरिये देश की तकदीर बदलने की ताकत रखते हैं लेकिन त्रासद तथ्य यही है कि हम चुनाव तक हमारी गणेश परिक्रमा करने वाले ये नेता सत्ता पाते ही हम मतदाताओं को भूल जाते हैं और विकास की मद में स्वीकृत होने वाली अधिकांश राशि भ्रष्टïाचार के जरिये इनकी तिजोरियों में जमा होती रहती है। परिणाम यह होता है कि हम विकास एवं खुशहाली को तरसते हुए अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं। भ्रष्टïाचार की बहती गंगा में डुबकी लगाने वालों में सरकारी मंत्री या सत्तारुढ़ दल के विधायक व नेता ही नहीं बल्कि आला अफसर भी पूरे श्रद्धाभाव से शामिल होते हैं। देश प्रदेश के सार्थक विकास के लिए सरकार के आचरण को संदेह के दायरे से मुक्त करना प्रकारांतर से लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करना ही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी भ्रष्टïाचार मुक्ति के यज्ञ में अपनी हिस्सेदारी का परिचय देगी।
-सर्वदमन पाठक

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