शरद पवार, केंद्रीय कृषिमंत्री का कहना है-
मूल्य नीति पर निर्णय करने वाला मैं अकेला व्यक्ति नहीं हूं। कीमतों पर नीतिगत फैसला मंत्रिमंडल में सामूहिक रूप से लिया जाता है जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल होते हैं। हालांकि कृषि उत्पादों की मूल्य वृद्धि से किसानों को फायदा ही होता है।
क्या कहना चाहते हैं पवार?
मूल्यवृद्धि को लेकर राजनीतिक दलों एवं मीडिया द्वारा सिर्फ उन पर निशाना साधना उचित नहीं है क्योंकि परामर्श की पूरी प्रक्रिया के बाद ही मूल्य बढ़ाने का फैसला लिया जाता है और विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए जाने वाले इन फैसलों में खुद प्रधानमंत्री भी शामिल होते हैं। हालांकि उनका मानना है कि कृषि उत्पादों में मूल्यवृद्धि से किसान लाभान्वित होते हैं।
क्या सोचते हैं लोग?
यह कोई संयोग नहीं है कि इधर पवार विभिन्न कृषि उत्पादों के मूल्यों में वृद्धि की भविष्यवाणी करते हैं और उधर बाजार में इनके दामों में उछाल आ जाता है। दाल, चीनी तथा गेहूं में हुई असाधारण मूल्यवृद्धि इसका प्रमाण है। अब उन्होंने दूध के मूल्य बढऩे की भविष्यवाणी कर दी है और इस तरह बच्चों के इस भोजन के भी महंगे होने का संकेत दे दिया है। यह आश्चर्यजनक ही है कि वे इस मूल्यवृद्धि को किसानों के हित में करार देकर इसका औचित्य सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं। उनके इस रुख से यही प्रतीत होता है कि वे लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी के लिए उपयोगी वस्तुओं की अंधाधुंध मूल्यवृद्धि को गलत नहीं मानते। वास्तविकता यह है कि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रहे दामों से आम आदमी जितना परेशान आज है, उतना कभी नहीं रहा। इससे किसानों को लाभ होने के पवार के दावे का खोखलापन इसी तथ्य से उजागर होता है कि किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला पिछले साल भी पहले की तरह ही जारी रहा है।यह भी अजीब विरोधाभास है कि पवार मूल्यवृद्धि के मामले में तो ज्योतिषी बन जाते हैं लेकिन जब उनसे पूछा जाता है कि मूल्य कब घटेंगे तो वे मासूमियत के साथ कह देते हैं कि वे ज्योतिषी नहीं हैं। हकीकत यह है कि उनकी मूल्यवृद्धि संबंधी भविष्यवाणी से देश के व्यापारियों की महंगाई बढ़ाने की प्रवृत्ति को सरकार की ओर से अचानक बढ़ावा मिल जाता है और कीमतों में उछाल इसी प्रवृत्ति का ही परिणाम होता है। सरकार को अपने ही मंत्री की मूल्यवृद्धि संबंधी बयानबाजी और उसके फलस्वरूप बढऩे वाली कीमतों से राष्टï्रव्यापी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अत: सरकार को चाहिए कि वह कृषिमंत्री पवार को, जिनके बयान मूल्यवृद्धि के लिए उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं, नियंत्रित करे और यदि यह संभव न हो तो उनसे मुक्ति पा ले।
प्रस्तुति: सर्वदमन पाठक
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