यह कोई रहस्य नहीं है कि सरकारों द्वारा आम तौर पर तो जनता के हितों की रक्षा की कसमें खाई जाती हैं और सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों में इसका भरपूर दिखावा भी किया जाता है कि उनका उद्देश्य सिर्फ आम आदमी का कल्याण ही है लेकिन वास्तविकता यह है कि भ्रष्टïाचार के कारण इन कार्यक्रमों के लिए निर्धारित बजट का काफी छोटा हिस्सा ही इसमें इस्तेमाल हो पाता है और बाकी हिस्से की राशि नौकरशाहों तथा जनप्रतिनिधियों द्वारा बंदरबांट कर ली जाती है। इसका स्वाभाविक परिणाम यही होता है कि मंत्री, विधायक तथा सत्ता से जुड़े तमाम नेताओं के साथ ही आला अफसरों की तिजोरियां भ्रष्टïाचार की इस धनराशि से लगातार भरती रहती हैं और वे संपन्नता की जिंदगी जीते हैं जबकि प्रदेश की आम जनता विकास के लाभ से वंचित रहती है और बदहाली एवं कंगाली का जीवन जीना उसकी मजबूरी होती है। भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपने भोपाल दौरे के दौरान नगरीय निकायों के निर्वाचित पदाधिकारियों के सम्मेलन में जनप्रतिनिधियों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टïाचार पर चिंता जता कर इसी समस्या की ओर संकेत किया है। उन्होंने इन जनप्रतिनिधियों को इस मामले में आगाह करते हुए कहा कि वे यदि खुद भ्रष्टï होंगे तो वे अन्यों के भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा पाएंगे। इस सम्मेलन में अन्य प्रादेशिक कद्दावर भाजपा नेताओं ने चिंता की इस बहती गंगा में हाथ धोकर यह दिखाने का भरपूर प्रयास किया कि वे खुद नैतिकता के कितने बड़े हिमायती हैं। इस सम्मेलन में निष्ठïा एवं सेवा का पाठ भी इन जनप्रतिनिधियों को भरपूर पढ़ाया गया। यह फिलहाल भविष्य के गर्भ में है कि आड़वाणी के इस भाषण से ये जनप्रतिनिधि नैतिकता एवं जनसेवा के लिए किस हद तक संकल्पबद्ध होते हैं और राज्य की भाजपा सरकार भ्रष्टाचार पर आड़वाणी की इस ंिचंता को खुद कितनी गंभीरता से लेती है लेकिन केंद्र सरकार ने शायद आड़वाणी की चिंता को कहीं ज्यादा संजीदगी से ले लिया है। जहां तक नौकरशाही का सवाल है, केंद्र सरकार ने उनके भ्रष्टïाचार को नियंत्रित करने का काम शुरू कर दिया है। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए केंद्र सरकार ने अचल संपत्ति का ब्योरा देना अनिवार्य कर दिया है। लेकिन भ्रष्टïाचार के नियंत्रण के लिए यह एक छोटा सा कदम है। दरअसल इसमें अन्य अधिकारियों तथा राजनीतिक नेताओं के भ्रष्टïाचार पर अंकुश लगाना बहुत ही जरूरी है। केंद्र सरकार को हर मंत्री एवं सांसद की संपत्ति का वार्षिक ब्योरा सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध कराने की पहल करनी चाहिए। इस मामले में राज्य की भाजपा सरकार को भी अपनी जवाबदेही निभानी होगी और यह सिद्ध करना होगा कि वह सिर्फ जुबानी जमाखर्च नहीं करती बल्कि ठोस कदम भी उठाती है। गौरतलब है कि पहले यह प्रावधान था कि राज्य के मंत्रियों को अपनी संपत्ति का वार्षिक ब्योरा प्रस्तुत करना होगा लेकिन शिवराज सिंह के पिछले कार्यकाल में इस प्रावधान को शिथिल कर दिया गया था। अब राज्य सरकार को इस प्रावधान को सख्ती से लागू करना चाहिए ताकि वह इस मामले में पारदर्शिता का दावा कर सके। भाजपा यदि वास्तव में जनविश्वास की कसौटी पर खरी उतरना चाहती है तो उसे राजनीति में नैतिकता एवं ईमानदारी के लिए संकल्पबद्धता दिखानी होगी ताकि जन कल्याण के लिए बनाये जाने वाले कार्यक्रमों का लाभ जनता को मिल सके।
-सर्वदमन पाठक
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