Tuesday, June 29, 2010
भोपाल गैस त्रासदी फैसला : देर भी अंधेर भी
से करीब ढाई दशक पहले हंसती गाती जिंदगी से सराबोर झीलों के शहर को आंसुओं के समुंदर में तब्दील कर देने वाली यूका मिक गैस रिसन त्रासदी के फैसले से भोपाल में गुस्से की लहर सी दौड़ गई है। यह फैसला भोपालवासियों को हत्प्रभ एवं निराश करने वाला और उसके घावों पर नमक छिड़कने वाला है। पंद्रह हजार से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला देने और लाखों लोगों को मौत से भी बदतर जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर देने वाली विश्व की इस भयावहतम औद्योगिक दुर्घटना में आरोपी बनाए गए मौत के सौदागर पच्चीस साल के लंबे इंतजार के बाद दो साल की मामूली सजा पाएं और सिर्फ पच्चीस मिनट में जमानत पर मुक्त कर दिये जाएं, यह तो त्रासदी की पीड़ा से कराहती भोपाल की जनता की भावनाओं के साथ न्याय के नाम पर किया गया क्रूर मजाक ही है। जिन आरोपियों के हाथ हजारों लोगों के खून से रंगे हों, जिनकी वजह से लाखों लोगों की जिंदगी दोजख सी बन गई हो, जिन्हें फांसी देने की बददुआ गैस त्रासदी की हर बरसी पर गूंजती रहती हो, उन्हें इस फैसले से मिली राहत भोपालवासियों के लिए शर्म का सबब बन गई है, लेकिन यह दुनिया भर के उन तमाम लोगों के लिए भी किसी शर्मनाक हादसे से कम नहीं है, जिन्होंने खुद आगे बढ़कर भोपाल के गैसपीडि़तों की लड़ाई में समर्थन ही नहीं शिरकत भी की थी। लेकिन इसके लिए अदालत को दोषी मानना उसके साथ नाइंसाफी ही होगी, क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनी यूका के साथ पर्दे के पीछे केंद्र सरकार एवं उसके जरिये सीबीआई की घृणित मिलीभगत ही भोपाल के लोगों को इंसाफ से वंचित करने के लिए जिम्मेदार है। ऐतिहासिक घटनाक्रम इस बात का गवाह है कि दुर्घटना के बाद मूलत: इस कंपनी के खिलाफ 304( पार्ट 2) के तहत मुकदमा कायम किया गया था, जिसमें आरोपियों को आजन्म कारावास का प्रावधान था, लेकिन सीबीआई ने कंपनी पर लगाई गई मूल धारा को बदलकर धारा 304(ए) कर दिया, जिसके बाद न्यायालय के हाथ बंध गए क्योंकि नई धारा के तहत दो साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान ही नहीं था। चूंकि यह विश्वास करना मुश्किल है कि सीबीआई केंद्र सरकार के इशारे के बिना यह जुर्रत कर सकती है इसलिए यह निष्कर्ष स्वाभाविक ही है कि बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ केंद्र की साठगांठ का इस फैसले में अहम रोल रहा है। यह साठगांठ भोपाल के गैस पीडि़तों को मिलने वाले मुआवजे में कटौती के रूप में भी सामने आई है। ठ्ठ शेष पृष्ठï 9 परतिस पर केंद्रीय कानून मंत्री का यह बयान गैसपीडि़तों को व्यंगबाण जैसा लगता है जिसमें वह कहते हैैं कि भोपाल में न्याय दफन हो गया है।यह फैसला मौत के सौदागरों को उनके किये की पूरी पूरी सजा दिलाने की गैसपीडि़तों की न्यायपूर्ण इच्छा का गला घोंटता है और इस फैसले को गैस पीडि़तों ने ऊंची अदालत में चुनौती देने का जो निर्णय लिया है, वह इस बात का परिचायक है कि गैसपीडि़त न्याय की इस लड़ाई को तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिए कृतसंकल्प हैं। यूनियन कार्बाइड के खिलाफ इंसाफ की इस जंग में कामयाबी इसलिए भी जरूरी है ताकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा उन्हें संरक्षण देने वाली विश्व की बड़ी शक्तियों के हाथों राष्टï्रीय हितों को गिरवी रखने वाली सरकारों एवं उनके ध्वजवाहक नेताओं को बेनकाब किया जा सके और देश को इस दुष्चक्र से मुक्ति दिलाई जा सके। बहरहाल गैसपीडि़तों के पीठ पर बहुराष्टï्रीय कंपनियों के साथ साजिश रचकर जिन जयचंदी ताकतों ने छुरा भोंका है, भोपाल शायद उन्हें कभी माफ नही कर सकेगा।-सर्वदमन पाठक
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