आंतरिक खतरों से जूझता पाकिस्तान
सर्वदमन पाठक
पाकिस्तान के तीखे तेवर अचानक ही काफूर हो गए हैैं। अभी दो तीन पहले तक आंखें तरेरने वाला पाकिस्तान अब कसमें खाने लगा है कि उसने अपनी सेना को नियंत्रण रेखा का उल्लंघन न करने तथा संघर्ष विराम का सख्ती से पालन करने का आदेश दे दिया है। इतना ही नहीं, सेना की छुïिट्टयां रद्द करने तथा सीमा पर सेना के जमावड़े की कोशिश करने वाला पाकिस्तान अब अचानक शांति और बातचीत की जरूरत जताने लगा है। ऐसा नहीं है कि एक दो दिन में ही पाकिस्तान का कोई हृदय परिवर्तन हो गया है बल्कि सच तो यह है कि अपनी आंतरिक मजबूरियों की वजह से उसने गिरगिट की तरह रंग बदला है। दरअसल वहां की चुनी हुई सरकार को एक ऐसी चुनौती से रूबरू होना पड़ रहा है जिसकी गंभीरता की उसे भी कल्पना नहीं थी। कनाडा में कुछ समय पहले तक आराम फरमा रहे मौलवी कादरी ने अचानक ही पाकिस्तान में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम छेड़कर सबको चौंका दिया है। संसद के बाहर धरना देकर सरकार को समझौते के लिए मजबूर करने वाले इस मौलवी ने लगभग दो लाख लोगों का मार्च निकाल कर अपनी ताकत का अहसास करा दिया है। कुछ लोग भारत में अन्ना हजारे के नेतृत्व में चलाए जा रहे आंदोलन से इस धरने की तुलना करते भी देखे जा सकते हैैं लेकिन अन्ना हजारे के आंदोलन में तथा कादरी के आंदोलन में जमीन आसमान का फर्क है। अन्ना का आंदोलन लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए नहीं बल्कि उसे मजबूत करने के लिए था लेकिन कादरी का आंदोलन लोकतंत्र की जड़ों पर ही प्रहार के रूप में देखा जा सकता है। वास्तविकता यह है कि वे पाकिस्तान में पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के काफी करीब माने जाते हैैं। मुशर्रफ के राष्ट्रपतित्वकाल में ही वे पाकिस्तानी संसद के सदस्य थे। उनकी पाकिस्तान वापसी को देश की सत्ता पुन: हासिल करने के मुशर्रफ के सपने से जोड़कर भी देखा जा रहा है। पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष कयानी की वजह से उनकी पाकिस्तान वापसी संभव हो सकी है क्योंकि खुद कयानी को मुशर्रफ का नजदीकी माना जाता रहा है।
पाकिस्तान में सत्तारूढ़ गठबंधन के मंत्रियों ही नहीं, बल्कि विपक्षी सांसदों पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैैं। पाकिस्तानी संसद के 70 फीसदी सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैैं। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों जिस तरह से सख्ती दिखाई, उसने जहां एक प्रधानमंत्री को पद से हाथ धोना पड़ा वहीं दूसरे प्रधानमंत्री पर भी संकट मंडरा रहा है। कादरी इसे मुद्दा बनाकर संसद भंग करने तथा नए चुनाव कराने की मांग कर रहे हैैं। यही वजह है कि कादरी के आंदोलन को लोगों का भारी समर्थन प्राप्त हो रहा है। लेकिन उनके बयान उनके इरादों की पोल खोल देते हैैं। वे न केवल सेना और सुप्रीम कोर्ट की तारीफ करते नहीं थकते, बल्कि वे इस बात की भी यदा कदा वकालत करते नजर आते हैैं कि सेना की देखरेख में अंतरिम सरकार का गठन किया जा सकता है। इससे यह अंदाजा लगाना स्वाभाविक है कि उनकी मुहिम को परोक्ष रूप से सेना का समर्थन हासिल है हालांकि वे लगातार इस बात से इंकार करते रहे हैैं। इन तथ्यों के मद्देनजर कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों का यह डर भी निराधार नहीं है कि कहींवे सेना के एजेंट के रूप में तो कार्य नहीं कर रहे हैैं।
हकीकत चाहे जो हो लेकिन कादरी का आंदोलन पाकिस्तान में लोकतंत्र के लिए खतरा बनकर उभर रहा है और पाकिस्तान में तख्तापलट तथा सेना के दखल को इस आंदोलन की एक संभावित परिणति पर देखा जा रहा है। आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना का समर्थन एक जग जाहिर तथ्य है। इस परिप्रेक्ष्य में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि वहां लोकतंत्र की विफलता को बहाना बनाकर सेना एक बार फिर सत्ता हथिया ले और दुनिया को दहशतगर्दी का नया दौर देखना पड़े।