Monday, February 4, 2013


किसानों को रिझाने की प्रभावी पहल

सर्वदमन पाठक

किसान पंचायत में उमड़ा किसानों का सैलाब देखकर भाजपा का गद्गद् होना स्वाभाविक ही है। दरअसल चुनावी साल में प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैैंक किसानों को आकर्षित करने के उद्देश्य से शिवराज सरकार द्वारा आयोजित किये गए इस समागम की सफलता का यह जीता जागता प्रमाण है। इसकी एक खास विशेषता यह भी थी कि यह पंचायत भाजपा के दो प्रमुख किसान पुत्र नेताओं- पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गहरी जुगलबंदी की साक्षी बन कर उभरी। जैसी कि कल्पना की जा रही थी, इस मौके को भुनाते हुए शिवराज सिंह ने किसानों को लुभाने के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी। गेहूं को 1500 रुपए  क्विंटल समर्थन मूल्य पर खरीदने तथा किसानों को डेढ़ सौ रुपए क्विंटल बोनस देने के साथ ही मई से सभी गांवों को चौबीस घंटे बिजली देने का वायदा कर मुख्यमंत्री ने किसानों की वाहवाही लूटने का जो आगाज किया, आधुनिक कृषि तकनीक की जानकारी  के लिए किसानों की विदेश भ्रमण योजना सहित अन्य कई महत्वपूर्ण घोषणाओं से इसे तारीफ के तार्किक अंजाम तक पहुंचा दिया। लेकिन वे इस पंचायत में अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने के साथ ही केंद्र पर निशाना साधना भी नहीं भूले। उन्होंने खाद की बढ़ी हुई कीमतों तथा बाढ़ प्रभावितों किसानों के मुआवजे के लिए तय किये गए केंद्र के मापदंड को लेकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया। मुख्यमंत्री की किसानों के बीच लोकप्रियता की इस मिसाल से प्रभावित राजनाथ सिंह ने जहां एक ओर राज्य सरकार के कामकाज की भूरि भूरि सराहना की वहीं वे भाजपा कार्यकर्ताओं को अतिआत्मविश्वास में न रहने की नसीहत देना भी नहीं भूले। भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राज्य में कृषि विकास दर 18 फीसदी से ज्यादा पहुंचा देने तथा जाने सिंचाई का रकबा 21 लाख हेक्टेयर तक बढ़ा देने के लिए राज्य सरकार की तारीफों के पुल बांध दिये। इस आयोजन में किसानों की भारी उपस्थिति देखकर निश्चित ही भाजपा का दिल बल्लियों उछल रहा होगा क्योंकि शहरों में तो पहले से ही भाजपा का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा है लेकिन पिछले कुछ समय से राज्य के विभिन्न अंचलों में चल रहे किसान आंदोलन उसके  लिए परेशानी का सबब बने हुए थे। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से कांग्र्रेस किसानों के इस असंतोष को भुनाने के लिए किसान सम्मेलनों के आयोजन के जरिये किसानों के बीच राज्य सरकार की नीतियों तथा कार्यक्रमों के खिलाफ प्रचार अभियान चला रही थी। कटनी सहित प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर किसानों की भूमि के जबरिया अधिग्र्रहण के खिलाफ लोग लामबंद हो रहे थे और ये आंदोलन इतने उग्र्र थे कि पुलिस  तथा प्रशासन को ताकत के बल पर इन्हें दबाने पर मजबूर होना पड़ रहा था। भोपाल के आसपास भी किसान आंदोलन को कुचलने के लिए ताकत का इस्तेमाल किया गया था जिससे किसानों के एक वर्ग में धीरे धीरे सरकार विरोधी माहौल बनने की आशंका जोर पकडऩे लगी थी। ऐसे समय किसान पंचायत के सफल आयोजन से राज्य की भाजपा सरकार और पार्टी, दोनों ने ही राहत की सांस ली है। लेकिन किसानों के समर्थन के मामले में यह तो एक पड़ाव है, मंजिल नहीं। यह सच है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की किसान हितैषी नीतियां तथा कार्यक्रम सरकार के प्रति किसानों में भरोसा जगाते रहे हैैं लेकिन इन नीतियों तथा कार्यक्रम को ईमानदारी के साथ अमलीजामा पहनाना भी उतना ही जरूरी है तभी सरकार को किसानों का पूरा पूरा विश्वास हासिल हो पाएगा और एक बार फिर भाजपा सरकार बनाने का उसका सपना साकार हो पाएगा। इस दिशा में राज्य सरकार को अभी काफी कुछ करना बाकी है।

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