टकराव की गरमी में झुलसता बसंत
सर्वदमन पाठक
वैसे तो बसंत पंचमी खुशनुमा मौसम की अंगड़ाई का ही दूसरा नाम है लेकिन धार में शासन प्रशासन को एक बार फिर यह दिन आते ही बसंत के मौसम में तपती गर्मी का अहसास होने लगा है। बसंत पंचमी पर शुक्रवार के संयोग ने भोजशाला में राजनीति का पारा सातवेंं आसमान पर पहुंचा दिया है। हिंदू संगठनों ने इस दिन भोजशाला में सिर्फ वाग्देवी की पूजा की घोषणा की है जबकि प्रशासन चाहता है कि इस दिन वहां नमाज भी हो। प्रशासन ने वहां नमाज के लिए दो घंटे का समय तय किया है जबकि बाकी समय भोजशाला में वाग्देवी की पूजा की जा सकेगी। प्रशासन ने पूजा और नमाज को निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए भोजशाला सहित समूचे धार में पुलिस बल का भारी बंदोबस्त किया है। आसपास के जिलों से भी इस प्रयोजन के लिए पुलिस बल बुला लिया गया है। राज्य सरकार इस मामले में कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगभग एक दर्जन हिंदू नेताओं को एहतियात के तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया है जिनमें आरएसएस के पूर्व प्रचारक भी शामिल हैैं। पूर्व में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि बसंत पंचमी दो दिन पडऩे के कारण गुरुवार और शुक्रवार दोनों ही दिन वाग्देवी का पूजन किया जाएगा और इस कारण प्रशासन को यह लग रहा था कि शुक्रवार को वाग्देवी की पूजा पर दबाव कुछ कम हो जाएगा लेकिन हिंदू संगठनों ने घोषणा की है कि वे शुक्रवार को ही भोजशाला में वाग्देवी की पूजा करेंगे। कुछ संत चाहते हैैं कि वहां सिर्फ वाग्देवी की पूजा हो, नमाज न हो। इनमें वे संत भी शामिल हैैं जो विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हुए हैैं। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि विश्व हिंदू परिषद आरएसएस का ही एक आनुषांगिक संगठन है। यह समझना कठिन नहीं है कि संघ अपनी राजनीतिक शाखा भाजपा को चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए अपनी धार्मिक शाखा विहिप के जरिये हिंदुत्व का वातावरण बनाने की जो कोशिश कर रहा है, यह उसी का एक हिस्सा है।
इस समूचे परिदृश्य को देखकर यह भ्रम हो सकता है कि भोजशाला को लेकर सरकार और संघ परिवार के एक वर्ग के बीच टकराव की स्थिति बन गई है लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है। दरअसल मध्यप्रदेश में सरकार और हिंदू संगठनों के बीच टकराव का यह जो कृत्रिम वातावरण बनाया जा रहा है, वह संघ परिवार का अंदरूनी मामला है। एक ही परिवार में आखिर झगड़ा कैसा? यह संघ की वैसी ही नीति का फलितार्थ है जिसे संघ के नेता बायफोकल कहते हैैं। इसकी रणनीति कुंभ में ही बन चुकी है जिसके तहत विहिप जहां तहां हिंदुत्व की लहर पैदा करेगी और भाजपा सरकारें उसके साथ जुबानी समर्थन व्यक्त करेंगी लेकिन विकास तथा सद्भाव के सुशासन को अपनी चुनावी मुहिम का आधार बनाएंगी। इस तरह जहां एक ओर हिंदू वोटों का भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण करने की भरपूर कोशिश होगी वहीं राजग के अन्य सहयोगियों को भी एकजुट रखा जा सकेगा। भाजपा खुद भी इस वास्तविकता को जानती है कि वह अकेले दम पर केंद्र में सत्ता में नहीं आ सकती, इसलिए यह द्विमुखी रणनीति तैयार की गई है। कहने का लब्बोलुवाब यह है कि धार स्थित भोजशाला में सरकार एवं हिंदू संगठनों के बीच टकराव उनकी नूरा कुश्ती है। लेकिन इसका एक सार्थक निष्कर्ष यह भी है कि शिवराज सरकार किसी भी हालत में भोजशाला में वाग्देवी की पूजा और नमाज, दोनों को ही निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए कृतसंकल्प है। यह शिवराज सिंह की भेदभावरहित प्रशासन की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है जिसकी तारीफ की जानी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि शिवराज सरकार भोजशाला में किसी भी सूरत में शांति एवं सद्भाव का वातावरण कायम रखेगी और शांति के टापू के रूप में प्रतिष्ठित इस प्रदेश की गरिमा को अक्षुण्ण रखेगी।
No comments:
Post a Comment