प्रदेश चर्चा
कैसे नर्मदा-पूजक हैैं हम?
सर्वदमन पाठक
रविवार को पूरे प्रदेश में नर्मदा जयंती काफी उत्साह के साथ मनाई गई जिसमें राजनीति तथा समाज से जुड़ी हस्तियों के साथ ही विश्व स्तरीय वैज्ञानिकों की भी भागीदारी रही। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक तथा होशंगाबाद के सेठानी घाट पर इस कार्यक्रम ने शिरकत कर लोगों को मध्यप्रदेश की लाइफ लाइन नर्मदा को शुद्ध रखने का संकल्प दिलाया और सरकार की ओर से यह भरोसा भी दिया कि वह नर्मदा के शुद्धीकरण में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। ओंकारेश्वर में भी लाखों लोगों ने नर्मदा जयंती पर मां नर्मदा का अभिषेक कर उनकी स्तुति की। संस्कारधानी होने के नाते भोपाल नगरी इस मामले कैसे पीछे रहती। यहां भी नर्मदा जयंती के औपचारिक कार्यक्रम के साथ एक महत्वपूर्ण आयोजन विज्ञान भवन में हुआ जहां विश्व के कई जाने माने वैज्ञानिकों ने नर्मदा को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए कई उपायों का सुझाव दिया। वैसे तो नर्मदा जयंती पर प्रदेश में लगभग हर वर्ष कार्यक्रमों के आयोजन की परंपरा रही है लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद से इस आयोजन की भव्यता बढ़ी है इसमें कोई शक ही नहीं है। भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक होने के दावा करने वाली भाजपा के कार्यकाल कमें हिंदू संस्कृति से जुड़े आयोजनों को जो महत्ता मिली है, नर्मदा जयंती का राज्यव्यापी आयोजन भी इसी का एक प्रमाण है। चूंकि यह चुनाव वर्ष है इसलिए इस आयोजन के जरिये सरकार अपने वोट बैैंक को रिझाये, इसमें कुछ भी अस्वाभाविक या अनुचित नहीं है। दरअसल शिवराज सरकार के कार्यकाल में नर्मदा के शुद्धीकरण के लिए जो जनचेतना जागी है, सरकार उसके लिए बधाई की पात्र है। लेकिन सिर्फ इतने से ही राज्य सरकार की भूमिका की इतिश्री नहीं हो जाती। कमोवेश हर साल नर्मदा जयंती के आयोजन में सरकार और जनता की श्रद्धापूर्ण भागीदारी होती ही है लेकिन सवाल यही है कि नर्मदा के शुद्धीकरण की दृष्टि से इन आयोजनों का क्या फलितार्थ रहा है। जिस अमरकंटक में शिवराज सिंह नर्मदा जयंती मना रहे थे और उनकी धर्मपत्नी साधना सिंह नर्मदा को 1100 मीटर की चुनरी चढ़ा रही थीं, वहीं से नर्मदा के गंभीर प्रदूषण का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस क्षेत्र की बाक्साइट की खदानों से अधिकाधिक दोहन के कारण यहां के जंगलों का भी सफाया काफी हद तक किया गया है जिससे नर्मदा अपने उद्गम स्थल से आगे बढ़ते ही प्रदूषित होने लगती है। इसके अलावा औद्योगीकरण की अंधी दौड़ ने भी नर्मदा के प्रदूषण में काफी इजाफा किया है। नर्मदा में औद्योगिक कचरा डालने के कारण उसका पानी काफी प्रदूषित होता है। नर्मदा किनारे रहने वाले लोगों का वह वर्ग भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है जो जागरूकता एवं जानकारी के अभाव में नर्मदा में प्रदूषित वस्तुओं को छोड़ देता है।
इन सभी कारणों से कई स्थानों पर तो नर्मदा इतनी प्रदूषित होती है कि उसके जल से आचमन तक नहीं किया जा सकता। पिछले सभी नर्मदा जयंती आयोजनों में नर्मदा के शुद्धीकरण का संकल्प लिया जाता है लेकिन अभी तक इस सिलसिले में कोई ठोस प्रयास हुए हों, ऐसा नजर नहीं आता। मुख्यमंत्री ने नर्मदा के शुद्धीकरण के लिए 1300 करोड़ की योजना की घोषणा की है, इससे नर्मदा शुद्धीकरण के प्रति सरकार की दिली ईमानदारी का आभास होता है लेकिन ये तमाम प्रयास सार्थकतापूर्ण वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित होने चाहिए। भोपाल में आए अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों के सुझाव इसमें महती भूमिका निभा सकते हैैं लेकिन इसमें सबसे बड़ी आवश्यकता है लोगों में नर्मदा को साफ रखने के प्रति चेतना उत्पन्न करने की। इसके लिए सरकार और समाज को मिलकर योजना बनाना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए तभी नर्मदा मां के हम वास्तविक पूजक कहलाने के हकदार होंगे।
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