Friday, March 1, 2013


घटनार्थ

भीड़ के गुस्से में झुलसा गुलाबगंज

सर्वदमन पाठक

गुलाबगंज स्टेशन पर हुए हादसे और उसके बाद हुई हिंसा एवं आगजनी ने सभी को सिहरा दिया है। दो बच्चों के मालगाड़ी के नीचे आकर दम तोड़ देने की घटना से शुरू हुए इस घटनाक्रम ने इतना भयावह मोड़ कैसे ले लिया, यह सवाल सभी के दिलोदिमाग में घूम रहा है। भोपाल के लिए यह घटना इसलिए भी ज्यादा दुखद है क्योंकि ये दोनों बदनसीब बच्चे भोपाल केअशोका गार्डन क्षेत्र के ही रहने वाले थे। बच्चों की दर्दनाक मौत एक हादसा था जबकि उसके बाद गुलाबगंज स्टेशन पर हुई हिंसा तथा आगजनी अनियंत्रित भीड़ के आक्रोश का परिणाम। उक्त हादसे के पीछे क्या वजह रही और क्या वह किसी की गलती अथवा चूक का परिणाम था, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन उसके बाद उपजे विस्फोटक हालात से निपटने में नाकामी की वजह स्पष्ट है। कारण चाहे जो भी हों लेकिन सच्चाई यही है कि हालात की भयावहता तथा लोगों के गुस्से का अनुमान लगाने तथा तदनुरूप कार्रवाई करने में रेलवे प्रशासन तथा रेलवे पुलिस नाकाम रही और इसी वजह से गुलाबगंज स्टेशन को आग के हवाले करने में भीड़ सफल हो गई, जिसके फलस्वरूप दो बेगुनाह रेलकर्मियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वैसे रेलवे सुरक्षा बल के साथ ही जीआरपी भी रेलवे के अपराध रोकने के लिए उत्तरदायी होती है, लेकिन वह भी इस हिंसा तथा आगजनी को रोकने में अपना रोल समुचित तरीके से नहीं निभा सकी। इस भयावह पैमाने पर हिंसा एवं आगजनी होने की एक वजह यह भी रही कि गुलाबगंज जैसे छोटे स्थान पर न तो स्टेशन और न ही गांव में पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध थे जिससे भीड़ इतनी भयावह हिंसा तथा आगजनी करने में कामयाब हो गई।
इस हिंसा एवं आगजनी में अपने दो साथियों की मौत की खबर फैलते ही रेलवे कर्मचारियों का भी गुस्सा फूट पडऩा स्वाभाविक था लेकिन रेल कर्मचारी यूनियनों ने जिस तरह से विभिन्न स्टेशनों पर टिकट खिड़कियां बंद करवा दीं और रिजर्वेशन कराने आए लोगों के साथ अभद्रता की, उसे भी कतई उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि इन लोगों का तो हिंसा एवं आगजनी से कुछ लेना देना नहीं था।
इस हिंसा का एक बड़ा कारण भीड़ का मनोविज्ञान भी है। दरअसल भीड़ केपास विवेक नहीं होता। इसीलिए भीड़ को भावनात्मक रूप से उत्तेजित करना आसान होता है। यह हिंसा और आगजनी भी भीड़ की ऐसी ही उत्तेजना का परिणाम थी। वैसे कई बार ऐसी परिस्थितियों में स्थानीय स्तर पर प्रतिष्ठित व्यक्ति अपनी समझबूझ से ऐसी अनहोनी घटनाओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं लेकिन यह घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित हुआ कि वहां प्रशासनिक एवं वैयक्तिक स्तर पर भीड़ की उत्तेजना को शांत करने की कोशिश का किसी को भी कोई मौका नहीं मिला।
इस समूचे घटनाक्रम की जांच के आदेश दे दिये गए हैैं और देर सबेर इसकी रिपोर्ट भी आ जाएगी। इसके निष्कर्षों को सबक के तौर पर लिया जाना चाहिए और रेल प्रशासन तथा रेल पुलिस को अपनी गतिशीलता तथा सजगता बढ़ाकर ऐसी घटनाओं को रोकने का प्रयास करना चाहिए। इसके साथ ही हिंसा और आगजनी की ऐसी घटनाओं पर सामूहिक जुर्माने तथा दंड का प्रावधान भी किया जाना चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोका जा सके क्योंकि आजकल बात बात पर हिंसक प्रदर्शन करना फैशन सा बनता जा रहा है। रेल परिसर में ऐसी हिंसा तथा आगजनी की प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाना वक्त का तकाजा है क्योंकि इससे एक ओर तो बेगुनाहों की जानें जाती हंै वहीं दूसरी ओर रेलवे को नुकसान पहुंचा कर हम अपना ही  नुकसान करते हैैं क्योंकि रेलवे सार्वजनिक संपत्ति है और जनता के पैसे से ही रेलवे चलती है।

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