Wednesday, March 20, 2013

न्याय और निहितार्थ
काजल कांड
:
जन भावनाओं के अनुरूप फैसला
सर्वदमन पाठक
सारे देश को झकझोर देने वाले दिल्ली गैैंगरेप कांड का फैसला भले ही अभी तक नहीं हो पाया हो और दोषियों को फांसी की सजा की लोगों की इच्छा न पूरी हो पाई हो लेकिन उससे उपजी चेतना ने बलात्कार और हत्या के रेयरेस्ट आफ द रेयर मामलों में न्यायालयों को शीघ्रातिशीघ्र फैसले के लिए अवश्य प्रेरित किया है। विशेषत: मध्यप्रदेश में तीन दिन में ही इसकी दो नजीर सामने आई हैैं। मसलन इंदौर में तीन वर्षीय बच्ची की शारीरिक तथा यौन यंत्रणा  और हत्या के मामले में कुछ माह में ही उसके चाचा चाची को क्रमश: फांसी तथा आजन्म कारावास की सजा सुनाने के एक दिन के अंतराल से ही भोपाल के काजल हत्याकांड का फैसला भी आ गया है जिसमें अपेक्षा के अनुरूप आरोपी को मौत की सजा सुनाई गई है। काजल हत्याकांड तथा शिवानी प्रकरण में यह समानता थी कि दोनों को उनके परिवार के करीबी व्यक्तियों ने अंजाम दिया था। जहां शिवानी को उसके चाचा चाची ने जुल्म तथा यौन यंत्रणा का शिकार बनाया और बाद में उसकी हत्या कर दी वहीं काजल को उसके मुंह बोले नाना ने अपनी वासना का शिकार बनाया और बाद में उसकी नृशंस हत्या कर दी। भोपाल को काजल हत्याकांड ने झकझोर दिया था। चूंकि यह घटना गृहमंत्री के बंगले के कुछ ही दूरी पर हुई थी इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक था कि इतने सख्त सुरक्षा वाले क्षेत्र में ऐसी जघन्य वारदात हो सकती है तो फिर अन्य स्थानों पर कानून व्यवस्था की स्थिति कितनी भयावह होगी। इस कांड की वजह से कानून व्यवस्था को लेकर सरकार पर विपक्ष को हमला करने का एक और मौका मिल गया था और विपक्ष ने इसे भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। बहरहाल शिवराज सरकार ने इस मामले में जितनी तेजी के साथ के साथ तहकीकात की, वह असाधारण ही थी। प्रशासन ने इसके लिए भारी भरकम इनाम घोषित किया जिसने जांच में उत्प्रेरक का काम किया। यही वजह थी कि पुलिस ने रिकार्ड समय में आरोपी को धर पकड़ा और तमाम रहस्यों की परतें हटाते हुए इसकी पूरी कहानी को उजागर कर दिया। लेकिन इस जांच का सूत्रधार रहा काजल का छोटा भाई जिसने पहली नजर में ही आरोपी को पहचान लिया। उसके द्वारा दी गई इस जानकारी के आधार पर कि बड़ी बहन काजल को आखिरी बार उसने आरोपी के साथ ही देखा था, पुलिस की जांच को गति मिली। संभवत: यह एक अहम कारण था जिसने अभियोजन पक्ष को रिकार्ड टाइम में आरोप पत्र दाखिल करने में मदद की और अंतत: सिर्फ नौ दिन तक चले मुकदमे में आरोपी को उसके जघन्य कृत्य की सजा सुनाई जा सकी।
अंग्र्रेजी कहावत है 'जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाइडÓ। कई बार देखा गया है कि देर से मिला न्याय अन्याय से भी ज्यादा दारुण होता है। वैसे भी न्याय में जितना विलंब होता है, उसके गवाहों को प्रभावित करने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है और न्यायालयीन प्रक्रिया को बाधित करने की संभावनाएं उतनी ही ज्यादा होती हैैं। बलात्कार और हत्या के ऐसे दिल दहला देने वाले मामले में तो समाज की भी यही अपेक्षा होती है कि अपराधी को यथाशीघ्र कठोरतम सजा मिले। इस दृष्टि से काजल हत्याकांड का फैसला न्याय की एक बेहतरीन मिसाल है। इससे अपराधी मानसिकता के व्यक्तियों के मन में कानून का भय पैदा होगा और ऐसे जघन्य अपराधों को रोकने में मदद मिलेगी। लेकिन सिर्फ कठोर न्याय से ही ये अपराध रुक सकते हैैं, यह सोचना कुछ अधिक ही आशावादी सोच है। दरअसल हमें यदि इन अपराधों पर प्रभावी रोक लगानी है तो समाज में संस्कारों के परिष्कार का आंदोलन चलाना चाहिए ताकि लोग नारी को सम्मान की नजर से देखें और समाज उसकी जिंदगी और अस्मत की रक्षा को अपना दायित्व समझे।

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