Wednesday, March 20, 2013


दरिंदगी की सजा
 सर्वदमन पाठक
यह मंगलवार प्रदेश की औद्योगिक नगरी इंदौर के लिए वास्तव में एक भावुक न्यायिक जीत का दिन था। यह फैसला दरअसल उस मासूम बच्ची के लिए न्यायालय की सही श्रद्धांजलि ही मानी जाएगी जिसकी उसके अपने ही चाचा चाची ने लगभग नौ माह तक जुल्म तथा दुष्कृत्य के बाद लोमहर्षक तरीके से हत्या कर दी थी। उस नन्ही सी बच्ची को बलात्कार सहित जितनी यातनाएं दी गईं, वह किसी के भी रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी है।  इस त्रासद घटनाक्रम को जानने वालों का मानना है कि बच्ची के चाचा को मृत्युदंड तथा चाची को आजन्म कारावास का न्यायालयीन फैसला न्यायिक प्रावधानों के तहत भले ही उचित हो लेकिन इन दरिंदों ने जो कुछ किया है, उसकी उन्हें कितनी भी सजा दी जाए, कम है।
इस घटना के पूरे विवरण को जिसने भी पढ़ा सुना है, वह आसानी से कह सकता है कि यह न्यायालय की परिभाषा में रेयरेस्ट आफ द रेयर केस माना जा सकता है।
दरअसल उस बच्ची के साथ जुल्म, बलात्कार और हत्या का यह दर्दनाक  सिलसिला अमानवीयता की पराकाष्ठा को ही दर्शाता है। इंदौर के लसूडिय़ा थाने के तहत दर्ज इस मामले के अनुसार राजेश ने अपने बड़े भाई की बच्ची शिवानी को जनवरी 2012 में गोद लिया था और तब से से ही वह अपनी पत्नी बेबी के साथ मिलकर बच्ची के साथ जालिमाना व्यवहार तथा बलात्कार करता था। जुल्म का यह रूह कंपा देने वाला सिलसिला 22 सितंबर 2012 को ही थमा जब किस्मत की मारी इस बच्ची की मौत हो गई। राजेश अपनी पत्नी के साथ जब शिवानी के शव को चादर में लपेटकर ठिकाने लगाने ले जा रहा था तभी उनके पड़ौसियों को शक हुआ और उन्होंने पुलिस को इत्तला की जिसके बाद इन दरिंदों को पकड़ा जा सका।
जिन यातनाओं से उस बच्ची को मौत केपहले गुजरना पड़ा, वह किसी के भी हृदय को विगलित कर सकती है। महज चार साल की शिवानी की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसके शरीर पर चोट के 31 घाव थे जो यह बताने के लिए काफी हैैं कि उसके साथ जब तब पैशाचिकता की हद तक मारपीट की जाती थी। रिपोर्ट के मुताबिक उसके साथ जब तब प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक कुकृत्य भी किया जाता था।
पड़ौसियों की गवाही ने पीड़ा की इस कहानी के क्रूर खलनायकों को सजा के तार्किक अंजाम तक पहुंचाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इन पड़ौसियों ने ही बच्ची के साथ हुए वहशियाना जुल्म का विस्तृत विवरण अदालत को दिया और न्याय में उसकी मदद की। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। राजेश के जो पड़ौसी बच्ची की मौत के बाद सामने आए और इस घटना के लिए जिम्मेदार पति पत्नी को सजा दिलाने में कारगर रोल अदा किया, यदि वे जुल्म की इस घटनाओं की शुरुआत में ही अपने साहस का परिचय देते और पुलिस को वहां बच्ची के साथ हो रहे पाशविक कृत्यों की जानकारी दे देते तो संभवत: वह बच्ची चाचा चाची के इन भयावह जुल्मों से बच जाती और यों बेमौत मौत का शिकार न होती।
न्यायालय ने कुछ ही महीनों में मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाले इस मामले का फैसला सुना दिया जो न्यायालयों की सामाजिक चेतना का परिचायक है। न्यायालयों का यही रुख उसके प्रति लोगों में भरोसा जगाता है।

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