सवाल महिलाओं की अस्मिता का
सर्वदमन पाठक
शिवराज सरकार यह दावा करते हुए नहीं थकती कि वह महिलाओं को सम्मान से जीने के लिए जरूरी वातावरण तथा सुविधाएं देने के प्रति प्रतिबद्ध है। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं भी इस दावे का समर्थन करती नजर आती हैैं। लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना जैसी तमाम योजनाएं इसका प्रमाण हैैं। हाल में तो सरकार ने बेटी बचाओ अभियान के जरिये भ्रूण हत्या के खिलाफ जो मुहिम चला रखी है, उसकी सारे देश में तारीफ हो रही है। लेकिन इसके बावजूद प्रदेश में बेटियों की जो तस्वीर उभरती है, वह काफी निराशाजनक है। यह कोई विपक्ष का आरोप नहीं है बल्कि सरकार द्वारा विधानसभा में स्वीकार की गई सच्चाई है, जो मध्यप्रदेश को शर्मिंदा होने पर मजबूर कर देती है। गृहमंत्री द्वारा सदन में पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार 1 नवंबर 2012 से 25 जनवरी 2013 के बीच प्रदेश में बलात्कार की 706 घटनाएं घटी हैैं। इनमेंं से 64 सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हुईं है। इनमेंं से पांच महिलाओं की हत्या कर दी गई जबकि तीन ने इसके बाद आत्मग्लानिवश खुदकुशी कर ली। बलात्कार की शिकार स्त्रियों में नाबालिग बच्चियां हैैं। सबसे ज्यादा 493 अनुसूचित जाति, जनजाति की महिलाओं के साथ बलात्कार की दरिंदगी की गई है।
राज्य सरकार के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए कि जब उसकी नीतियों और कार्यक्रमों में महिलाओं के कल्याण तथा सम्मान को विशेष महत्ता दी जा रही है, तब आखिर क्या कारण है कि महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी दरिंदगी की घटनाएं रुकने के बदले बढ़ती ही जा रही हैैं। राज्य सरकार का यह तर्क समझ से परे है कि उसके कार्यकाल में घटनाओं को पुलिस बाकायदा पंजीबद्ध कर रही है, इसलिए ये आंकड़े बढ़े हुए लग रहे हैैं। उसका यह रुख यही दर्शाता है कि वह इस मामले में चिंता के बदले निहायत ही बेफिक्री की मुद्रा में है और इस भयावह स्थिति के बाद भी अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई है। सरकार को शायद यह आभास नहीं है कि इस तरह के बयानों से यौन अपराधियों का हौसला बढ़ता है। दरअसल राज्य सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में अभी तक कभी भी यौन अपराधियों पर नकेल कसने की कोई मुहिम नहीं चलाई है। आंकड़ों की दृष्टि से मध्यप्रदेश महिलाओं के बलात्कार के मामलों में देश में सबसे आगे है जो प्रदेश के लिए काफी शर्म की बात है। उक्त आंकड़े तो पिछले 86 दिनों के हैैं जब देश में बलात्कार के खिलाफ एक तरह की जागरूकता आई है। दिल्ली के गेंगरेप कांड के बाद चले नारी अस्मिता की रक्षा के सघन अभियान के बावजूद यौन अपराधों में मध्यप्रदेश के ये डराने वाले आंकड़े वास्तव में चिंतनीय हैैं। इसका सीधा सादा मतलब यही है कि यौन अपराधों के मामले में पानी अब सिर के ऊपर से निकलने वाला है और यदि सरकार को वास्तव में महिलाओं की अस्मिता की तनिक भी चिंता है तो उसे स्त्री के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के खिलाफ राज्यव्यापी अभियान चलाना चाहिए। सभी जिलों के आला प्रशासनिक तथा पुलिस अधिकारियों को इन अपराधों पर अंकुश लगाने के सख्त निर्देश दिये जाने चाहिए। ऐसी घटनाओं पर रोक तभी लग सकती है जब प्रशासनिक तथा पुलिस अफसरों को ऐसे मामलों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए और उनपर कठोर कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही प्रदेश में इन घृणित अपराधों के खिलाफ जनचेतना भी जगाई जानी चाहिए। इसके लिए सरकार को प्रशासन के साथ साथ सामाजिक संगठनों तथा राजनीतिक दलों का भी सहयोग लेना चाहिए क्योंकि समाज की सोच में बदलाव के बिना इन अपराधों पर अंकुश लगाना संभव नहीं है। राज्य में लगभग आधी आबादी महिलाओं की ही है और यदि महिलाओं की जिंदगी और सम्मान की लड़ाई राज्य सरकार द्वारा नहीं जीती गई तो लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का भाजपा का सपना टूट भी सकता है।