Thursday, February 21, 2013


सवाल महिलाओं की अस्मिता का

सर्वदमन पाठक

शिवराज सरकार यह दावा करते हुए नहीं थकती कि वह महिलाओं को सम्मान से जीने के लिए जरूरी वातावरण तथा सुविधाएं देने के प्रति प्रतिबद्ध है। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं भी इस दावे का समर्थन करती नजर आती हैैं। लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना जैसी तमाम योजनाएं इसका प्रमाण हैैं। हाल में तो सरकार ने बेटी बचाओ अभियान के जरिये भ्रूण हत्या के खिलाफ जो मुहिम चला रखी है, उसकी सारे देश में तारीफ हो रही है। लेकिन इसके बावजूद प्रदेश में बेटियों की जो तस्वीर उभरती है, वह काफी निराशाजनक है। यह कोई विपक्ष का आरोप नहीं है बल्कि सरकार द्वारा विधानसभा में स्वीकार की गई सच्चाई है, जो मध्यप्रदेश को शर्मिंदा होने पर मजबूर कर देती है। गृहमंत्री द्वारा सदन में पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार 1 नवंबर 2012 से 25 जनवरी 2013 के बीच प्रदेश में बलात्कार की 706 घटनाएं घटी हैैं। इनमेंं से 64 सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हुईं है। इनमेंं से पांच महिलाओं की हत्या कर दी गई जबकि तीन ने इसके बाद आत्मग्लानिवश खुदकुशी कर ली। बलात्कार की शिकार स्त्रियों में नाबालिग बच्चियां हैैं। सबसे ज्यादा 493 अनुसूचित जाति, जनजाति की महिलाओं के साथ बलात्कार की दरिंदगी की गई है।
राज्य सरकार के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए कि जब उसकी नीतियों और कार्यक्रमों में महिलाओं के कल्याण तथा सम्मान को विशेष महत्ता दी जा रही है, तब आखिर क्या कारण है कि महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी दरिंदगी की घटनाएं रुकने के बदले बढ़ती ही जा रही हैैं। राज्य सरकार का यह तर्क समझ से परे है कि उसके कार्यकाल में घटनाओं को पुलिस बाकायदा पंजीबद्ध कर रही है, इसलिए ये आंकड़े बढ़े हुए लग रहे हैैं। उसका यह रुख यही दर्शाता है कि वह इस मामले में चिंता के बदले निहायत ही बेफिक्री की मुद्रा में है और इस भयावह स्थिति के बाद भी अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई है। सरकार को शायद यह आभास नहीं है कि इस तरह के बयानों से यौन अपराधियों का हौसला बढ़ता है। दरअसल राज्य सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में अभी तक कभी भी यौन अपराधियों पर नकेल कसने की कोई मुहिम नहीं चलाई है। आंकड़ों की दृष्टि से मध्यप्रदेश महिलाओं के बलात्कार के मामलों में देश में सबसे आगे है जो प्रदेश के लिए काफी शर्म की बात है। उक्त आंकड़े तो पिछले 86 दिनों के हैैं जब देश में बलात्कार के खिलाफ एक तरह की जागरूकता आई है। दिल्ली के गेंगरेप कांड के बाद चले नारी अस्मिता की रक्षा के सघन अभियान के बावजूद यौन अपराधों में मध्यप्रदेश के ये डराने वाले आंकड़े वास्तव में चिंतनीय हैैं। इसका सीधा सादा मतलब यही है कि यौन अपराधों के मामले में पानी अब सिर के ऊपर से निकलने वाला है और यदि सरकार को वास्तव में महिलाओं की अस्मिता की तनिक भी चिंता है तो उसे स्त्री के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के खिलाफ राज्यव्यापी अभियान चलाना चाहिए। सभी जिलों के आला प्रशासनिक तथा पुलिस अधिकारियों को इन अपराधों पर अंकुश लगाने के सख्त निर्देश दिये जाने चाहिए। ऐसी घटनाओं पर रोक तभी लग सकती है जब प्रशासनिक तथा पुलिस अफसरों को ऐसे मामलों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए और उनपर कठोर कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही प्रदेश में इन घृणित अपराधों के खिलाफ जनचेतना भी जगाई जानी चाहिए। इसके लिए सरकार को प्रशासन के साथ साथ सामाजिक संगठनों तथा राजनीतिक दलों का भी सहयोग लेना चाहिए क्योंकि समाज की सोच में बदलाव के बिना इन अपराधों पर अंकुश लगाना संभव नहीं है। राज्य में लगभग आधी आबादी महिलाओं की ही है और यदि महिलाओं की जिंदगी और सम्मान की लड़ाई राज्य सरकार द्वारा नहीं जीती गई तो लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का भाजपा का सपना टूट भी सकता है।

Tuesday, February 19, 2013


 टकराव की गरमी में झुलसता बसंत 

सर्वदमन पाठक

वैसे तो बसंत पंचमी खुशनुमा मौसम की अंगड़ाई का ही दूसरा नाम है लेकिन धार में शासन प्रशासन को एक बार फिर यह दिन आते ही बसंत के मौसम में तपती गर्मी का अहसास होने लगा है। बसंत पंचमी पर शुक्रवार के संयोग ने भोजशाला में राजनीति का पारा सातवेंं आसमान पर पहुंचा दिया है। हिंदू संगठनों ने इस दिन भोजशाला में सिर्फ वाग्देवी की पूजा की घोषणा की है जबकि प्रशासन चाहता है कि इस दिन वहां नमाज भी हो। प्रशासन ने वहां नमाज के लिए दो  घंटे का समय तय किया है जबकि बाकी समय भोजशाला में वाग्देवी की पूजा की जा सकेगी। प्रशासन ने पूजा और नमाज को निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए भोजशाला सहित समूचे धार में पुलिस बल का भारी बंदोबस्त किया है। आसपास के जिलों से भी इस प्रयोजन के लिए पुलिस बल बुला लिया गया है। राज्य सरकार इस मामले में कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगभग एक दर्जन हिंदू नेताओं को एहतियात के तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया है जिनमें आरएसएस के पूर्व प्रचारक भी शामिल हैैं। पूर्व में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि बसंत पंचमी दो दिन पडऩे के कारण गुरुवार और शुक्रवार दोनों ही दिन वाग्देवी का पूजन किया जाएगा और इस कारण प्रशासन को यह लग रहा था कि शुक्रवार को वाग्देवी की पूजा पर दबाव कुछ कम हो जाएगा लेकिन हिंदू संगठनों ने घोषणा की है कि वे शुक्रवार को ही भोजशाला में वाग्देवी की पूजा करेंगे। कुछ संत चाहते हैैं कि वहां सिर्फ वाग्देवी की पूजा हो, नमाज न हो। इनमें वे संत भी शामिल हैैं जो विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हुए हैैं। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि विश्व हिंदू परिषद आरएसएस का  ही एक आनुषांगिक संगठन है। यह समझना कठिन नहीं है कि संघ अपनी राजनीतिक शाखा भाजपा को चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए अपनी धार्मिक शाखा विहिप के जरिये हिंदुत्व का वातावरण बनाने की जो कोशिश कर रहा है, यह उसी का एक हिस्सा है।
इस समूचे परिदृश्य को देखकर यह भ्रम हो सकता है कि भोजशाला को लेकर सरकार और संघ परिवार के एक वर्ग के बीच टकराव की स्थिति बन गई है लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है। दरअसल मध्यप्रदेश में सरकार और हिंदू संगठनों के बीच टकराव का यह जो कृत्रिम वातावरण बनाया जा रहा है, वह संघ परिवार का अंदरूनी मामला है। एक ही परिवार में आखिर झगड़ा कैसा? यह संघ की वैसी ही नीति का फलितार्थ है जिसे संघ के नेता बायफोकल कहते हैैं। इसकी रणनीति कुंभ में ही बन चुकी है जिसके तहत विहिप जहां तहां हिंदुत्व की लहर पैदा करेगी और भाजपा सरकारें उसके साथ जुबानी समर्थन व्यक्त करेंगी लेकिन विकास तथा सद्भाव के सुशासन को अपनी चुनावी मुहिम का आधार बनाएंगी। इस तरह जहां एक ओर हिंदू वोटों का भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण करने की भरपूर कोशिश होगी वहीं राजग के अन्य सहयोगियों को भी एकजुट रखा जा सकेगा। भाजपा खुद भी इस वास्तविकता को जानती है कि वह अकेले दम पर केंद्र में सत्ता में नहीं आ सकती, इसलिए यह द्विमुखी रणनीति तैयार की गई है। कहने का लब्बोलुवाब यह है कि धार स्थित भोजशाला में सरकार एवं हिंदू संगठनों के बीच टकराव उनकी नूरा कुश्ती है। लेकिन इसका एक सार्थक निष्कर्ष यह भी है कि शिवराज सरकार किसी भी हालत में भोजशाला में वाग्देवी की पूजा और नमाज, दोनों को ही निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए कृतसंकल्प है। यह शिवराज सिंह की भेदभावरहित प्रशासन की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है जिसकी तारीफ की जानी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि शिवराज सरकार भोजशाला में किसी भी सूरत में शांति एवं सद्भाव का वातावरण कायम रखेगी और शांति के टापू के रूप में प्रतिष्ठित इस प्रदेश की गरिमा को अक्षुण्ण रखेगी।

प्रदेश चर्चा
कैसे नर्मदा-पूजक हैैं हम?
सर्वदमन पाठक

रविवार को पूरे प्रदेश में नर्मदा जयंती काफी उत्साह के साथ मनाई गई जिसमें राजनीति तथा समाज से जुड़ी हस्तियों के साथ ही विश्व स्तरीय वैज्ञानिकों की भी भागीदारी रही। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह  चौहान ने नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक तथा होशंगाबाद के सेठानी घाट पर इस कार्यक्रम ने शिरकत कर लोगों को मध्यप्रदेश की लाइफ लाइन नर्मदा को शुद्ध रखने का संकल्प दिलाया और सरकार की ओर से यह भरोसा भी दिया कि वह नर्मदा के शुद्धीकरण में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। ओंकारेश्वर में भी लाखों लोगों ने नर्मदा जयंती पर मां नर्मदा का अभिषेक कर उनकी स्तुति की। संस्कारधानी होने के नाते भोपाल नगरी इस मामले कैसे पीछे रहती। यहां भी नर्मदा जयंती के औपचारिक कार्यक्रम के साथ एक महत्वपूर्ण आयोजन विज्ञान भवन में हुआ जहां विश्व के कई जाने माने वैज्ञानिकों ने नर्मदा को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए कई उपायों का सुझाव दिया। वैसे तो नर्मदा जयंती पर प्रदेश में लगभग हर वर्ष कार्यक्रमों के आयोजन की परंपरा रही है लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद से इस आयोजन की भव्यता बढ़ी है इसमें कोई शक ही नहीं है। भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक होने के दावा करने वाली भाजपा के कार्यकाल कमें  हिंदू संस्कृति से जुड़े आयोजनों को जो महत्ता मिली है, नर्मदा जयंती का राज्यव्यापी आयोजन भी इसी का एक प्रमाण है। चूंकि यह चुनाव वर्ष है इसलिए इस आयोजन के जरिये सरकार अपने वोट बैैंक को रिझाये, इसमें कुछ भी अस्वाभाविक या अनुचित नहीं है। दरअसल शिवराज सरकार के कार्यकाल में नर्मदा के शुद्धीकरण के लिए जो जनचेतना जागी है, सरकार उसके लिए बधाई की पात्र है। लेकिन सिर्फ इतने से ही राज्य सरकार की भूमिका की इतिश्री नहीं हो जाती। कमोवेश हर साल नर्मदा जयंती के आयोजन में सरकार और जनता की श्रद्धापूर्ण भागीदारी होती ही है लेकिन सवाल यही है कि नर्मदा के शुद्धीकरण की दृष्टि से इन आयोजनों का क्या फलितार्थ रहा है। जिस अमरकंटक में शिवराज सिंह नर्मदा जयंती मना रहे थे और उनकी धर्मपत्नी साधना सिंह नर्मदा को 1100 मीटर की चुनरी चढ़ा रही थीं, वहीं से नर्मदा के गंभीर प्रदूषण का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस क्षेत्र की बाक्साइट की खदानों से अधिकाधिक दोहन के कारण यहां के जंगलों का भी सफाया काफी हद तक किया गया है जिससे नर्मदा अपने उद्गम स्थल से आगे बढ़ते ही प्रदूषित होने लगती है। इसके अलावा औद्योगीकरण की अंधी दौड़ ने भी नर्मदा के प्रदूषण में काफी इजाफा किया है। नर्मदा में औद्योगिक कचरा डालने के  कारण उसका पानी काफी प्रदूषित होता है। नर्मदा किनारे रहने वाले लोगों का वह वर्ग भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है जो जागरूकता एवं जानकारी के अभाव में नर्मदा में प्रदूषित वस्तुओं को छोड़ देता है।
इन सभी कारणों से कई स्थानों पर तो नर्मदा इतनी प्रदूषित होती है कि उसके जल से आचमन तक नहीं किया जा सकता। पिछले सभी नर्मदा जयंती आयोजनों में नर्मदा के शुद्धीकरण का संकल्प लिया जाता है लेकिन अभी तक इस सिलसिले में कोई ठोस प्रयास हुए हों, ऐसा नजर नहीं आता। मुख्यमंत्री ने नर्मदा के शुद्धीकरण के लिए 1300 करोड़ की योजना की घोषणा की है, इससे नर्मदा शुद्धीकरण के प्रति सरकार की दिली ईमानदारी का आभास होता है लेकिन ये तमाम प्रयास सार्थकतापूर्ण वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित होने चाहिए। भोपाल में आए अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों के सुझाव इसमें महती भूमिका निभा सकते हैैं लेकिन इसमें सबसे बड़ी आवश्यकता है लोगों में नर्मदा को साफ रखने के प्रति चेतना उत्पन्न करने की। इसके लिए सरकार और समाज को मिलकर योजना बनाना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए तभी नर्मदा मां के हम वास्तविक पूजक कहलाने के हकदार होंगे।

Wednesday, February 13, 2013

हाल-ए-भोपाल

 अपराधियों की गिरफ्त में राजधानी
सर्वदमन पाठक

आजकल भोपाल पर अपराधियों की विशेष  'मेहरबानीÓ है। जहां देखो वहां इसके प्रमाण  देखे जा सकते हैैं। इन अपराधियों की वजह से हर तरह नागरिकों का जीना हराम है। कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब शहर में अपराध की कोई सनसनीखेज वारदात न होती है। पिछले चौबीस घंटे भी इस मायने में कोई अपवाद नहीं रहे हैैं। राजधानी में आम नागरिक  लगभग हर दिन ही लुटता है जो पुलिस की नजर में महत्वहीन घटना होती है। इसी कड़ी में शहर में पिछले चौबीस घंटों में तीन लूट की वारदातें हुई हैैं लेकिन सबसे सनसनीखेज वारदात राजभवन से बमुश्किल सौ मीटर की दूरी पर घटी। राजभवन के ठीक सामने स्थित टाइटन शो रूम में पचास लाख की घडिय़ों की चोरी हो गई और पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी। चोरों ने पूरे इत्मीनान से इस वारदात को अंजाम दिया, मानो उसे पुलिस का कोई भय न हो। उन्होंने बाकायदा सब्बल से शटर से लगा कांच तोड़ा और उसके बाद शटर का ताला तोड़ा। ये दोनों कारगुजारियां बिना आवाज हो ही नहीं सकतीं। इतना ही नहीं, चोरों ने आराम से छांट छंाटकर सोने की घडिय़ां निकाल लीं। इस पूरे काम में उन्हें काफी समय लगा होगा लेकिन पुलिस कितनी चाक चौबंद थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसे इस पूरे घटनाक्रम का पता तब लगा जब इस शो रूम का मालिक चोरी की रिपोर्ट करने थाने पहुंचा। राजभवन के नजदीक होने के कारण इस स्थान को अतिसुरक्षित क्षेत्रों में माना जाता है। यहां पुलिस से अतिरिक्त रूप से सचेत रहने की अपेक्षा होती है। यह स्थान पुराने भोपाल और नए भोपाल का संगम स्थल है इसलिए यहां दोनों क्षेत्र का पुलिस बल गश्ती पर तैनात रहता है। राजभवन में भी सुरक्षा बल काफी संख्या में होता है लेकिन इस घटना के समय गश्ती पुलिस का कहीं अता पता नहीं था। इससे सिर्फ यही अनुमान लगाया जा सकता है कि गश्ती दल अपने काम की औपचारिकता पूरी करने में भी विश्वास नहीं रखते। हालांकि पुलिस यह दावा लगातार करती रहती है कि रात्रि में गश्ती के दौरान पूरी सावधानी तथा सतर्कता बरती जाती है। जब राजधानी में जहां पुलिस के तमाम आला अधिकारी मौजूद रहते हैैं, कानून व्यवस्था की हालत इतनी खस्ता है तो दूर दराज के इलाके में क्या हाल होता होगा, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। लेकिन इसकी एक हकीकत और है जिसे पुलिस कभी स्वीकार नहीं करती। दरअसल पुलिस और अपराधियों में रिश्ते काफी मधुर होते हैैं। ये संबंध आम तौर पर पैसे पर टिके होते हैैं। यही वजह है कि ये संबंध इतने मजबूत होते हैैं कि आला अफसर लाख सिर पटक लें, उन्हें तोडऩा तो दूर, जरा सा शिथिल भी नहीं कर पाते। आप यदि किसी अपराधी का नाम तथा हुलिया भी पुलिस को बता दें तो भी पुलिस उसकी गिरफ्तारी से बचने की हरसंभव कोशिश करती है। अलबत्ता सत्ता से जुड़े या बड़े राजनीतिक रसूख वाले व्यक्ति के यहां वारदात हो और सरकार का पुलिस पर अत्यधिक दबाव हो तो रातों रात क्षेत्र के तमाम अपराधियों को  थाने में तलब कर अपराध कबूल करवाया जा सकता है और चोरी का माल बरामद कराया जा सकता है। इसका सीधा सादा आशय यही है कि चोरी, डकैती जैसे तमाम अपराधों में आम तौर पर पुलिस खलनायक के बदले सहायक की भूमिका में होती है। लेकिन अब पुलिस की सोची समझी अकर्मण्यता के कारण जनता अपराधों से त्राहि त्राहि करने लगी है। वास्तविकता यही है सरकार की तीसरी पारी के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा कानून व्यवस्था की दुव्र्यवस्था ही है जिससे आम आदमी की शांति और सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। सवाल यही है कि चुनाव के करीब खिसकने के बावजूद सरकार लोगों के भरोसे को दांव पर लगाना पसंद करेगी या फिर प्रशासनिक सख्ती बरतकर लोगों की सुख शांति बहाल करेगी।

Thursday, February 7, 2013


यौन उत्पीडऩ हंसी का विषय नहीं है गृहमंत्री जी
सर्वदमन पाठक

महिलाओं की यौन यंत्रणा के मामले में देश  में प्रथम पायदान तक पहुंच जाने की शर्मनाक उपलब्धि हासिल कर लेने वाले मध्यप्रदेश में एक बार फिर चाइल्ड सेक्स और मर्डर का सनसनीखेज मामला सामने आया है। राज्य में आये दिन होने वाले छेड़छाड़ तथा बलात्कार के हादसे से यह मामला इस मायने मेें भिन्न है कि यह वारदात गृहमंत्री के बंगले से चंद कदम की दूरी पर घटित हुई है जहां कठोर सुरक्षा व्यवस्था की अपेक्षा होती है। इस आठ साल की इस बच्ची को न केवल किसी व्यक्ति ने अपनी हवस का शिकार बनाया बल्कि काफी नृशंस तरीके से उसकी हत्या कर दी गई। हमारी राजधानी पुलिस की लापरवाही का यह आलम है कि उसे इतनी भयावह  घटना की भनक तक नहीं लगी। अलबत्ता घटना की जानकारी मिलने के बाद उसने अपराधी के बारे में जानकारी देने वाले को एक लाख रुपए का इनाम घोषित कर दिया।
दरअसल यह किसी बच्ची के यौन उत्पीडऩ , बलात्कार तथा मर्डर का अकेला वाकया नहीं है जिससे भोपाल पुलिस शर्मसार हुई है। राजधानी में कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाएं न होती हैैं लेकिन पुलिस की अकर्मण्यता के चलते इन घटनाओं पर रोक के बजाय उनमें इजाफा ही होता जा रहा है। जहां तक सरकार की बात है, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारा हृदय प्रदेश देश में महिला यौन उत्पीडऩ के मामले में सबसे बदनाम है, बल्कि गृहमंत्री यह कहते हुए अपनी पीठ थपथपाते रहते हैैं कि चूंकिसरकार ने पुलिस को ऐसी हर घटना को पंजीकृत करने तथा उस पर कार्रवाई करने के निर्देश दिये हैैं इसलिए ये आंकड़े काफी बढ़े हुए प्रतीत होते हैैं। हालांकि हकीकत यह है कि पुलिस आज भी यौन यंत्रणा की शिकार कई महिलाओं एवं बच्चियों को बिना रिपोर्ट दर्ज किये लौटा देती है। सरकार ऐसे मामलों में कितनी संवेदनहीन है इसे राज्य सरकार के रुतबेदार मंत्री विजय शाह द्वारा हाल में एक कन्या छात्रावास में दिये गए उस बयान से बखूबी समझा जा सकता है जिसमें कहा गया था कि छात्रावास की बच्चियों की सुरक्षा का सरकार ने कोई ठेका लेकर नहीं रखा है। गृहमंत्री के बंगले के पास हुई इस घटना से लोग इतने क्षुब्ध हैैं कि वे सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर चुके हैैं। विपक्ष ने भी इस घटना को भुनाने के लिए गृहमंत्री के खिलाफ प्रदर्शन किया है और राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने गृह मंत्री के इस्तीफे की मांग की है। इस पर गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता बेफिक्री के अंदाज में कहते हैैं कि उनका इस्तीफा मांगना विपक्ष का अधिकार है, आखिर वे भी पूर्व के तीस सालों में विपक्ष की भूमिका अदा करते हुए कई बार इस तरह की मांग कर चुके हैैं। विपक्ष की मांग को ठुकराने का उनका यह अंदाज गंभीर मसलों को भी मजाक में उड़ा देने की उनकी जेहनियत को दर्शाता है लेकिन महिला उत्पीडऩ पर लगातार बढ़ रहे जनता के आक्रोश को वे इस तरह हंसी में नहीं उड़ा सकते क्योंकि इस साल के अंत में ही होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में सरकार को इसी जनता का सामना करना है।
पुलिस का दावा है कि वह उक्त नृशंस मामले की गुत्थी को सुलझाने के करीब पहुंच गई है। उम्मीद यही है कि पुलिस जल्द से जल्द इस मामले पर से पर्दा उठा सकती है। सच तो यह है कि गृहमंत्री के बंगले के करीब होने वाली इस वारदात पर मीडिया की नजरें टिकी होने के कारण ही पुलिस ने इसका पर्दाफाश करने में इतनी दिलचस्पी ली है वरना ऐसे बहुत सारे मामले हैैं जिनके आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैैं।
नारी के सम्मान के लिए बड़े बड़े कदम उठाने का दावा करने वाली सरकार को यदि वास्तव में अपनी राज्य में महिलाओं की गरिमा की रक्षा की इतनी ही चिंता है तो उसे महिलाओं के यौन उत्पीडऩ की घटनाओं को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी। दिल्ली गेंगरेप कांड के बाद देश में महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए आई जागरूकता के परिप्रेक्ष्य में जरूरी है कि राज्य सरकार भी इस जागरूकता को आगे बढ़ाते हुए ऐसे तमाम मामलों में पुलिस एवं प्रशासन की जवाबदेही तय करे तथा उन पर कठोर कार्रवाई करे और इसके साथ ही समाज में नारी की सुरक्षा का माहौल बनाने के प्रभावी प्रयास करे।

Monday, February 4, 2013



किसानों को रिझाने की प्रभावी पहल

सर्वदमन पाठक

किसान पंचायत में उमड़ा किसानों का सैलाब देखकर भाजपा का गद्गद् होना स्वाभाविक ही है। दरअसल चुनावी साल में प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैैंक किसानों को आकर्षित करने के उद्देश्य से शिवराज सरकार द्वारा आयोजित किये गए इस समागम की सफलता का यह जीता जागता प्रमाण है। इसकी एक खास विशेषता यह भी थी कि यह पंचायत भाजपा के दो प्रमुख किसान पुत्र नेताओं- पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गहरी जुगलबंदी की साक्षी बन कर उभरी। जैसी कि कल्पना की जा रही थी, इस मौके को भुनाते हुए शिवराज सिंह ने किसानों को लुभाने के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी। गेहूं को 1500 रुपए  क्विंटल समर्थन मूल्य पर खरीदने तथा किसानों को डेढ़ सौ रुपए क्विंटल बोनस देने के साथ ही मई से सभी गांवों को चौबीस घंटे बिजली देने का वायदा कर मुख्यमंत्री ने किसानों की वाहवाही लूटने का जो आगाज किया, आधुनिक कृषि तकनीक की जानकारी  के लिए किसानों की विदेश भ्रमण योजना सहित अन्य कई महत्वपूर्ण घोषणाओं से इसे तारीफ के तार्किक अंजाम तक पहुंचा दिया। लेकिन वे इस पंचायत में अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने के साथ ही केंद्र पर निशाना साधना भी नहीं भूले। उन्होंने खाद की बढ़ी हुई कीमतों तथा बाढ़ प्रभावितों किसानों के मुआवजे के लिए तय किये गए केंद्र के मापदंड को लेकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया। मुख्यमंत्री की किसानों के बीच लोकप्रियता की इस मिसाल से प्रभावित राजनाथ सिंह ने जहां एक ओर राज्य सरकार के कामकाज की भूरि भूरि सराहना की वहीं वे भाजपा कार्यकर्ताओं को अतिआत्मविश्वास में न रहने की नसीहत देना भी नहीं भूले। भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राज्य में कृषि विकास दर 18 फीसदी से ज्यादा पहुंचा देने तथा जाने सिंचाई का रकबा 21 लाख हेक्टेयर तक बढ़ा देने के लिए राज्य सरकार की तारीफों के पुल बांध दिये। इस आयोजन में किसानों की भारी उपस्थिति देखकर निश्चित ही भाजपा का दिल बल्लियों उछल रहा होगा क्योंकि शहरों में तो पहले से ही भाजपा का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा है लेकिन पिछले कुछ समय से राज्य के विभिन्न अंचलों में चल रहे किसान आंदोलन उसके  लिए परेशानी का सबब बने हुए थे। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से कांग्र्रेस किसानों के इस असंतोष को भुनाने के लिए किसान सम्मेलनों के आयोजन के जरिये किसानों के बीच राज्य सरकार की नीतियों तथा कार्यक्रमों के खिलाफ प्रचार अभियान चला रही थी। कटनी सहित प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर किसानों की भूमि के जबरिया अधिग्र्रहण के खिलाफ लोग लामबंद हो रहे थे और ये आंदोलन इतने उग्र्र थे कि पुलिस  तथा प्रशासन को ताकत के बल पर इन्हें दबाने पर मजबूर होना पड़ रहा था। भोपाल के आसपास भी किसान आंदोलन को कुचलने के लिए ताकत का इस्तेमाल किया गया था जिससे किसानों के एक वर्ग में धीरे धीरे सरकार विरोधी माहौल बनने की आशंका जोर पकडऩे लगी थी। ऐसे समय किसान पंचायत के सफल आयोजन से राज्य की भाजपा सरकार और पार्टी, दोनों ने ही राहत की सांस ली है। लेकिन किसानों के समर्थन के मामले में यह तो एक पड़ाव है, मंजिल नहीं। यह सच है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की किसान हितैषी नीतियां तथा कार्यक्रम सरकार के प्रति किसानों में भरोसा जगाते रहे हैैं लेकिन इन नीतियों तथा कार्यक्रम को ईमानदारी के साथ अमलीजामा पहनाना भी उतना ही जरूरी है तभी सरकार को किसानों का पूरा पूरा विश्वास हासिल हो पाएगा और एक बार फिर भाजपा सरकार बनाने का उसका सपना साकार हो पाएगा। इस दिशा में राज्य सरकार को अभी काफी कुछ करना बाकी है।