दतिया कांड
शर्म की घटना पर उत्तेजना क्यों
सर्वदमन पाठक
दतिया के पास एक गांव में स्विस महिला पर्यटक के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने हमारे प्रदेश का सिर शर्म से झुका दिया है। देश विदेश के प्रिंट तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया ने इस घटना को जिस तरह से हाईलाइट किया, उससे इस घटना की गंभीरता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दरअसल प्रदेश में यौन उत्पीडऩ की यह कोई अकेली घटना नहीं है जिसे राज्य सरकार अपवाद बताकर टाल दे। सच तो यह है कि आंकडों की दृष्टि से पिछले साल मध्यप्रदेश में देश में सर्वाधिक यौन उत्पीडऩ के मामले दर्ज किये गए हैैं। यह घटना सिर्फ यही बताती है कि शीलभंग के मामले में अब पानी सिर से निकल रहा है। संसद के दोनों सदनों तथा मध्यप्रदेश विधानसभा में इस मुद्दे पर सभी पक्षों की ओर से जो चिंता जाहिर की गई है उसे सिर्फ सियासी होहल्ला मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश में कांग्र्रेस ने सड़कों पर उतरकर जो विरोध प्रदर्शन किया है, वह प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते उसका अधिकार है और यदि सरकार इस विरोध से विचलित दिख रही है तो यह विपक्ष की सफलता ही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैैं कि इस घटना को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि प्रदेश में पूरी तरह से बदरंग नजर आ रहा विपक्ष यदि इस मुद्दे पर जन समर्थन जुटाकर प्रभावी विरोध प्रदर्शन कर सका है तो इस मुद्दे की गंभीरता को सरकार कैसे नजरअंदाज कर सकती है।
लगता है कि हमारी सरकार इन घटनाओं को रोकने की प्रभावी पहल करने के बदले सारा दोष दूसरों पर थोपना चाहती है। मसलन हमारे प्रदेश के स्वनामधन्य गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता कहते हैैं कि यदि उक्त विदेशी बाला अपनी यात्रा की जानकारी स्थानीय अधिकारियों को पूर्व में दे देती तो उसके साथ यह हादसा नहीं हो पाता। इस बयान से गृहमंत्री ने जाने अनजाने बलात्कार के लिए उक्त स्विस महिला को दोषी ठहरा दिया है। वे यह निश्चित ही नहीं कहना चाहते होंगे कि इसमें बलात्कार करने वालों तथा लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली कानून व्यवस्था मशीनरी का कोई दोष नहीं है लेकिन बिना सोचे समझे दिये गए उनके बयान से यह ध्वनि अवश्य निकलती है। वैसे राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर गृहमंत्री या तो काफी खुशफहमी में जीते हैैं या फिर उनमें वास्तविकता को स्वीकार करने का साहस नहीं है। इसी वजह से वे कई बार यह बयान दे चुके हैैं कि राज्य सरकार ने प्रत्येक अपराध को पंजीबद्ध करने के पुलिस को निर्देश दिये हैैं इसलिए ये आंकड़े इतने ज्यादा लगते हैैं। उनका यह बयान भी वास्तविकता से कोसों दूर है। सच तो यह है कि आज भी विभिन्न थानों में शिकायत दर्ज कराने के लिए पहुंचने वाले कितने ही नागरिकों की शिकायतें दर्ज किये बगैर उन्हें दुत्कार कर भगा दिया जाता है। अलबत्ता थानों में निरपराध लोगों का जीना मुहाल कर देने वाले अपराधियों को अघोषित रूप से विशेष अतिथि का दर्जा हासिल होता है और उसी हिसाब से उनकी आवभगत भी होती है। यदि इतनी कड़वी हकीकत के बाद भी प्रदेश में महिलाओं के यौन उत्पीडऩ के मामले इतने भयावह हैैं तो राज्य सरकार को इस हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिए कि वास्तव में प्रदेश में महिलाओं की जिंदगी और अस्मत दोनों ही सुरक्षित नहीं हैैं। राज्य सरकार का दावा है कि वह महिलाओं के कल्याण तथा प्रतिष्ठा की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है और इसे सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं चला रही है। लेकिन आंकड़े देखकर तो यही लगता है कि उसकी योजनाएं सिर्फ कागज पर ही चल रही हैैं और महिलाओं की जिंदगी पर इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है। राज्य सरकार को स्विस महिला के साथ बलात्कार की घटना से उत्तेजित होने, झुंझलाने तथा दूसरों पर इसका दोष मढऩे के बदले खुद इसकी जवाबदेही स्वीकार करनी चाहिए और इस बात का संकल्प लेना चाहिए कि वह राज्य में महिलाओं के जीवन और इज्जत से खिलवाड़ करने वाले तत्वों से पूरी सख्ती से निपटेगी और उनके प्रतिष्ठापूर्ण जीवन को सुनिश्चित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
शर्म की घटना पर उत्तेजना क्यों
सर्वदमन पाठक
दतिया के पास एक गांव में स्विस महिला पर्यटक के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने हमारे प्रदेश का सिर शर्म से झुका दिया है। देश विदेश के प्रिंट तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया ने इस घटना को जिस तरह से हाईलाइट किया, उससे इस घटना की गंभीरता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दरअसल प्रदेश में यौन उत्पीडऩ की यह कोई अकेली घटना नहीं है जिसे राज्य सरकार अपवाद बताकर टाल दे। सच तो यह है कि आंकडों की दृष्टि से पिछले साल मध्यप्रदेश में देश में सर्वाधिक यौन उत्पीडऩ के मामले दर्ज किये गए हैैं। यह घटना सिर्फ यही बताती है कि शीलभंग के मामले में अब पानी सिर से निकल रहा है। संसद के दोनों सदनों तथा मध्यप्रदेश विधानसभा में इस मुद्दे पर सभी पक्षों की ओर से जो चिंता जाहिर की गई है उसे सिर्फ सियासी होहल्ला मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश में कांग्र्रेस ने सड़कों पर उतरकर जो विरोध प्रदर्शन किया है, वह प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते उसका अधिकार है और यदि सरकार इस विरोध से विचलित दिख रही है तो यह विपक्ष की सफलता ही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैैं कि इस घटना को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि प्रदेश में पूरी तरह से बदरंग नजर आ रहा विपक्ष यदि इस मुद्दे पर जन समर्थन जुटाकर प्रभावी विरोध प्रदर्शन कर सका है तो इस मुद्दे की गंभीरता को सरकार कैसे नजरअंदाज कर सकती है।
लगता है कि हमारी सरकार इन घटनाओं को रोकने की प्रभावी पहल करने के बदले सारा दोष दूसरों पर थोपना चाहती है। मसलन हमारे प्रदेश के स्वनामधन्य गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता कहते हैैं कि यदि उक्त विदेशी बाला अपनी यात्रा की जानकारी स्थानीय अधिकारियों को पूर्व में दे देती तो उसके साथ यह हादसा नहीं हो पाता। इस बयान से गृहमंत्री ने जाने अनजाने बलात्कार के लिए उक्त स्विस महिला को दोषी ठहरा दिया है। वे यह निश्चित ही नहीं कहना चाहते होंगे कि इसमें बलात्कार करने वालों तथा लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली कानून व्यवस्था मशीनरी का कोई दोष नहीं है लेकिन बिना सोचे समझे दिये गए उनके बयान से यह ध्वनि अवश्य निकलती है। वैसे राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर गृहमंत्री या तो काफी खुशफहमी में जीते हैैं या फिर उनमें वास्तविकता को स्वीकार करने का साहस नहीं है। इसी वजह से वे कई बार यह बयान दे चुके हैैं कि राज्य सरकार ने प्रत्येक अपराध को पंजीबद्ध करने के पुलिस को निर्देश दिये हैैं इसलिए ये आंकड़े इतने ज्यादा लगते हैैं। उनका यह बयान भी वास्तविकता से कोसों दूर है। सच तो यह है कि आज भी विभिन्न थानों में शिकायत दर्ज कराने के लिए पहुंचने वाले कितने ही नागरिकों की शिकायतें दर्ज किये बगैर उन्हें दुत्कार कर भगा दिया जाता है। अलबत्ता थानों में निरपराध लोगों का जीना मुहाल कर देने वाले अपराधियों को अघोषित रूप से विशेष अतिथि का दर्जा हासिल होता है और उसी हिसाब से उनकी आवभगत भी होती है। यदि इतनी कड़वी हकीकत के बाद भी प्रदेश में महिलाओं के यौन उत्पीडऩ के मामले इतने भयावह हैैं तो राज्य सरकार को इस हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिए कि वास्तव में प्रदेश में महिलाओं की जिंदगी और अस्मत दोनों ही सुरक्षित नहीं हैैं। राज्य सरकार का दावा है कि वह महिलाओं के कल्याण तथा प्रतिष्ठा की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है और इसे सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं चला रही है। लेकिन आंकड़े देखकर तो यही लगता है कि उसकी योजनाएं सिर्फ कागज पर ही चल रही हैैं और महिलाओं की जिंदगी पर इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है। राज्य सरकार को स्विस महिला के साथ बलात्कार की घटना से उत्तेजित होने, झुंझलाने तथा दूसरों पर इसका दोष मढऩे के बदले खुद इसकी जवाबदेही स्वीकार करनी चाहिए और इस बात का संकल्प लेना चाहिए कि वह राज्य में महिलाओं के जीवन और इज्जत से खिलवाड़ करने वाले तत्वों से पूरी सख्ती से निपटेगी और उनके प्रतिष्ठापूर्ण जीवन को सुनिश्चित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।