Wednesday, July 7, 2010

सरकार ही नहीं संगठन पर भी चले राजनीतिक शुचिता का अभियान

भाजपा कार्यसमिति की बैठक इस मायने में एक सार्थक मोड़ की गवाह बनी है कि इसमें राजनीतिक शुचिता की काफी जोर शोर से हिमायत की गई। कांग्र्रेस की चौतरफा आलोचना के स्थायी भाव को छोड़ कर यदि इसकी अन्य महत्वपूर्ण बातों पर गौर किया जाए तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि काफी समय बाद पार्टी ने नैतिकता के पैमाने को खुद पर लागू करने की जरूरत महसूस की। पार्टी ने उन नेताओं की संगठन तथा सरकार से किनाराकशी करने की सलाह दी जिनके कारण पार्टी की छवि खराब हो रही है। इनमें भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मंत्री तो हैैं ही, अन्य गंभीर आरोपों से घिरे मंत्री भी हैैं। इसका अनुकूल परिणाम भी सामने आया है और अनूप मिश्रा ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है जिसे मंजूर भी कर लिया गया है। वैसे यह दोहरा पैमाना राजनीति की परंपरा बन गया है कि यदि प्रतिद्वंदी पार्टी का नेता हो, तो उसपर आरोप लगते ही नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की मांग की जाती है और यदि खुद की पार्टी का नेता भ्रष्टाचार या गंभीर अपराधों में भी लिप्त हो तो आरोप सिद्ध होने तक उसे निरपराध मानते हुए इस आधार पर पद पर बने रहने की दलील दी जाती है। इस दोहरे मापदंड के बीच यह इस्तीफा एक मिसाल अवश्य माना जा सकता है क्योंकि उनके इस्तीफे की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। ऐसी ही आशा अन्य मंत्रियों से भी की जाती है कि वे निर्दोष सिद्ध होने तक तक पद छोड़ दें। लेकिन यक्ष प्रश्न यही है कि भाजपा तमाम राजनीतिक मजबूरियों के बावजूद राजनीतिक शुचिता के पैमाने पर क्या खरी उतर सकेगी जो कार्यकारिणी की बैठक का प्रमुख एजेंंडा बनकर उभरा है। बैठक में एक तरह से मुख्यमंत्री को पार्टी की हरी झंडी मिल गई है कि वे दागी मंत्रियों पर कार्रवाई कर पार्टी की छवि को उज्जवल करें। अब मुख्यमंत्री की संकल्पशक्ति पर पूरा मामला आ टिका है। कोई भी सरकार कितनी भी जन हितकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों की रूपरेखा बना ले और उन पर अमल करने की कितनी भी कवायद कर ले लेकिन भ्रष्टाचार से उन सब पर पानी फिर जाता है अत: मुख्यमंत्री को अपनी इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए राजनीतिक शुचिता की पार्टी की इच्छा को अमलीजामा पहनाना चाहिए। लेकिन सिर्फ इतने से ही काम नहीं चलेगा। राज्य में कानून व्यवस्था की आज जो दयनीय स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है। पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की प्रशासन एवं पुलिस के कामकाज में दखलंदाजी इसका एक अहम कारण है। अत: राजनीतिक शुचिता का अभियान सिर्फ मंत्रिमंडल पर ही नहीं बल्कि संगठनात्मक स्तर पर भी चलना चाहिए और प्रशासनिक दखलंदाजी से पुलिस के कामकाज को प्रभावित करने वाले नेताओं एवं कार्यकर्ताओं पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए तभी प्रदेश में नई राजनीतिक संस्कृति का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा और प्रदेश के लोग इस नए बदलाव से आश्वस्त हो सकेंगेेे।
-सर्वदमन पाठक

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