भोपाल गैस त्रासदी का न्याय अपने आप में एक त्रासदी है और हजारों मौतों और लाखों की जिंदगी भर की पीड़ा का सबब बने इस त्रासद कांड से भोपाल के सीने पर जो असहनीय चोट लगी थी, इस फैसले ने उन घावों को कुरेद कर रख दिया है लेकिन अब कुछ राजनीतिक दलों एवं मीडिया के एक समूह द्वारा गैस पीडि़तों की पीड़ा को अपने स्वार्थ के लिए भुनाने का एक सोचा समझा प्रयास किया जा रहा है, उसे गैस पीडि़तों के भावनात्मक शोषण के अलावा और कोई नाम नहीं दिया जा सकता। इसमें कोई शक नहीं है कि हत्यारी यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष वारेन एंडरसन को जिन परिस्थितियों में भोपाल से जाने दिया गया, उसमें तत्कालीन केंद्र एवं राज्य सरकार तथा सरकार की नाक के नीचे बैठे राज्य व जिला प्रशासन के अफसरों की नापाक सांठगांठ जिम्मेदार थी और उन्हें इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए लेकिन भारत में यूका के कर्ताधर्ता अधिकारियों को, जो खालिस भारतीय नस्ल के थे , बचाने के लिए इसका इस्तेमाल करना कहां तक उचित है? इस बात पर विश्वास करने का पर्याप्त कारण हैं कि एंडरसन पर छिड़े घमासान में उन सभी तथ्यों को जानबूझकर भुलाया जा रहा है, जो इस भयावह त्रासदी के लिए जिम्मेदार थे। आखिर केशव महेंद्रा सहित उन तमाम लोगों को जो इस नरसंहार में दोषी थे, सिर्फ दो वर्ष की सजा दिये जाने और उस पर भी चंद मिनटों में जमानत मिल जाने की न्यायिक त्रासदी को हम इतनी आसानी से क्यों भुला बैठे हैं? हम इस फैसले के खिलाफ अपील के लिए दबाव बनाने के अपने संकल्प से क्यों भटक रहे हैं? एंडरसन के मामले में अर्जुन सिंह तथा राजीव गांधी के नाम उछलने के बाद तो जैसे भाजपा को मुुंह मांगी मुराद मिल गई है और वह इसे राजनीतिक वैतरिणी के रूप में इस्तेमाल कर रही है। कैलाश विजयवर्गीय तथा कमल पटेल पर लगे गंभीर आरोपों तथा कानून व्यवस्था कायम रखने में नाकामी से घिरी शिवराज सरकार अब एंडरसन के मामले पर ऐसा चक्रव्यूह रच देना चाहती है जिसमें महाभारत की पौराणिक कथा के विपरीत अर्जुन ऐसे उलझ जाएं कि बाहर ही न निकल सकें। इसी व्यूहरचना के तहत भाजपा ने प्रदेशव्यापी धरना प्रदर्शन का भी आयोजन किया है। लेकिन ऐसे बहुत सारे रहस्य हैं जो यदि उजागर हो जाएं तो भाजपा की यह हंसी काफूर हो सकती है। मसलन यूनियन कार्बाइड को कीटनाशक बनाने का लायसेंस सखलेचा सरकार ने दिया था। जब अर्जुन सिंह कथित रूप से एंडरसन को देश से सुरक्षित बाहर निकालने का ताना बाना बुन रहे थे, तब भाजपा ने इसका कितना विरोध किया था और उस समय की कांग्रेस सरकार से भाजपा की मिलीभगत के कारण क्या उसका विरोध भोथरा नहीं हो गया था? लेकिन यह समय राजनीतिक चालों- कुचालों का नहीं, गैसपीडि़तों की भावनाओं पर मरहम लगाने के लिए गैस त्रासदी के वास्तविक जवाबदेहों को उनके किये की समुचित सजा दिलाने का है और उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य की सरकार एवं विपक्ष इस हकीकत को समझेगा और इसके अनुरूप अपनी आगे की कार्रवाई तय करेगा।
- सर्वदमन पाठक
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