Monday, July 13, 2009

नक्सलवादियों से निपटने में सियासत न करें

छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों के खूनी हौसले कितने बुलंद हैं, यह राजनांदगांव जिले की घटना ने सिद्ध कर दिया है। राजनांदगांव के घने जंगलों के बीच स्थित मदनवाड़ा थाना क्षेत्र के गोरगुड्डïी गांव में नक्सलवादियों ने घात लगाकर एसपी विनोद कुमार चौबे सहित कुल चालीस से अधिक पुलिस जवानों की हत्या कर दी। दरअसल इस क्षेत्र में नक्सलवादियों के मौजूद होने की खबर मिलने के बाद उनके सफाये के लिए निकली पुलिस पार्टी नक्सलवादियों के ही जाल फंस गई। यह पहला मौका नहीं है जब छत्तीसगढ़ नक्सलवादियों की खूनी वारदातों से दहला हो। पिछले एक साल में ही छत्तीसगढ़ में 148 लोग नक्सली हिंसा का शिकार हो चुके हैं। दरअसल पिछले कुछ सालों में देश में छत्तीसगढ़ नक्सलवादियों का सबसे बड़ा गढ़ बन गया है। रमन सिंह सरकार ने नक्सली समस्या से निपटने के लिए अपनी ओर से कई बार रणनीति बनाई है और सल्वा जुड़म अभियान ने तो सारे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है हालांकि इस अभियान की कहीं सराहना तो कहीं आलोचना हुई है। इसके तहत नक्सलवाद प्रभावित गांव में लोगों में विश्वास तथा सुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए उन्हें शस्त्रों से सुसज्जित किया गया और उनके लिए अलग शिविर बनाए गए लेकिन सरकार के इस अभियान का उल्टा ही असर हुआ है और नक्सलवादियों का कहर कम होने के बदले बढ़ गया है। यदि यह कहा जाए कि रमन सिंह सरकार नक्सलियों से निपटने में रणनीतिक दृष्टिï से असफल रही है तो गलत न होगा। सच तो यह है कि नक्सलवादी समस्या केंद्र और राज्य सरकार के बीच राजनीतिक जोर आजमायश का बहाना बन कर रह गई है। केन्द्र सरकार नक्सली हिंसा से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ को स्थायी तौर पर 16 बटालियन दे चुकी है। इतनी बटालियन केंद्र ने किसी राज्य में नहीं भेजी है। पूरे देश में गृह मंत्रालय ने अद्र्धसैनिक बलों की 37 बटालियन मुहैया कराई हैं। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ सरकार सुरक्षा बल की कमी बता रही है। लेकिन नक्सलवाद से निपटने में असफलता के लिए सिर्फ छत्तीसगढ़ सरकार को दोष देना उचित नहीं होगा क्योंकि यह कानून व्यवस्था की ही समस्या नहीं है जिसके लिए सिर्फ राज्यों को जिम्मेदार ठहराया जा सके। यह एक राष्टï्रीय समस्या है जो कई राज्यों से जुड़ी है। संभव है कि नक्सलवादी कभी ग्रामीणों तथा आदिवासियों के अन्याय तथा शोषण को अपने हिंसक संघर्ष का कारण बताकर अपने रास्ते को जायज ठहराते रहे हो लेकिन अब तो नक्सलवाद बेगुनाहों के खून से अपने हाथ रंगने और अवैध वसूली के लिए ही बदनाम हो चुका है। अब नक्सली सीधे पुलिस या सुरक्षा बलों के जवानों को ही घात लगा कर मार रहे हैं और इस तरह कानून व्यवस्था को सीधे तौर पर पर चुनौती दे रहे हैं। इस साल नक्सली हिंसा में करीब 500 लोग मारे गए जिनमेें से 280 पुलिसवाले थे।यदि नक्सलवाद के इस खूनी कहर से निजात दिलानी है तो इसके लिए केंद्र सरकार एवं नक्सलवाद प्रभावित राज्यों को एक संयुक्त व्यूहरचना बनानी होगी और नक्सलवादियों पर चौतरफा कार्रवाई करनी होगी। इस दिशा में अपनी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए प्रधानमंत्री ने नक्सलवाद को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है और नक्सलियों के खिलाफ जंग का ऐलान किया है जो कि एक अच्छा संकेत है लेकिन इसके साथ ही सरकार को इन राज्यों के दूर दराज इलाकों में ग्रामीणों एवं आदिवासियों के साथ होने वाले अन्याय को दूर करने के लिए सख्त कार्रवाई करनी होगी ताकि उनको मिल रहा स्थानीय लोगों का समर्थन खत्म किया जा सके क्योंकि सिर्फ ताकत की भाषा से इसका समाधान नहीं निकलेगा।
-सर्वदमन पाठक

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