मध्यप्रदेश में जूनियर डाक्टरों की हड़ताल शुरू हो गई है और राज्य सरकार ने अल्टीमेटम की अवधि पूरी होने के बाद सख्त रुख अपनाते हुए 1300 हड़ताली जूनियर डाक्टरों को निष्कासित कर दिया है लेकिन इससे हालात और बिगडऩे के आसार दिख रहे हैं और इनके समर्थन में सीनियर डाक्टर भी हड़ताल पर जाने के लिए कमर कस रहे हैं। चूंकि आम तौर पर सरकारी अस्पतालों की चिकित्सा की जिम्मेदारी इन्हीं डाक्टरों पर रहती है इसलिए स्वाभाविक रूप से इस हड़ताल से इन अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई हैं। यह सच है कि डाक्टरों का पेशा लोगों की जिंदगी तथा उनकी सेहत की देखभाल से जुड़ा हुआ है इसलिए उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने दायित्वों की गंभीरता को देखते हुए हड़ताल जैसे कदम नहीं उठाएंगे। यह बात सैद्धांतिक रूप से बिल्कुल सही है लेकिन हमें इस सिलसिले में इसके व्यवहारिक पक्ष पर गौर अवश्य करना चाहिए। हमें इन डाक्टरों की सेवाओं के साथ ही उनके वेतन तथा सुविधाओं पर भी विचार करके हड़ताल के औचित्य को लेकर कोई फैसले पर पहुंचना चाहिए। सच तो यह है कि जूनियर डाक्टरों के ड्यूटी के घंटे और उनकी थका देने वाली सेवाएं किसी भी व्यक्ति को आश्चर्यचकित कर देने के लिए काफी हैं। कई बार तो उन्हें 36- 36 घंटे तक लगातार काम करना पड़ता है जो किसी भी पेशे से अधिक कष्टï साध्य होता है। चिकित्सा के इस पेशे में जो इज्जत मिलनी चाहिए, वह भी आजकल लुप्त हो रही है जिसके लिए हर छोटी बड़ी चूक या अनहोनी घटनाओं पर होने वाली मीडिया ट्रायल भी काफी हद तक जिम्मेदार है। डाक्टर कोई भगवान नहीं होता। कोई भी डाक्टर अपने मरीजों को बचाने अथवा स्वस्थ करने के अपनी ओर से भरसक प्रयास करता है लेकिन अंतिम सत्य यही है कि किसी की भी जिंदगी और मौत अंतत: ईश्वर के हाथ में ही होती है। मीडिया में इसे जिस तरह से सिर्फ लापरवाही करार देकर डाक्टरों की निष्ठïा पर सवालिया निशान लगाने का फैशन चल पड़ा है उससे लोगों में भी डाक्टरों के प्रति भरोसा घटा है। इसका परिणाम यही होता है कि डाक्टर अपनी ड्यूटी निभाने के बावजूद जब तब कटघरे में खड़े नजर आते हैं। मानव सेवा के अपने फर्ज को निभाने के बावजूद उन पर सरकारी कार्रवाई की तलवार लटकती रहती है। सरकार का संवेदनहीन रवैया उनकी इस पीड़ा को दुगुना कर देता है। प्रदेश में भाजपा के कार्यकाल में जितने डाक्टरों को निलंबित किया गया है, वह अपने आप में एक रिकार्ड ही होगा। अपनी तमाम तकलीफों के बाद भी जूनियर डाक्टर जो वेतन पाते हैं, वह इस पेशे के लिए अपमानजनक ही माना जा सकता है। जूनियर डाक्टरों की हड़ताल इन तमाम हालात के प्रति उनके आक्रोश की परिचायक है। सरकार को इनसे मानवीय तरीके से निपटना चाहिए और उनकी मांगों पर सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाकर इस मामले का हल निकालना चाहिए। निष्कासन जैसी कार्रवाई को वापस लेकर राज्य सरकार को बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए ताकि डाक्टरों को न्याय मिल सके और सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्था पूर्ववत कायम हो सके। सरकार के हठ और सख्त रुख से समस्या बिगड़ेगी ही, हल कतई नहीं होगी।
- सर्वदमन पाठक
- सर्वदमन पाठक
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