हमारी संस्कृति में गुरु शिष्य परंपरा का विशेष महत्व रहा है। दरअसल गुरु और शिष्य के बीच पवित्रता का रिश्ता हमारी पहचान ही है जिसमें लिंग, जाति एवं वर्णभेद आड़े नहीं चाहिए। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जो इस पवित्र रिश्ते को कलंकित कर गए हैं। ऐसी ही शर्मसार करने वाली घटना गंजबासौदा में गत दिवस हुई जिसमेंं एक शिक्षक ने अपनी मनोविकृति का परिचय देते हुए अपनी छात्राओं के वस्त्र उतरवा लिए। ड्रेस के लिए नाप लेने के बहाने उन बच्चियों के कपड़े उतरवाने के बाद भी उसकी यौन कुंठा शांत नहीं हुई तो उसने अपने हाथों से विभिन्न अंगों का नाप लेने की अश्लील हरकत की। अब उसे उसकी करनी की सजा मिल रही है और उसे बर्खास्त करके गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन उक्त शिक्षक की यह पहली आपत्तिजनक कोशिश नहीं थी। स्कूल की एक शिक्षिका ने पूर्व में भी उसका आचरण संदिग्ध होने की शिकायत की थी। सवाल यह है कि ऐसा कौन सा कारण था कि उस शिक्षक पर इस शिकायत के बावजूद उस समय कार्रवाई नहीं की गई। यदि उस समय पर्याप्त कार्रवाई की गई होती तो ये बच्चियां इस अश्लील हरकत की शिकार बनने से बच जातीं और वह स्कूल कलंकित होने से बच जाता। नूरापुर टपरा में शिक्षा गारंटी योजना के तहत चलाये रहे स्कूल में हुई यह घटना शिक्षक के चारित्रिक पतन की परिचायक तो है ही, एक गंभीर सामाजिक अपराध भी है क्योंकि विपन्न तथा विकास की रोशनी से महरूम आदिवासियों के बच्चों को ही इस स्कूल में दाखिला दिया जाता है और स्वाभाविक रूप से यह घृणित घटना स्कूल में पढऩे वाले आदिवासी बच्चों को शिक्षा के प्रति निरुत्साहित कर सकती है। हम यह दावा करते नहीं थकते कि हम सभ्यता के काफी ऊंचे पायदान पर खड़े हैं। आदिवासियों के सशक्तिकरण के लिए तमाम कदम उठाए गए हैं लेकिन इसके बावजूद आदिवासियों के भोलेपन और उनकी बेचारगी का नाजायज फायदा उठाने और उनको प्रताडि़त करने की मनोवृत्ति अभी भी हावी है जिसकी झलक इस घटना में देखी जा सकती है। भारतीय संस्कृति में नारी को प्रतिष्ठïापूर्ण स्थान हासिल है। वेदों में कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं। फिर क्या कारण है कि हमारी मानसिकता विकृतियों की शिकार हो रही है जिसे इस घटना में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। क्या पाश्चात्य संस्कृति हम पर हावी हो रही है? क्या टीवी चैनलों में परोसी जा रही और इंटरनेट में आसानी से उपलब्ध अश्लील सामग्री हमारे विचारों को विकृति के गर्त में धकेल रही है? ये ऐसे सवाल हैं जिन पर जल्द से जल्द विचार करना और इनके समाधानकारी उत्तर खोजना वक्त का तकाजा है ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोका जा सके। इस घटना का एक कारण यह भी है कि शिक्षक के पेशे के साथ जो आदर्श की अवधारणा जुड़ी हुई थी, वह आजकल लुप्त हो रही है। शिक्षा को पुण्य कर्म मानने और ऐसी ही पुण्य भावना के साथ इसे अंजाम देने का जज्बा अब खत्म होता जा रहा है। यदि हम शिक्षा के माहौल को परिष्कृत करना चाहते है तो हमें इस शिक्षकीय आदर्श की पुनस्र्थापना करनी होगी।
-सर्वदमन पाठक
-सर्वदमन पाठक
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