Thursday, July 16, 2009

प्रदर्शनों को मर्यादा में बांधा जाए

प्रदर्शन वैसे तो ऐसा लोकतांत्रिक अधिकार है जिससे अपने विरोध को व्यक्त किया जा सकता है और राजनीतिक दल अपने इस लोकतांत्रिक अधिकार का भरपूर इस्तेमाल करते रहते हैं लेकिन आजकल यह अधिकार आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बनने लगे हैं। इसका ताजा उदाहरण है भोपाल में हुआ युवक कांग्रेस का प्रदर्शन। मप्र के बजट से लोगों पर पडऩे वाली महंगाई की जबर्दस्त मार, बिगड़ती कानून व्यवस्था तथा भ्रष्टïाचार पर विरोध जताने के लिए यह प्रदर्शन आयोजित किया गया था। स्वाभाविक रूप से इस प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले लोगों के चेहरे पर सरकार की नीतियों के खिलाफ गुस्सा झलकना चाहिए था लेकिन प्रदर्शन से इस गुस्से का कोई अहसास नहीं हो रहा था। इसका यह संकेत तो स्पष्ट था कि यह राज्य सरकार की नीतियों से संभावित मूल्यवृद्धि पर लोगों के आक्रोश को अभिव्यक्ति देने का प्रयास कम, कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन ज्यादा था। इसे यदि कांग्रेस शक्ति प्रदर्शन का नाम देती तब भी इसमें लोकतांत्रिक दृष्टिï से कुछ भी गलत नहीं था लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जरूरी है कि ऐसे प्रदर्शन लोगों की परेशानियों की कीमत पर किये जाएं। दरअसल कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के बाद से यह महसूस हो रहा था कि उसकी लोकप्रियता में इजाफे के कारण ही उसे चुनाव में ज्यादा सीटें मिली हैं और इस प्रदर्शन के पीछे उसका यही मंसूबा था कि वह प्रदेश में अपनी बढ़ती लोकप्रियता को दर्शा सके लेकिन इस प्रदर्शन में लोगों की सीमित भागीदारी के कारण वह अपने इस मंसूबे में पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सकी है। अलबत्ता उसके प्रदर्शन ने शहरवासियों को परेशानियों का तोहफा जरूर दे दिया। शहर में लगे बेरिकेड तथा यातायात पर लगी पाबंदियों के चलते लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कई लोग अपने आफिस, बहुत से बच्चे अपने स्कूलों और कालेजों में नहीं पहुंच पाए तो उसकी वजह यही प्रदर्शन तो था। इस प्रदर्शन ही नहीं बल्कि तमाम राजनीतिक प्रदर्शनों की हकीकत यही है कि ये आयोजित तो लोकतांत्रिक अधिकार के तहत किये जाते हैं लेकिन इसमें लोकतंत्र की सबसे बड़ी सत्ता जनता को होने वाली असुविधाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाता है। गौरतलब है कि विभिन्न अदालतों ने जब तब प्रदर्शन, आंदोलन से लोगों को होने वाली असुविधाओं पर अपनी चिंता जताई है। पश्चिमी बंगाल में तो न्यायालय ऐसे प्रदर्शनों पर रोक का निर्देश तक दे चुका है। महाराष्टï्र की अदालत ने एक राजनीतिक दल को ऐसे प्रदर्शन से होने वाले नुकसान की भरपाई का आदेश दिया था। वक्त आ गया है कि अब न्यायालय की इन भावनाओं का सम्मान करते हुए ऐसे तमाम प्रदर्शन के लिए नियम कायदे बनाए जाएं। प्रदर्शनों की अनुमति देते समय इस बात सुनिश्चित किया जाए कि इससे लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में रुकावट नहीं आएगी। इन्हें क्षेत्र की दृष्टिï से इस तरह से परिसीमित किया जाना चाहिए कि जनजीवन बदस्तूर चलता रहे और प्रदर्शनकर्ताओं से पहले से ही यह अंडरटेकिंग ले ली जाए कि वे अनावश्यक से लोगों की आवाजाही में अवरोध पैदा नही करेंगे और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। यदि वे अपनी यह अंडरटेकिंग पूरी नहीं करते तो उनके खिलाफ हर्जाने एवं पाबंदियों तक की कार्रवाई का प्रावधान हो।
-सर्वदमन पाठक

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