यह भी एक विडंबना ही है कि मध्यप्रदेश जैसे बेइंतहा गरीबी से ग्रस्त प्रदेश में जहां एक ओर आर्थिक अभाव के कारण दवाइयां नहीं खरीद पाने की वजह से ग्रामों एवं शहरों की एक बड़ी आबादी गंभीर बीमारियों की असहनीय पीड़ा झेलते रहने या असमय मौत की दस्तक सुनने के लिए मजबूर है, वहीं दूसरी ओर इन दिनों बीस करोड़ की जीवन रक्षक दवाइयां एक्सपायरी के कारण नष्टï की जा रही है। इस मामले में सबसे ज्यादा चिंतनीय है सरकार की रहस्यमय चुप्पी जो सरकार की संवेदनशीलता पर प्रश्र चिन्ह लगा रही है। यह एक ऐसा गोरखधंधा है, जिनमें चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के कई आला अफसरों का हाथ है लेकिन इनका गंठजोड़ इतना मजबूत है कि कानून के लंबे हाथ भी उनके गले तक नहीं पहुंच सकें , इसकी संभावना काफी कम नजर आती है। इससे जुड़ा समूचा घटनाक्रम यही संकेत करता है कि पहले सुनियोजित तरीके से सरकारी अस्पतालों में दवाइयों का कृत्रिम अभाव निर्मित किया गया और फिर जब गरीबों को सरकारी दवाखाने से नि:शुल्क दवाइयां न मिलने के कारण हायतौबा मची तो आनन फानन में लगभग चार सौ करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि स्वीकृत कराकर उनकी दवाइयां खरीद ली गईं। यह जांच का विषय है कि यह सरकारी लापरवाही थी या सोची समझी साजिश जिसके तहत ढेर सारी दवाइयां ऐसी खरीदी गई जो छह माह बाद ही एक्सपायर हो जाने वाली थीं। कुछ अस्पतालों ने तो सतर्कता बरतते हुए इन दवाओं को लेने से इंकार कर दिया लेकिन अधिकांश अस्पतालों में ये दवाइयां बाकायदा स्टोर तक पहुंच गई लेकिन जब तक यह मरीजों को उपलब्ध होती, इनकी एक्सपायरी डेट आ गई और तब इन्हें नष्टï करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था। गौरतलब है कि सरकारी अस्पतालों में खरीदी जाने वाली दवाइयों की एक्सपायरी डेट न्यूनतम तीन साल होती है फिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि छह माह एक्सपायरी डेट वाली दवाइयां खरीदीं गई। इससे यह संदेह उपजना स्वाभाविक ही है कि इसके इसके पीछे कोई रैकेट तो काम नहीं कर रहा। कहीं सरकार, प्रशासन और मेडिकल पेशे से जुड़े आला अफसरों की मिलीभगत से कुछ दवा कंपनियों ने अपनी शीघ्र एक्सपायरी डेट वाली दवाइयां सरकारी अस्पतालों के मत्थे तो नहीं मढ़ दी, और इसके एवज में रिश्वत की भारी भरकम राशि की बंदरबांट तो नहीं हो गई, यह ऐसा सवाल है जो किसी के भी मन में उठ सकता है। सवाल यह भी है कि बीपीएल कार्डधारी किसी भी मरीज की शिकायत पर अस्पतालों में अधीक्षक तक को पल भर में निलंबित करने का आदेश दे देने वाली सरकार इस मामले में चुप्पी क्यों साधे हुए हैं। आखिर कोई कठोर कार्रवाई करने में वे झिझक क्यों रही है? राज्य के लोगों की सेहत की रक्षा की कसमें खाती रहने वाली राज्य सरकार को इस मामले को भी पूरी गंभीरता से लेना चाहिए और इसकी गहन जांच कर दोषियों पर कठोरतम कार्रवाई करनी चाहिए ताकि उसके इस वादे पर लोगों का भरोसा कायम रह सके ।
-सर्वदमन पाठक
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