बुंदेलखंड देश के सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में से है। विकास की रोशनी से महरूम एवं उद्योगों के लिए तरसते इस क्षेत्र के बाशिंदे बेइंतहा बेरोजगारी और निर्धनता का जीवन जीने को अभिशप्त हैं इसलिए होना तो यह चाहिए था कि औद्योगीकरण तथा विकास के जरिये क्षेत्र में खुशहाली लाने और लोगों का जीवन स्तर उठाने की प्रभावी रणनीति बनाई जाए और इसको अमलीजामा पहनाने के लिए ठोस प्रयास किए जाएं लेकिन विडंबना यह है कि राजनीति के शतरंज में मोहरे की तरह इस्तेमाल होते रहना और अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाते रहना इस क्षेत्र की नियति बन गई है। इसकी ताजा मिसाल है बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के गठन एवं क्षेत्र की मदद के लिए लगभग 9000 करोड़ के पैकेज प्राप्त करने की राहुल गांधी की पहल और इसके विरोध में होने वाला हंगामाखेेज एवं उत्तेजनापूर्ण नाटक। इस सियासी नाटक की शुरुआत तब हुई जब कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का गठन किये जाने और क्षेत्र के विकास के लिए लगभग 9000 करोड़ के पैकेज की मांग की। राहुल जिन जिलों को मिलाकर बुंदेलखंड प्राधिकरण का गठन करवाना चाहते हैं उनमें 6 जिले मप्र और 7 जिले उप्र के सीमा में आते हैं। इस पहल पर अभी केंद्र की मंजूरी मिलनी शेष है लेकिन इस पर राजनीतिक शतरंज की बिसात अवश्य बिछ गई और शह और मात का खेल शुरू हो गया। इन दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ तथा केंद्र मेंं विपक्ष की भूमिका निभाने वाली राजनीतिक पार्टियों ने आनन फानन में राहुल के प्रस्ताव के खिलाफ मोर्चा संभालते हुए इसे संघीय ढांचे का उल्लंघन एवं राज्यों के कामकाज में केंद्र का दखल निरूपित किया। ये ऐसे आरोप थे कि अन्य राज्यों में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल भी प्रस्ताव के विरोधियों के साथ लामबंद हो गये। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने राहुल की इस पहल को बचकाना बताया तो उप्र में बसपा और सपा ने उसे क्षुद्र राजनीतिक चाल बताया। इनके गुस्से की बानगी संसद में भी देखी गई जहां हंगामे की वजह से संसद की कार्रवाई भी अवरुद्ध हो चुकी है। दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार ने संसद में स्पष्टï घोषणा कर दी कि इस आशय का कोई प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है लेकिन विरोध थमने का नाम ही नहीं ले रहा। हकीकत तो यह है कि इस मामले में विभिन्न दलों द्वारा अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास किया जा रहा है। जहां तक कांग्रेस की बात है, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि राहुल की इस पहल के इर्द-गिर्द ही कांग्रेस बुंदेलखंड में अपनी राजनीतिक व्यूह रचना रचे और उसी के अनुरूप अपने कदम आगे बढ़ाए। दरअसल इस प्रस्ताव का राज्य सरकारों एवं अन्य दलों द्वारा किया जा रहा विरोध राहुल गांधी एंड कंपनी के लिए मुंह मांगी मुराद की तरह ही है। कांग्रेस को इस विरोध की वजह से यह प्रचार करने में सहूलियत होगी कि कांग्रेस ने तो बुंदेलखंड क्षेत्र के संपूर्ण विकास के लिए ही प्राधिकरण का गठन और 9000 करोड़ के पैकेज की पहल की थी लेकिन इन राज्यों की सरकारों के विरोध के वजह से यह प्रस्ताव अवरुद्ध हो गया। इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि समूचे बुंदेलखंड को मिलाकर अलग राज्य के गठन की मांग काफी लंबे समय से उठती रही है जिसे वहां की जनता का भरपूर समर्थन हासिल है। यह प्राधिकरण इस मांग की दिशा में शुरुआती कदम हो सकता है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़, उत्तरांचल जैसे राज्यों के गठन के बाद इन क्षेत्रों का विकास तेज गति से हुआ है राहुल गांधी का प्रस्ताव बुंदेलखंड के लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। गौरतलब है कि पिछले चार सालों से संपूर्ण बुंदेलखंड क्षेत्र भयावह सूखे से कराहता रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में काफी बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। हालांकि दोनों राज्यों की सरकारों ने अपनी क्षमता के अनुसार इस संकट से निपटने के लिए बुंदेलखंड को आर्थिक मदद दी है लेकिन वह इतनी अपर्याप्त रही जैसे ऊंट के मुंह में जीरा। इसके फलस्वरूप इन क्षेत्रों में राज्य सरकारों के प्रति लोगों में नाराजी बढ़ी है। केन्द्र ने यहां भी राजनीति करते हुए इन राज्यों की पुरजोर गुहार के बावजूद उस समय बुंदेलखंड के लिए कोई पैकेज नहीं दिया और इस तरह प्रकारांतर से राज्य सरकारों की अलोकप्रियता को बढ़ाने में मदद दी। संपूर्ण बुंदेलखंड को एक अलग प्रशासनिक इकाई के रूप में मान्यता दी जाए और इसके तमाम संसाधनों को इसके विकास पर खर्च किया जाए तो क्षेत्र में विकास तथा गरीबी-उन्मूलन की उम्मीद की जा सकती है। राहुल द्वारा प्रस्तावित प्राधिकरण इसका मार्ग प्रशस्त कर सकता है इसका अहसास उप्र एवं मप्र की सरकारों को भी है। उन्हें लगता है कि यदि बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण की बेल मड़वे चढ़ी तो कांग्रेस इससे पैदा होने वाली राजनीतिक फसल को काट सकती है जो उनके राजनीतिक हितों पर जबर्दस्त कुठाराघात होगा।भाजपा,बसपा एवं सपा भी अपने वोट बैंक में सेंध लगने के डर से बुंदेलखंड प्राधिकरण का विरोध कर रही है। बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का गठन तथा इस क्षेत्र के लिए विशेष पैकेज की पहल और इसका विरोध दोनों ही सियासती दावपेंच से जुड़े हैं। केंद्र एवं राज्यों में सत्ता एवं विपक्ष की अलग अलग भूमिका निभा रहे ये दल यदि वास्तव में बुंदेलखंड की जनता के हितैषी हैं तो फिर उन्हें अपना रुख राजनीतिक तराजू में तौलकर तय नहीं करना चाहिए। यदि बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के जरिये इस क्षेत्र के लोगों के विकास का सपना सच हो सकता है तो फिर उसे सियासती हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं होना चाहिए और सियासी कारणों से इसका समर्थन एवं विरोध बंद होना चाहिए। आदर्श स्थिति तो यह होगी कि केंद्र सरकार इस मामले में दोनों राज्य सरकारों को विश्वास में ले ताकि इस महत्वपूर्ण पहल पर क्षुद्र राजनीति बंद हो और यह बुंदेलखंड की खुशहाली का प्रभावी उपकरण बन सके।
सर्वदमन पाठक
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Best wishes from Italy!
इस लेख को पढ कर बहुत अच्छा लगा!
ReplyDelete" वर्तमान में बुन्देलखण्ड के जो हालात हैं वह तो किसी से भी नही छुपें हैं, परन्तु हकीकत तो यही है कि कोई भी आगे आने में पहल नही करता, और न ही उस स्तर पर विरोध किया जाता है, जिसकी आवश्यकता अब वास्तव में बुन्देलखण्ड को है"
मेरे विचार से अब युवाओं को ही बुन्देल्खण्ड की इस दयनीय स्थिति और बदहाली के लिये कदम उठाने होंगे, तब जाकर कुछ हो सकता है। इसके सिवा मुझे नही लगता की शीघ्र कुछ प्रभावकारी हो सकेगा।
जय बुंदेलख्ण्ड!
(संजय गुप्ता)
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