जसवंत सिंह वैसे तो काफी शांतिप्रिय व्यक्तित्व के धनी माने जाते हैं और भाजपा जैसी पार्टी के लिए, जिसमें उत्तेजनापूर्ण बयानबाजी में भरोसा रखनेे वाले नेताओं की कोई कमी नहीं है, उनकी शालीनता की काफी कद्र की जाती रही है लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि उनकी कार्यशैली और लेखनी जब तब काफी मुश्किलें पैदा करती रही है। इसका ताजा उदाहरण जिन्ना पर लिखी उनकी पुस्तक है जिसमें उन्होंनेे सरदार पटेल एवं जवाहरलाल नेहरू को भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया है और इसके लिए मोहम्मद अली जिन्ना को एक तरह से बरी कर दिया है। इसने न केवल भाजपा बल्कि समूचे देश के मानस को झकझोर दिया है क्योंकि धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को ही भारत जिम्मेदार मानता रहा है। वैसे यह पुस्तक ऐतिहासिक तथ्यों पर की गई शोध ही है जिसके निष्कर्ष सभी के लिए चौंकाने वाले हैं। इस पुस्तक ने ऐन चिंतन बैठक के पहले भाजपा के भीतर ऐसा तूफान खड़ा कर दिया जिसमेंं चिंतन के बदले पार्टी नई चिंता से रूबरू हुई और इसके फलस्वरूप इस पूर्व फौजी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। उनके इस दुस्साहस से तो मानो पार्टी के भीतर से ही उस पर निशाना साधने का सिलसिला शुरू हो गया है जिसकी ताजा मिसाल अरुण शौरी का बयान है जिसमें उन्होंने पार्टी अध्यक्ष को हम्टी डम्टी निरूपित कर दिया है। ये वही जसवंत सिंह हैं जो आतंकवादी विमान अपहर्ताओं को सुरक्षित छोडऩे के लिए विमान में कंधार ले जाने के कारण विवादों में घिर गए थे। यह अकेला कांड अटलविहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लिए ऐसा बदनुमा धब्बा है जो आज भी वाजपेयी सरकार पर आतंकवाद के सामने घुटने टेकने के सबसे बड़े आरोप के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अब जसवंत सिंह ने इस सिलसिले में एक और सनसनीखेज रहस्योद्घाटन कर भाजपा के सामने नई मुश्किल खड़ी कर दी है। उन्होंने अपने इस पुराने बयान का खुद ही खंडन कर दिया है कि सरकार के इस फैसले की लालकृष्ण आडवाणी को कोई जानकारी नहीं थीं। उनका कहना है कि उन्होंने यह बयान इस कारण दिया था ताकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान न हो।इसके पहले अपनी एक और पुस्तक में उन्होंने यह लिख कर सनसनी फैला दी थी कि नरसिंह राव सरकार के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय में जासूस मौजूद था हालांकि वे इसके बारे में सबूत पेश नहीं कर पाए।जसवंत सिंह राजस्थान की राजनीति में भी काफी विवादास्पद रहे। वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ वे लगातार मुहिम चलाते रहे। एक बार तो उन्होंने इसके लिए राजपूत राजाओं को आमंत्रित कर अपनी निष्ठïा की शपथ दिलाने के लिए अफीम चटाई जो एक नया विवाद खड़ा कर गई। अफीम तस्कर रोशन से संबंधों को लेकर भी उनकी आलोचना हुई। कभी भाजपा नीत केंद्र सरकार में वित्त तथा विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहे जसवंत सिंह अब भाजपा के आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। उनकी ताजा गतिविधियां यदि उनकी आगामी राजनीतिक व्यूहरचना का कोई संकेत देती हैं तो निश्चित ही वे निकट भविष्य में भाजपा के किसी प्रमुख प्रतिद्वंदी दल के साथ होंगे और अपने बौद्धिक चातुर्य का इस्तेमाल भाजपा को अधिकाधिक कमजोर करने में कर रहे होंगे।
-सर्वदमन पाठक
Sateek chintan.
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।