Thursday, September 17, 2009

मान्यता पर मंडराता खतरा

यह मध्यप्रदेश के लिए अत्यंत ही शर्म की बात है कि चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में हमारी हालत देश के छोटे-छोटे राज्यों से भी गई गुजरी हो गई है। देश में गिने चुने मेडिकल कालेजों को एमसीआई की सूची से बाहर रखा गया है, उनमें सर्वाधिक पांच मेडिकल कालेज मध्यप्रदेश के ही हैं। तात्कालिक रूप से इसका खमियाजा इन मेडिकल कालेज से एमबीबीएस करने वाले उन डाक्टरों को भुगतना पड़ रहा है जो सीबीएसई से प्री-पीजी की परीक्षा देना चाहते हैं क्योंकि इस वर्ष भी प्री-पीजी की परीक्षा के लिए भरे जाने वाले फार्म में प्रदेश के इन पांचों मेडिकल कालेजों का कोड नहीं दिया गया है। स्वाभाविक रूप से ये डाक्टर फिलहाल फार्म नहीं भर सकते क्योंकि फार्म में कालेज का कोड भी भरना होता है। वैसे इसका एक दूरगामी परिणाम यह भी हो सकता है कि इन कालेजों से एमबीबीएस करने वाले डाक्टरों की मान्यता पर भी संकट मंडरा सकता है लेकिन इसके बावजूद राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसरों के चेहरे पर पछतावे के कोई चिन्ह नजर नहीं आते। पिछले वर्ष की तरह से इस बार भी राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने एमसीआई की मान मनौव्वल शुरू कर दी है और संभव है कि शासन- प्रशासन की काफी लानत मलानत के बाद अंतत: इन डाक्टरों को फार्म भरने की अनुमति मिल जाए लेकिन फिर भी एमसीआई की मान्यता बहाल हुए बिना राज्य से एमबीबीएस करने वाले डाक्टरों के भविष्य पर लगा प्रश्रचिन्ह हटना संभव नहीं है। एमसीआई के इस फैसले से यह तो स्पष्टï हो ही गया है कि प्रदेश के मेडिकल कालेज सुविधाओं की दृष्टिï से एमसीआई द्वारा तय किये गये उन मापदंडों पर खरे नहीं उतरते जो मेडिकल कालेजों की मान्यता के लिए अनिवार्य होती हैं। गौरतलब है कि अभी एक दो माह पहले प्रदेश में जूनियर डाक्टरों की जंगी हड़ताल हो चुकी है। मेडिकल कालेजों के अस्तित्व पर मंडराते संकट के कारण उनमें अपने केरियर के प्रति उपजी चिंता इस हड़ताल का प्रमुख कारण था। हड़ताल की समाप्ति के लिए राज्य सरकार एवं जूनियर डाक्टरों के बीच जो समझौता हुआ था उसमें यह शर्त भी शामिल थी कि एमसीआई के मापदंडों के अनुरूप राज्य के मेडिकल कालेजों में सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी ताकि इन मेडिकल कालेजों की एमसीआई की मान्यता बहाल हो सके लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किये गये हैं। न तो चिकित्सा महाविद्यालयों में समुचित सुविधाएं उपलब्ध हो पाई हैं और न ही पर्याप्त शिक्षण स्टाफ ही नियुक्त हो पाया है। ऐसा नहीं है कि यह मेडिकल शिक्षा की यह दुर्गति इस सरकार की देन है लेकिन इतना तो तय है कि इस सरकार ने भी मेडिकल कालेजों को स्तरीय सुविधाएं और समुचित संख्या में प्रोफेसर उपलब्ध कराने के बारे में कोई संकल्पशक्ति प्रदर्शित नहीं की है। इसका परिणाम यही हुआ है कि आज भी चिकित्सा महाविद्यालय की एमसीआई मान्यता पर तलवार लटक रही है। इससे डाक्टरों में भी निराशा का माहौल बना हुआ है। सरकार को यदि वास्तव में प्रदेश के लोगों की सेहत का ख्याल है तो उसे डाक्टरों की यह निराशा दूर करने के लिए मेडिकल कालेजों को एमसीआई मान्यता की बहाली के लिए यथाशीघ्र समुचित कदम उठाना चाहिए और इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
-सर्वदमन पाठक

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