Wednesday, September 9, 2009

बिजली संकट से फूटता गुस्सा

बिजली कटौती को लेकर लोगों का संयम टूटता जा रहा है। विभिन्न स्थानों पर हो रहे हिंसक प्रदर्शन इस हकीकत को ही बयां करते हैं। स्वाभाविक रूप से विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लपक लिया है और अधिकाधिक राजनीतिक लाभ भुनाने के लिये उन्होंने इन आंदोलनों की बागडोर थाम ली है। चूंकि इन आंदोलनों से जन भावनाएं जुड़ी हैं इसलिए ये आंदोलन कई बार सब्र की सीमा तोड़ देते हैं। आंदोलन लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है इसलिए आंदोलन के औचित्य को कतई नकारा नहीं जा सकता लेकिन जब आंदोलन हिंसक हो उठते हैं तो फिर इसके औचित्य पर सवालिया निशान लग जाता है। वैसे भी किसी भी सरकार को यह बात रास नहीं आती कि ऐसे जनांदोलनों का लाभ विपक्ष को मिले और वह येन केन प्रकारेण इन आंदोलनों को कुचलने के लिए बेचैन रहती हैं। आंदोलन में हिंसा से इसका मूल उद्देश्य पराजित हो जाता है क्योंकि ऐसे आंदोलनों को हिंसा का बहाना लेकर बलप्रयोग से तुड़वा देना पुलिस के लिए आसान हो जाता है। राजगढ़ में बिजली कटौती के खिलाफ जन प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठीचार्ज ऐसी ही घटना है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कई कांग्रेस कार्यकर्ता इस प्रदर्शन के दौरान हुए पथराव एवं पुलिस लाठीचार्ज में घायल हो गए। पुलिस का दावा है कि दिग्विजय सिंह पथराव में घायल हुए हैं लेकिन खुद दिग्विजय सिंह एवं कांग्रेस कार्यकर्ता इसके लिए पुलिस लाठीचार्ज को जिम्मेदार मानते हैं। फिलहाल यह कहना तो मुश्किल है कि इनमें किसकी बात में सच्चाई है लेकिन दिग्विजय सिंह जैसे नेता की अगुआई में हो रहे प्रदर्शन के दौरान पथराव एवं लाठीचार्ज की घटनाएं और उनका घायल होना प्रशासन की अक्षमता एवं असफलता का ही प्रमाण है। पुलिस एवं अन्य प्रशासनिक मशीनरी सतर्कता बरतती तो ये घटनाएं टाली जा सकती थीं। सरकार एवं प्रशासन यह कहकर दोषमुक्त नहीं हो सकता कि उनकी लाठी नहीं बल्कि पथराव से कांग्रेस नेता एवं कार्यकर्ता घायल हुए हैं। विद्युत कटौती पर आंदोलनों का यह सिलसिला अब थमनेे की संभावना कम ही है क्योंकि बिजली संकट के फिलहाल बढऩे के ही आसार हैं और आम आदमी का इससे नाराज होने का हक है। सरकार एवं प्रशासन को ऐसे प्रदर्शनों के दौरान संयम का परिचय देना चाहिए। ऐसे प्रदर्शनों को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति निरुत्साहित होनी चाहिए। इस बिजली संकट को हल करने के लिए सरकार को विपक्ष से सहयोग मांगना चाहिए। प्रदेश में विपक्ष में बैठी कांग्रेस का यह सहयोग इस संकट के हल में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है क्योंकि बिजली परियोजनाओं की स्वीकृति में केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार अहम रोल अदा कर सकती है। लेकिन सवाल यही है कि राज्य में बिजली संकट पर जन असंतोष को चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव जीतने वाली भाजपा अपनी ओर से यह हिम्मत जुटा पाएगी?
-सर्वदमन पाठक

1 comment:

  1. बिजली समस्या तो बढ़ती ही जा रही है.

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