इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली कटौती को लेकर उग्र आंदोलनों का एक सिलसिला चल पड़ा है। इन आंदोलनों को किसानों के गुस्से के उमड़ते ज्वार के रूप में देखा जा रहा है। तमाम सुरक्षा प्रबंधों के बावजूद इन आंदोलनकारियों के उत्तेजना में कोई कमी नहीं आई है। दरअसल बिजली कटौती ने उनके कृषि कार्यों को बुरी तरह से प्रभावित किया है और उनकी फसल के चौपट होने का खतरा पैदा हो गया है। उनके खेतों को पर्याप्त पानी न मिलने से फसलें पकने के पहले ही सूख चली हैं। किसानों की पूरी जिंदगी ही कृषि पर टिकी है इसलिए उनका गुस्सा स्वाभाविक ही है। हाल की बारिश के बावजूद खेतों में सिंचाई के लिए समुचित पानी नहीं मिल पा रहा है क्योंकि उनके सिंचाई पंप बिजली के बिना बेमानी हो गये हैं। सरकार खुद इस मामले में काफी चिंतित है लेकिन बिजली उत्पादन एवं बिजली आपूर्ति में काफी बड़ा अंतर होने के कारण वह भी काफी हद तक लाचार है। उसके लिए यह दूबरे और दो आषाढ़ जैसी स्थिति है क्योंकि एक तरफ तो राज्य में बिजली की उत्पादन क्षमता ही काफी कम है और दूसरी ओर राज्य के बिजली संयंत्रों में अलग अलग कारणों से उनकी क्षमता के अनुरूप भी उत्पादन नहीं हो पा रहा है। राज्य सरकार इसका दोष कांग्रेस नीत केंद्र सरकार को दे रही है। उसकी दलील है कि बिजली संयंत्रों को पर्याप्त कोयला न मिलने से इनमें बिजली उत्पादन क्षमता के अनुरूप नहीं हो पा रहा है। उधर कांग्रेस नेता इसका सारा दोषारोपण राज्य सरकार पर करते हैं। कांग्रेस का कहना है कि कुप्रबंधन के कारण ही इन बिजली संयंत्रों में क्षमतानुसार उत्पादन नहीं हो रहा है। राज्य में लगातार चल रहे बिजली संकट को कांग्रेस एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है। प्रदेश में बिजली संकट पर हो रहे तमाम आंदोलनों के पीछे कांग्रेस की रणनीति ही काम कर रही है।कांग्रेस को यह बखूबी मालूम है कि बिजली संकट पर लोगों की नाराजी जन असंतोष को किस तरह भड़का सकती है। आखिर कांग्रेस सरकार तो बिजली संकट पर लोगों की नाराजी की बलि ही चढ़ गई थी। कांग्रेस अब वैसी ही स्थिति राज्य की भाजपा सरकार के लिए निर्मित करना चाहती है और इसी उद्देश्य से वह सारे राज्य में बिजली संकट पर लोगों के गुस्से को हवा दे रही है। इसे महसूस करते हुए राज्य सरकार भी रणनीति बनाने में जुट गई है। मुख्यमंत्री ने खुद ही इस सिलसिले में राज्य के बिजली अधिकारियों की बैठक ली है और उन्हें किसानों को बिजली उपलब्ध कराने के निर्देश दिये हैं। बिजली अधिकारियों का कहना है कि वे किसानों को दिन में 11 से 12 घंटे बिजली देने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन मुख्यमंत्री वास्तविकता के धरातल से जुड़कर इसका हल निकालना चाहते हैं और इसी वजह से बिजली की उपलब्धता के वर्तमान हालात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अधिकारियों से किसानों को कम से कम 6 घंटे बिजली आपूर्ति करने के लिए कहा है। इससे यह तो सिद्ध हो ही गया है कि राज्य में बिजली की स्थिति आज भी पहले की अपेक्षा किसी भी तरह से बेहतर नहीं है। राज्य सरकार यदि यह चाहती है कि बिजली संकट पर वह कांग्रेस की तरह व्यापक जन असंतोष का शिकार न हो तो उसे बिजली उत्पादन की गति बढ़ाने की दिशा में तेजी से प्रयास करने होंगे और स्वाभाविक रूप से इसमें उसे निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ानी होगी। इसके लिए अकेले उसके प्रयासों से काम नहीं चलेगा और उसे केंद्र से टकराव के बदले सहयोग की नीति अपनानी होगी।
-सर्वदमन पाठक
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