Tuesday, September 22, 2009

मस्त अफसर, त्रस्त जनता

भोपाल में भाजपा पदाधिकारियों की बैठक में हुई हंगामेदार चर्चा से पार्टी हैरान है। इस बैठक में कई पार्टी नेताओं ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि प्रदेश मेें नौकरशाही तथा प्रशासनिक मशीनरी इस कदर हावी है कि जनता त्रस्त हो गई है। हर तरफ जिस तरह से चौथ वसूली के आरोप इस बैठक में लगाए गए वे राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर ही प्रश्रचिन्ह लगाने जैसे ही हैं। यह बात अलग है कि कल जोर शोर से आरोप लगाने वाले नेता आज अपनी ही बातों का खंडन करते नजर आए लेकिन यह सिर्फ अपना चेहरा बचाने की कवायद ही है। यह कोई रहस्य नहीं है कि राज्य के भाजपा पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग लगातार प्रशासनिक मशीनरी की कारगुजारियों की शिकायत करता रहा है। इनमें कुछ अवश्य ही असंतुष्टïों की विरादरी के सदस्य हो सकते हैं लेकिन कई अन्यों की शिकायतों में निश्चित ही दम है। यह वास्तविकता है कि राज्य में इन दिनों प्रशासनिक अमला पूरी तरह बेकाबू नजर आ रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार का उस पर कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया है। सिर्फ आम जनता ही प्रशासनिक अधिकारियों से परेशान नहीं है बल्कि राज्य सरकार के मंत्री तक आला अफसरों की मनमानी पर दुखी हैं। कई मंत्रियों ने खुले तौर पर इन हालात पर नाराजगी एवं निराशा जताई है।राज्य सरकार के नीतिगत फैसलों पर भी आला अफसर व्यवधान खड़ा करने से बाज नहीं आते। विभिन्न जिलों में पुलिस अपनी चौथ वसूली में लगी है और इसका परिणाम यह है कि अपराधी खुले घूम रहे हैं और अपराध की दर में लगातार इजाफा हो रहा है। जुर्म करने वालों पर नियंत्रण न होने से आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। आम अपराधों में ही नहीं यौन अपराधों मेें भी प्रदेश में काफी वृद्धि हुई है जिसकी पुष्टिï विभिन्न स्वतंत्र एजेंसियों के आंकड़े भी करते हैं। दबंगों एवं समृद्धों द्वारा कमजोर लोगों पर अत्याचार में भी काफी इजाफा हुआ है। अब वक्त आ गया है कि इस पर सख्ती से अंकुश लगाया जाए ताकि लोगों को पुलिस एवं प्रशासन के अन्याय से मुक्ति मिल सके। राज्य में दूसरी बार भाजपा को लोगों ने इसी भरोसे पर जनादेश दिया है ताकि वह लोगों के कल्याण की अपनी नीतियों एवं वायदों को अमलीजामा पहना सके। यदि प्रशासन का रुख असहयोगपूर्ण रहेगा तो फिर वह किस तरह से अपनी नीतियों का क्रियान्वयन सुनिश्चित कर सकेगी। राज्य सरकार से लोग राज्य के विकास एवं उनकी जिंदगी से जुड़ी गतिविधियों में सरकार से सार्थक सहयोग की अपेक्षा करते हैं और राज्य सरकार की कई योजनाओं में इसकी झलक साफ दिखाई देती है लेकिन एक मात्र शर्त यही है कि इन योजनाओं का लाभ धरातल पर भी दिखे और इस मामले में प्रशासन की बड़ी भूमिका है अत: राज्य सरकार को प्रशासन के चेहरे में इस तरह से बदलाव करना चाहिए कि प्रशासन उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चले। इतना ही नहीं, राज्य के लोगों को यह भी अहसास हो कि वे कानून के राज्य में रह रहे हैं।
सर्वदमन पाठक

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