Wednesday, September 16, 2009

रूसिया की मौत पर उठे कुछ अनुत्तरित सवाल

भोपाल विकास प्राधिकरण के सीईओ मदनगोपाल रूसिया की मौत पर रहस्य का साया अब भी यथावत है और इस मौत ने हमारे सामने ऐसे कुछ सवाल उछाल दिये हैं जो शासन- प्रशासन की चुप्पी के कारण अभी तक अनुत्तरित ही हैं। अपनी दिल्ली यात्रा के बाद ट्रेन से भोपाल लौटते समय वे किस तरह आगरा के पास एक गड्ढïे में जा गिरे, यह ऐसी गुत्थी है जो सुलझने के बदले और उलझती जा रही है। प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि निष्पक्ष जांच द्वारा इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी किया जाएगा और मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश की पुलिस इसकी छानबीन में जुटी है लेकिन चूंकि रूसिया भाजपा विधायक जितेंद्र डागा के साथ दिल्ली गये थे और उन्हीं के साथ वे भोपाल लौट रहे थे इसलिए इस मामले में लोगों के शक की सुई उन्हीं की ओर घूम रही है। इस शक की एक अहम वजह यह भी है कि भोपाल विकास प्राधिकरण अपनी योजनाओं के लिए विद्यानगर की कुछ जमीन का अधिग्रहण करना चाहता था जिसमें विधायक डागा की करीब पांच एकड़ जमीन भी शामिल थी। डागा की इस मामले को लेकर रूसिया से तकरार चल रही थी और जानकार सूत्रों की बातों पर यदि यकीन किया जाए तो उनके मुताबिक कुछ दिन पूर्व डागा ने रूसिया को धमकी भी दी थी। सुना तो यह भी जाता है कि राजनीति में डागा की सबसे बड़ी खैरख्वाह सुषमा स्वराज ने इस जमीन का अधिग्रहण नहीं किये जाने का अनुरोध करते हुए एक पत्र भी लिखा था। सवाल यह है कि जब रूसिया एवं डागा के बीच तनातनी चल रही थी तब रूसिया को उनके साथ दिल्ली जाने की क्या आवश्यकता थी। क्या उनपर सरकार एवं प्रशासन का कोई दबाव था जिसके तहत उन्हें डागा के साथ दिल्ली जाना पड़ा। बीडीए के सूत्र बताते हैं कि रूसिया की दिल्ली यात्रा का उद्देश्य उक्त योजना के बारे में सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर एडवोकेट की कानूनी सलाह लेना था तब डागा का साथ जाना तो यही इंगित करता है कि बीडीए सरकार के दबाव में इस योजना में ऐसा कुछ फेरबदल करना चाहता था जिससे डागा को राहत मिले और यह सब डागा की उपस्थिति में हो। इतना ही नहीं, डागा का खुद का बयान उन्हें संदेह के दायरे में ला खड़ा करता है। उनका कहना है कि रात 10.00 उन दोनों ने ट्रेन में साथ साथ खाना खाया और उसके बाद वे सोने चले गए, फिर उनकी नींद भोपाल स्टेशन में ही खुली। उन्होंने रूसिया की शायिका के पास उनका बेग तथा जूते देखे और उन्हें लगा कि रूसिया शायद बाथरूम गये होंगे। लेकिन उन्होंने इस मामले में उनकी कोई खोज खबर लेने की जरूरत नहीं समझी और वे सीधे अपने घर चले गए। उनके इस बयान में ऐसे सूत्र मौजूद हैं जिनसे शक की उंगली उनकी ओर बरबस ही उठ जाती है। डागा की यह थ्योरी बिल्कुल ही अविश्वसनीय है क्योंकि कोई भी यात्री जूते पहनकर बाथरूम जाता है, न कि जूते उतारकर। यदि वे रूसिया के साथ दिल्ली आ जा सकते थे, बीडीए की गोपनीय फाइल पर विधिसम्मत राय लेते वक्त रूसिया के साथ हिस्सेदारी कर सकते थे, ट्रेन में साथ साथ खाना खा सकते थे तो आखिर क्या कारण था कि उन्होंने रूसिया की गैरमौजूदगी के बारे में उनके परिजनों को सूचित करने की जरूरत भी नहीं समझी। उनका यही आचरण संदेह को जन्म दे रहा है। एक संदेह यह भी है कि उक्त योजना से उठे विवादों के कारण भारी तनाव एवं दवाब से गुजर रहे बीडीए सीईओ रूसिया ने इससे निजात पाने के लिए खुदकुशी कर ली हो या फिर पैर फिसल जाने के कारण वे ट्रेन से गिर पड़े हों। यदि इसी पहलू पर विचार किया जाए तो फिर मन में यह विचार कौंधना लाजिमी है कि आखिर उनपर ऐसा कौन सा दबाव था जो जानलेवा बन गया। इस त्रासद घटना से उनके परिजनों, परिचितों, मित्रजनों तथा बीडीए कर्मचारियों में कितना गुस्सा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी शवयात्रा और उनकी अंत्येष्टिï के दौरान भी यह गुस्सा फूटता रहा। विश्रामघाट पर मौजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भी इस नाराजी से रूबरू होना पड़ा। इस गुस्से को शांत करने के लिए सरकार को खुद यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और इसमें दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को समुचित सजा दी जाए। इतना ही नहीं, इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए इस बात के पुख्ता प्रबंध किये जाएं कि शहर के विकास की योजनाओं में राजनीतिक नेताओं एवं भूमाफियाओं की दखलंदाजी बंद हो ताकि अपने मन मुताबिक वे इन योजनाओं में फेरबदल का दबाव न बना सकें। यदि ऐसा नहीं हो सका तो फिर या तो ये विकास योजनाएं भूमाफियाओं एवं राजनीतिक नेताओं की बलि चढ़ जाएंगी या फिर रूसिया जैसे काबिल अफसरों की जिंदगी दांव पर लगती रहेगी।
-सर्वदमन पाठक

1 comment:

  1. रुसिया की मौत खुदकुशी नहीं हत्या है । दर असल भाजपा का दूसरा कार्यकाल जंगलराज में तब्दील हो चुका है । पूरे प्रदेश में फ़ैली अराजकता और गुंडागर्दी गवाह है कि मौजूदा दौर में मध्यप्रदेश के हालात यूपी-बिहार से भी बदतर हो चुके हैं । फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि यहाँ के पत्रकारों की कलम की स्याही हमेशा से ही सूखी हुई है । इसलिये सच्चाई पर पर्दा पड़ा रहता है ।

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