Wednesday, September 30, 2009

मौत की त्रासदी पर प्रशासन की आपराधिक चुप्पी

भोपाल में संघ द्वारा आयोजित शस्त्र पूजन कार्यक्रम के दौरान गोली चलने से स्वयंसेवक की मौत एक ऐसी त्रासद घटना है जो अपने पीछे कुछ अनसुलझे सवाल छोड़ गई है। इस घटना की निष्पक्ष जांच के जरिये इन सवालों का उत्तर खोजा जाना निहायत जरूरी है। दरअसल इस घटना से जुड़ी तमाम परिस्थितियां इसे संदेह के दायरे में ला खड़ा करती हैं। जहां तक शस्त्र पूजन का सवाल है तो इस आयोजन में शस्त्रों की मौजूदगी कोई अनहोनी बात नहीं है लेकिन अभी तक जो बातें सामने आ रही हैं उसके अनुसार जानलेवा गोली एक गैरलायसेंसी रिवाल्वर से चली थी। घटना के समय मौजूद कुछ लोगों के अनुसार यह पिस्तौल एक भाजपा नेता की है इसका खोखा भी घटनास्थल से बरामद हुआ है। सवाल यह उठता है कि आखिर आयोजन मेें इतने अधिक लोगों के मौजूद होने के बावजूद घायल स्वयंसेवक को अस्पताल पहुंचाने में देरी कैसे हुई । मृतक स्वयंसेवक के पुत्र ने खुद आशंका व्यक्त की है कि उसके पिता की मौत हादसा नहीं बल्कि हत्या है। पुलिस इसकी तफ्तीश में जानबूझकर इन तथ्यों की अनदेखी क्यों कर रही है। स्थापना दिवस होने के कारण दशहरे का आरएसएस के लिए विशेष महत्व है और इसीलिए संघ देश भर में इस अवसर पर शस्त्र पूजन एवं पथ संचलन का आयोजन करता है। इस वर्ष भोपाल में पथ संचलन एवं शस्त्र पूजन को मनाने के लिए काफी जोर शोर से तैयारी की गई थी। संभवत: यह पहला अवसर था जब झीलों की नगरी में शस्त्र पूजन एवं पथ संचलन के लिए बाकायदा पोस्टर लगाये गए थे। इस आयोजन में परंपरागत गरिमा की अपेक्षा दिखावट को ज्यादा प्राथमिकता दी गई थी जिसका सबसे बड़ा कारण यह था कि प्रदेश में संघ इस माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता था। चूंकि भाजपा संघ की राजनीतिक शाखा ही है अत: यह स्वाभाविक ही है कि संघ के इस शक्ति प्रदर्शन को राज्य की भाजपा सरकार का पूरा पूरा समर्थन था। इसका यह संकेत तो स्पष्टï था कि राजधानी में अन्य वर्षों की तुलना में इस बार पथ संचलन एवं शस्त्र पूजन अधिक धूमधाम से होने वाला था फिर आखिर पुलिस ने इसके लिए दोषरहित सुरक्षा प्रबंध क्यों नहीं किये। इतना ही नहीं, उक्त घटना के बाद भी पुलिस काफी देर हो जाने पर हरकत में आई। इस घटना को घटे इन पंक्तियों के लिखे जाने तक डेढ़ दिन का समय बीत चुका है लेकिन पुलिस अभी तक कमोवेश हाथ पर हाथ धरे ही बैठी है मानो कार्रवाई के पहले सरकार के इशारे का इंतजार कर रही हो। जाने क्या बात है कि पुलिस के पास कर्तव्य निष्ठïा के रूप में जो रीढ़ की हड्डïी होने चाहिए वह आजकल गायब ही दिखती है और वह सरकार के सामने नतमस्तक नजर आती है। इस मामले में पुलिस की चुप्पी यही कुछ बयान करती है। यदि पुलिस का यही हाल कायम रहा तो यह तय ही लगता है कि उक्त घटना में पुलिस की जांच सरकार एवं सरकारी दल के नेताओं के बचाव के इर्द गिर्द ही घूमेगी और इसी सर्किल में कहीं उसका निष्कर्ष बिंदु आ जाएगा।
-सर्वदमन पाठक

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