Friday, September 25, 2009

अपसंस्कृति रुके, प्रदर्शन नहीं

मुख्यमंत्री की इस राय को सकारात्मक नजरिये से देखा जाना चाहिए कि प्रदर्शन के दौरान पुतला दहन की परंपरा खत्म की जानी चाहिए क्योंकि यह विरोध प्रदर्शन का असभ्यतापूर्ण तरीका है। वैसे मुख्यमंत्री का यह विचार राजनीतिक विरादरी के लिए थोड़ा आश्चर्यजनक है क्योंकि आजकल तो बिना पुतला दहन के विरोध प्रदर्शन को आव्हानकर्ता राजनीतिक दल अधूरा ही मानते हैं। शिवराज सिंह के बयान से सबसे ज्यादा आश्चर्य तो भाजपा कार्यकर्ताओं को हुआ है जिनकी पुतला दहन की लंबी चौड़ी परंपरा रही है। आज भाजपा प्रदेश में सत्ता सुख भोग रही है तब भी उसके नेता एवं कार्यकर्ता किसी न किसी बहाने से अपना यह शौक पूरा कर ही लेते हैं। आजकल भी मूल्यवृद्धि के विरोध के बहाने वे केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार के नेताओं के पुतले जलाने में मशगूल हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद भी इसके गवाह रहे हैं। अब राज्य में विपक्ष में बैठी कांग्रेस अपने विरोध प्रदर्शन को धारदार बनाने के लिए पुतला दहन का सहारा ले रही है । सच तो यह है कि विरोध का राजनीतिक कर्मकांड पुतला दहन के बिना अधूरा ही माना जाता रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री की इस दलील में निश्चित ही काफी दम है कि पुतला दहन से जनता पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि यह विरोधी पक्ष के नेताओं का अपमान करने की सियासी अपसंस्कृति का ही परिचायक है। लेकिन इसका यह मतलब यह कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि विपक्ष को सरकार की नीतियों एवं फैसलों के खिलाफ उग्र विरोध प्रदर्शन का अधिकार नहीं है बल्कि विरोध प्रदर्शनों को रोकने की कोई भी कोशिश अलोकतांत्रिक कही जा सकती है। खुद भाजपा जब विपक्ष में थी तो वह किस हद तक उग्र प्रदर्शन करती थी यह उसे नहीं भूलना चाहिए। गौरतलब है कि आजकल विरोध प्रदर्शन करने वालों को सरकार की शह पर पुलिस तंत्र की बेइंतहा निर्ममता का शिकार होना पड़ता है, यह हाल के कई आंदोलनों में देखने को मिला है। इतना ही नहीं, भाजपा कार्यकर्ता भी इन विरोध प्रदर्शनों के विरोध में सड़क पर उतर आते हैं और उन्हें रोकने के बजाय पुलिस उन्हें बाकायदा संरक्षण देती है। सवाल यह भी है कि भाजपा को आज ही वे सभी आदर्श और नैतिक विचार सूझ रहे हैं जिनकी विपक्ष में रहते भाजपा ने कभी भी परवाह नहीं की। दरअसल प्रदेश की जनता के मन में जो असंतोष है, उन्हें व्यक्त करने के लिए ही वह विरोध प्रदर्शन के अधिकार का इस्तेमाल करती है। इसे राजनीतिक पूर्वाग्रह से देखना अविवेकपूर्ण है। लेकिन इन विरोध प्रदर्शनों में शिष्टïता की सीमा नहीं लांघी जानी चाहिए। इस दृष्टिï से यदि सभी राजनीतिक दलों में सहमति बनती है तो पुतला दहन पर स्वैच्छिक रोक लगाई जा सकती है।
-सर्वदमन पाठक

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