आज के माहौल में यह एक आश्चर्यजनक बात ही लगती है कि किसी मंत्री को रिश्वत दी जाए और वह न केवल उसे ठुकरा दे बल्कि मंत्री के दबाव के कारण रिश्वत आफर करने वाले अधिकारी एवं उससे जुड़े दलाल को पकडऩे के लिए पुलिस को कार्रवाई करनी पड़े लेकिन मध्यप्रदेश में घटित ऐसी ही खबर अखबारी सुर्खियों में रही है। इस खबर के अनुसार राज्य के लोक स्वास्थ्य मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन को भिंड के एक कार्यपालन यंत्री ने अपना निलंबन रद्द करने के लिए पांच लाख रुपए की रिश्वत देने की पेशकश की जिसका सूत्रधार कथित रूप से भाजपा का ही एक नेता था। चर्चा यही है कि श्री बिसेन ने अपनी ईमानदारी का परिचय देते हुए इस प्रयास को विफल कर दिया। यह एक अलग बात है कि लोगों को इस खबर पर भरोसा नहीं हो पा रहा है और इसका कारण यही है कि आजकल भ्रष्टïाचार सारे समाज में फैल गया है और इसका सबसे बड़ा स्रोत शासन- प्रशासन ही है। यदि यह कहा जाए कि आज की संसदीय व्यवस्था में सरकारें भ्रष्टïाचार की भागीरथी बन गई हैं और मंत्री इस भ्रष्टïाचार की धाराएं तो कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी। राज्य की पिछली सरकारों और वर्तमान राज्य सरकार के मंत्रियों पर भी भ्रष्टïाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं अत: मंत्रियों की ईमानदारी पर से लोगों का भरोसा ही उठ गया है। इस रिश्वत कांड की सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन मंत्रियों के चारित्रिक पतन के कारण लोग इस विरले मामले पर भी तरह तरह की चर्चाएं करने देखे जा रहे हैं जिनमें एक चर्चा यह है कि रिश्वत की राशि काफी कम थी इसलिए मंत्री जी को तैश आ गया। विशेषत: विपक्ष में बैठी कांग्रेस को, जिसकी सत्ता भ्रष्टïाचार का पर्याय ही बन गई थी, मंत्री की बात पच नहीं रही और उसे यह पूरा का पूरा मामला संदिग्ध लग रहा है। वैसे अब इस मामले में कोई भी पार्टी दूध की धुली नहीं रह गई है। जब सारे कुएं में भांग घुली हो तो फिर यह कल्पना ही मुश्किल लगती है कि एक मंत्री इस कदर ईमानदार होगा कि वह आई हुई लक्ष्मी को यों ठुकरा देगा। चाहे जो भी हो, यदि श्री बिसेन ने स्वप्रेरणा से ईमानदारी के ऐसे विरले पाए जाने वाले आचरण का परिचय दिया है तो वह स्वागत योग्य ही है। अच्छा हो कि यह सिलसिला आगे बढ़े और अधिक से अधिक मंत्रियों को यह सद्बुद्धि आए कि वे अपने जन-दायित्वों का पूरी ईमानदारी से निर्वाह करें वरना जन अदालत में उसे दंडित होने से कोई नहीं बचा सकेगा। -सर्वदमन पाठक
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