Friday, June 19, 2009

नारी की इज्जत हो रही तार तार, कहां है सरकार?

क्या हम मध्ययुगीन दौर में जी रहे हैं जहां नारियों की यातना एवं यौन यंत्रणा आम बात थी। मध्यप्रदेश के वर्तमान माहौल को देखकर तो यही महसूस होता है। शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता हो जब प्रदेश के किसी न किसी हिस्से में महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार तथा शारीरिक व मानसिक यंत्रणा की कोई न कोई खबर सुनाई न देती हो। आम तौर पर दबंगों द्वारा दलित तथा कमजोर तबके महिलाओं के साथ मारपीट तथा इज्जत से खिलवाड़ की खबरें कमोवेश प्रतिदिन अखबारों की सुखियों में शामिल होती हैं। लेकिन अब इस मामले में पानी सर से ऊपर निकल रहा है। पिछले दिन ही प्रदेश में दो स्थानों पर महिलाओं से सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हुई हैं जिनमें से एक घटना संस्कारधानी जबलपुर में हुई है तो दूसरी घटना देश की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली भोपाल नगरी में हुई है जहां प्रदेश की तमाम आला सरकारी एवं प्रशासनिक हस्तियों का जमावड़ा रहता है। यह आश्चर्य ही है कि सरकार की नाक के नीचे बिना किसी खौफ के कुछ अपराधी युवकों ने एक दंपत्ति को अपनी कार में अगवा कर दिया और पुरुष की कनपटी पर पिस्तौल अड़ाकर उसकी पत्नी के साथ बलात्कार किया। बंबई निवासी उक्त दंपत्ति भोपाल के आसाराम बापू आश्रम में प्रवचन सुनने के बाद जब जा रहे थे तभी उन युवकों ने उन्हें लिफ्ट देने के बहाने उन्हें अगवा कर यह घृणित कृत्य किया। स्वाभाविक रूप से अगवा करने की यह घटना जब हुई तब ज्यादा रात नहीं हुई होगी लेकिन पुलिस का आसपास कोई अता पता नहीं था जो इस घटना को घटित होने के पहले विफल कर देती। दरअसल ऐसी घटनाओं का कारण यही है कि पुलिस तथा प्रशासन में अब ऐसे अपराधों को रोकने के प्रति प्रतिबद्धता तथा इच्छाशक्ति नहीं है। सच तो यह है कि पुलिस आजकल अपराध एवं अपराधियों पर नियंत्रण करने के बदले उनके साथ गलबहियां करती है और अपराधियों को पनाह देने में अधिक रुचि लेती है। यह कौन नहीं जानता कि पुलिस और अपराधियों के बीच आर्थिक स्वार्थों के कारण ही यह अपवित्र गठजोड़ होता है। तब पुलिस से अपराधियों पर नियंत्रण की उम्मीद कैसे की जा सकती है। इस मामले में राज्य सरकार को भी कम जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि राज्य की कानून व्यवस्था की समूची जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही है। प्रशासन यदि उक्त यौन अपराधों को नहीं रोक पाता और सरकार बेखबर एवं लापरवाह बनी रहती है तो यह सरकार की संवेदनहीनता का ही प्रमाण है। अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण भी उसकी इस संवेदनहीनता का एक अहम कारण है। हमारा समाज यदि ऐसे अपराधों का प्रतिकार नहीं करता तो हम सभ्य समाज के सदस्य कैसे कहला सकते हैं। यदि हमें ऐसे घृणित अपराधों को रोकना है तो हमें शासन को महसूस कराना होगा कि वह समाज को यौन अपराधों से मुक्त कराने, महिलाओं को सम्मानजनक जीवन जीने का वातावरण उपलब्ध कराने तथा अपराधों पर नियंत्रण करने के अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करता तो जन असंतोष का ज्वार सत्ता प्रतिष्ठïान के लिए खतरा भी बन सकता है। यदि उसे लोगों के इस आक्रोश से बचना है तो उसे समाज में शांति एवं कानून व्यवस्था कायम करने की अपनी जिम्मेदारी निभानी ही होगी।
सर्वदमन पाठक

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