प्रदेश में कानून व्यवस्था के हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं और राज्य सरकार उस पर काबू पाने में असफल सिद्ध हो रही है। अब तो राज्य संगठित अपराधों के सौदागरों की शरणस्थली में तब्दील हो चला है। सरकार एवं प्रशासन की जानी बूझी मूकदर्शिता ने कानून व्यवस्था की इस भयावहता में इजाफा किया है। इससे यही संदेह होता है कि सरकार की इस अकर्मण्यता के कारण मध्यप्रदेश कहीं संवैधानिक गतिभंग की गंभीर स्थिति की ओर तो नहीं बढ़ रहा है क्योंकि जहां राज्य सरकार राज्य में शांति कायम रखने तथा कानून व्यवस्था बनाए रखने के अपने संवैधानिक दायित्व को निभाने में असफल हो रही है वहीं नागरिकों का जीने का संवैधानिक अधिकार तक असुरक्षित हो गया है। भिंड मेें गत दिवस हुई इस घटना को ऐसे ही गंभीर संकेत के रूप में लिया जा सकता है जहां चार इंजीनियरों सहित छह लोगों का सरेआम अपहरण कर लिया गया। आश्चर्यजनक बात यह है कि कनेरा नहर परियोजना के अंतर्गत कार्यरत इन लोगों का अपहरण तब हुआ जब क्षेत्र में राज्य के कृषिमंत्री गोपाल भार्गव कृषि मेले का शुभारंभ कर रहे थे। इससे यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि या तो मंत्री के कार्यक्रम के बावजूद क्षेत्र में पर्याप्त पुलिस बंदोबस्त नहीं था या फिर पुलिस मंत्री की खातिर तवज्जो में इतनी व्यस्त थी कि आम लोगों की सुरक्षा की उसे कोई चिंता ही नहीं थी। आप कल्पना करें कि एक सरकारी नहर परियोजना के ठेकेदार को पहले तो बाकायदा धमकी दी जाती है और बाद में दस सशस्त्र लोग परियोजना स्थल पर आकर ठेकेदार से मारपीट करते हैं और छह लोगों का अपहरण कर ले जाते हैं लेकिन पुलिस ऐसी कुंभकर्णी निद्रा में सोई होती है कि उसका खोजी तथा गुप्तचर तंत्र इस गंभीर घटना की भनक पाने में तथा समय रहते ऐसी किसी भी घटना की संभावना को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठा सकने में पूरी तरह से नाकाम रहता है।इस मामले में पुलिस की अक्षमता की सबसे बड़ी स्वीकारोक्ति करते हुए खुद प्रदेश पुलिस के मुखिया श्री राउत ने बताया है कि अपहरणकर्ता उत्तरप्रदेश में भाग निकलने में कामयाब रहे हैं। यानी मध्यप्रदेश की पुलिस न केवल इस अपराध को समय रहते विफल करने में नाकाम रही बल्कि घटना के बाद क्षेत्र के चप्पे चप्पे में तैनात सौ सशस्त्र पुलिसकर्मी भी घटना को अंजाम देने के बाद भाग निकले अपराधियों को पकड़ नहीं सके। अभी दो दिन पूर्व ही भोपाल तथा जबलपुर में दो गेंगरेप में दो युवतियों की इज्जत तार तार कर दी गई। लेकिन भोपाल के बहुचर्चित गैंगरेप कांड में पुलिस तब हरकत में आई जब मुख्यमंत्री ने उसे कार्रवाई का अल्टीमेटम दे दिया। एक युवती पर बलात्कार का आरोपी लाल साईं कई महीनों तक खुला घूमता रहा लेकिन संभवत: राज्य सरकार के इशारे पर पुलिस जानबूझ कर निष्क्रिय बनी रही। अंतत: अदालती आदेश के बाद उसने थाने में आत्मसमर्पण किया। लेकिन पुलिस की यह बेशर्म दायित्वहीनता कुछ ऐसे सवाल छोड़ गई है जिसके उत्तर देना पुलिस के लिए आसान नहीं होगा।ये घटनाएं सिर्फ कुछ बानगी हैं। सच तो यह है कि प्रदेश लंबे समय से दिल दहला देने वाले अपराधों से जूझ रहा है। दबंगों द्वारा दलितों तथा गरीबों को शारीरिक तथा मानसिक यंत्रणा देने, उनके घर एवं खेत जला डालने और उनकी औरतों को बेइज्जत करने वाली घटनाएं जब तब घटती रहीं हैं लेकिन पुलिस ने कभी भी इन घटनाओं पर समुचित कार्रवाई की जरूरत महसूस नहीं की।संगठित अपराधियों के गिरोह और छिटपुट अपराधियों ने लोगों का जीना दूभर कर रखा है। और तो और, थाने में भी महिलाओं की इज्जत लूटे जाने और हवालात में बेकसूरों की मौत होने की घटनाएं भी अखबारों की सुखियों में रही हैं। अब निर्मम अपराधों से प्रदेश के लोग कराहने लगे हैं। दरअसल अपराधियों की वजह से लोगों का जीना तक मुहाल हो गया है। आखिर राज्य सरकार कब सुनेगी अपराधियों से त्रस्त लोगों की गुहार?
-सर्वदमन पाठक
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