Monday, June 29, 2009

कैसे थमेगा मरीजों की मौतों का सिलसिला?

इन दिनों हमारे सरकारी चिकित्सालयों में चिकित्सा में किस कदर जानलेवा लापरवाही बरती जा रही है, सुल्तानिया अस्पताल में सोलह घंटे में हुई छह मौतें इसे ही बयान करती हैं। इस जनाना अस्पताल में पांच महिला मरीजों तथा एक बच्चे की मौत से जबर्दस्त दहशत का माहौल है। इन सिलसिलेवार मौतों से मरीजों तथा उनके परिजनों का अस्पताल पर से भरोसा उठ गया है और मरीजों में भगदड़ सी मच गई है। अस्पताल में डिस्चार्ज होने के लिए कुछ घंटे तक लगी रही मरीजों की लंबी लाइन इस बात की गवाह हैं कि अस्पताल में दाखिल मरीजों में अपने इलाज को लेकर आशंका घर कर गई है। दरअसल वास्तविकता यह है कि भोपाल के सबसे बड़े जनाना अस्पताल की सेहत काफी बिगड़ गई है और इससे पहले कि यह अस्पताल रूपी मरीज बेकाबू हो जाए, इसका समुचित इलाज जरूरी है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि हमें उन लक्षणों का पता हो जिनकी वजह से यह अस्पताल रुग्ण है। यह कहना आसान है कि डाक्टर भगवान नहीं होता और जीवन एवं मौत ईश्वर के हाथ में होती है। लोग तो बीमारी के वक्त इसीलिए अस्पताल पहुंचते हैं कि वे डाक्टर को भगवान मानते हैं और यह भरोसा करते हैं कि डाक्टर भगवान की तरह ही उन्हें रोगमुक्त करेगा और उनके जीवन की रक्षा करेगा। यह संभव है कि डाक्टर की तमाम कोशिशों के बावजूद वह मरीज को न बचा सके लेकिन यदि इलाज में लापरवाही की वजह से मरीज की जान जाती है तो फिर इसके लिए इलाज करने वाले डाक्टर की जवाबदेही तय होनी ही चाहिए। 16 घंटे में छह मरीजों की मृत्यु को सिर्फ ईश्वर की इच्छा नहीं माना जा सकता। इतने गंभीर मामले में पर्याप्त जांच की जानी चाहिए और यदि इलाज में कोई लापरवाही का मामला सामने आता है तो फिर संबंधित डाक्टरों की जिम्मेदारी तय कर उन पर समुचित कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके साथ ही अस्पताल की प्रतिष्ठïा पर इससे जो आघात लगा है, उसे बहाल करने के लिए हरसंभव उपाय किये जाने चाहिए। ये उपाय सुधारात्मक भी हो सकते हैं और दंडात्मक भी। प्रशासन ने इस दिशा में अपनी ओर से शुरुआत करते हुए अस्पताल अधीक्षक डा. नीरज बेदी को हटा दिया है। लेकिन यह कार्रवाई कुछ ऐसी ही है मानो दायें हाथ में मर्ज हो और बायां हाथ काट दिया जाए। प्रशासन ने इन मौतों में कोई चिकित्सकीय लापरवाही के प्रमाण नहीं पाए हैं लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण उन्हें सजा दे दी गई है। सवाल यही है कि क्या प्रशासनिक लापरवाही के कारण उन मरीजों की मौत हुई है?इस संबंध में अन्य पहलुओं पर भी विचार करना जरूरी है मसलन अस्पताल में जितने मरीजों के इलाज की क्षमता है और जितने मरीजों के हिसाब से यहां डाक्टरों का स्टाफ नियुक्त है, उससे काफी अधिक संख्या में यहां मरीजों का दाखिला होता है और स्वाभाविक रूप से उनका इलाज इन्हीं सीमित स्टाफ को करना होता है। आम तौर पर गंभीर महिला मरीजों को अन्य अस्पतालों से यहां रेफर किया जाता है तो फिर मौत जैसी त्रासदी की पूरी जिम्मेदारी इसी अस्पताल की कैसी मानी जा सकती है। प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल तथा स्पेश्यिलिटी अस्पताल का जो ढांचा है, उसे यदि सुदृढ़ता प्रदान की जाए तो बड़े अस्पतालों में भीड़ की समस्या का निदान किया जा सकता है। यदि यह अस्पताल लापरवाही का शिकार है तो इसके लिए ये कारण भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। अत: सिर्फ डाक्टरों को दोष देने और उन्हें दंडित करने से काम नहीं चलेगा बल्कि शासन प्रशासन को चिकित्सा एवं अन्य स्टाफ की भी समुचित व्यवस्था करनी होगी और उपरोक्त तमाम मुद्दों का समुचित समाधान खोजना होगा।
सर्वदमन पाठक

1 comment:

  1. aआपने बिल्कुल सही विशय सव्ब के सामने रखा है मैने 37 साल से अधिक एक ही अस्पताल मे काम किया है और देखा है कि जो भी अनियमिततायें इलाज मे आती हैं उन के लिये 90 प्रतिशत प्रशासनिक व्यवस्था जिम्मेदार होती है ये सही है कि आजकल डाक्टर भी उस निष्ठा से काम नहीं करते मगर सभी ऐसे भी नहीं हैं इस पर मेरे पास बहुत से उधारण ह मगर यहाँ उनकी चर्चा संभव नहीं है सरकारी अस्पतालों मे इन्फ्रास्ट्र्क्चर की कमी और प्रशासन की लापरवाही बहुत अधिक रहती है मरीजों की भीड और स्टाफ की कमी भी इसका मुख्य कारण है हमे एक विन्डि पर रोज 500 से अधिक मरीज़ों को अटैन्ड करना होता था जिसमे उसे दवा देना परची पढना उसे डोज़ बताना और जो मरीज़ पूछे वो भी बताना आप सोचिये एक मरीज़ के हिस्से मे 6 घण्ते मे कितना समय आया िसी तरह इन्डोर मे भी होता है मरीज अधिक और स्टाफ कम इसके अतिरिक्त कागज़ी काम इतना होता है कि अगर वो पूरा ना हो तो और भी सम्स्या एक एक दवा का हिसाब किताब मरीजों की हिस्टरी और भी बहुत से कागज़ी काम जिसके चलते मरीज़ को पूरा समय नहीं मिल पाता हम लोग अपना कागज़ी काम घर पर रेगिस्टर ले कर आते थे तो करते थे ऐसे मे कई लोग ये भी चाहते हैं कि असप्ताल का काम वहीं हो तो वे भी सही हैण उन्हें भी घर की कई जिम्मेदारियाँ होती हैं फिर च्वो अपना घर का समय क्यों सरकारी कामों के लिये दें अगर स्टाफ संतुष्ट नहीं है तो प्रशासन कोई बात नहीं सुनता है इससे स्टाफ काम मे दिलचस्पी लेना बँद कर देता है और भी बहुत कुछ ऐसा है जो प्रशासन कर सकता है हर काम के लिये जवाबदेही होनी चाहिये हर व्यक्ति की और उसके लिये भी प्रशासन की अहम भूमिका होती है जो पूरी नहीं होती मैं तो अपना अनुभव लिख रही हूम बस शुभकामनायें

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