Thursday, June 25, 2009

जन सुनवाई: एक सार्थक पहल

भोपाल में जन सुनवाई का आयोजन कर पुलिस ने एक प्रशंसनीय पहल की है। इस पहल के तहत डीजीपी राउत सहित तमाम आला पुलिस अफसरों ने खुद जन सुनवाई में हिस्सा लिया और लोगों के मामलों को सुलझाने का प्रयास किया। जन सुनवाई में लोगों में काफी उत्साह देखा गया और नागरिकों ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए पुलिस के समक्ष अपनी शिकायतें दर्ज कराईं और साथ ही पुलिस के व्यवहार को लेकर अपनी व्यथा भी बयां की। इनमें से अधिकांश लोग तो सिर्फ इसलिए व्यथित थे कि पुलिस थानों में उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई। इस पहल से लोगों को यह अवसर मिला कि वे प्रदेश एवं जिले के सर्वोच्च पुलिस अधिकारी तक से रूबरू हो सकें और अपनी बात बिना किसी भय के कह सकें। यह सच है कि इस आयोजन में कई लोगों ने पुलिस के रवैये पर काफी असंतोष और आक्रोश व्यक्त किया और विभिन्न पुलिस अधिकारियों पर तो पक्षपात एवं रिश्वतखोरी के आरोप भी लगाये। ऐसे दोषारोपण में कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं था अगर कुछ आश्चर्यजनक थी तो वह थी पुलिस की सकारात्मक एवं पूर्वाग्रहरहित प्रतिक्रिया। वैसे पुलिस की छवि धूमिल होने के पीछे कई कारण हैं। जिनमें स्टाफ की कमी तथा संसाधनों का अभाव भी इसका प्रमुख कारण है। पुलिस के पास अपराधियों को पकडऩे तथा उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए पर्याप्त बल नहीं होता। इस वजह से पैदल गश्त तो पूरी तरह से बंद कर दी गई है जो अपराधियों को पकडऩे में कारगर होती है। प्राय: देखा गया है कि अपराधियों से निपटने के लिए उनके पास अच्छे हथियार नहीं है। पहले कभी पुलिस जिस वाहन पर गश्त के लिए निकलती थी, वह मेटाडोर ही होती थी लेकिन अब उन्हें गश्त के लिए ज्यादातर मोटर साइकिलों का इस्तेमाल करते देखा जा सकता है। इतना ही नहीं, राजनीतिक एवं विशेषत: सत्ता के दखल के कारण पुलिस के हाथ बंध जाते हैं जिससे वास्तविक अपराधियों पर पुलिस हाथ नहीं डाल पाती। विभिन्न स्थानों पर मंत्रियों एवं राजनीतिक नेताओं की सिफारिश पर नाकाबिल पुलिस अफसरों की नियुक्तियां होती हैं जिससे पुलिस की कार्यप्रणाली में राजनीतिक पक्षपात की पूरी पूरी गुंजायश होती है हालांकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कई पुलिस अफसरों के पक्षपात तथा भ्रष्टïाचार के कारण भी अपराधियों को संरक्षण एवं छूट मिल जाती है। कारण चाहे जो भी हों लेकिन इतना तो तय है कि अपराधियों तथा अपराध पर काबू न कर पाने के कारण पुलिस जनता के निशाने पर रहती है जो स्वाभाविक ही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जन सुनवाई के माध्यम से बिना किसी दबाव तथा पक्षपात के लोगों की शिकायतों को दूर करने का जो ईमानदार प्रयास पुलिस द्वारा किया गया है, इससे पुलिस के प्रति लोगों का नजरिया बदलने में मदद मिलेगी। सर्वदमन पाठक

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