अंबिका सोनी अपनी प्रभावोत्पादक कार्यशैली तथा सूझबूझ से राजनीतिक विरादरी में सभी को चमत्कृत करती रही हैं और उनके इसी आकर्षण के कारण उन्हें मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गठित नए मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में विशेष दायित्व सौंपा गया है। दरअसल पिछली सरकार में बतौर पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री उन्होंने इन्क्रेडिबल इंडिया की जो मार्केटिंग की और देश ेमें पर्यटन की संभावनाओं को विस्तार देने की कोशिश की, यह उनके इसी करिश्मे का पुरस्कार है। उनके पर्यटन मंत्री रहते ही देश ने विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने में 12 से 14 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की। इसी दौरान पर्यटकों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाये गये और राज्यों को पर्यटन पुलिस बलों की स्थापना के लिये तैयार किया गया। हालांकि यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनके अंतरंग संबंध हैं क्योंकि कई ऐसे महत्वपूर्ण मौकों पर उन्होंने अपने रणनीतिक कौशल से ऐसी मुहिम को अंजाम दिया है जो पार्टी के लिए जरूरी थी। 13 नवम्बर 1943 को लाहौर में भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी के घर जन्मी अम्बिका सोनी ने अपनी शिक्षा दीक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज और क्यूबा में हवाना विश्वविद्यालय में हासिल की। सोनी पिछले लगभग 35 वर्ष से पूरी वफादारी से कांग्रेस से जुड़ी हुई हैं। उनकी इसी वफादारी और संगठन के प्रति समर्पण के मद्देनजर उन्हें पिछली बार मंत्री पद दिया गया था। वह पहली बार 1975 में युवा कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। 1976 में वह राज्यसभा की सदस्य बनीं और 1998 में पार्टी ने उन्हें अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनाया। इसके अगले वर्ष उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई। वर्ष 2004 में वह फिर राज्यसभा में आईं। पिछली सरकार में वह पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री रहीं। इस बीच वह कई समितियों की सदस्य रह चुकी हैं। सोनी ने अक्टूबर 1961 में उदय सी सोनी से विवाह किया। उनके एक पुत्र है।अंबिका सोनी के साथ विवाद भी जुड़े रहे हैं। सच तो यह है कि उनका व्यक्तित्व इतना गतिशील है कि विवाद उनके साथ स्वाभाविक रूप से जुड़ जाते हैं। कांग्रेस में उनके प्रवेश के साथ विवादों का यह सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी चल रहा है। दरअसल वे संजय गांधी की गतिशीलता से प्रभावित होकर कांग्रेस में आई थीं। सेतु समुद्रम योजना के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में संस्कृति मंत्रालय द्वारा पेश किया गया वह हलफनामा भी काफी विवादास्पद रहा था जिसमें श्रीराम के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगाया गया था। संस्कृति मंत्री के रूप में अंबिका सोनी को भी इस विवाद की आंच महसूस हुई थी। इसमें विशेष बात यह थी कि एक अन्य मंत्री जयराम रमेश ने इस मामले से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया था। महात्मा गांधी की धरोहर को भारत लाने के मामले में भी विवाद ने उन्हें घेर लिया। नीलामी में ये धरोहर हासिल करने वाले शराब निर्माता, विजय माल्या का कहना था कि यह उन्होंने अपनी इच्छा से किया था जबकि अंबिका सोनी के बयान के मुताबिक केन्द्र सरकार की रणनीति के तहत ही विजय माल्या ने उक्त धरोहर हासिल की थी। किसी शराब विक्रेता के मार्फत मद्यपान के घोर विरोधी महात्मा गांधी की धरोहर हासिल करने के सरकार के दावे के औचित्य पर भी सवाल उठाए गए लेकिन तमाम विवादों के बावजूद उन्होंने मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में अथवा कांग्रेस की अहम पदाधिकारी के रूप में सौंपे गये तमाम दायित्वों को उन्होंने बखूबी निभाया है।सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में भी उनकी जिम्मेदारियां और चुनौतियां कम नहीं हैं। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया की बदलती भूमिकाओं से इन चुनौतियों में इजाफा हुआ है। इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग के कारण जहां प्रेस की प्रतिष्ठïा में इजाफा हुआ है। भ्रष्टïाचार तथा अनियमितताओं को रोकने के लिए शासन एवं प्रशासन में पारदर्शिता वक्त का तकाजा है और मीडिया के तमाम प्रयास इस हकीकत की ओर ही इशारा करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि सरकार प्रेस की आजादी को नए परिप्रेक्ष्य में देखे और महसूस करे। लेकिन ऐसी रिपोर्टिंग से गोपनीयता के निजी अधिकार के हनन की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। सरकार पर राजनीतिक एवं प्रशासनिक कारणों से प्रेस की आजादी पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष अंकुश रखने के लिए दबाव आते रहते हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में उनकी सबसे कठिन परीक्षा यह है कि वे इन दबावों को कैसे निष्प्रभावी करती हैं और प्रेस की आजादी को कैसे अक्षुण्ण रखती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपनी इस भूमिका के साथ न्याय करेंगी। सर्वदमन पाठक
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