Tuesday, December 8, 2009

चुनावी विकृतियों पर अंकुश जरूरी

मध्यप्रदेश में नगर निकाय चुनाव का प्रचार अभियान अपने अंतिम चरण में है। चाहे मेयर का चुनाव हो या पार्षदों का, स्वाभाविक रूप से इस बार भी पूर्व की तरह ही कांग्रेस एवं भाजपा के बीच ही प्रमुख टक्कर है। कुछ क्षेत्रों में अवश्य ही विद्रोही प्रत्याशी इन दलों के समीकरण को बिगाड़ रहे हैं और इक्का दुक्का स्थानों में बसपा, सपा भी जोर मार रही है, यह अलग बात है कि इनकी यह कोशिश कहां तक रंग लाती है। दरअसल दोनों ही प्रमुख दल कई निर्वाचन क्षेत्रों में गुटबाजी के कारण गलत प्रत्याशियों को मैदान में उतारने का खमियाजा भुगत रहे हैं। सभी दलों में कमोवेश इस पर खासी नाराजी है कि पार्टी के प्रति निष्ठïा एवं सेवाओं को दरकिनार कर ऐसे लोगों को प्रत्याशी बनाया गया है जो कि अयोग्य एवं अक्षम हैं। लेकिन अब तीर कमान से निकल चुका है और असंतुष्टïों को या तो मना लिया गया है या फिर चुनाव में यह कोशिश की जा रही है कि उनके असंतोष का पार्टी की संभावनाओं पर ज्यादा असर न पड़े। अब तो सभी प्रत्याशियों का पूरा जोर इसी बात पर है कि अंतिम चरण के प्रचार मेें मतदाताओं को अपनी खूबियों और प्रतिद्वंदी की खराबियों के बारे में येन केन प्रकारेण आश्वस्त कर दिया जाए और इसके लिए हर उस हथकंडे का इस्तेमाल किया जा रहा है जो परवान चढ़ सकता है। भले ही यह स्थानीय स्तर का चुनाव हो लेकिन इसमें भी वैसा ही माहौल देखा जा रहा है जैसा कि विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव में देखा जाता है।इसमें भी बाहुबल और धनबल का प्रभाव साफ देखा जा सकता है। कई चुनाव क्षेत्रों में यह चुनावी जंग किसी जंग की तरह ही लड़ी जा रही है जिसमें सभी कुछ जायज होता है। लोगों को प्रलोभन देकर वोट बंटोरना तो आम बात है। आखिर ऐसे चुनावी वायदे भी तो नाजायज प्रलोभन ही हैं, जिन्हें पूरा किया जाना मुमकिन न हो। चप्पे चप्पे पर प्रचार करते आलीशान वाहन और अचानक उग आई कार्यकर्ताओं की फौज चुनावी सरगर्मी को बखूबी बयां कर सकती है। कई स्थानों पर हिंसा की खबरें सामने आ रही हैं जो चुनावी माहौल में आई विकृति का ही प्रतीक है। इस बात की भी संभावना जताई जा रही है कि चुनाव में फर्जी मतदान की बड़े पैमाने पर कोशिश हो सकती है। फर्जी मतदान दरअसल लोकतंत्र की मूल भावना को क्षति पहुंचाता है क्योंकि इससे कई स्थानों पर वे प्रत्याशी जीत जाते हैं जिन्हें जनता चुनना नहीं चाहती। सरकार यदि चाहती है कि चुनाव जन आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करें तो उसे फर्जी मतदान की किसी भी कोशिश को सख्ती से रोकना चाहिए। इसी तरह से प्रलोभन और बाहुबल के बल पर चुनाव जीतने के मंसूबे बांध बैठे प्रत्याशियों पर भी नकेल कसी जानी चाहिए ताकि ऐन चुनाव के वक्त उन्हें इसका लाभ न मिल सके।चुनावी विकृतियों पर अंकुश लगाने के लिए सबसे अधिक आवश्यक यह है कि मतदाताओं में चेतना आए और वे गलत तरीके अपनाने वाले प्रत्याशियों पर भरोसा न करें और उन्हीं प्रत्याशियों को चुनें जो उनके भरोसे पर खरे उतर सकें क्योंकि सिर्फ सरकार या प्रशासन के बल पर यह लोकतांत्रिक यज्ञ सफल नहीं हो सकता।
-सर्वदमन पाठक

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