Tuesday, December 22, 2009

कही- अनकही

विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने कहा- चीन से सीमा को लेकर हमारा मतभेद जरूर चल रहा है लेकिन यह 1962 नहीं, 2009 है। अब भारत की स्थिति ऐसी नहीं है कि कोई उसे डरा धमका सके।क्या आशय है उनका?भले ही 1962 की जंग मेंं भारत को चीन के हाथों पराजय झेलनी पड़ी हो और अपने एक बड़े भूभाग को खोना पड़ा हो लेकिन अब भारत ऐसी ताकत बन चुका है जिसे धमकियों अथवा ताकत की भाषा से झुकाया नहीं जा सकता। चीन की आपत्ति के बावजूद दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा और इसके बाद ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अरुणाचल दौरा इस बात का प्रमाण है कि भारत अब चीन की नाजायज मांगों को मानने के लिए न तो तैयार है और न ही उसकी ऐसी कोई बाध्यता है।क्या है हकीकत?यह सच है कि भारत ने सैन्य तथा असैन्य, दोनों ही क्षेत्रों में काफी जबर्दस्त प्रगति की है और आज दुनिया में उसे सबसे तेजी से बढ़ती आर्थिक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है। अंतर्राष्टï्रीय राजनीति में भी उसे कहीं ज्यादा प्रतिष्ठïापूर्ण स्थान हासिल है अत: क्षमता की दृष्टिï से उसे किसी से कमतर नहीं आंका जा सका। चीन के ऐतराज के बावजूद मनमोहन सिंह तथा दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा निश्चित ही विदेशमंत्री के इस दावे की पुष्टि करती है कि भारत को धमकियों से झुकाया नहीं जा सकता लेकिन यह वस्तु स्थिति का सिर्फ एक ही पहलू है। अरुणाचल में चीनी सैनिकों द्वारा घुसकर धमकाने की घटनाओं की केंद्र सरकार द्वारा अनदेखी और चीन की आपत्ति के बाद लेह( लद्दाख) में सड़क निर्माण पर रोक से इसकी दूसरी तस्वीर ही सामने आती है। भारत को 1962 की घटनाओं से सबक लेना चाहिए जब हिंदी चीनी भाई भाई के नारे के भ्रमजाल में उलझकर हमने चीन के नापाक इरादों का अंदाज लगाने में भूल की जिसका खमियाजा हम आज भी भुगत रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि भारत चीन से सीमा विवाद सहित तमाम मुद्दों पर खुले दिल विचार तो करे लेकिन साथ ही उसकी किसी भी नाजायज मांग का सख्ती से प्रतिकार करे।

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