Thursday, December 17, 2009

जीत के जश्र के साथ हार पर आत्मचिंतन भी जरूरी

माननीय मुख्यमंत्री जी, आपके आसमान छूते मनोबल को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं। इसी मनोबल के कारण तो आपने इतने कम समय में उपलब्धियों के आकाश को स्पर्श किया है जो प्रदेश के अन्य किसी भी भाजपा नेता के लिए सपना ही है। आपके नेतृत्व में प्रदेश में भाजपा ने दुबारा जनादेश हासिल किया और उसके कुछ माह बाद ही लोकसभा चुनाव में भाजपा को जबर्दस्त झटका लगा लेकिन दोनों ही स्थितियों में आपके मनोबल में कोई भी गिरावट नहीं आई। नगरीय निकायों के चुनाव के तुरंत बाद आई आपकी उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया आपके मनोबल की इसी यथास्थिति का विस्तार है। यह अलग बात है कि आपकी सरकार की नाक के नीचे भोपाल में नगर निगम परिषद पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है और मेयर पद के चुनाव का परिणाम भाजपा प्रत्याशी कृष्णा गौर की जीत कम और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारी गई नितांत ही अपरिचित उम्मीदवार आभा सिंह की हार ज्यादा है। यदि यह कहा जाए कि भोपाल के मेयर का पद भाजपा को कांग्रेस ने तश्तरी में रख कर दे दिया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।दरअसल आपको उच्च मनोबल के स्थायी भाव को थोड़ा विराम देकर यह आत्मचिंतन तो करना ही चाहिए कि आखिर भोपाल के अधिकांश वार्डों में भाजपा हार कैसे गई। यक्ष प्रश्न यह है कि राजधानी जो सत्ता का शक्ति केंद्र तथा स्नायु तंत्र होती है, वहां अधिकांश वार्डों में जनता भाजपा प्रत्याशियों से रूठ कैसे गई। यदि आप खुद राजधानी की गलियों में घूम कर देखें तो आपको इस प्रश्र का उत्तर आसानी से मिल जाएगा। आजकल राजधानी की सड़कों एवं गलियों का यह आलम है कि यह किसी पिछड़े देहात से भी कहीं ज्यादा ऊबड़ खाबड़ हैं। इस पर सफर करते हुए हमें यह अहसास होता है कि हम चंद्र धरातल की सैर कर रहे हैं। नेहरू नगर और उसके आसपास की बस्तियों में तो इसी कारण सड़क हादसों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। लेकिन जब इसकी शिकायत संबंधित भाजपा पार्षदों से की गई तो उन्होंने उसे पूरी तरह अनसुना कर दिया। यही कारण था कि कई बस्तियों में तो भाजपा प्रत्याशियों को या उनके समर्थन में प्रचार करने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं को मतदाताओं ने कई स्थानों पर घुसने तक नहीं दिया। इतना ही नहीं, भोपाल नगर निगम का पिछले पांच साल के कार्यकाल का परिदृश्य देखा जाए तो इसमें विपक्ष की रुचि जन समस्याओं को सुलझाने में कम और निगम के कामकाज में बाधा खड़ी करने में ज्यादा रही। कोलार नगर पालिका भी फिलहाल राजनीति के अखाड़े जैसी ही नजर आती है जिसमें आए दिन सत्तारूढ़ पक्ष एवं विपक्ष में रस्साकशी के कारण जन समस्याओं से जुड़ी मांगें नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह बेअसर रह जाती हैं। राजधानी प्रदेश का हृदय है। यदि प्रदेश में अपनी जीत का परचम फैलाने वाली भाजपा राजधानी में नगर निगम परिषद का चुनाव हार जाए तो ऐसा लगता है कि मानो राजमुकुट का हीरा ही गायब हो गया हो।वक्त का तकाजा है कि आप भोपाल शहर की राजनीतिक संस्कृति में आई विकृतियों को दूर करने और यहां की जन सुविधाओं को महानगरीय स्वरूप प्रदान करने में अपनी समुचित भूमिका निभाएं।
-सर्वदमन पाठक

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