Sunday, December 27, 2009

कांग्रेस: अतीत के गौरव को संजोकर रखने की चुनौती

भारतीय राष्टï्रीय कांग्रेस को देश के इतिहास में ऐसी गौरवशाली पार्टी के रूप में पहचान हासिल है जिसने न केवल राष्टï्र की आजादी की इबारत लिखी बल्कि स्वातंत्र्योत्तरकाल के अधिकांश वर्षों में देश को नेतृत्व प्रदान किया। इसके अलावा समाज सुधार में भी कांग्रेस ने अहम भूमिका निभाई। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश सिविल सर्वेंट ए ओ ह्यïूम की पहल पर की गई थी और इसका उद्देश्य शिक्षित भारतीयों तथा ब्रिटिश राज के बीच नगरीय एवं राजनीतिक डायलाग के लिए एक फोरम प्रदान करना तथा उन्हें ब्रिटिश राज में उन्हें अधिक हिस्सेदारी का प्रलोभन देकर संतुष्टï करना था। प्रकारांतर से कहा जाए तो पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश राज को भारत का सत्ता हस्तांतरण हुआ तो ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के विद्रोही तेवर को शिथिल करने के लिए पर्दे के पीछे से यह फोरम बनवाया था। अत: स्वाभाविक रूप से शुरुआती तौर पर इस फोरम का ब्रिटिश राज से कोई विरोध नहीं था। सच तो यह है कि तत्कालीन वायसराय लार्ड डफरिन की मंजूरी के बाद ही मुंबई में 28 दिसंबर 1885 को एलेन आक्टेवियन ह्यïूम, दादाभाई नैरोजी, दिनशा वाचा, वोमेश चंद्र बैनर्जी, सुरेद्रनाथ बैनर्जी, मनमोहन घोष और विलियम बेडरबर्न सहित 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति में कांग्रेस की स्थापना हुई थी और इसके प्रथम अध्यक्ष श्री वोमेश चंद्र बैनर्जी थे। प्रति वर्ष दिसंबर में मुंबई में इसकी बैठक होती थी।लेकिन कालांतर में कांग्रेस आजादी की राष्टï्रीय आकांक्षा को प्रतिबिंबित करने लगी और उसने आजादी के आंदोलन की कमान संभाल ली। 1907 में पार्टी दो भागों में बंट गई जिनमें गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक के हाथ में था और गोपाल कृष्ण गोखले नरम दल का नेतृत्व कर रहे थे। इनमें से तिलक के नेतृत्व को जबर्दस्त जन समर्थन हासिल हुआ और इसके फलस्वरूप कांग्रेस ब्रिटिश आंदोलन के खिलाफ एक वृहत जनांदोलन में तब्दील हो गई। यह पार्टी देश के महानतम नेताओं की जननी रही है। गांधी युग के पहले तिलक, गोखले, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय और मोहम्मद अली जिन्ना ने आजादी के आंदोलन को जन जन तक पहुंचाने मेें महती भूमिका निभाई। हालांकि बाद में मोहम्मद अली जिन्ना में मुस्लिम लीग के जरिये अलग राह पकड़ ली और देश के विभाजन व पाकिस्तान के गठन का मार्ग प्रशस्त कर देश के सीने में ऐसा घाव दे दिया जिसका दर्द आज भी राष्टï्र महसूस करता है। 1905 में बंगाल के विभाजन तथा उसके फलस्वरूप छेड़े गए स्वदेशी आंदोलन के दौरान सुरेंद्र नाथ बैनर्जी तथा हेनरी काटन कांग्रेस के माध्यम में व्यापक जनांदोलन छेड़ दिया।सन 1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और गोखले गुट की मदद से उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया।श्री गांधी ने खिलाफत आंदोलन के साथ मिल कर एक गठबंधन बना लिया। खिलाफत आंदोलन तो बाद में टांय टांय फिस्स हो गया लेकिन इस गठबंधन के कारण कांग्रेस का एक और विभाजन हो गया। चित्तरंजन दास, एनी बेसेंट, मोतीलाल नेहरू जैसे कई नेता कांग्रेस से बाहर चले गए और उन्होंने स्वराज पार्टी का गठन कर लिया। महात्मा गांधी की लोकप्रियता के ज्वार तथा उनके सत्याग्रह से आकर्षित होकर वल्लभभाई पटेल, जवाहर लाल नेहरू, डा.खान अब्दुल गफ्फार खान, राजेन्द्र प्रसाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, कृपलानी, तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेता कांग्रेस में शामिल हो गए। गांधीजी की लोकप्रियता और देश में राष्टï्रवाद की भावना के फलस्वरूप कांग्रेस आजादी के आंदोलन के साथ ही अछूतोद्धार, जाति प्रथा के उन्मूलन, र्धािर्मक कट्टïरता जैसी बुराइयों को दूर करने जैसे सामाजिक सुधार का भी हथियार बन गई।1929 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता मेें हुए लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य निर्धारित किया गया जो आजादी की जंग के इतिहास में एक मील का पत्थर है। 1939 में हुई त्रिपुरी कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए लेकिन उन्हें बाद में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया जबकि वे देश के लोगों में काफी अधिक लोकप्रिय थे। इससे कांग्रेस की प्रतिष्ठïा को निश्चित रूप से झटका लगा। इससे पार्टी से जुड़े कुछ समाजवादी वर्गों ने इससे किनाराकशी कर ली।1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन का आव्हान किया जिसमें हालांकि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को पहले ही गिरफ्तार कर लिये जाने के बावजूद देशवासियों का जो जुनून दिखा उससे ब्रिटिश सरकार हिल गई एवं उसे अहसास होने लगा कि अब भारत के लोग गुलामी के बंधन तोड़कर ही रहेंगे।द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार ने वादा किया था कि यह भारत के लोगों ने इस युद्ध में ब्रिटेन का साथ दिया तो उसे आजादी दे दी जाएगी लेकिन वह अपने वादे से मुकर गई। इसके बाद कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर जनांदोलन छेड़ दिया। सन1946 में नौसैनिकों के विद्रोह को हालांकि कांग्रेस ने स्वीकार नहीं किया पर इस विद्रोह से कांग्रेस के स्वातंत्र्य आंदोलन में निर्णायक मोड़ आया और अंतत: ब्रिटिश सरकार को भारत की आजादी के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन जिन्ना की हठधर्मी के चलते देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना। इस बंटवारे में लाखों बेगुनाहों की जानें गईं। इस घटनाक्रम से नाराज नाथूराम गोड़से ने राष्टï्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर कांग्रेस एवं देश को शोक के सागर में डुबो दिया।हालांकि गांधी जी ने कहा था कि देश की आजादी के साथ ही कांग्रेस का लक्ष्य पूर्ण हो गया है अत: अब कांग्रेस को भंग कर दिया जाना चाहिए लेकिन कांग्रेस के अधिकांश नेता चाहते थे कि देश की सत्ता की बागडोर कांग्रेस ही संभाले। इसी के फलस्वरूप आजादी के बाद केंद्र में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी और आजादी के आंदोलन के एक और दिग्गज नेता श्री वल्लभभाई पटेल उपप्रधानमंत्री बनाए गए। राजेंद्र प्रसाद इस सरकार के राष्टï्रपति थे। पटेल ने भोपाल, हैदराबाद सहित देश की तमाम रियासतों का विलीनीकरण कर आजादी को और मजबूती प्रदान की हालांकि कश्मीर के राजा का अदूदर्शितापूर्ण विलंब आज भी भारत के गले की हड्डïी बना हुआ है।1962 में चीनी आक्रमण के दौरान भारत की जबर्दस्त पराजय ने कांग्रेस सरकार के प्रति जन विश्वास को हिला कर रख दिया। प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री इसी सिलसिले में हुए समझौते के कारण ताशकंद में जान से हाथ धो बैठे और इंदिरा गांधी सत्ता संभाली लेकिन उसके बाद भी 1967 में कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकार सत्ता मेें आ गईं। राष्टï्रपति पद पर संजीव रेड्डïी को उम्मीदवार बनाने के दलीय फैसले पर इंदिरा गुट तथा सिंडिकेट गुट में मतभेद हो गए और 1969 में कांग्रेस का औपचारिक विभाजन हो गया। इंदिरा गांधी ने इंदिरा कांग्रेस का गठन किया जो बाद में असली कांग्रेस जैसी ही ताकतवर हो गई। वैसे इंदिरा गांधी के नेतृत्व में देश में पाकिस्तान के खिलाफ 1965 एवं 1971 की लड़ाई जीती और 71 की विजय तथा बंगलादेश के उदय के कारण तो उन्हें दुर्गा तक के संबोधन से नवाजा गया लेकिन इसके बावजूद जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने उनके चमत्कार को फीका कर दिया। इंदिरा जी ने इससे निपटने के लिए इमरजेंसी लगाया जिसका बिल्कुल उल्टा असर पड़ा और पांच दलों को मिलाकर बनाई गई जनता पार्टी ने चुनाव में इंदिरा गांधी सरकार को पराजित कर दिया। हालांकि इसके बाद भी प्रधानमंत्री के रूप में प्रतिष्ठिïत हुए मोरारजी देसाई भी पुराने कांग्रेस ही थे। चरण सिंह की बगावत से 20 माह मेें ही जनता सरकार गिर गई और इंदिरा गांधी एक बार पुन: जन विश्वास हासिल करने में सफल रहीं। 1984 में ब्लू स्टार आपरेशन के बाद इंदिराजी के अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी और इस इसके फलस्वरूप सिख विरोधी दंगों में हजारों सिख मौत के घाट उतार दिये गए। उधर इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी सहानुभूति की लहर पर सवार होकर प्रधानमंत्री आरूढ़ हो गए। राजीव गांधी सरकार भी बोफोर्स घोटाले के कारण 1989 में चुनाव में पराजित हो गई लेकिन कांग्रेस से बगावत कर जनता दल गठित करने वाले विश्वनाथ सिंह प्रधानमंत्री बन गए। हालांकि राम जन्म भूमि आंदोलन के कारण उनकी सरकार बीच में गिर गई और एक बार फिर नरसिंहराव के नेतृत्व में कांग्रेस ने देश की बागडोर संभाली। 1996 से 2004 तक देश में गैर कांग्रेसी सरकार रहीं लेकिन 2004 से पुन: कांग्रेस का करिश्मा सर चढ़ कर बोल रहा है और सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस देश के दिल पर राज कर रही है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार का सौम्य चेहरा देश में अलग पहचान बनाए हुए है और राहुल गांधी के रूप मेें कांग्रेस को नया युवराज मिल गया है जो देश के भविष्य के नेता के रूप मेें माना जा रहा है।
-सर्वदमन पाठक

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